आर्कटिक ब्लास्ट या कोल्ड ब्लास्ट का मतलब
पृथ्वी पर सबसे ठंडी जगहों में से एक आर्कटिक महासागर है, जो उत्तरी ध्रुव पर मौजूद है। यहां हर वक्त तापमान शून्य से नीचे तकरीबन -89.2 डिग्री सेल्सियस रहता है। ठंड के सीजन में तापमान बहुत कम हो जाने पर अक्षांश वाले इलाकों में बर्फीला तूफान चलने लगता है। इससे पूरे इलाके में मोटी-मोटी बर्फ जम जाती है। इसी को आर्कटिक ब्लास्ट या कोल्ड ब्लास्ट भी कहा जाता है। साइबेरिया, आर्कटिक के सबसे करीब है। इसलिए आर्कटिक ब्लास्ट का असर भी सबसे ज्यादा साइबेरिया पर होता है।
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक सर्दियों में उत्तर भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में पड़ने वाली कड़ाके की सर्दी की वजह आर्कटिक ब्लास्ट होता है।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार मोरक्को (अफ्रीका) की तरफ से गई गर्म हवाओं के चलते उत्तरी ध्रुव पर गर्मी बढ़ी और वहां आर्कटिक ब्लास्ट हुआ।अंटार्कटिका ब्लास्ट या कोल्ड ब्लास्ट का मतलब
दक्षिण ध्रुवीय महासागर, जिसे दक्षिणी महासागर या अंटार्कटिक महासागर भी कहा जाता है, विश्व के सबसे दक्षिण में स्थित एक महासागर है। इसका विस्तार 60° दक्षिण अक्षांश से दक्षिण में है और यह संपूर्ण अंटार्कटिका महाद्वीप को उत्तर दिशा से घेरे हुये है। यह पाँच विशाल महासागरों में से चौथा सबसे बड़ा महासागर है। इस महासागरीय क्षेत्र में उत्तर की ओर बहने वाला ठंडा अंटार्कटिक जल, गर्म उप-अंटार्कटिक जल से मिलता है।
भूगोलविज्ञानियों में दक्षिणध्रुवीय महासागर की उत्तरी सीमा को लेकर मतभेद हैं यहाँ तक कि कुछ तो इसके अस्तित्व को ही नकारते हैं और इसे दक्षिणी प्रशांत महासागर, दक्षिणी अटलांटिक महासागर या हिन्द महासागर का दक्षिणी हिस्सा मानते हैं। कुछ भूगोलविज्ञानी अंटार्कटिक सम्मिलन को वह महासागरीय क्षेत्र मानते हैं जिसकी उत्तरी सीमा जो इसे अन्य महासागरों से पृथक करती हैं, 60वीं अक्षांश नहीं है, अपितु यह मौसमानुसार बदलती रहती हैं।
अंटार्कटिका पृथ्वी पर सबसे ठंडी जगहों में से एक है, जोदक्षिणी ध्रुव पर मौजूद है। यहां हर वक्त तापमान शून्य से नीचे रहता है। ठंड के सीजन में तापमान बहुत कम हो जाने पर दक्षिणी उच्च अक्षांशों वाले इलाकों में बर्फीला तूफान चलने लगता है। इससे पूरे इलाके में मोटी-मोटी बर्फ जम जाती है। इसी को आर्कटिका ब्लास्ट या कोल्ड ब्लास्ट भी कहा जाता है। इसका सबसे ज्यादा असर ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैन्ड आदि देशों में June July माह, जो वहाँ कड़ाके की सर्दी होती हैं, पर होता है।
क्या होता है पश्चिमी विक्षोभ
पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागर से पश्चिम और आसपास की ओर आता है। इसमें कम दबाव की हवाओं के कण होते हैं। इससे ठंडी और नम हवाएं चलती हैं। पश्चिमी विक्षोभ दो तरह से चलता है, पहला ये हिमालय से टकराकर उत्तर भारत को प्रभावित करता है और दूसरा ये उत्तर की ओर उड़ जाता है। मौसम विभाग के अनुसार जनवरी 2019 में अब तक सात पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत में दस्तक दे चुके हैं। पश्चिमी विक्षोभों की ये संख्या काफी ज्यादा है, इस दौरान अमूमन इनकी संख्या लगभग चार होती है।
जानिए क्या है मानसून ब्रेक
मौसम विज्ञानियों के मुताबिक सामान्यत: दक्षिण-पश्चिम मानसून बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) से लेकर राजस्थान के गंगानगर (Ganganagar of Rajasthan) तक एक ट्रफ लाइन बनाती है। इसी इलाके के आसपास मानसून के दौरान सर्वाधिक बारिश होती है। जब मानसून इस रेखा से उत्तर की ओर बढ़ जाता है यानी हिमालय की तराई वाले राज्यों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश का कुछ भाग एवं उत्तरी बिहार की ओर केंद्रित हो जाता है तो उसे मानसून ब्रेक कहा जाता है। मानसून ब्रेक होने पर हिमालय के तराई वाले इलाके में ज्यादा बारिश होती है। यह मानसून की सामान्य प्रक्रिया है।
जानिए- क्या है Arctic Blast, जिसकी वजह से ठिठुर रहे हैं भारत व अमेरिका समेत कई देश
आर्कटिक ब्लास्ट या कोल्ड ब्लास्ट का मतलब
पृथ्वी पर सबसे ठंडी जगह अंटार्कटिका महासागर है, जो उत्तरी ध्रुव पर मौजूद है। यहां हर वक्त तापमान शून्य से नीचे तकरीबन -89.2 डिग्री सेल्सियस रहता है। ठंड के सीजन में तापमान बहुत कम हो जाने पर अक्षांश वाले इलाकों में बर्फीला तूफान चलने लगता है। इससे पूरे इलाके में मोटी-मोटी बर्फ जम जाती है। इसी को आर्कटिक ब्लास्ट या कोल्ड ब्लास्ट भी कहा जाता है। साइबेरिया, आर्कटिक के सबसे करीब है। इसलिए आर्कटिक ब्लास्ट का असर भी सबसे ज्यादा साइबेरिया पर होता है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तर भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में इस बार पड़ रही कड़ाके की सर्दी की वजह आर्कटिक ब्लास्ट हो सकता है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार मोरक्को की तरफ से गई गर्म हवाओं के चलते उत्तरी ध्रुव पर गर्मी बढ़ी और वहां आर्कटिक ब्लास्ट हुआ।
वर्ष 2016 में भी आर्कटिक ब्लास्ट से कई देशों में कड़ाके की ठंड पड़ी थी। साइबेरिया में पारा -62 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। लोगों की भौहों और दाढ़ी तक पर बर्फ जम जा रही थी।...
भारत, अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों में इस बार कड़ाके की ठंड ने कई साल के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। कड़ाके की ये ठंड इस बार न केवल बहुत जल्दी शुरू हुई, बल्कि लंबी चल रही है। आलम ये है कि इस वर्ष भारत के उन पहाड़ी इलाकों में भी भारी बर्फबारी हुई है, जहां 10 साल से ज्यादा समय से बर्फ नहीं गिरी थी। बर्फ गिरने का ये सिलसिला अब भी जारी है। इसकी वजह आर्कटिक ब्लास्ट है। इसी वजह से अमेरिका में खून जमा देेने वाली सर्दी पड़ रही है और लोगों को ठंड से बचने के लिए घर से बाहर निकलने पर गहरी सांस न लेने और कम बात करने की चेतावनी जारी की गई है। वहीं ब्रिटेन में भी हवाई यात्रा बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।
मंगलवार को राजस्थान के चूरू में तापमान -1.1 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। भारतीय मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार राजस्थान समेत समस्त उत्तर भारत में भीषण ठंड पड़ने की वजह, पोलर वोर्टेक्स (ध्रुवीय चक्रवात) का टूटना हो सकता है। मौसम विभाग के अनुसार उत्तर भारत में जनवरी के अंतिम पश्चिमी विक्षोभ ने दस्तक दी है। लिहाजा, गुरुवार तक इसका असर देखने को मिलेगा। इसकी वजह से पश्चिमी हिलायन क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल व उत्तराखंड) में बर्फबारी और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बारिश होने की संभावना है।
मौसम विभाग के अनुसार उत्तर भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में इस वर्ष पड़ रही कड़ाके की सर्दी का संबंध आर्कटिक की बर्फीली हवाओं से है। वहां की बर्फीली हवाओं के कारण ही उत्तर भारत समेत यूरोप व अमेरिका में भी इस बार रिकॉर्ड तोड़ सर्दी पड़ रही है। आर्कटिक से ठंड यूरोप और अमेरिका में फैल रही है, जो पश्चिमी विक्षोभ के साथ उत्तर भारत तक पहुंच रही है।
क्या होता है पश्चिमी विक्षोभ
पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागर से पश्चिम और आसपास की ओर आता है। इसमें कम दबाव की हवाओं के कण होते हैं। इससे ठंडी और नम हवाएं चलती हैं। पश्चिमी विक्षोभ दो तरह से चलता है, पहला ये हिमालय से टकराकर उत्तर भारत को प्रभावित करता है और दूसरा ये उत्तर की ओर उड़ जाता है। मौसम विभाग के अनुसार जनवरी 2019 में अब तक सात पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत में दस्तक दे चुके हैं। पश्चिमी विक्षोभों की ये संख्या काफी ज्यादा है, इस दौरान अमूमन इनकी संख्या लगभग चार होती है।