The 350th Martyrdom Day of Shri Guru Tegh Bahadur Ji, Hind Ki Chadar हिन्द की चादर - श्री गुरु तेग बहादुर जी का 350वें शहीदी दिवस
श्री गुरु तेग बहादुर जी की जीवन यात्रा
(1621 ई.–1675 ई.)
🕉️ परिचय
श्री गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। उनका जन्म 1 अप्रैल 1621 ई. को अमृतसर (पंजाब) में गुरु हरगोबिंद जी (छठे गुरु) और माता नानकी जी के घर हुआ। उनका बाल नाम त्याग मल था, लेकिन बाद में उनकी बहादुरी और त्याग की भावना के कारण उन्हें “तेग बहादुर” नाम दिया गया।
👶 प्रारंभिक जीवन
गुरु तेग बहादुर जी बचपन से ही ध्यान, भक्ति और वीरता में रुचि रखते थे।
उन्होंने बचपन में ही शास्त्र, युद्धकला, और संगीत की शिक्षा प्राप्त की।
उनकी प्रकृति गंभीर, विनम्र और तपस्वी थी।
⚔️ नामकरण और वीरता
जब उन्होंने अपने पिता गुरु हरगोबिंद जी के साथ मुगलों के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया, तब उनके असाधारण पराक्रम को देखकर गुरु हरगोबिंद जी ने उन्हें “तेग बहादुर” (तलवार के वीर) की उपाधि दी।
🕊️ साधना और सेवा
गुरु हरगोबिंद जी की मृत्यु के बाद तेग बहादुर जी ने कुछ समय के लिए बकाला (अमृतसर के पास) में निवास किया और ध्यान, सेवा और ध्यान-साधना में लगे रहे।
बाद में, 1664 ई. में गुरु हरकृष्ण जी के देहांत के बाद उन्हें सिखों का नवां गुरु घोषित किया गया।
🕌 यात्राएँ और प्रवचन
गुरु तेग बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार हेतु भारत के कई क्षेत्रों की यात्राएँ कीं।
उन्होंने असम, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, और दिल्ली तक अपने उपदेश फैलाए।
उनके प्रवचनों में सत्य, ईश्वर भक्ति, मानवता और त्याग का संदेश प्रमुख था।
✝️ धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा
उस समय भारत में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासन में धार्मिक उत्पीड़न हो रहा था।
कश्मीर के कश्मीरी पंडितों को जबरन इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
पंडितों ने गुरु तेग बहादुर जी से सहायता मांगी।
गुरु जी ने कहा —
“यदि कोई धर्म का रक्षक बनकर अपने प्राण न्यौछावर कर दे, तो सबकी रक्षा हो जाएगी।”
⚖️ बलिदान
गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने जीवन की आहुति देने का निर्णय लिया।
वे दिल्ली गए और मुगलों के सामने धर्म परिवर्तन से इंकार कर दिया।
इसके परिणामस्वरूप उन्हें चांदनी चौक, दिल्ली में 24 नवम्बर 1675 ई. को शहीद कर दिया गया।
उनका सिर आनंदपुर साहिब लाया गया और शरीर दिल्ली के रकाबगंज साहिब में दफनाया गया।
🌺 योगदान
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धर्म, मानवता और अहिंसा के प्रतीक।
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उनकी रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
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उन्होंने सिखों को सत्य, साहस और धार्मिक सहिष्णुता का मार्ग दिखाया।
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उनका बलिदान “धरम दी चादर” कहलाता है — अर्थात धर्म की रक्षा करने वाला महान त्याग।
🕯️ उपसंहार
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि —
“सत्य और धर्म की रक्षा के लिए यदि प्राणों की आहुति भी देनी पड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए।”
उनकी स्मृति में हर वर्ष 24 नवम्बर को “शहीदी दिवस” मनाया जाता है।