कोरोना काल में दौलतमंदों को एक अद्भुत सीख – जीवन के आठ सूत्र from ''मरूभूमि का वह मेघ" श्री राम निवास जाजू द्वारा लिखी पुस्तक स्व० घनश्याम दास बिड़ला की जीवनी से...
आज का कटु सत्य--
जब घनश्याम दास बिड़ला ने लिखी अपने बेटे को एक चिठ्ठी कोरोना काल में दौलतमंदों को एक अद्भुत सीख
पिछले कुछ दशकों में शहर ही नहीं कस्बों में धनिकों (अमीरों) की अच्छी खासी संख्या बढ़ी है,
लेकिन बिडम्बना यह है इस महा संकट के समय ये धनिक मरते गिरते समाज का सहारा बनने के बजाय अपने खजाने का विस्तार करने में मग्न हैं।
ऐसे में एक पुस्तक के दो पृष्ठों का उल्लेख करना रोचक रहेगा।
पुस्तक का नाम है ---'' मरूभूमि का वह मेघ"
श्री राम निवास जाजू द्वारा लिखी यह पुस्तक स्व० घनश्याम दास बिड़ला की जीवनी है।
इस पुस्तक में घनश्यामदास बिड़ला का एक पत्र छापा गया है जो उन्होंने अपने पुत्र बसंत कुमार बिड़ला को लिखा था।
सन 1934 में देश के एक बड़े पूँजीपति द्वारा व्यक्त किए गए विचार, आज के धनिकों के लिए एक जबरदस्त सीख हैं।
बिड़ला जी ने इस पत्र में जीवन के आठ सूत्रों को लिखा है।
वर्तमान संकट में मेरे और आपके शहर के धनिक इस पत्र को हृदंगम कर अपने जीवन का सही रास्ता तय करेंगे, ऐसी उम्मीद है।
पत्र इस प्रकार है ----
चि. बसंत!
यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना। अपने अनुभव की बात कहता हूँ--
1. संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है।
तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है, अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।
2. धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं कि धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है, उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो।
3. धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो।
4. अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे।
5. ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते।
हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे।
6. भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी।
7. नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है। सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है l मैंने देखा है कि स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होने पर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना।
8. भोजन को दवा समझकर खाना। जो स्वाद के वश होकर खाते हैं, वे जल्दी मर जाते है। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना।
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