उष्ण कटिबंधीय चक्रवात, उष्ण कटिबंधीय महासागरों में उत्पन्न एवं विकसित होते हैं। इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिए निम्नलिखित अनुकूल परिस्थितियां आवश्यक होती हैं:-
1.
बृहत समुद्री सतह, जहाँ तापमान 27℃ से अधिक हो।
2.
कोरिऑलिस बल का होना। ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर कम होना।
3. कमजोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर के चक्रवातीय परिसंचरण का होना।
4. समुद्री तल तंत्र का ऊपरी अपसरण होना।
वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं, वह चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones) |
बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Extra Tropical Cyclones) |
1.
ये चक्रवात 5° से 30° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्धों में उत्पन्न होते हैं। 2.
ये उष्ण कटिबंधीय महासागरों पर विकसित होने वाले तूफान होते हैं। 3.
इनकी उत्पत्ति ग्रीष्मकाल में होती है। 4.
ये चक्राकार मार्ग पर पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 5.
इनके केंद्र में निम्न दाब क्षेत्र (L) होता है, जिसे इसकी आँख (EYE / अक्षु) कहते हैं। जहाँ पवनों का अवतलन होता है। 6.
इनमें वायुदाब प्रवणता अधिक होती है और समदाब रेखाएं पास - पास होती हैं। 7.
इनका व्यास 100 से 500 किलोमीटर तक होता है। 8.
इनमें पवनों का वेग बहुत अधिक होता है जो
250 Kmph तक हो सकता है। 9.
इन चक्रवातों से कुछ घण्टों में ही तेज एवं मूसलाधार वर्षा होती है। ये विनाशकारी होते हैं। 10.इनमें वर्षा के साथ हिम और ओले नहीं गिरते हैं। 11.समुद्र तट से दूर आने पर इनको आर्द्र वायु मिलनी बंद हो जाती है तो ये धीरे - धीरे समाप्त हो जाते हैं। 12.इनको हिंदमहासागर में ‘चक्रवात’, अटलांटिक महासागर में ‘हरिकेन’, पश्चिम प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफून’ और पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में ‘विली – विलीज’ के नाम से जाना जाता है। |
1.
ये चक्रवात 35° से 65° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्धों में उत्पन्न होते हैं। 2.
ये शीतोष्ण कटिबंधीय महासागरों एवं महाद्वीपों, दोनों पर विकसित होते हैं। 3.
इनकी उत्पत्ति शीतकाल में होती है। 4.
इनकी गति एवं दिशा वाताग्रों पर निर्भर करती है तथा ये पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं। 5.
इनके केंद्र में उच्च दाब क्षेत्र (H) होता है, जहाँ पवनों का बाहर की ओर चलती हैं। 6.
इनमें वायुदाब प्रवणता कम होती है और समदाब रेखाएं दूर - दूर होती हैं। 7.
इनका व्यास सामान्यत: 500 से 700 किलोमीटर होता है। 8.
इनमें पवनों का वेग बहुत कम होता है जो
30 से 40 Kmph तक हो सकता है। 9.
इन चक्रवातों से कई
- कई दिनों तक वर्षा होती रहती है। ये विनाशकारी नहीं होते हैं। 10.इनमें वर्षा के साथ हिम और ओले गिरते हैं। 11.जब धीरे - धीरे शीतल वायुराशि धरातल के निकट और उष्ण वायु उससे ऊपर उसके विपरीत दिशा में उसके समानांतर बहने लगती है, तो ये समाप्त हो जाते हैं। 12.इनको भारत में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के नाम से जाना जाता है। |
● चक्रवाती वर्षा–
चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा। इसे वाताग्री वर्षा भी कहते हैं ।
● चक्रवात (cyclones) और प्रतिचक्रवात (Anticyclones)
* इनकी उत्पत्ति विभिन्न वायुराशियों के मिलन से होती है। जिसमें वायु की तीव्र गति ऊपर उठकर बवंडर का रुप ले लेती है। चक्रवात का निर्माण दो भिन्न तापमान वाली वायुराशियों के मिलने से होती है।
* टी-मापक पर चक्रवातों की शक्ति का मापन किया जाता है।
* चक्रवात में वायु के चलने की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरित होती है।
* टारनेडो, हरीकेंस और टाइफून चक्रवात के उदाहरण हैं।
* चक्रवात मे हवा केंद्र की तरफ आती है और ऊपर उठकर ठंडी होती है जिससे वर्षा होती है। जबकि प्रति चक्रवात में मौसम साफ होता है।
* जब केंद्र में दाब अधिक होता है तो केंद्र स हवाएं बाहर की ओर चलती हैं, इसे प्रति चक्रवात कहा जाता है।
* टारनेडो भयंकर अल्पकालीन तूफान है। ऑस्ट्रेलिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के मिसीसिपी इलाकों में इस तूफान को टारनेडो कहा जाता है। यह जल और स्थल दोनों में उत्पन्न होता है।
* टारनेडो में स्थलीय हवाओं की गति 325 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
* हरीकेंस में हवाओं की गति 121 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
* हरीकेंस, अटलांटिक महासागर में उठने वाली तथा पश्चिमी द्वीप समूह के चारों ओर चलने वली भयंकर चक्रवाती तूफान है।
* प्रशांत महासागर में उठने वाली और चीन सागर में चलने वाली वक्रगामी चक्रवात को टाइफून कहते हैं।
* टाइफून की गति 160 किलोमीटर प्रति घंटा है।