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Landforms and Their Evolution, Class 11 Chapter 6 NCERT Exercise Solution (Hindi Medium)

भू - आकृतियां तथा उनका विकास 


NCERT - अभ्यास के प्रश्न

Que 1 नीचे दिये गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए :-

(i) स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?

(क) तरुणावस्था 

(ख) प्रथम प्रौढ़ावस्था 

(ग) अंतिम प्रौढ़ावस्था 

(घ) वृद्धावस्था 


ANS. (क) तरुणावस्था


(ii) एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है?

(क) U आकार की घाटी 

(ख) अंधी घाटी 

(ग) गॉर्ज 

(घ) कैनियन


ANS. (घ) कैनियन ।


(iii) निम्नलिखित में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया, यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है?

(क) आर्द्र प्रदेश 

(ख) शुष्क प्रदेश 

(ग) चूना - पत्थर प्रदेश 

(घ) हिमनद प्रदेश


ANS. (क) आर्द्र प्रदेश


(iv) निम्नलिखित में से कौन सा वक्तव्य लेपिज (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है:-

(क) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त

(ख) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं

(ग) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं

(घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों।  


ANS. (घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों।


(v) गहरे, लम्बे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?

(क) सर्क 

(ख) पार्श्विक हिमोढ़ 

(ग) घाटी हिमनद 

(घ) एस्कर 


ANS. (क) सर्क


Que 2 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:-


(i) चट्टानों में अध: कर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?

ANS. चट्टानों में अध: कर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प यह बताते हैं कि मंद ढालों पर बहती हुई नदियाँ अधिक क्षैतिज अपरदन करती हुई सर्प की तरह बहती हैं। इन विसर्पों की उत्पति नदी विकास की प्रारंभिक अवस्था में होती है।


(ii) घाटी रंध्र अथवा युवाला विकास कैसे होता है?

ANS. घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास तब होता है, जब घोलरंध्र व डोलाइन कंदराओं की छत गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस में मिल जाते हैं। इस प्रकार लम्बी तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती हैं। जिन्हें घाटी रंध्र (Valley Sinks) या युवाला (Uvalas) कहते हैं।


(iii) चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्यों?

ANS. चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में चूनापत्थर या डोलोमाइट होता है जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है। वहाँ धरातलीय व भौम जल रासायनिक प्रक्रिया - घोलीकरण के द्वारा अनेक स्थलरूपों निर्माण करते हैं।


(iv) हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।

ANS. हिमनदी घाटी में मृतिका के निक्षेप से कई स्थलरूप बनते हैं, जिन्हें हिमोढ़ कहते हैं। हिमनदी के समानांतर किनारों पर पार्श्विक हिमोढ़ बनते हैं। दो पार्श्विक हिमोढ़ मिल कर मध्यस्थ हिमोढ़ बनाते हैं। हिमनदी के तल पर तलस्थ हिमोढ़ बनता है। हिमनदी के अंतिम भाग में अंतस्थ हिमोढ़ मिलता है।


(v)  मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है।

ANS. मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन सबसे महत्वपूर्ण अपरदनकारी तत्व के रूप में कार्य करती है। वहाँ वनस्पति और वर्षा का अभाव होने के कारण रेत के कण ढीले होते हैं जिनका अपरदन, परिवहन और निक्षेपण तेज गति से बहती हुई वायु आसानी से कर देती है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन द्वारा निर्मित स्थलरूप को 'वात जनित स्थलरूप' (Aeolian Topography) कहते हैं।

मरुस्थलीय क्षेत्रों में कहीं - कहीं और कभी - कभी तेज वर्षा भी हो जाती है जिससे आंतरिक जल प्रवाह से भी कुछ स्थलरूपों का निर्माण होता है।  जैसे - प्लाया (मरुस्थलों में पर्वतों के बीच पानी के अपरदित पदार्थों से निक्षेपित मैदान)।


Que 3 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:-


(i) आर्द्र व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्वपूर्ण भू - आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।

ANS. आर्द्र प्रदेशों में, जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है, प्रवाहित जल ही सबसे महत्वपूर्ण भू - आकृतिक कारक है जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है।

प्रवाहित जल के दो तत्व हैं:-

1. धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह।

2. रैखिक प्रवाह जो नदियों और सरिताओं के रूप में घाटियों से बहता है।

प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित स्थलरूप ढाल प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से संबन्धित हैं।

कालांतर में तेज ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं और परिमाणस्वरूप नदियों का वेग कम हो जाता है, जिससे निक्षेपण आरंभ हो जाता है। प्रवाहित जल का ढाल जितना मंद होगा, निक्षेपण उतना ही अधिक होगा।

शुष्क प्रदेशों में यद्यपि पवन महत्वपूर्ण भू - आकृतिक कारक होता है। फिर भी कभी - कभी ऐसे शुष्क प्रदेशों मूसलाधार वर्षा हो जाती है जो इस वनस्पति वहीन प्रदेश में तीव्रता से मृदा अपरदन करता है।


(ii) चूना चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं, क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू - आकृतिक प्रक्रिया कौन - सी हैं और इसके क्या परिणाम हैं ?

ANS.  चूना चट्टानें आर्द्र और शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं। आर्द्र जलवायु में धरातलीय जल पारगम्य चूनायुक्त चट्टानों की संधियों व दरारों से होता हुआ क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर प्रवाहित होने लगता है। घोलीकरण व अवक्षेपण के द्वारा अनेक प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण करता है।

शुष्क प्रदेशों में वर्षा की कमी होती है तथा जल का अभाव होता है और जल अधिक मात्रा में जल भूमि के भीतरी भाग में प्रवेश नहीं कर पाता है। इसलिए शुष्क प्रदेशों में भौम जल का कोई विशेष महत्व नहीं होता है।


(iii) हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है, बताएँ?

ANS. पृथ्वी पर परत के रूप में हिम प्रवाह या घाटियों में रैखिक प्रवाह में नीचे की ओर धीमे से खिसकती हुई बर्फ, हिमनद या हिमनदी (Glacier) कहलाती है।

हिमनद गुरुत्वाकर्षण बल के कारण बहुत धीमी गति से नीचे की ओर खिसकते हुए चट्टानों को रेगमार की तरह घर्षित कर देते हैं तथा शैलखण्डों के किनारों और तलहटी को घर्षण के द्वारा अत्यधिक अपरदित कर देते हैं तथा ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र घर्षित होकर हिमधौत मैदान (Outwash Plain) के रूप में रह जाते हैं। 


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