♡ ये नव-वर्ष हमें स्वीकार नहीं ♡ रामधारीसिंह 'दिनकर' जी की कविता ये नव-वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं। है अपनी ये तो रीत नहीं, है अपना ये व्यवहार नहीं। 🌴 धरा ठिठुरती है सर्दी से, आकाश में कोहरा गहरा है। बाग़ बाज़ारों की सरहद पर, सर्द हवा का पहरा है। 🌴 सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं। हर एक है घर में दुबका हुआ नव-वर्ष का ये कोई ढंग नहीं। 🌴 चंद मास अभी इंतज़ार करो, निज मन में तनिक विचार करो। नया साल नया कुछ हो तो सही, ...
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