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राजस्थान में 200 साल में बदला मानसून का पैटर्न - बाढ़ के बढ़ते खतरे

राजस्थान में 200 साल में बदला मानसून का पैटर्न:10 शहर खतरे के निशान पर; खतरनाक बाढ़, सेना की लेनी पड़ी मदद


सूखे से जूझने वाले राजस्थान को अब बाढ़ के लिए हर साल तैयार रहना होगा। हालात इतने बिगड़ सकते हैं कि सेना की मदद भी लेनी पड़े। श्रीगंगानगर, कोटा और जोधपुर में जो हालात आपने पिछले दिनों देखे, ऐसा कई शहरों में हो सकता है। इसकी वजह है पिछले 30 सालों में तेजी से बदलता बारिश का पैटर्न। आपने भी नोटिस किया होगा कि पिछले कुछ सालों में बूंदाबांदी की बजाय लगातार 3-4 घंटे तक की बारिश बढ़ी है। मौसम वैज्ञानिक इसे आने वाले सालों में बाढ़ के बढ़ते खतरे का इशारा मान रहे हैं।

जिन लोगों ने सालों से अपने शहर में सूखी पड़ी नदियां, तालाब और बावड़ियां देखीं आज वे सड़कों पर उफान मारती लहरें देख रहे हैं। आखिर राजस्थान में एक साथ कैसे इतनी बारिश हो रही है। क्या कारण है कि जोधपुर, श्रीगंगानगर, कोटा जैसे शहरों में बाढ़ के हालात पैदा हो गए?

राजस्थान के मानसून पैटर्न में आए इन बदलावों को जानने के लिए दैनिक भास्कर टीम ने मौसम विभाग के दफ्तर में घंटों बिताए। पिछले 75 साल के पैटर्न का हर एंगल से एनालिसिस किया। मौसम वैज्ञानिकों, एन्वायर्नमेंट एक्सपर्ट और रिसर्च के आंकड़े जुटाए और जाना कि आखिर तबाही लाने वाली बारिश का राज क्या है? राजस्थान में इसकी शुरुआत कब से हुई?

हमारी एनालिसिस में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। राजस्थान में एक हफ्ते देरी से आने वाला मानसून 7 दिन तक ज्यादा रुकने भी लगा है। औसत बारिश 42 मिलीमीटर बढ़ी है। जितनी बारिश 4 महीने के सीजन में होती है, उतनी अब 40 दिन में होने लगी है। अगर यही पैटर्न बरकरार रहा तो आने वाले 10 सालों में प्रदेश के 10 से ज्यादा शहर बाढ़ की जद में होंगे।

मंडे स्पेशल स्टोरी में जानिए- राजस्थान की खतरनाक होती जा रही बारिश पर भास्कर की पड़ताल....

(बाड़मेर में साल 2006 में महज 4 दिन में 700MM पानी बरसा था। तब 200 साल का रिकॉर्ड टूटा था।)

अब ग्राफिक्स के जरिए समझते हैं-1961 से लेकर 2010 तक 50 साल की बारिश की पिछले 10 साल से तुलना।

विशेषज्ञ के साथ मौसम विभाग मान रहा ये बड़े कारण

  • सामान्य बारिश के दिन घटे हैं और मूसलाधार बारिश के दिन बढ़ गए हैं।
  • एक्सपर्ट्स के अनुसार साल 1901 से 2018 के बीच भारत के सतही तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। वहीं साल 1951 से 2015 के बीच हिंद महासागर में समुद्री सतह का तापमान करीब 1 डिग्री बढ़ चुका है। यह बढ़ोतरी भले ही छोटी लगे लेकिन यह मौसम तंत्र को पूरी तरह से प्रभावित कर रही है। तापमान बढ़ने से वायुमंडल में नमी बढ़ रही है और इसी कारण एक साथ बादल तेजी से बरस रहे हैं।
  • IMD के अनुसार हर दो-तीन दशक के बाद विभिन्न स्थानों पर मानसून के पैटर्न में बदलाव देखने को मिलता है। ऐसा ही राजस्थान के साथ भी हो रहा है। हालांकि विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं कि हर दो-तीन दशक के बाद मानसून की गतिविधियां बढ़ेंगी ही। हो सकता है ये बदलाव निगेटिव भी हो।
  • जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान में बारिश का पैटर्न जलवायु परिवर्तन के कारण भी बदल गया है। ग्लोबल वार्मिंग, हवाएं चलने की स्थिति, अरब और बंगाल से आने वाले मानसूनी बादलों का प्रदेश में एक साथ प्रवेश, प्रदूषण सहित कई ऐसे पहलू हैं, जिनके प्रभाव के कारण मौसमी परिवर्तन देखे जाते हैं।
  • IMD के अनुसार राजस्थान में अरब सागर और बंगाल से आने वाले मानसून की शाखाएं एक साथ सक्रिय होने की प्रवृत्ति भी बढ़ गई है, इस बार जोधपुर व श्रीगंगानगर में बाढ़ के हालात का एक कारण यह भी है।