Chapter - आधुनिक विश्व के
चरवाहे (Pastoralists in the Modern World)
👉चरवाहा
समुदाय - गुज्जर
बकरवाल समुदाय,
स्थान - जम्मू –
कश्मीर, पशु - भेड़-बकरियां, मवेशी (गाय-भैंस)
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - ये गर्मियों में अप्रैल के अंत तक, उत्तर
दिशा में पहाड़ी ढलानों की चोटियों की ओर, जबकि सर्दियों में
सितंबर के अंत में निचली घाटियों की ओर प्रवास करते हैं।
👉चरवाहा
समुदाय – गद्दी, स्थान - हिमाचल प्रदेश,
पशु - भेड़-बकरियाँ
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - ये गर्मियों में ऊपरी इलाकों में पहाड़ी ढलानों की ओर
चले जाते हैं,
जबकि सर्दियों में शिवालिक की निचली घाटियों की ओर आ जाते हैं।
👉चरवाहा
समुदाय - गुज्जर
– भोटिया,
स्थान - उत्तराखंड
के गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र, पशु - भेड़-बकरियाँ
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - ये चरवाहे सर्दियों में भाबर के सूखे जंगलों की तरफ़ और
गर्मियों में ऊपरी घास के मैदानों, बुग्याल (ऊँचे पहाड़ों में
स्थित घास के मैदान) की तरफ़ चले जाते थे।
👉चरवाहा
समुदाय – धंगर, स्थान – महाराष्ट्र, पशु - मवेशी / भैंस
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - धंगर गड़रिये बरसात के दिनों में महाराष्ट्र के मध्य
पठारों में रहते थे। अक्तूबर के आस-पास ये बाजरे की कटाई करते हैं और चरागाहों की
तलाश में पश्चिम में कोंकण की तरफ़ चले जाते हैं।
👉चरवाहा
समुदाय - राइका
समुदाय (उनकी बस्ती को ढंडी कहा जाता है।), स्थान
- थार रेगिस्तान, पश्चिमी राजस्थान
(इस इलाके के ऊँट पालकों को मारू (रेगिस्तान) राइका कहा जाता है। पशु - राइकाओं का एक तबका ऊँट पालता था जबकि कुछ
भेड़-बकरियाँ पालते थे।
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे। बरसात
में तो बाड़मेर,
जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के राइका अपने
गाँवों में ही रहते थे क्योंकि इस दौरान उन्हें वहीं चारा मिल जाता था। पर,
अक्तूबर आते-आते ये चरागाह सूखने लगते थे। नतीजतन ये लोग नए
चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ़ निकल जाते थे और अगली बरसात में ही वापस
लौटते थे।
👉चरवाहा
समुदाय - गोल्ला, कुरुमा
और कुरुबा समुदाय , स्थान - कर्नाटक और आंध्र
प्रदेश के मध्य पठारी क्षेत्रों में, पशु
- मवेशी (गाय-भैंस) और भेड़-बकरियाँ
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - सूखे महीनों में वे तटीय इलाकों की तरफ़ चले जाते थे जबकि
बरसात शुरू होने पर वापस चल देते थे। गोल्ला लोग मवेशी (गाय-भैंस) पालते हैं, जबकि
कुरुमा और कुरुबा समुदाय भेड़-बकरियाँ पालते हैं।
👉चरवाहा
समुदाय – बंजारे, स्थान - उत्तर प्रदेश,
पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में,
पशु - मवेशी
(गाय-भैंस)
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - ये लोग बहुत दूर-दूर तक चले जाते हैं और रास्ते में
अनाज और चारे के बदले गाँव वालों को खेत जोतने वाले जानवर और दूसरी चीज़ें बेचते
जाते थे।
👉चरवाहा
समुदाय – मनोपा, स्थान - अरुणाचल प्रदेश,
पशु - भेड़, गाय, याक, बकरी और घोड़े
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - ये हिमालय पर्वत की श्रेणियों पर स्थानीय स्तर पर
पशुपालन करते हैं।
👉चरवाहा
समुदाय - मालधारी
समुदाय,
स्थान - गुजरात के
मरुस्थलीय क्षेत्रों, पशु - भेड़, बकरी, गाय, भैंस, और ऊंट
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - मालधारी शब्द 'माल' (पशुधन) और 'धारी' (मालिक/रक्षक)
शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है 'पशुधन संरक्षक'।
👉चरवाहा
समुदाय - मासाई
समुदाय,
स्थान - कीनिया और
तंज़ानिया के अर्ध-शुष्क घास के मैदान व
सूखे रेगिस्तानों में, पशु - मवेशी - गाय-बैल, ऊँट, बकरी,
भेड़ व गधे
विशेषताएं
/ प्रवास क्षेत्र - पूर्वी अफ़्रीका के कीनिया में मासाई मारा और तंज़ानिया
में सेरेन्गेटी नैशनल पार्क क्षेत्रों में। Note - मासाई
नाम ‘मा’ शब्द से निकला है। मा-साई का मतलब होता है ‘मेरे लोग’।
Chapter
6 Population - Important Questions (Highlighted) अध्याय 6 जनसंख्या - महत्वपूर्ण प्रश्न (Highlighted)
👉मार्च 2011 तक भारत की जनसंख्या 12,106 लाख (121 करोड़) थी, जो कि विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत थी। यह 121 करोड़ लोग भारत के (3287263
Sq. Km.) 32.8 लाख वर्ग कि॰ मी॰ (विश्व के स्थलीय भूभाग का 2.4 प्रतिशत) के विशाल क्षेत्र में असमान रूप से वितरित हुए हैं।
👉एक निश्चित समयांतराल में जनसंख्या की
आधिकारिक गणना, ‘जनगणना’ कहलाती
है। भारत में सबसे पहले 1872 में जनगणना की गई थी। हालांकि 1881 में पहली बार एक संपूर्ण जनगणना की जा सकी। उसी समय से प्रत्येक दस वर्ष
पर जनगणना होती है।
👉2011 की जनगणना के अनुसार देश की सबसे
अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जहाँ की कुल आबादी 1,990 लाख (19 करोड़ 90 लाख) है।
उत्तर प्रदेश में देश की कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत हिस्सा
निवास करता है। दूसरी ओर हिमालय क्षेत्र के राज्य, सिक्किम
की आबादी केवल 6 लाख ही है तथा लक्षद्वीप में केवल 64,429 हजार लोग निवास करते हैं।
👉भारत की लगभग आधी आबादी केवल पाँच राज्यों
में निवास करती है। ये राज्य हैं - उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,
बिहार, पश्चिम बंगाल एवं आंध्र प्रदेश।
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान सबसे बड़ा राज्य है, (जिसका
क्षेत्रफल 342239 Sq. Km.) जिसकी आबादी भारत की कुल जनसंख्या
का केवल 5.5 प्रतिशत है।
👉2011 में भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी॰ था। जहाँ बिहार का जनसंख्या घनत्व 1,102 व्यक्ति प्रति कि॰मी॰ है, वहीं अरुणाचल प्रदेश में
यह 17 व्यक्ति प्रति कि॰मी॰ है।
👉2 जून 2014 को
तेलंगाना भारत का 29वाँ राज्य बना। * 05.08.2019 को जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू और कश्मीर
एवं लद्दाख में विभाजित किया गया।
👉भारत की आबादी 1951 में 3,610 लाख (36 करोड़) से
बढ़ कर 2011 में 12,100 लाख (121 करोड़) हो गई है।
👉1951 में कुल जनसंख्या की 17.29 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या थी, जो 2011 में बढ़कर 31.80 प्रतिशत हो गई। एक दशक (2001 से 2011) के भीतर दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले
नगरों की संख्या 35 से बढ़कर 53 हो गई
है।
👉केरल में प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1,084 है, पुडुच्चेरी में प्रति 1,000 पर 1,038 है, जबकि दिल्ली में प्रति 1,000 पर 866 तथा हरियाणा में प्रति 1,000 पर केवल 877 है।
👉2011 की जनगणना के अनुसार देश की
साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है, जिसमें
पुरुषों की साक्षरता दर 82 प्रतिशत एवं महिलाओं की 64.6 प्रतिशत है।
👉भारत सरकार ने 1952 में एक व्यापक परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रारंभ किया।
👉राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000,
14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करना।
CHAPTER
3 Electoral Politics अध्याय 3 चुनावी राजनीति
(Highlighted)
👉चौधरी देवीलाल ने “न्याय युद्ध' नामक आंदोलन का
नेतृत्व किया और लोकदल नामक अपनी नई पार्टी का गठन किया।
👉हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं।
👉चुनाव के उद्देश्य से देश को अनेक
क्षेत्रों में बाँट लिया गया है। इन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। एक क्षेत्र
में रहने वाले मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। लोकसभा चुनाव के लिए
देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। हर क्षेत्र से चुने गए
प्रतिनिधियों को संसद सदस्य (MP – Member of Parliament) कहते हैं। लोकतांत्रिक
चुनाव की एक विशेषता है हर वोट का बराबर मूल्य।
👉इसी प्रकार, प्रत्येक
राज्य को उसकी विधानसभा की सीटों के हिसाब से बाँटा गया है। इन सीटों से निर्वाचित
प्रतिनिधियों को विधायक (MLA – Member of Legislator Assembly)
कहते हैं। प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा के कई-कई
निर्वाचन क्षेत्र आते हैं। कई बार निर्वाचन क्षेत्रों को 'सीट'
भी कहा जाता है क्योंकि हर क्षेत्र संसद या विधानसभा की एक सीट का
प्रतिनिधित्व करता है। हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं।
👉इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने कमज़ोर
वर्गों के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की विशेष व्यवस्था सोची। इसी कारण
कुछ चुनाव क्षेत्र अनुसूचित जातियों के लोगों के लिए आरक्षित हैं तो कुछ क्षेत्र
अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर केवल
अनुसूचित जाति का ही व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। इसी तरह सिर्फ़ अनुसूचित जनजाति
के ही व्यक्ति अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते
हैं। अभी लोकसभा की 84 सीटें अनुसूचित जातियों
के लिए और 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं (26 जनवरी 2019 की स्थिति)। ये सीटें पूरी आबादी में इन
समूहों के हिस्से के अनुपात में हैं।
👉ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में
एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं।
👉एक बार जब निर्वाचन क्षेत्र का फ़ैसला हो
जाता है तब यह तय किया जाता है कि कौन वोट दे सकता है,
कौन नहीं। इस फ़ैसले को अंतिम दिन तक के लिए किसी के भरोसे नहीं
छोड़ा जा सकता। लोकतांत्रिक चुनाव में मतदान की योग्यता रखने वालों की सूची चुनाव
से काफ़ी पहले तैयार कर ली जाती है और हर किसी को दे दी जाती है। इस सूची को
आधिकारिक रूप से मतदाता सूची कहते हैं। आम बोलचाल में इसे वोटर लिस्ट
भी कहते हैं। हर पाँच वर्ष में मतदाता सूची का पूर्ण नवीनीकरण किया जाता है।
👉सरकार ने मतदाता सूची में दर्ज सभी लोगों
को यह कार्ड देने की कोशिश की है। वोट देने जाते समय मतदाता को यह 'पहचान-पत्र साथ रखना होता है जिससे किसी एक का वोट कोई दूसरा न डाल दे। पर
मतदान के लिए यह कार्ड अभी तक अनिवार्य नहीं हुआ है। वोट देने के लिए मतदाता राशन
कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे पहचान पत्र भी दिखा सकते हैं।
👉सार्वभौम वयस्क मताधिकार –
18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को वोट का अधिकार। हमारे देश
में 18 वर्ष और उससे ऊपर की उम्र के सभी नागरिक चुनाव में
वोट डाल सकते हैं। नागरिक की जाति, धर्म, लिंग चाहे जो हो उसे मत देने का अधिकार है। अपराधियों और दिमागी असंतुलन
वाले कुछ लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है लेकिन ऐसा सिर्फ़
बेहद खास स्थितियों में ही होता है।
👉हमारी चुनाव प्रणाली ऐसा ही करती है। जो कोई
व्यक्ति मतदाता है वह उम्मीदवार भी हो सकता है। सिर्फ़ एक फ़र्क यह है कि कोई
भी व्यक्ति 18 वर्ष की उम्र में ही वोट
डालने का अधिकारी हो जाता है जबकि उम्मीदवार
बनने की न्यूनतम आयु 25 वर्ष है।
उम्मीदवार बनने में भी अपराधियों वगैरह पर रोक है लेकिन यह पाबंदी भी बहुत ही कम
मामलों में लागू होती है। राजनैतिक दल अपने उम्मीदवार मनोनीत करते हैं जिन्हें
पार्टी का चुनाव चिह्न और समर्थन मिलता है। पार्टी के मनोनयन को बोलचाल की भाषा
में “टिकट ' कहते हैं।
👉चुनाव लड़ने के इच्छुक हर एक उम्मीदवार को
एक “नामांकन पत्र' भरना पड़ता है और कुछ रकम जमानत के
रूप में जमा करानी पड़ती है। हाल में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर उम्मीदवारों
से एक घोषणा-पत्र भरवाने की नई प्रणाली भी शुरू हुई है। अब हर उम्मीदवार को अपने
बारे में कुछ ब्यौरे देते हुए वैधानिक घोषणा करनी होती है। प्रत्येक उम्मीदवार को
इन मामलों के सारे विवरण देने होते हैं :
• उम्मीदवार के खिलाफ़ चल रहे गंभीर आपराधिक मामले।
• उम्मीदवार और उसके परिवार के सदस्यों की संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा।
• उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता।
प्रमुख नारे : -
👉इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने 1971 के लोकसभा चुनावों में गरीबी हटाओ का नारा दिया था। पार्टी ने वायदा किया कि वह सरकार की सारी नीतियों में बदलाव करके सबसे
पहले देश से गरीबी हटाएगी।
👉1977 में हुए लोकसभा चुनावों में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी
ने नारा दिया लोकतंत्र बचाओ। पार्टी ने आपात्काल के
दौरान हुई ज़्यादतियों को समाप्त करने और नागरिक आज़ादी को बहाल करने का वायदा
किया।
👉वामपंथी दलों ने 1977 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा
चुनाव में ज़मीन-जोतने वाले को का नारा दिया था।
👉1983 के आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनावों में तेलुगु देशम पार्टी के नेता
एन.टी. रामाराव ने तेलुगु स्वाभिमान का नारा दिया था।
👉चुनाव के कानूनों के अनुसार कोई
भी उम्मीदवार या पार्टी ये सब काम नहीं कर सकतीं:
• मतदाता को प्रलोभन देना, घूस देना या धमकी देना।
• उनसे जाति या धर्म के नाम पर वोट माँगना।
• चुनाव अभियान में सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल करना।
• लोकसभा चुनाव में एक निर्वाचन क्षेत्र में 25 लाख या
विधानसभा चुनाव में 10 लाख रुपए से ज़्यादा खर्च करना।
अगर वे इनमें से किसी भी मामले में दोषी
पाए गए तो चुने जाने के बावजूद उनका चुनाव रद्द घोषित हो सकता है।
👉चुनाव का आखिरी चरण है मतदाताओं द्वारा वोट देना। इस दिन को
आम तौर पर चुनाव का दिन कहते हैं। मतदाता सूची में नाम वाला हर व्यक्ति अपने इलाके
में स्थित मतदान केंद्र पर जाता है। यह अस्थायी तौर पर स्थानीय स्कूल या किसी
सरकारी इमारत में बना होता है। जब मतदाता मतदान केंद्र में जाता है तो चुनाव
अधिकारी उसे 'पहचानकर उसकी अँगुली पर एक काला निशान
लगा देते हैं और उसे वोट डालने की अनुमति देते हैं। सभी उम्मीदवारों के एजेंटों को
मतदान केंद्र के अंदर बैठने की इजाज़त होती है जिससे कि वे देख सकें कि चुनाव ठीक
ढंग से हो रहा है।
👉हमारे देश में चुनाव एक स्वतंत्र और बहुत
ताकतवर चुनाव आयोग
द्वारा करवाए जाते हैं। इसे न्यायपालिका के समान ही आजादी प्राप्त है। मुख्य
निर्वाचन आयुक्त (CEC) की नियुक्ति भारत के
राष्ट्रपति करते हैं। एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद निर्वाचन आयुक्त राष्ट्रपति
या सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं रहता। अगर शासक पार्टी या सरकार को चुनाव आयोग
पसंद न हो तब भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटा पाना लगभग असंभव है। दुनिया के शायद
ही किसी चुनाव आयोग को भारत निर्वाचन आयोग जितने अधिकार प्राप्त होंगे।
👉मतदान की योग्यता रखने वाले कितने प्रतिशत
लोगों ने असल में मतदान किया यह हिसाब लगाना मुश्किल नहीं है। पिछले पचास वर्षो
में यूगोप और उत्तरी अमेरिका के लोकतांत्रिक देशों में मतदान का प्रतिशत गिरा है।
भारत में यह या तो स्थिर रहा है या ऊपर गया है।
👉भारत में अमीर और बड़े लोगों की तुलना में
गरीब,
निरक्षर और कमज़ोर लोग ज्यादा संख्या में मतदान करते हैं। पश्चिम के
लोकतंत्रों में स्थिति इससे उलट है। अमेरिका में गरीब लोग, अफ्रीकी
मूल के लोग और हिस्पैनिक लोग अमीर और श्वेत लोगों की तुलना में काफी कम मतदान करते
हैं।
👉चुनावी धांधली: चुनाव में अपने वोट बढ़ाने के लिए
उम्मीदवारों और पार्टियों द्वारा की जाने वाली गड़बड़ या फ़रेब। इसमें कुछ ही
लोगों द्वारा काफ़ी सारे लोगों के वोट डाल देना; एक
ही व्यक्ति द्वारा अलग-अलग लोगों के नाम पर वोट डालना और मतदान-अधिकारियों को डरा-
धमकाकर या रिश्वत देकर अपने उम्मीदवार के पक्ष में काम करवाना जैसी बातें शामिल
हैं।
👉निर्वाचन क्षेत्र: एक खास भौगोलिक क्षेत्र के मतदाता जो एक
प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।
👉आचार-संहिता: चुनाव के समय पार्टियों और उम्मीदवारों
द्वारा माने जाने वाले कायदे-कानून और दिशा-निर्देश।
CHAPTER
4 Working of Institutions अध्याय 4 संस्थाओं
का कामकाज (Highlighted)
👉सरकार के तीन अंग होते हैं
– विधायिका (जो कानून बनाती है),
कार्यपालिका (जो कानूनों
को लागू करती है) और न्यायपालिका (जो कानूनों
को न मानने वाले अथवा कानून तोड़ने वालों को सजा देती है)
👉राष्ट्रीय स्तर पर भारत की सरकार को केंद्र
या संघ की सरकार भी कहा जाता है।
👉भारत सरकार के सरकारी पदों और सेवाओं में 27 फीसदी रिक्तियाँ सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी)
के लिए आरक्षित होंगी। अब तक जिन जाति समूहों
को सरकार पिछड़ा मानती है उन्हीं का एक और नाम एसईबीसी (सोशली एंड एजुकेशनली
बैकवर्ड क्लासेज) हैं। अब तक नौकरी में आरक्षण का लाभ केवल अनुसूचित जाति और
जनजातियों को ही मिल रहा था। अब एसईबीसी या “सामाजिक
और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों' के लिए, तीसरी श्रेणी तैयार की जा रही थी और इनके लिए 27
फीसदी का अलग कोटा तैयार किया जा रहा था। अन्य लोग इन 27 'फीसदी
नौकरियों के लिए प्रतियोगिता नहीं कर सकते थे।
👉राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है और औपचारिक रूप से देश का सबसे बड़ा
अधिकारी होता है।
👉 प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और दरअसल
सरकार की ओर से अधिकांश अधिकारों का इस्तेमाल वही करता है।
👉प्रधानमंत्री की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति मंत्रियों को नियुक्त करता है।
इनसे बनने वाले मंत्रिमंडल की बैठकों में ही राजकाज से जुड़े अधिकतर निर्णय लिए
जाते हैं।
👉संसद में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं- लोकसभा और राज्यसभा।
प्रधानमंत्री को लोकसभा के सदस्यों के बहुमत का समर्थन हासिल होना ज़रूरी है।
👉भारत सरकार ने 1979 में दूसरा पिछड़ी जाति आयोग गठित किया था। इसकी अध्यक्षता बी.पी. मंडल
(बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल) ने की थी और इसी के कारण इसे आम तौर पर मंडल आयोग कहते हैं।
इसे भारत में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए मापदंड
तय करने और उनका पिछड़ापन दूर करने के उपाय बताने का जिम्मा सौंपा गया। इस आयोग ने
1980 में अपनी सिफ़ारिशें दी। आयोग द्वारा सुझए गए उपायों में एक सिफ़ारिश
थी-सरकारी नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण देना। इस रिपोर्ट और उसकी सिफ़ारिशों पर संसद में चर्चा
हुई।
👉वर्षों तक कई पार्टियाँ और सांसद इसे लागू करने
की माँग करते रहे। फिर 1989 का लोकसभा चुनाव
हुआ। जनता दल ने अपने चुनाव घोषणापत्र में वादा किया कि सत्ता में आने पर वह मंडल
आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करेगा। चुनाव के बाद जनता दल की ही सरकार बनी और इसके
नेता वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने।
👉हर लोकतंत्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों
की सभा,
जनता की ओर से सर्वोच्च राजनैतिक अधिकार का प्रयोग करती है। भारत
में निर्वाचित प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा को संसद
कहा जाता है। राज्य स्तर पर इसे विधानसभा
कहते हैं।
👉देशों ने संसद की भूमिका और अधिकारों को
दो हिस्सों में बाँट दिया है। इन्हें चेंबर या सदन कहते हैं। पहले सदन के
सदस्य आम तौर से सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं और जनता की ओर से असली अधिकारों
का प्रयोग करते हैं। दूसरे सदन के सदस्य अमूमन परोक्ष रूप से चुने जाते हैं और कुछ
विशेष काम करते हैं। दूसरे सदन का सामान्य काम विभिन्न राज्य,
क्षेत्र और संघीय इकाइयों के हितों की निगरानी करना होता है।
👉हमारे देश में संसद के दो सदन हैं। दोनों
सदनों में एक को राज्यसभा (काउंसिल ऑफ स्टेट्स) और दूसरे को लोकसभा
(हाउस ऑफ पीपल) के नाम से जाना जाता है। भारत का राष्ट्रपति संसद का हिस्सा
होता है हालांकि वह दोनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता। इसीलिए संसद
के फ़ैसले राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही लागू होते हैं।
👉लोकसभा बनाम राज्य सभा
राज्यसभा को कभी-कभी “अपर हाउस' और लोकसभा को “'लोअर
हाउस' कहा जाता है।
• किसी भी सामान्य कानून को पारित करने के लिए दोनों सदनों की ज़रूरत होती
है। लेकिन अगर दोनों सदनों के बीच कोई मतभेद हो तो अंतिम फ़ैसला दोनों के संयुक्त
अधिवेशन में किया जाता है। इसमें दोनों सदनों के सदस्य एक साथ बैठते हैं। सदस्यों
की संख्या अधिक होने के कारण इस तरह की बेठक में लोकसभा के विचार को प्राथमिकता
मिलने की संभावना रहती है।
• लोकसभा पैसे के मामलों में अधिक अधिकारों का प्रयोग करती है। लोकसभा में
सरकार का बजट या पैसे से संबंधित कोई कानून पारित हो जाए तो राज्यसभा उसे खारिज
नहीं कर सकती। राज्यसभा उसे पारित करने में केवल 14 दिनों की
देरी कर सकती है या उसमें संशोधन के सुझाव दे सकती है। यह लोकसभा का अधिकार है कि
वह उन सुझावों को माने या न माने।
• सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोकसभा मंत्रिपरिषद् को नियंत्रित करती है। सिर्फ़ वही व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है जिसे लोकसभा
में बहुमत हासिल हो। अगर आधे से अधिक लोकसभा सदस्य यह कह दें कि उन्हें
मंत्रिपरिषद् पर “विश्वास नहीं' है तो प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों को पद छोड़ना होगा। राज्यसभा को यह
अधिकार हासिल नहीं है।
सभी अधिकारियों को सामूहिक रूप से
कार्यपालिका के रूप में जाना जाता है। सरकार की नीतियों को “कार्यरूप' देने के कारण इन्हें कार्यपालिका
कहा जाता है।
👉प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद्
इस देश में प्रधानमंत्री सबसे
महत्त्वपूर्ण राजनैतिक संस्था है। फिर भी प्रधानमंत्री के लिए कोई प्रत्यक्ष चुनाव
नहीं होता। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करते हैं। लेकिन राष्ट्रपति
अपनी मर्जी से किसी को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं कर सकते। राष्ट्रपति लोकसभा में
बहुमत वाली पार्टी या पाटयों के गठबंधन के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त करता
है। अगर किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं होता तो राष्ट्रपति उसी
व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करता है जिसे सदन में बहुमत हासिल
होने की संभावना होती है। प्रधानमंत्री का कार्यकाल तय नहीं होता। वह तब तक अपने
पद पर रह सकता है जब तक वह पार्टी या गठबंधन का नेता है।
प्रधानमंत्री को नियुक्त करने के बाद राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर
दूसरे मंत्रियों को नियुक्त करते है। मंत्री अमूमन उसी पार्टी या गठबंधन के होते
हैं जिसे लोकसभा में बहुमत हासिल हो। प्रधानमंत्री मंत्रियों के चयन के लिए
स्वतंत्र होता है, बशर्ते वे संसद के सदस्य
हों। कभी- कभी ऐसे व्यक्ति को भी मंत्री बनाया जा सकता है जो संसद का सदस्य नहीं
हो। लेकिन उस व्यक्ति का, मंत्री बनने के छह महीने के भीतर
संसद के दोनों सदनों में से किसी एक का सदस्य चुना जाना ज़रूरी है।
👉कैबिनेट मंत्री अमूमन सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन की
पाटयों के वरिष्ठ नेता होते हैं ये प्रमुख मंत्रालयों के प्रभारी होते हैं।
कैबिनेट मंत्री मंत्रिपरिषद् के नाम पर फ़ैसले करने के लिए बैठक करते हैं। इस तरह
कैबिनेट मंत्रिपरिषद् का शीर्ष समूह होता है। इसमें करीब 25
मंत्री होते हैं।
👉स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री अमूमन छोटे मंत्रालयों के प्रभारी होते हैं। वे विशेष रूप से आमंत्रित किए
जाने पर ही कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं।
👉राज्य मंत्री अपने विभाग के कैबिनेट मंत्रियों से
जुड़े होते हैं और उनकी सहायता करते हैं।
👉प्रधानमंत्री के अधिकार
संविधान में प्रधानमंत्री या मंत्रियों के अधिकारों या एक-दूसरे से उनके
संबंध के बारे में बहुत कुछ नहीं कहा गया है। लेकिन सरकार के प्रमुख के नाते
प्रधानमंत्री के व्यापक अधिकार होते हैं। वह कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता
है। वह विभिन्न विभागों के कार्य का समन्वय करता है। विभागों के विवाद के मामले
में उसका निर्णय अंतिम माना जाता है। वह विभिन्न विभागों की सामान्य निगरानी करता
है। सारे मंत्री उसी के नेतृत्व में काम करते हैं। प्रधानमंत्री मंत्रियों को काम
का वितरण और पुनर्वितरण करता है। उसे किसी मंत्री को बर्खास्त करने का भी अधिकार
होता है। जब प्रधानमंत्री अपना पद छोड़ता है तो पूरा मंत्रिमंडल इस्तीफ़ा दे देता
है।
👉इस तरह अगर भारत में कैबिनेट सबसे अधिक प्रभावशाली संस्था है तो
कैबिनेट के भीतर सबसे प्रभावशाली व्यक्ति प्रधानमंत्री होता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ढेर सारे अधिकारों का इस्तेमाल किया क्योंकि उनका
जनता पर बहुत अधिक प्रभाव था।
राष्ट्रपति
👉एक ओर जहाँ प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख
होता है,
वहीं राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है। हमारी राजनैतिक
व्यवस्था में राष्ट्राध्यक्ष केवल नाम के अधिकारों का प्रयोग करता है। भारत का
राष्ट्रपति ब्रिटेन की महारानी की तरह होता हैं, जिसका काम
आलंकारिक अधिक होता है। राष्ट्रपति देश की सभी राजनैतिक संस्थाओं के काम की
निगरानी करता है ताकि वे राज्य के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए मिल-जुलकर
काम करें।
👉राष्ट्रपति का चयन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाता।
संसद सदस्य और राज्य की विधानसभाओं के सदस्य उसे चुनते हैं। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी
को चुनाव जीतने के लिए बहुमत हासिल करना होता है। इससे यह तय हो जाता है कि
राष्ट्रपति पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन राष्ट्रपति उस तरह से
प्रत्यक्ष जनादेश का दावा नहीं कर सकता जिस तरह से प्रधानमंत्री। इससे यह तय हो
जाता है कि राष्ट्रपति कहने मात्र के लिए कार्यपालक की भूमिका निभाता है।
👉सारी
सरकारी गतिविधियाँ राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। सारे कानून और सरकार के
प्रमुख नीतिगत फ़ैसले उसी के नाम से जारी होते हैं। सभी प्रमुख नियुक्तियाँ
राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश,
सर्वोच्च न्यायालय और राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों,
राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों और दूसरे देशों
में राजदूतों आदि को नियुक्त करता है। सभी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते उसी
के नाम से होते हैं। भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति ही होता है।
👉हमें यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्रपति इन
अधिकारों का इस्तेमाल मंत्रिपरिषद् की सलाह पर ही करता है। राष्ट्रपति
मंत्रिपरिषद् को अपनी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। लेकिन अगर वही
सलाह दोबारा मिलती है तो वह उसे मानने के लिए बाध्य होता हैं। इसी प्रकार संसद
द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनता है। अगर
राष्ट्रपति चाहे तो उसे कुछ समय के लिए रोक सकता है। वह विधेयक पर पुनर्विचार के
लिए उसे संसद में वापस भेज सकता है। लेकिन अगर संसद दोबारा विधेयक पारित करती है
तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़ेंगे।
न्यायपालिका
👉भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश के लिए
सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च
न्यायालय, ज़िला न्यायालय और स्थानीय स्तर के न्यायालय होते
हैं। भारत में न्यायपालिका एकीकृत है। इसका मतलब यह कि सर्वोच्च न्यायालय देश में
न्यायिक प्रशासन को नियंत्रित करता है। देश की सभी अदालतों को उसका फ़ैसला मानना
होता है। वह इनमें से किसी भी विवाद की
सुनवाई कर सकता है:
• देश के नागरिकों के बीच;
• नागरिकों और सरकार के बीच;
• दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच; और
• केंद्र और राज्य सरकार के बीच।
👉यह फ़ौजदारी और दीवानी मामले में अपील के लिए सर्वोच्च संस्था है। यह उच्च
न्यायालयों के फ़ैसलों के खिलाफ़ सुनवाई कर सकता है।
👉न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब है कि वह विधायिका या कार्यपालिका के
नियंत्रण में नहीं है। न्यायाधीश सरकार के निर्देश या सत्ताधारी पार्टी की मर्जी
के मुताबिक काम नहीं करते। इसी वजह से सभी आधुनिक लोकतंत्रों में अदालतें,
विधायिका और कार्यपालिका के अधीन नहीं होतीं। भारत ने इस लक्ष्य को
हासिल कर लिया है। राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के
न्यायाधीशों को प्रधानमंत्री की सलाह पर और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
के मशविरे से नियुक्त करता है। व्यावहारिक तौर पर अब इस व्यवस्था में सर्वोच्च
न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च
न्यायालयों के नए न्यायाधीशों को चुनते हैं।
👉भारत
की न्यायपालिका दुनिया की सबसे अधिक प्रभावशाली न्यायपालिकाओं में से एक है।
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या का अधिकार
है।
👉गठबंधन सरकार: विधायिका में किसी एक पार्टी को बहुमत
हासिल न होने की सूरत में दो या उससे अधिक राजनैतिक पाटयों के गठबंधन से बनी
सरकार।
👉कार्यालय ज्ञापन: सक्षम अधिकारी द्वारा जारी पत्र जिसमें
सरकार के फ़ैसले या नीति के बारे में बताया जाता है।
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