विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) 5 जून पर पर्यावरण से संबंधित समस्याएं एवं समाधान पर विशेष प्रश्न उत्तर
विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) 5 जून
की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।
आओ इस पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण से संबंधित कुछ
महत्वपूर्ण प्रश्न - उत्तर के माध्यम से पर्यावरण का हमारे लिए क्या
महत्व है और हम इसको कैसे संरक्षित रख सकते हैं, को सीखने – समझने का प्रयास
करते हैं।
Ø पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है?
विश्वभर
में पर्यावरण दिवस (Environment Day)
हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है।
Ø हम विश्व पर्यावरण दिवस क्यों मनाते हैं?
विश्व
पर्यावरण दिवस मानव समाज को प्रकृति और हमारे पर्यावरण को संरक्षित रखने, इसको
बचाने के लिए प्रेरित करने के लिए मनाया जाता है।
Ø इन्वायरमेंट (Environment) क्या है?
इन्वायरमेंट
(Environment)
शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा, यानी फ्रांस की भाषा फ्रेंच के शब्द “Environer” या “Environner”
से हुई है जिसका अर्थ होता है “Neighbourhood”
अर्थात “पड़ोस” यानि “चारों ओर”
पृथ्वी
के चारों ओर गैसों का आवरण तथा जैव – अजैव घटकों का मिला – जुला स्वरूप, जो हमारी
पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए हैं तथा जीवन जीने के अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध
कराता है, पर्यावरण (Environment)
कहलाता है।
सभी
प्रकार के जीव - जंतु और पेड़ – पौधे तथा मनुष्य पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। जिसे
हम बायोस्फीयर या जैवमंडल भी कह सकते हैं।
Ø पर्यावरण का हमारे लिए क्या महत्व है?
पर्यावरण का हमारे लिए सबसे बड़ा महत्व
यही है कि यदि पृथ्वी पर पर्यावरण (वायुमंडल) न होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव था। पर्यावरण
हमें जीवन जीने के लिए जीवनदायिनी ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है। पेड़ - पौधे कार्बन
डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और वायुमंडल में ऑक्सीजन को भरते रहते हैं। प्राकृतिक
वातावरण, मनुष्य और पृथ्वी पर अनेकों जीव-जंतुओं के लिए अनुकूल परिस्थितियां
उपलब्ध कराता है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण के बिना जीवन असंभव है।
Ø हमारा पर्यावरण दूषित क्यों होता जा रहा है?
हमारा
पर्यावरण मानवीय गतिविधियों के कारण से दूषित हो रहा है। हालांकि पर्यावरण कभी-कभी
प्राकृतिक कारणों से भी दूषित होता है, जैसे- किसी स्थान पर ज्वालामुखी विस्फोट
होने से वातावरण में धुआं भर जाना, शुष्क मरुस्थल क्षेत्रों में आंधी आने से
वातावरण में धूल का भर जाना, पहाड़ी क्षेत्रों में बरसात होने से नदी नालों के
पानी में गाद (Silt) का भर जाना और समुद्र के
तटीय भागों में तोकते (Taukte) (May 2021, अरब सागर में) और यास (Yaas) (May 2021, बंगाल की खाड़ी में) जैसे, भयंकर समुद्री चक्रवाती तूफान (Tropical
Cyclones) आने के कारण बाढ़ का आना, पेड़ पौधों का टूटना, बाढ़ के
बाद विभिन्न जीव जंतुओं के मरने, गलने, सड़ने के कारण वातावरण के अंदर दुर्गंध फैल
जाना आदि, जिससे वातावरण दूषित होता है। लेकिन इन प्राकृतिक कारणों के कुछ
संक्षिप्त प्रभाव होते हैं, जबकि मनुष्य के द्वारा पिछले कुछ दर्शकों और
शताब्दियों से किए जा रहे लगातार प्राकृतिक दोहन के कारण हमारा पर्यावरण लगातार
दूषित होता जा रहा है और वायुमंडल में गैसों की स्थिति (मात्रा) बदलती जा रही है। कार्बन
डाइऑक्साइड गैस (Co2) जो वातावरण में बिल्कुल सीमित मात्रा
में है, धीरे-धीरे उसकी मात्रा बढ़ती जा रही है। इससे हमारे प्राकृतिक वातावरण का
संतुलन बिगड़ रहा है और विश्व स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिस्थितियां बन रही हैं,
जिसके परिणाम स्वरूप समस्त पृथ्वी पर मौसम प्रणालियों में बदलाव देखा जा रहा है। कहीं
पर अकाल (Drought) पड़ रहे हैं, तो कहीं पर बाढ़ (Floods) आ रही है। चक्रवात (Cyclones) बार-बार आ रहे हैं
और उनकी टेंडेंसी (बारंबारता) तथा साइज (आकार) दोनों ही बढ़ रहे हैं। ध्रुवीय
क्षेत्रों में शुद्ध ताजे जल के स्रोत ग्लेशियर (हिमनद) तेजी से पिघल रहे हैं। बहुत सारी पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की
प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर खड़ी है तथा अनेक प्रजातियां, जैसे – डाइनसोर,
मैमथ आदि लुप्त हो चुकी हैं। इन सबके पीछे
कुछ प्राकृतिक कारणों को छोड़कर कहीं ना कहीं मनुष्य की प्राकृतिक संसाधनों के दोहन
की गतिविधियों का ही हाथ है।
Ø पर्यावरण प्रदूषण में औद्योगिक क्रांति का क्या प्रभाव है?
औद्योगिक
क्रांति की शुरुआत 1750 के आसपास
इंग्लैंड से हुई। अंत:दहन इंजन का आविष्कार हुआ। अंत:इंजन की जो कार्य प्रणाली है
उसमें ऑक्सीजन के साथ मिलकर ईंधन (पेट्रोल, डीजल आदि) जलता है और धीरे-धीरे
औद्योगिक क्रांति इंग्लैंड से पूरी दुनिया में फैले गई। औद्योगिक क्रांति के कारण
से वायु प्रदूषण, स्थल प्रदूषण यानि भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण,
सभी प्रकार का प्रदूषण हो रहा है। ऐसा नहीं है कि उद्योग हमारे लिए जरूरी नहीं हैं
लेकिन इनसे होने वाले प्रदूषण का निदान करना भी हमारे लिए जरूरी है।
Ø क्या पर्यावरण के ह्रास में व्हीकल्स
का भी योगदान है?
हां,
पूरी दुनिया में जैसे-जैसे परिवहन के साधनों का विकास हुआ तो दिन प्रतिदिन व्हीकल्स
बढ़ते जा रहे हैं। देश और दुनिया में और हमारे भारत में तो ये हालात हैं (परिवहन
मंत्रालय का कहना है) कि हमारे देश में जिस तेजी से व्हीकल्स की संख्या बढ़ रही है
तो हर हाईवे पर हर 3 साल में एक पट्टी
और जोड़नी पड़ेगी यानी एक लाइन और बनानी पड़ेगी, ताकि उन व्हीकल्स को चलाया जा सके।
हैरान करने वाली बात आपके लिए, हमारे लिए यह है कि पूरी दुनिया में जितने भी जीव
जंतु और मनुष्य आदि हैं वे उतनी मात्र में ऑक्सीजन को सांसो के रूप में नहीं लेते
हैं जितना की व्हीकल्स ले लेते हैं। व्हीकल्स कोई दो या तीन गुना ज्यादा ऑक्सीजन
का ह्रास करते हैं क्योंकि उनके अंदर इंजन तभी स्टार्ट होगा जब ऑक्सीजन उसके अंदर
एयर क्लीनर के माध्यम से जाएगी। यानि ऑक्सीजन की ज्यादा खपत व्हीकल्स कर रहे हैं।
Ø क्या कृषि कार्य भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है?
कृषि
का कार्य लगभग 8 से 10
हजार वर्ष पुरानी आर्थिक क्रिया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से धीरे-धीरे हमारे
कृषि कार्य और उनका बदलता स्वरूप पर्यावरण को जाने अनजाने नुकसान पहुँचा रहा है।
किसान जरूरत से ज्यादा उर्वरकों (DAP और यूरिया) और
कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। इससे धीरे – धीरे भूमि प्रदूषण और वायु प्रदूषण
बढ़ता है। कभी-कभी जो कृषि फसलों के अवशेष हैं उनको जलाने से भी जैसे पराली का
जलाना तो पर्यावरण प्रदूषण बहुत होता है।
Ø प्लास्टिक को पर्यावरण को दूषित करने में आप कितना जिम्मेवार मानते हैं?
प्लास्टिक
मनुष्य की गतिविधियों का परिणाम है। प्रकृति ने प्लास्टिक को नहीं बनाया है। मनुष्य ने जब से ड्रिलिंग शुरू की तो, हमें
पेट्रोलियम यानी क्रूड ऑयल जैसे उत्पाद मिले। जब हम पेट्रोलियम का शोधन करते हैं तो उससे हमें
बायो प्रोडक्ट के रूप में प्लास्टिक प्राप्त होता है, जो धीरे-धीरे हमारी जीवनशैली
में इतना ज्यादा प्रयोग होने लगा, कि अब हर स्थान पर कहीं ना कहीं आप और हम प्लास्टिक
और प्लास्टिक के उत्पादों को देख रहे हैं। सबसे ज्यादा समस्या तब हुई जब प्लास्टिक का
प्रयोग एक थैली (Bag) के रूप में किया
जाने लगा और हम क्या करते हैं कि बाजार से कोई सामान लाए, सामान रख लिया और पन्नी
या थैली को फेंक दिया और यह धीरे-धीरे कूड़े करकट का ढेर होते चले गए और जहां पर
प्लास्टिक जमीन के ऊपर गिर जाता है तो वहां जमीन के अंदर बरसात का जल जो रिस कर
भूमिगत जल को बढ़ाता था, वह नहीं बढ़ पाता है। प्लास्टिक में एक बड़ी समस्या यह है
कि यह बहुत लंबे समय तक जमीन या मिट्टी में दब जाने के बावजूद गलता नहीं है। इसके कारण
से हर शहर, कस्बा, गांव, जहाँ भी आप देखेंगे प्लास्टिक और कूड़े कचरे के ढेर
वातावरण को अशुद्ध करते नजर आएंगे। इसी प्रकार से यदि आप समुंदर के किनारे (Beech) पर भी चले जाओ तो वहां पर भी आप प्लास्टिक के कूड़े कचरे के ढेर देखेंगे।
Ø क्या प्लास्टिक के कुछ अल्टरनेट हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषण ना हो?
हां,
बिल्कुल हैं आप कुछ समय पीछे जाइए और हमारी सभ्यता और संस्कृति और हमारे पूर्वजों
के जीवन को देखिए। आप देखेंगे कि हम जब भी भोजन करते थे या कोई शादी समारोह आदि का
कार्यक्रम होता तो हम भोजन टाट या जमीन पर बैठकर पत्तल में करते थे जो पेड़ के
पत्तों से बनी होती थी। किसी तरल पदार्थ के लिए हम मिट्टी की दोनों या कसौरे का प्रयोग करते थे। खाना पकाने के लिए मिट्टी की
हांडी होती थी, यानी कोई भी प्लास्टिक प्रोडक्ट हमारी जीवनशैली का अंग नहीं था। अब
तो आप देख रहे हैं कि जो भोजन से संबंधित प्लेट या तो प्लास्टिक की बनी होती हैं
अथवा वे थर्मोकोल की बनी होती हैं। शादी समारोह या कोई भी फंक्शन समाप्त हो जाने
के बाद वे इधर-उधर उड़ती रहती हैं या वातावरण को दूषित करती रहती हैं। प्लास्टिक के
अल्टरनेट के रूप में हमारे पास अनेक उत्पाद हैं। इनके लिए हमें अपनी संस्कृति से
ही सीखना होगा और उन जो बायोडिग्रेडेबल प्रोडक्ट हैं जो प्रकृति से ही लिए गए
उत्पादों या मिट्टी से बने हुए उत्पादों से बने होते हैं उन्हीं के द्वारा हम इन
प्लास्टिक प्रोडक्ट से छुटकारा पा सकते हैं। जैसे- नॉर्थ ईस्ट भारत में आप जाएंगे
तो वहां पर आप देखेंगे, वहां पर अधिकांश बर्तन बांस के बने होते हैं, जैसे थर्मश है
वह भी वहां पर बांस की बनी होती है जो बायोडिग्रेडेबल भी है और उसके अंदर किसी भी
प्रकार का साइड इफेक्ट भी नहीं होता बल्कि मैं आपको एक बात और भी कहूं कि जो
प्लास्टिक प्रोडक्ट होते हैं इनका हमारे शरीर के ऊपर दुष्प्रभाव पड़ता है यानी एक
तो आप कैंपर में रखा पानी पिए और एक मटके में रखा पानी पिए तो मटके का पानी, कैंपर
के पानी से लाख गुना बेहतर है, हमारे शरीर के दृष्टिकोण से।
Ø पर्यावरण में जैव विविधता का क्या रोल है?
जैव
विविधता का अर्थ होता है जीव जंतुओं और पेड़ पौधों की अनेकों प्रजातियां। प्रकृति
ने इस पृथ्वी पर जब से जीवन की उत्पत्ति की है इसमें अनेकों जीव जंतु, अनेकों
प्रकार के पेड़ पौधे, अनेकों प्रकार की स्थलाकृतियाँ आप देखते हैं, यही जैव विविधता
है जो प्रकृति को एक सुंदर संसार के रूप में बदलती है और पर्यावरण को बचाए रखने के
लिए जैव विविधता का होना बहुत जरूरी है क्योंकि यह जो जैव विविधता है इसमें हर जीव
कहीं ना कहीं एक दूसरे पर निर्भर है। जैसे - बड़े उदाहरण के रूप में देखें तो
मनुष्य और जानवर ऑक्सीजन को लेते हैं, सांसों के रूप में और कार्बन डाइऑक्साइड को
छोड़ देते हैं, तो प्रकृति ने कितनी सुंदर व्यवस्था बनाई है कि जो पेड़ पौधे हैं वे
कार्बन डाइऑक्साइड को लेते हैं और ऑक्सीजन बनाते हैं तो इस प्रकार से प्रकृति का
संतुलन इस जगह से बना रहता है और यदि हम एक ही प्रकार के जीव जंतुओं में भी देखें,
जैसे - जानवरों में या पेड़ पौधों में तो कहीं ना कहीं वे भी एक दूसरे पर निर्भर हैं।
जैसे - पेड़ अनेक जीव जंतुओं के लिए आश्रय देते हैं, इसी प्रकार से यदि खाद्य
शृंखला (Food
Chain) की बात करें तो जैव विविधता में खाद्य श्रंखला का भी
महत्वपूर्ण रोल रहता है।
Ø दीपावली के आसपास दिल्ली एनसीआर में इतना पोलूशन हर वर्ष क्यों हो जाता
है? इस से क्या-क्या समस्याएं आती हैं? इसमें पराली जलाने का क्या रोल है?
दिवाली
हमेशा अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है और आप
देखेंगे कि अक्टूबर और नवंबर एक प्रकार का संक्रमण काल होता है, प्रकृति के
दृष्टिकोण से, क्योंकि इसमें धीरे-धीरे ग्रीष्मकाल यानी मानसून सीजन समाप्त होने
को होता है और सर्द ऋतु का आगमन होता है। इसमें वातावरण के अंदर संक्रमण की
परिस्थिति होने के कारण वातावरण में नमी होती हैं, साथ की साथ पोलूशन बढ़ जाता है और
इस समय हवाएं कहीं ना कहीं रुक जाती हैं, तो धूल – धुआँ वातावरण में भर जाता है।
इस धुएं के कारण से जो धुंध (Fog) है और
उसमें धुआँ (Smoke) शामिल हो जाता है तो वह धूम्र कोहरे का
रूप ले लेता है तो इस प्रकार की परिस्थिति बन जाती है और ऐसा हर वर्ष दिवाली के
आसपास 15 से 20 दिन दिल्ली एनसीआर में
विशेष रूप से देखने को मिलता है क्योंकि दिल्ली भारत की राजधानी है, बड़ा महानगर
है और वहां पर अनेकों प्रकार के औद्योगिक कार्य और लाखों - लाखों की संख्या में जो
व्हीकल्स हैं वे धुआँ छोड़ते रहते हैं और इसमें जो वातावरण की संक्रमण की
परिस्थितियां हैं वह महत्वपूर्ण रोल निभाती है। तो क्या होता है कि वायु न चलने के
कारण से वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ने से जो धूल कण हैं वे जलवाष्प के साथ मिलकर वातावरण में तैरते रहते
हैं और वातावरण में इतने ज्यादा भर जाते हैं कि धूम्र कोहरे (Smog) की परिस्थितियां बन जाती हैं। जिसमें सांस लेना दूभर हो जाता है। सांस
लेने में दिक्कत आती है, लोगों को सांस संबंधी परेशानियां होती हैं। जिनको साँसों
की शिकायत होती है या अस्थमा होता है उनको बहुत ज्यादा परेशानियां होती हैं, आंखों
में जलन होती है, मनुष्य हाइपर टेंशन में रहता है, तो इस प्रकार की बीमारियां और समस्याएं
हमारे सामने आती हैं।
जो
खरीफ सीजन होता है दिल्ली एनसीआर के आसपास में हरियाणा, पंजाब में धान की कटाई हो
चुकी होती है। किसान भाई अगली फसल, रबी की लेने के लिए गेहूं की फसल बोने हेतु
खेतों की तैयारी करते हैं तो उनके पास होता पराली को निस्तारण करने के लिए एकमात्र
उपाय ऐसा लगता है कि इस को जलाना ही सबसे आसान है और जल्दी से इसका निदान हो जाएगा
तो उसका जो धुआँ है वह पूरे NCR में पोलूशन
को बढ़ावा देता है।
Ø इसका समाधान क्या करें?
यह
तो सरकार और समाज दोनों की ही इच्छा शक्ति पर डिपेंड करता है। सरकार चाहे तो किसान
भाइयों को सब्सिडी दे सकती है। पुराली को कहीं ना कहीं रीयूज, रीसाइकिल कर सकती है।
उसके किसी और अल्टरनेट के रूप में कहीं ना कहीं प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके साथ-साथ पुराली को गत्ता फैक्ट्री में दिया
जा सकता है। कागज बनाए जा सकते हैं।
दिल्ली
जैसे शहर में पोलूशन कंट्रोल करने के लिए सख्त नियम बनाए जा सकते हैं। जो गाड़ियां
और औद्योगिक क्षेत्र ज्यादा धुआँ देते हैं उनके ऊपर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए और
ईमानदारी निष्ठा से कानूनों को लागू करना पड़ेगा और साथ की साथ हमें अधिक से अधिक
पेड़ पौधे लगाने पड़ेंगे और हर साल इस सिचुएशन के आने से पहले ही हमें इसके जो
बचाव के उपाय है वे कर लेना चाहिए।
Ø कोरोना महामारी से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़े हैं ?
कोरोना,
जैसा कि आप सब जानते हैं पिछले कुछ वर्ष से विश्वव्यापी संक्रामक महामारी बनी हुई
है। इसके कारण से मानव जीवन पर बहुत अधिक कुप्रभाव पड़े हैं। पूरी दुनिया की
अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई है, जान माल की हानि हुई है। पूरी दुनिया में पहली बार
लॉकडाउन जैसे शब्दों को सुनाया। भारत जैसे देश की बात करें तो भारत में पहली बार
रेलवे को रोक दिया गया, पूरे के पूरे शहर बंद कर दिए गए, सब प्रकार के परिवहन साधन
रेल, सड़क, वायुमार्ग, जलमार्ग आदि सब बंद हो गए, फैक्ट्रियां बंद रही, तो इसका
मनुष्य के लिए तो बड़ा कुप्रभाव रहा है लेकिन यह कोरोना पर्यावरण के लिए या कहें
प्रकृति के लिए वरदान साबित हुआ है। प्रकृति को अपने आप को रीबूट करने का मौका मिल
गया क्योंकि सभी प्रकार का जो कार्बन डाइऑक्साइड को उत्पन्न करने वाले स्रोत थे, जैसे
– परिवहन के साधन, उद्योग धंधे वे सब बंद हो गए और वह लंबे समय तक बंद हो गए तो
प्रकृति ने अपने आप को रीबूट कर लिया। इसी कोरोना के कारण हुए Lockdown
का प्रभाव है कि पंजाब के लुधियाना जैसे शहर से कोई 200 किलोमीटर दूर धौलाधार की पहाड़ियां वहां से साफ स्पष्ट दिखाई देने लगी,
नहीं तो पहले वहां पर धूल भरा वातावरण रहता था, कोहरा छाया रहता था तो कभी भी
दिखाई नहीं देती थी, लेकिन वातावरण लॉकडाउन के कारण से इतना साफ हो गया कि वहां से
वह बर्फीले क्षेत्र स्पष्ट दिखाई देने लगे। बगैर किसी दूरबीन के नंगी आंखों से । इसी
प्रकार से महेंद्रगढ़, रेवाड़ी से राजस्थान में फैली अरावली की पहाड़ियां भी साफ
स्पष्ट दिखाई देने लगी। भारत की गंगा नदी, जिस को साफ करने के लिए सरकार हमेशा से
प्रयास करती रही हैं, 20000 करोड रुपए तक के बजट और खूब प्रयास करने के बावजूद भी गंगा साफ
स्वच्छ नहीं हुई लेकिन लॉकडाउन के कारण प्रकृति ने मात्र 15
से 20 दिनों में ही गंगा को गंगोत्री से लेकर सुंदरबन डेल्टा
तक बिल्कुल साफ सुथरा बना दिया। यह कोरोना महामारी के कुछ पॉजिटिव इंपैक्ट ही जा
सकते हैं।
Ø जब से Lockdown हुआ
वर्षा की मात्रा क्यों बढ़ गई है?
लॉकडाउन
का असर वर्षा के ऊपर यह रहा कि Lockdown होने के कारण से कार्बन डाइऑक्साइड का सोर्स, उद्योग
धंधे बंद हो गए, सभी प्रकार के परिवहन साधन भी एक स्थान पर खड़े हो गए। इसके कारण
से प्रकृति को अपने आप को रीबूट करने का मौका मिला और जो ग्लोबल वार्मिंग विश्व
स्तर पर बढ़ी हुई थी, कहीं ना कहीं उसको कुछ हद तक रिपेयर करने में प्रकृति सक्षम
रही। इस कारण से जो वातावरण पहले की तुलना में थोड़ा सा ठंडा हुआ। पहले जो ग्लोबल
वार्मिंग के कारण से वर्षा होने के लायक जो कंडीशन नहीं बन पाती थी तो लॉकडाउन के कारण
वे कंडीशन बन पाई। जैसा कि आप ने देखा होगा कि वर्ष 2020 में,
मई 2021 में और जून 2021 में भी वर्षा
के दृष्टिकोण से दिन बहुत ही अच्छे रहे हैं। प्रकृति कहीं ना कहीं आज से कम से कम 20
से 30 वर्षों पहले, जैसा वातावरण होता था उसी प्रकार
के वातावरण में अपने आप को देख पा रही है। लॉकडाउन का वर्षा के ऊपर यही Positive प्रभाव रहा की प्रकृति को वैसी दशाएं मिल गई बारिश करने के लिए या दूसरे शब्दों
में कहें तो नमी की मात्रा वातावरण में शुद्धता बढ़ने और प्रदूषण (कार्बन
डाइऑक्साइड) की मात्रा नियंत्रित होने से वर्षा की मात्रा बढ़ी है। जैसा कि मई 2021 में दिल्ली एनसीआर पश्चिमी विक्षोभों के कारण इतनी बारिश हुई है, कि उससे
मई माह में न्यूनतम तापमान रहने के पिछले कई वर्षों के रिकॉर्ड टूट गए हैं।
Ø क्या प्रकृति को अगर मौका दे दिया जाए तो प्रकृति अपने आप को अपने
वातावरण को रीबूट कर सकती है
जी
हां, बिल्कुल जैसा कि आपने पिछले 2
वर्षों में देखा है कि लॉकडाउन का प्रकृति के ऊपर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा है। मेरा
अपना मानना तो यह है कि हमें शायद दिवाली के आसपास 10 -15 दिन का देशव्यापी लॉकडाउन (छुट्टियाँ) हर वर्ष करना चाहिए। ताकि प्रकृति
को 15 दिन में अपने आप को रीबूट करने का मौका मिल जाए और
प्रकृति बहुत जल्दी अपने आप को रिकवर करने की ताकत रखती है।
Ø पर्यावरण को बचाए रखने के लिए एक जनसाधारण के रूप में हम कौन से
छोटे-छोटे प्रयास या कार्य करें जिससे हमारा पर्यावरण और प्रकृति दोनों सुरक्षित
रहें?
देखो
प्रकृति को और पर्यावरण को बचाए रखने के लिए जितनी जिम्मेदारियां पर्यावरणविदों की,
सरकारों की, देशों की है, उतनी ही जिम्मेवारी एक जनसाधारण या सामान्य व्यक्ति की
है। हम सब ने अपनी जीवनशैली और कार्यशैली को इस ढंग से ढालना चाहिए कि हम हर कदम
पर प्रकृति को बचाएं, प्राकृतिक वातावरण को बचाने के लिए, हम छोटे-छोटे प्रयास कर
सकते हैं। जैसे - हर वर्ष जब आपका जन्मदिवस आए,तीज त्यौहार आए तो हम पेड़ पौधे लगा
सकते हैं, बाजार में जाएं तो प्लास्टिक की थैलियों के प्रयोग की बजाय हम घर से
कैरी बैग लेकर जाए, जब पूरा कचरा डस्टबिन में डालने के लिए जाएं तो उसको डालने से
पहले हम देखें कि क्या हम इसको Reuse कर सकते
हैं, Recycle कर सकते हैं यानी 3R (Reduce, Reuse & Recycle) का ध्यान
देना चाहिए। सूखा कचरा अलग रखें, गीला कचरा अलग रखें, गीले कचरे को भी कोशिश करें
कि उसका बायो खाद बनाया जा सके, जैविक खाद उसको बना सकते हैं, इसके अलावा पानी की
हर बूंद को बचाने का प्रयास करें, धूल धुआँ ना उत्पन्न करें, ज्यादा से ज्यादा
लोगों को प्रेरित करें, खुद प्रेरित रहे, यदि आप प्रिंटिंग यूज कर रहे हैं तो पेपर
को दोनों साइड से यूज करें, यदि आप गाड़ी से office जाते हैं
तो उसकी बजाए कारपूलिंग कर सकते हैं, टू व्हीलर पूलिंग सकते हैं, इसके अलावा
सार्वजनिक वाहनों के रूप में रोडवेज की गाड़ियां, रेल परिवहन आदि का प्रयोग हम कर
सकते हैं। जिससे पर्यावरण प्रदूषण होने से बचाया जा सकता है।
और
अनेक कार्य हैं जिनको हम करते समय और प्रकृति की सुरक्षा का ध्यान रखें। हमें ध्यान
देना होगा और यह हमारे जीवन शैली का अभिन्न अंग होगा तभी शायद हम “माता प्रकृति” यानि
पर्यावरण को बचा सकते हैं।
Ø World environment day विश्व पर्यावरण दिवस पर समाज
विद्यार्थियों और सभी को कोई विशेष संदेश या अनुरोध क्या रहेगा
विश्व पर्यावरण दिवस (वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे) 5
जून पर मेरा खुद को,
खुद के लिए, समाज के लिए, विद्यार्थियों और सभी के लिए यही संदेश है कि “हम प्रकृति के Follower बन
कर ही प्रकृति पर विजय पा सकते हैं”। हमें प्रकृति को बचाने के लिए सतत
पोषणीय विकास (Sustainable Development) पर ध्यान देना होगा। पेड़
पौधे खूब लगाने होंगे, पेड़ पौधों की कटाई को रोकना होगा, सार्वजनिक वाहनों का
प्रयोग करना होगा, यानी हर कदम पर हमें पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना चाहिए
और यह कार्य हम केवल विश्व पर्यावरण दिवस जैसे
मौकों पर ही ना करके बल्कि अपने जीवन का एक अंग बना लें तभी शायद हम अपने जीवित संसार, एकमात्र जलीय ग्रह, जीवित ग्रह, पृथ्वी के
वातावरण को बचा सकते हैं। यह (पृथ्वी और वातावरण) बचेगा तो शायद हमारा
जीवन बचेगा।
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जय हिंद! जय भारत!