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Dams in India - Safe अथवा Unsafe - A report by NRLD (पुराने डैम सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक)

भारत एक विशाल देश है। यह क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किलोमीटर के अनुसार दुनिया का सातवाँ बड़ा देश है। इसमें अनेक नदियाँ बहती हैं जिन पर जल विद्युत उत्पादन और सिंचाई के उद्देश्य से अनेक बाँध (Dams) बनाए गए हैं। 

भारत में कुल मिलाकर 5334 बड़े बाँध हैं। 411 ऐसे बाँध हैं जिन का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इनमें से आयु के लिहाज से देखें तो 1200 बाँध ऐसे हैं जिनकी आयु 50 साल से अधिक है, जबकि 245 बाँध तो 100 साल से भी पुराने हैं। इनमें से 181 बाँध तो ऐसे भी हैं जिनकी आयु का आँकलन नहीं है। 

50 साल से ज्यादा पुराने डैम सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हैं, भारत में ऐसे डैम की संख्या 1200 से ज्यादा है। 


नदियों पर बने पुराने बांध पूरी दुनिया में एक बड़ी आबादी के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। बांधों को लेकर हुई स्टडी पर आधारित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उम्र दराज बांध अपने आस-पास रहने वाली बड़ी जनसंख्या के लिए मुसीबत बन सकते हैं। यह रिपोर्ट यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर वाटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ ने जारी की है
रिपोर्ट के मुताबिक मोटे तौर पर 50 साल बीतने के बाद बांध में पुरानेपन के लक्षण दिखाई देने लगते हैं और वे कमजोर हो जाते हैं। 
नेशनल रजिस्टर फॉर लार्ज डैम (NRLD) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 1200 बांध 50 साल या फिर इससे ज्यादा उम्र के हैं। इनमें अगर उन बांधों को भी जोड़ दें जिनकी उम्र का पता नहीं तो यह आंकड़ा 1300 को पार कर जाता है।

बूढ़े और कमजोर बांधों के टूटने का खतरा हमेशा बना रहता है और बाढ़ जैसे हालात में इनका टूटना आपदा को कई गुना बढ़ा देता है, लेकिन फिर भी बांधों की उम्र, उनकी लगातार मरम्मत और समीक्षा की भारत में ज्यादा चर्चा नहीं होती। इसको लेकर देश में पहली बार हंगामा तब हुआ था, जब 1979 में गुजरात में मच्छू बांध टूटने की वजह से हजारों लोग मारे गए थे, लेकिन बाद में यह चर्चा आई-गई हो गई और इस बारे में किसी ठोस प्लान पर काम नहीं किया गया।

भारत के लिए चेतावनी क्यों है ये स्टडी?

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर वाटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ ने अपनी रिपोर्ट में बूढ़े बांधों को 'उभरता हुए वैश्विक खतरा' बताया है। साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स एंड पीपुल के को-आर्डिनेटर  के अनुसार 'यह रिपोर्ट पूरे दुनिया में बड़े बांधों को लेकर मंडराते खतरे की चेतावनी है। भारत को भी इसके बाद सतर्क होना जाना चाहिए।'

लेकिन, सेंट्रल वाटर कमीशन (CWC) के अनुसार, 'भारत के बांधों की औसत आयु 40 साल है। यहां बांध 17वीं और 18वीं सदी में बनने शुरू हुए। अमेरिका में 15वीं और 16वीं शताब्दी के बीच बांधों के निर्माण की शुरुआत हो चुकी थी। जब भारत में बांधों का निर्माण शुरू हुआ तो बांधों के निर्माण की आधुनिक तकनीक आ चुकी थी। इसलिए भारत के डैम बाकियों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं।'

साल 1979 में गुजरात में मच्छू बांध टूटने की वजह से हजारों लोगों की मौत हो गई थी। फाइल- फोटो
साल 1979 में गुजरात में मच्छू बांध टूटने की वजह से हजारों लोगों की मौत हो गई थी। फाइल- फोटो

सेंट्रल वाटर कमीशन (CWC) का कहना है कि हमारे बांध आधुनिक तकनीक से बने हैं, इसलिए सिर्फ उम्र के आधार पर उनके कमजोर होने की बात कहना ठीक नहीं है, लेकिन बांध संबंधी मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि बांधों की डिजाइन, नियमित समीक्षा और मरम्मत को लेकर सावधान रहने की आवश्यकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ भारतीय बांध खतरे के ज्यादा करीब हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यहां एक बड़ी संख्या में बांधों का कंक्रीट की बजाय मिट्टी से बने होना है। लिहाजा यहां बढ़ती उम्र का असर बांधों पर ज्यादा पड़ने का खतरा है।'


भारत में बांधों पर मंडराते खतरे की दूसरी वजहें भी हैं। देश के ज्यादातर हिस्सों में भारी बरसात का एक तय समय में होती है। 3-4 महीनों में हुई बरसात की मात्रा अगर पूरे साल में बंट जाए तो इसका असर बांध की सेहत पर कम पड़ेगा, लेकिन होता इसके उलट है। बारिश में उफनाते बांध बाढ़ की वजह बनने के साथ ही खुद के ढांचे को भी नुकसान पहुंचाते हैं। यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर वाटर की ताजा रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत में अब तक फेल हुए 44 प्रतिशत बांधों की वजह बाढ़ है। 

वाटर कॉन्फ्लिक्ट फोरम के पार्टिसिपेटिव इकोसिस्टम मैनेजमेंट कहते हैं, 'जब बांध बनाए गए थे तो मानसून का पैटर्न स्थिर था, लेकिन अब यह लगातार बदलता जा रहा है। अब यह सोचना पड़ेगा कि मानसून में आए बदलाव के लिए क्या ये बांध तैयार हैं?'


सवाल पहले भी उठते रहे हैं, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया


तमिलनाडु में पेरियार नदी पर बना 126 साल पुराना मुल्लापेरियार बांध के उदाहरण से इस बात को समझते हैं। इसके ढांचे में कई कमियां हैं। इसके कभी भी टूटने का खतरा बना हुआ है। 

केरल में 2018 में आई बाढ़ के दौरान केरल सरकार ने आरोप लगाया था कि मुल्लापेरियार बांध कमजोर है, इसलिए तमिलनाडु ने एकाएक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ा जो केरल में बाढ़ की वजह बना। यह आरोप बांध की उम्र और पानी छोड़ने के ऑपरेशनल सिस्टम पर भी सवाल उठा रहा था।


केरल सरकार ने बांध के विवाद के दौरान IIT दिल्ली के प्रोफेसर्स से अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट भी तैयार करवाई थी, जिसमें कहा गया था कि मुल्लापेरियार बांध 'हाइड्रोलॉजिकली अनसेफ' है, लेकिन केंद्रीय जल आयोग ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। यानी बात जहां की तहां रह गई और एक गंभीर मुद्दे को बिना बात के छोड़ दिया गया।

बांधों के आसपास रहने वाले लाखों लोगों की सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी जरूरी है। 

तस्वीर मुल्लापेरियार बांध की है। IIT दिल्ली के प्रोफेसर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में इसे 'हाइड्रोलॉजिकली अनसेफ' बताया है।
तस्वीर मुल्लापेरियार बांध की है। IIT दिल्ली के प्रोफेसर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में इसे 'हाइड्रोलॉजिकली अनसेफ' बताया है।

साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स एंड पीपुल के कोआर्डिनेटर कहते हैं, कि निचले इलाकों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए बांधों का नियमित सेफ्टी रिव्यू और उनकी मरम्मत जरूरी है, लेकिन भारत में सेफ्टी रिव्यू की मजबूत प्रक्रिया नहीं है।' 

हालांकि CWC में डायरेक्टर कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि सेफ्टी रिव्यू की प्रक्रिया हमारे यहां मौजूद नहीं है। राज्यों में सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन होती हैं, जो साल में दो बार रिपोर्ट हमें भेजती है और दस साल में एक बार विस्तृत रिव्यू पैनल के द्वारा होता है।'


लेकिन क्या हर राज्य अपनी रिपोर्ट समय पर भेजता है?

CWC बांधों के मामले में अभी निर्देश देने की स्थिति में नहीं है। 

बांध विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ऐसे पुराने बांधों को खत्म कर देना चाहिए, जिनका इस्तेमाल उनके रखरखाव में आए खर्च के मुकाबले कम या न के बराबर है, लेकिन भारत में बांधों को खत्म करने (Decommissioning) की कोई प्रक्रिया नहीं है।

CWC का इस पर कहना है, 'राज्य हमसे डैम से संबंधित सूचनाएं साझा करते हैं, लेकिन हम अभी उन्हें निर्देश दे सकने की स्थिति में नहीं हैं। 

लोकसभा से पास हो चुका 'डैम सेफ्टी बिल-2019' अगर राज्यसभा में भी पास हो जाता है तो फिर बांधों को लेकर केंद्र राज्यों को निर्देश देने की स्थिति में होगा। तब इस दिशा में तेजी से काम हो सकेगा।' लेकिन डैम सेफ्टी बिल को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। 

डैम एक्सपर्ट कहते हैं, 'बिल बनाने की प्रक्रिया में सरकारी लोगों को भरा गया है, जबकि NGO, विशेषज्ञों, जमीन पर बांधों को लेकर काम कर रहे और डाउन स्ट्रीम में रहने वाले लोगों की राय नहीं ली गई।'


हालांकि बांधों की सुरक्षा को लेकर कुछ कदम उठाए भी गए हैं


CWC ने बांध प्रबंधन के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया है। इस सॉफ्टवेयर का नाम डैम हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन मॉनिटरिंग एप्लीकेशन (DHARMA) है। इस सॉफ्टवेयर में बांध के प्रबंधन में शामिल सभी एजेंसियां कभी भी टेक्स्ट, टेबल या फिर नंबर्स की फॉर्म में बांध संबंधित डेटा भर सकती हैं। इससे डैम संबंधित किसी भी स्तर पर आई गड़बड़ी पर हर एजेंसी की नजर रहती है। 

इसके अलावा बांध से पानी छोड़ने से पहले 'इमरजेंसी एक्शन अलर्ट' का प्लान भी निचले इलाकों में रह रहे लोगों को किसी भी तरह के खतरे की सूचना देने का काम कर रहा है। हालांकि अभी यह कुछ बांधों पर ही लागू किया जा सका है।


Source - More than 50 years old dam is dangerous in terms of safety, the number of such dams in India is more than 1200 | 50 साल से ज्यादा पुराने डैम सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक, भारत में ऐसे डैम की संख्या 1200 से ज्यादा है - Dainik Bhaskar