आपको ये तो मालूम ही होगा कि अलग अलग जगहों पर अलग अलग वक़्त सूरज निकलता है, क्योंकि धरती गोल है और पश्चिम से पूर्व की ओर घूम रही है। हर वक़्त, कहीं न कहीं गुड मॉर्निंग हो रही होती है और कहीं न कहीं गुड ईवनिंग।
हमारे देश में हर जगह एक साथ एक ही वक़्त होता है। यानी भारत में एक ही टाइम ज़ोन है। साइंस समझने वाले लोग इस बात पर विचार कर रहे हैं कि देश में दो टाइम ज़ोन होने चाहि।
2002 में एक कमिटी बनाई गई थी जो इस बात पर रीसर्च के दम पर फ़ैसला लेने वाली थी कि क्या देश में एक और टाइम ज़ोन होना चाहिए। कमिटी ने कहा कि दूसरा टाइम ज़ोन लाने पर बहुत कॉम्प्लेक्स सिचुएशन बन जाएंगी।
गुवाहाटी कोर्ट में एक PIL भी दायर हुई थी जिसका कहना था कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए दूसरा टाइम ज़ोन बनाया जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इस PIL को ख़ारिज कर दिया था।
तो
क्या भारत में दो टाइम ज़ोन होने चाहिये?
भारत एक विशाल देश है जिसका विस्तार पूर्व में बांग्लादेश की सीमा से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक है, लेकिन विशाल भौगोलिक क्षेत्र के बावजूद हमारे यहाँ एक ही टाइम ज़ोन (time zone) है। वर्षों से विभिन्न नागरिकों और राजनेताओं के बीच इस बात पर बहस जारी है कि भारत में दो अलग-अलग टाइम ज़ोन होने चाहिये या नहीं। एक तरफ पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा माँग की जाती है कि उनके समय को दो से ढाई घंटे बढ़ा दिया जाए। वहीँ दूसरी तरफ, इसका विरोध किया जाता है और विरोध के संदर्भ में तर्क यह दिया जाता है कि अलग टाइम ज़ोन बनने से कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ सामने आ सकती हैं।
वर्तमान संदर्भ
- वर्तमान में दो टाइम ज़ोन का प्रस्ताव स्वयं राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा किया है जो कि भारत में आधिकारिक मानक समय का निर्धारण करता है।
- राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला ने भारत में दो टाइम ज़ोन की आवश्यकता के संदर्भ में एक शोध लेख प्रकाशित किया है, इस शोध में एक नए टाइम ज़ोन का प्रस्ताव है जो कि वर्तमान टाइम ज़ोन से एक घंटा आगे होगा।
- करेंट साइंस में प्रकाशित इस लेख ने एक बार फिर से अलग टाइम ज़ोन की मांग संबंधी बहस को फिर से हवा दे दी है।
- इस शोध में बताया गया है कि कैसे दो टाइम ज़ोन की समय-सीमा को अलग-अलग निर्धारित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला का प्रस्ताव
- राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा जारी शोध पत्र दो टाइम ज़ोन IST-1 (UTC+ 5.30 h) और IST-2 (UTC+ 6.30 h) निर्धारित करने की माँग करता है।
- सीमांकन की प्रस्तावित रेखा 89०52'E असम और पश्चिम बंगाल के बीच संकीर्ण सीमा रेखा है।
- इस रेखा के पश्चिम में स्थित राज्य भारतीय मानक समय अर्थात् IST-1 का पालन करना जारी रखेंगे। रेखा के पूर्व में स्थित राज्य - असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह IST-2 का पालन करेंगे।
- शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि लेख में बताए गए सूत्र के आधार पर सालाना 20 मिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत होगी।
- राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला के इस विचार को संभव बनाने के लिये नए टाइम ज़ोन में दूसरी प्रयोगशाला की आवश्यकता होगी।
अलग टाइम ज़ोन से क्या होगा? ये असली मुद्दा है। इसे समझना ज़रूरी है।
अगर दूसरे टाइम ज़ोन को introduce करने से मामला कॉम्प्लेक्स होगा तो दूसरी तरफ़ देश में बिजली बचेगी. कैसे?
नक़्शे पर अगर इंडिया को पूरब से पश्चिम तक देखा जाये तो पूर्व में सबसे किनारे पर जो गांव है वो है अरुणाचल प्रदेश का डोंग गाँव है, वहीं पश्चिम में सबसे कोने में मिलता है गुजरात का गुहर मोटा गांव है। यानी इंडिया डोंग से गुहर मोटा तक फैला हुआ है। अब देशांतर रेखाओं के हिसाब से देखा जाए तो इंडिया 97 डिग्री 25 मिनट पूर्व से लेकर 68 डिग्री 7 मिनट पूर्व तक फैला हुआ है।
अब आते हैं नॉर्थ ईस्ट में क्योंकि वहां के लिए एक अलग टाइम ज़ोन बनाए जाने की बात हो रही है। होता ये है कि नॉर्थ ईस्ट में बाकी इंडिया के मुकाबले सूरज जल्दी उग जाता है। लेकिन दफ़्तरों की टाइमिंग बाकी इंडिया के हिसाब से ही चलती है। सरकारी कामकाज 10 बजे से ही शुरू होता है। अब, अगर बाकी हिस्सों के मुकाबले सुबह जल्दी हो रही है तो शाम भी जल्दी होगी। यानी रोशनी कम हो जाने के बाद भी देश के उस हिस्से के दफ़्तरों में काम-काज चलता रहता है। यानी बिजली की खपत लगातार होती रहती है। ऐसे में अगर वहां के लिए नया टाइम ज़ोन बना दिया जाए तो वहां दिन के शुरू होते ही काम शुरू हो सकता है और दिन ढलने पर काम बंद किया जा सकता है। सरकारी कैलकुलेशन के हिसाब से नए टाइम ज़ोन को बनाने से एक साल में 2 करोड़ kWh बिजली बचाई जा सकती है। इतनी बिजली में 100 वाट के 23 हज़ार बल्ब एक साल के लिए जल सकते हैं. बाकी, आप खुद समझदार हैं।
मानक समय
- प्रत्येक देश का एक मानक समय होता है जो अक्षांश और देशांतर में अंतर के आधार पर मापा जाता है। भारत में आधिकारिक भारतीय मानक समय का निर्धारण उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद को केंद्र में रखकर होता रहा है जिसका निर्धारण दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा किया जाता है।
- कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक भारत में एक ही टाइम ज़ोन मान्य है। यह व्यवस्था वर्ष 1906 में बनाई गई थी। हालाँकि 1948 तक कोलकाता का आधिकारिक समय अलग से निर्धारित होता था और इसका कारण यह था कि वर्ष 1884 में वॉशिंगटन में विश्व के सभी टाइम ज़ोन्स में एकरूपता लाने के उद्देश्य से हुई इंटरनेशनल मेरिडियन कॉन्फ्रेंस में तय हुआ कि भारत में दो टाइम ज़ोन होंगे। इसलिये कोलकाता का टाइम ज़ोन दूसरे मान्य टाइम ज़ोन के रूप में प्रचलित रहा। गौरतलब है कि मुंबई का समय भी 1955 तक अलग से मापा जाता था, हालाँकि उसे आधिकारिक तौर पर कभी लागू नहीं किया गया।
एक से अधिक टाइम ज़ोन की आवश्यकता
विस्तृत भूभाग वाले हमारे देश में एक से ज़्यादा टाइम जोन की ज़रूरत की स्पष्ट वज़ह यह है कि देश के कई हिस्सों में सूरज दूसरे हिस्सों के मुकाबले पहले उगता और अस्त होता है। पूर्वोत्तर में सुबह और शाम देश के बाकी हिस्सों कि तुलना में जल्दी होते हैं, इस कारण एक निश्चित समय सारिणी के अनुसार खुलने वाले दफ्तरों में काम करने वाले लोगों को परेशानी का सामना तो करना ही पड़ता है साथ ही वायुयानों की उड़ानों आदि के संचालन में भी असुविधा होती है।
एक से अधिक टाइम ज़ोन की माँग कितनी व्यावहारिक?
- देश के पूर्वी हिस्से में सूर्योदय सुबह लगभग 4 बजे (अरुणाचल प्रदेश में) हो जाता है, परंतु शेष भारत की तरह यहाँ भी दफ्तर जाने का समय सुबह 10 बजे है, अर्थात् दिल्ली में कोई व्यक्ति तरोताज़ा होकर दफ्तर पहुँचता है जबकि उत्तर-पूर्वी राज्यों में व्यक्ति दिन का काफी समय गुज़रने के बाद दफ्तर पहुँचता है। इस प्रकार से वह काम से लौटते हुए ही नहीं, बल्कि जाते वक्त भी थका हुआ होता है।
- पूर्वी-पश्चिमी छोर के स्थानीय समय में इतने अंतर के कारण मानव श्रम तथा वर्ष भर में अरबों यूनिट बिजली का नुकसान होता है। मानव श्रम की हानि से निश्चित तौर पर इन राज्यों का विकास बाधित होता है।
- यह तो निश्चित है कि अलग मानक समय की व्यवस्था से मानव श्रम का उचित प्रबंधन और बड़ी मात्रा में बिजली की बचत की जा सकती है। एक अन्य उपाय के अनुसार अलग-अलग मानक समय बनाने की बजाय पूर्वोत्तर राज्यों में काम-काज़ का समय एक या दो घंटे पहले करना भी इस समस्या का व्यावहारिक और प्रभावी समाधान हो सकता है।
अलग टाइम ज़ोन का वैश्विक परिदृश्य
- विभिन्न देशों में समय को किसी कठोर नियम के माध्यम से ही नहीं बल्कि लोगों की सुविधा के अनुसार भी निर्धारित किया जाता है।
- वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक टाइम ज़ोन फ्राँस में हैं यहाँ 12 टाइम ज़ोन हैं तो अमेरिका में 9 टाइम ज़ोन हैं।
- रूस में 11 टाइम जोन हैं।
- बर्फीले देश अंटार्कटिका की विशालता के कारण वहाँ 10 टाइम ज़ोन हैं।
- ब्रिटेन भी 9 टाइम ज़ोन का इस्तेमाल करता है।
- ऑस्ट्रेलिया में केवल 8 टाइम जोन हैं। यहाँ के एक हिस्से में जब सुबह के 5 बजते हैं तो उसी समय दूसरे हिस्से में सुबह के 11 बजे चुके होते हैं।
- छोटा सा देश डेनमार्क भी 5 टाइम ज़ोन में विभाजित है।
निष्कर्ष
टाइम ज़ोन के प्रति एक आम भारतवासी के मन में यही छवि है कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसे बदला नहीं जा सकता और इसके कारण होने वाले नुकसान को हमें हर हाल में झेलना ही होगा, जबकि ऐसा है नहीं। अब तो राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला ने भी अलग टाइम ज़ोन बनाने का प्रस्ताव सामने रख दिया है। यदि अलग मानक समय की व्यवस्था से मानव श्रम का उचित प्रबंधन और बड़ी मात्रा में बिजली की बचत की जा सकती है तो इस संबंध में विचार किये जाने की आवश्यकता है।