संयुक्त राष्ट्र हर वर्ष 23 मार्च का दिन विश्व मौसम दिवस (World Met Day) के रूप में मनाता है।
इसका उद्देश्य मानव प्रजाति को विश्व जलवायु और मौसम की अहमियत को समझाना है।
दरअसल,
मौसम और विश्व जलवायु में हो रहे अप्रत्याशित परिवर्तन और विश्व
तापन (Global Warming) वास्तव में मानवीय गलतियों की वजह से
ही हो रहे हैं।
जीवाश्म ईंधनों (कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि) के जलने से कार्बन
उत्सर्जन (Co2) का लगातार बढ़ना इसका एक अहम
कारण है। इसका सीधा असर धरती के मौसम पर पड़ रहा है और धरती के गर्म होते मौसम का
असर सम्पूर्ण पृथ्वी के साथ -साथ विशेष रूप से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की बर्फ
के विशाल हिम खंडों (Glaciers) पर पड़ रहा है। ये लगातार टूट
कर अलग हो रहे हैं।
इनके पिघलने की वजह से समुद्र का
जलस्तर (Sea Water Level) लगातार बढ़ रहा
है। जिसका सीधा असर समुद्री इलाकों, विशेष रूप से द्वीपों और तटीय क्षेत्रों पर
पड़ रहा है।
पिछले कुछ वर्षों एवं देशकों में
विश्व स्तर पर मौसम संबंधी तीव्र होती घटनाएं, भविष्य को लेकर प्रकृति द्वारा दी
जा रही एक महत्वपूर्ण चेतावनी है, जिसे
यदि अनसुना किया गया तो मानव सभ्यता के साथ – साथ प्राकृतिक जैव – विविधता और जीव
– जन्तु भी संकट में आ जाएंगे।
इस March
23 – (विश्व मौसम दिवस) World
Meteorological Day के
मौके पर मौसम वैज्ञानिकों ने दुनिया को चेतावनी दी है। इनका कहना है कि पूरी
दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।
विश्व स्तर पर समस्त देश पिछले वर्ष
2020 से कोविड-19 (कोरोना) महामारी को झेल रहे
हैं, जिसके कारण जीवन रक्षक निगरानी प्रणालियों और पूर्व चेतावनी देने वाली सेवाओं
में रुकावट भी देखने को मिली है। इनको दोबारा ठीक करने की जरूरत है, जिससे तटवर्ती इलाक़ों में रहने वाले लोगों और समुद्र पर आश्रितों की
रक्षा की जा सके।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व
मौसम संगठन ने समुद्र के जलस्तर में हो रहे बदलाव को लेकर भविष्य में आने वाले
खतरों के लिए भी दुनिया को आगाह किया है।
विश्व मौसम संगठन का कहना है कि 2020 में अटलांटिक में रिकॉर्ड संख्या में तूफान आए और हिंद महासगार समेत
दक्षिण-प्रशांत महासागर में उष्णकटिबंधीय तूफानों (Tropical Cyclone) में भी तेजी आई है।
विश्व मौसम संगठन के अनुसार समुद्री तटों से 100 किलोमीटर की दूरी के दायरे में वैश्विक आबादी का लगभग 40% लोग रहते हैं। ऐसे लोगों को तत्काल बचाने की जरूरत है और इसके लिए सभी जरूरी उपाय करने की तुरंत आवश्यकता है। उदाहरण के लिए 22, 23 मार्च 2021 को ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी भागों में भारी बारिश होने से भयंकर बाढ़ की स्थिति बनी हुई है।
ऑस्ट्रेलिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य न्यू साऊथ वेल्स पिछले 10 साल में सबसे भयंकर बाढ़ से जूझ रहा
भारी बारिश से आई बाढ़ के कारण लाखों की आबादी अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर है। वहीं, मौसम विभाग ने इन इलाकों में आगे भी कई दिनों तक बारिश होने का अनुमान व्यक्त किया है। सिडनी शहर में पानी की सप्लाई करने वाले वार्रगंबा डैम में भी वॉटर लेबल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। बताया जा रहा है कि 2016 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि इस डैम से पानी ओवरफ्लो कर रहा है।विश्व मौसम संगठन के मुताबिक
समुद्र के सहारे चलने वाली नील नदी के तहत चलने
वाली अर्थव्यवस्था का सालाना कारोबार करीब 3-6
खरब डॉलर का है। ये पूरी दुनिया में होने वाले व्यापार के तीन चौथाई से भी ज्यादा
है। इससे करीब छह अरब लोगों की आजीविका चलती है। लेकिन बदलते मौसम से ये भी
प्रभावित हुए बिना नहीं रही है।
तेज हवाओं,
ऊंची उठती लहरों, धुंध और कोहरे, समेत दूसरे कारणों के चलते हर वर्ष करोड़ों डॉलर का नुकसान हो रहा है और
सैकड़ों लोगों की जान जा रही है।
विश्व मौसम संगठन की तरफ से दुनिया
को आगाह करते हुए कहा गया है कि समुद्र इस पृथ्वी पर जीवन का एक अहम जरिया है। ये
अधिक मात्रा में गर्मी को सोखते हैं। लेकिन बदलते मौसम की वजह से समुद्र का
पानी अब जरूरत से अधिक ज्यादा गर्म हो रहा है। इसमें हो रहे रासायनिक बदलावों
की वजह से समुद्र का पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ज्यादा खतरे में है। समुद्र पर
आश्रित लोगों का जीवन इसकी वजह से प्रभावित हो रहा है। विश्व मौसम संगठन के
मुताबिक समुद्र में आ रहे इन बदलावों को वर्षों तक महसूस किया जाएगा।
विश्व मौसम संगठन का कहना है कि
बीते कुछ समय में आई तकनीकी (Technology) की
मदद से मौसम का सटीक पूर्वानुमान (Forecast) लगाने में मदद
मिली है। इसके बावजूद भी समुद्र में यात्रा करते हुए अनेक जहाज ऐसे भी हैं जो
आधुनिक तकनीक से लैस नहीं हैं वो कई बार अहम जानकारियों को पाने में नाकाम हो जाते
हैं।
विश्व मौसम संगठन के मुताबिक 20 वीं सदी के दौरान, समुद्रों
का जल स्तर 15 प्रतिशत बढ़ा है।
इसकी वजह ग्लेशियरों के पिघलने में आई तेजी, गर्म होता समुद्र का पानी, ग्रीनलैंड और
अंटार्कटिका में पतली होती बर्फ की चादर, बढ़ता प्रदूषण एवं CO2 का स्तर आदि हैं।
विश्व
मौसम संगठन के अनुमान के मुताबिक 21वीं सदी के अंत तक समुद्रों के जल स्तर में 30 से 60 सेंमी तक की बढ़ोतरी आ सकती है।
ये सब कुछ पेरिस समझौते के तय लक्ष्यों को पाने के बाद भी होगा। वहीं यदि
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ऐसे ही चलता रहा तो ये जल स्तर 60 से 110 सेंटीमीटर तक भी बढ़ सकता है।
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Save our Planet EARTH
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