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विश्व जैव विविधता दिवस 22 मई World Biodiversity Day 22 May


विश्व जैव विविधता दिवस या विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस 22 मई को मनाये जाने वाला अन्तर्राष्ट्रीय पर्व है। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रारंभ किया था।
जैव विविधता सभी जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता को कहा जाता है।
1992 में ब्राज़ील के रियो डि जेनेरियो में हुए जैव विविधता सम्मेलन के अनुसार जैव विविधता की परिभाषा इस प्रकार हैः- "धरातलीय, महासागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित अथवा उससे संबंधित तंत्रों में पाए जाने वाले जीवों के बीच विभिन्नता जैवविविधता है।"


विश्व जैव विविधता दिवस 22 मई World Biodiversity Day 22 May

भारत की जैव विविधता
विश्व के बारह चिन्हित मेगा बायोडाइवर्सिटी केन्द्रों में से भारत एक है। विश्व के 18 चिन्हित बायोलाजिकल हाट स्पाट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। भारत सरकार ने देश भर में 18 बायोस्फीयर भंडार स्थापित किये हैं जो जीव जंतुओं के प्राकृतिक भू-भाग की रक्षा करते हैं और अकसर आर्थिक उपयोगों के लिए स्थापित बफर जोनों के साथ एक या ज्यादा राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य को संरक्षित रखने का काम करते हैं।

जैव विविधता वाले देश
विश्व के समृद्धतम जैव विविधता वाले 17 देशों में भारत भी सम्मिलित है, जिनमें विश्व की लगभग 70 प्रतिशत जैव विविधता विद्यमान है। अन्य 16 देश हैं- ऑस्ट्रेलिया, कांगो, मेडागास्कर, दक्षिण अफ़्रीका, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, ब्राज़ील, कोलम्बिया, इक्वेडोर, मेक्सिको, पेरू, अमेरिका और वेनेजुएला।
संपूर्ण विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही भारत में है, लेकिन यहां विश्व के ज्ञात जीव जंतुओं का लगभग 5 प्रतिशत भाग निवास करता है। 'भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण' एवं 'भारतीय प्राणी सर्वेक्षण' द्वारा किये गये सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में लगभग 49,000 वनस्पति प्रजातियाँ एवं 89,000 प्राणी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
भारत विश्व में वनस्पति-विविधता के आधार पर दसवें, क्षेत्र सीमित प्रजातियों के आधार पर ग्यारहवें और फसलों के उद्भव तथा विविधता के आधार पर छठवें स्थान पर है।
विश्व के कुल 25 जैव विविधता के सक्रिय केन्द्रों में से दो क्षेत्र पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट, भारत में है।
जैव विविधता के सक्रिय क्षेत्र वह हैं, जहां विभिन्न प्रजातियों की समृद्धता है और ये प्रजातियां उस क्षेत्र तक सीमित हैं।
भारत में 450 प्रजातियों को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने की कगार पर दर्ज किया गया है। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है, और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। ये आंकड़े जैव विविधता पर निरंतर बढ़ते खतरे की ओर संकेत करते हैं।

यदि यही दर बनी रही तो वर्ष 2050 तक हम एक तिहाई से ज्यादा जैव विविधता खो सकते हैं। 
जैव विविधता को कई कारणों से नुकसान हो रहा है। इसमें मुख्य है, आवास की कमी, आवास विखंडन एवं प्रदूषण, प्राकृतिक एवं मानवजन्य आपदायें, जलवायु परिवर्तन, आधुनिक खेती, जनसंख्या वृद्धि, शिकार और उद्योग एवं शहरों का फैलाव। अन्य कारणों में सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव, भू-उपयोग परिवर्तन, खाद्य श्रृंखला में हो रहे परिवर्तन, तथा जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी इत्यादि है। जैव विविधता का संरक्षण करना मानवजीवन के अस्तित्व के लिये आवश्यक है।

जैव विविधता तीन प्रकार की होती है: -
👉एक ही प्रजाति के जीवों में होने वाली विविधताओं को अनुवांशिक विविधता।
👉प्रजाति विविधता, जिसमें एक ही प्रजाति के जीव एक दूसरे से काफी समानता रखते हैं।
👉पारिस्थितिकी विविधता, जो आवास एवं जैव समुदाओं के अंतर को प्रदर्शित करती है।

इस तरह जैव विविधता की इकाईयां अनुवांशिक स्तर से किसी क्षेत्र विशेष के समुदाय और बायोम में पाई जाने वाली विविधता तक फैली हुई है। बायोम जीवमंडल की ऐसी सामुदायिक ईकाई है, जो स्थलीय जलवायु द्वारा नियंत्रित होती है तथा जिसमें निश्चित प्रकार के जंतुओं एवं वनस्पतियों की प्रधानता होती है। जैव विविधता का हमारे जीवन में काफी महत्व है। ऐसा पर्यावरण जो जैव विविधता में समृद्ध है, टिकाऊ आर्थिक गतिविधियों के लिए, विकल्पों के सबसे वृहद अवसर प्रदान करती है। जैव विविधता के हृास से प्रायः पारितंत्र की उत्पादकता कम हो जाती है, जिसके कारण विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने संबंधी उनकी क्षमता भी कम हो जाती है। जिनका हम लगातार उपभोग करते हैं। इससे पारितंत्र में अस्थिरता आती है और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और तूफ़ान एवं मानव जनित दबावों जैसे प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है।

जैव विविधता अधिनियम, 2002

जैवविविधता अधिनियम, 2002 भारत में जैवविविधता के संरक्षण के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। जो परंपरागत जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों के समान वितरण के लिए एक तंत्र प्रदान करता है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) की स्थापना 2003 में 'जैव विविधता अधिनियम, 2002' को लागू करने के लिए की गई थी। एनबीए एक सांविधिक, स्वायत संस्था है। यह संस्था जैविक संसाधनों के साथ-साथ उनके सतत उपयोग से होने वाले लाभ की निष्पक्षता और समान बटवारे जैसे मुद्दों पर भारत सरकार के लिए सलाहकार और विनियामक की भूमिका निभाती है।

रेबीज और गिद्ध
पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है।
गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से खत्म हो गए।
99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया। 1997 में रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार मरे। आखिर क्यों मरे रेबीज से, एक प्रश्न उठा।
स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण हुआ।
वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीणन और परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ।
अमेरिका जैसा देश अपने यहाँ के चमगादड़ों को संरक्षित करने में जुटा पड़ा है। अब हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह बेकार हैं। मगर वैज्ञानिक जागरूक करा रहे हैं। चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता है। यह रात्रिचर परागण करने वाला प्रमुख पक्षी है।
उल्लू से क्या फायदा, मगर किसान जानते हैं कि वह खेती का मित्र है, जिसका मुख्य भोजन चूहा है।

जैवविविधता का संरक्षण
जैवविविधता का संरक्षण और उसका निरंतर उपयोग करना भारत के लोकाचार का एक अंतरंग हिस्सा है। अभूतपूर्व भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताओं ने मिलकर जीव जंतुओं की इस अद्भुत विविधता में योगदान दिया है जिससे हर स्तर पर अपार जैविक विविधता देखने को मिलती है। भारत में दुनिया का केवल 2.4 प्रतिशत भू-भाग है जिसके 7 से 8 प्रतिशत भू-भाग पर विश्व की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। प्रजातियों की संवृधि के मामले में भारत स्तनधारियों में 7वें, पक्षियों में 9वें और सरीसृप में 5वें स्थान पर है। विश्व के 11 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 44 प्रतिशत भू-भाग पर फसलें बोई जाती हैं। भारत के 23.39 प्रतिशत भू-भाग पर पेड़ और जंगल फैले हुए हैं। दुनियाभर की 34 चिह्नित जगहों में से भारत में जैवविविधता के तीन हॉटस्पॉट हैं- जैसे हिमालय, भारत बर्मा, श्रीलंका और पश्चिमी घाट। यह वनस्पति और जीव जंतुओं के मामले में बहुत समृद्ध है और जैव विविधता को पालने का कार्य करता है। पर्यावरण के अहम मुद्दों में से आज जैवविविधता का संरक्षण एक अहम मुद्दा है विश्व की जैवविविधता को कई कारणों से चुनौती मिलती है। राष्ट्रों, सरकारी एजेंसियों और संगठनों तथा व्यक्तिगत स्तर पर जैविक विविधता के संवंर्धन और उसके संरक्षण की बड़ी चुनौती है साथ-साथ हमें प्राकृतिक संसाधनों से लोगों की जरूरतों को भी पूरा करना होता है। चहूं ओर से जैव विविधता को बचाने का अभियान चलाया गया है। 22 मई दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

जैव विविधता के स्तर

समुद्री जैव विविधता समुद्र और महासागरों में पलने वाले जीवन को दर्शाता है। समुद्री पर्यावरण में 33 वर्णित जंतु संघों में से 32 जंतु संघ पाये जाते हैं। इसलिए इसका स्तर बहुत ऊँचा है। वन जैव विविधता में वन क्षेत्रों में पाये जाने वाले सभी जीव जंतु हैं जो कि पर्यावरण में पारस्थितिक भूमिका निभाते हैं। अनुवांशिक विविधता में एक प्रजाति की अनुवांशिक बनावट और उसकी विशेषताएं शामिल होती हैं। प्रजाति विविधता विभिन्न प्रजातियों की प्रभावी संख्या है जो उनके डॉटा बेस में परिलक्षित होती है प्रजाति विविधता में दो तत्व होते हैं एक प्रजाति समृद्धि और दुसरी प्रजातियों की इवननैस। पारिस्थितिक तंत्र विविधता रहने वाले स्थानों के कई अलग-अलग प्रकारों के बारे में इंगित करती हैं जबकि कृषि जैव विविधता में मिट्टी, जीव, मातम, कीट, परभक्षी और देशी पौधों तथा पशुओं के सभी प्रकारऔर कृषि से संबंधित सभी प्रासांगिक जीवन के रूप शामिल हैं।

बायोस्फीयर और जैव विविधता भंडार
भारत सरकार ने देश भर में 18 बायोस्फीयर भंडार स्थापित किये हैं जो जीव जंतुओं के प्राकृतिक भू-भाग की रक्षा करते हैं और अकसर आर्थिक उपयोगों के लिए स्थापित बफर जोनों के साथ एक या ज्यादा राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य को संरक्षित रखने का काम करते हैं।

हॉटस्पॉट (आकर्षण के केन्द्र)
एक जैव विविधता वाला हॉटस्पॉट ऐसा जैविक भौगोलिक क्षेत्र है जिसे मनुष्यों से खतरा रहता है। विश्व भर में ऐसे 25 आकर्षण के केन्द्र हैं इन केन्द्रों में विश्व के 60 प्रतिशत पौधों, पक्षियों, स्तनपाई प्राणियों, सरीसृपों और उभयचर प्रजातियों का संरक्षण किया जाता है। प्रत्येक आकर्षण का केन्द्र आज खतरे के दौर से गुजर रहा है। और अपने 70 प्रतिशत मूल प्राकृतिक वनस्पति को खो चुका है।

जैवविविधता के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयास
वन्य जीव जन्तु और फ्लोरा की विलुप्त प्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन-सीआईटीईएस पर 3 मार्च, 1973 को वाशिंगटन डीसी में हस्ताक्षर किये गये थे। वर्ष 2000 के अगस्त में इस सम्मेलन के 152 देश सदस्य थे। सीआईटीईएस का उद्देश्य वन्य जीव के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाना है। विश्व संरक्षण संघ-आईयूसीएन विश्व स्तर पर देशों, सरकारी एजेंसियों और विभिन्न प्रकार की गैर सरकारी संस्थाओं को एक मंच पर लाने की कोशिश करता है। खाद्य और कृषि के लिए पादत आनुवांशिक संसाधन पर अंतर्राष्ट्रीय खाद्य संधि पर नवम्बर, 2001 में रोम में हस्ताक्षर किये गये थे। जिसे कृषि के लिए सभी संयंत्र आनुवांशिक संसाधनों के संरक्षण और स्थाई उपयोग के लिए एक कानूनी रूप से बाध्यकारी रूप रेखा बनाने के लिए अपनाया गया था। जैविक विविधता पर संयुक्‍त राष्‍ट्र सम्‍मेलन (सीबीडी) 1992 एक बहुपक्षीय संधि है। इस संधि के तीन मुख्‍य लक्ष्‍य हैं – जैसे जैविक विविधता का संरक्षण उनके घटकों का निरंतर प्रयोग और उनसे होने वाले लाभ के निष्‍पक्ष और समान वितरण शामिल हैं।

मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान
भारत में जैव विविधता के संरक्षण और विकास के लिए एक अनूठा जीवमंडल रक्षित स्थान है। यह पश्चिम भारत के राजस्थान राज्य में जैसलमेर के शहर में स्थित है। यह 3162 वर्ग किमी का क्षेत्र में फैला हुआ सबसे बड़े राष्ट्रीय पार्कों में से एक है। मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान थार रेगिस्तान के पारिस्थितिकी तंत्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उद्यान का 20 प्रतिशत भाग रेत के टीलों से सजा हुआ है।

जैव विविधता के संरक्षण में वन्यजीव गलियारों की भूमिका
एक निवास स्थान के गलियारे , वन्यजीव गलियारे या ग्रीन कॉरिडोर, जैसे सड़क, विकास के रूप में मानव गतिविधियों द्वारा अलग वन्यजीव आबादी को जोड़ने के निवास स्थान का एक क्षेत्र है। यह आबादी के बीच व्यक्तियों को के आदान प्रदान करने की अनुमति देता है जिससे प्रजनन और कम आनुवंशिक विविधता के नकारात्मक प्रभावों को रोकने में मदद मिल सकती है जो कि कि अक्सर पृथक आबादी के भीतर होते हैं।

जैव विविधता का झील संग्रह
झीलें, जटिल पारिस्थितिकी प्रणाली और और विस्तृत श्रृंखला में शामिल एक अंतर्देशीय, तटीय और समुद्री निवास हैं। इनमें बाढ़ के मैदान, दलदल, दलदल, मछली तालाबों, ज्वार की दलदल प्राकृतिक और मानव निर्मित झीलें शामिल हैं। 1971 में रामसर, ईरान में झीलों पर हुए सम्मेलन में एक अंतरराष्ट्रीय संधि हस्ताक्षर किए गये जो झीलों और अपने संसाधनों से झीलों के संरक्षण और सही उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्य और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए रूपरेखा प्रदान करती है।

जैव विविधता के फायदे
जैव विविधता फसलों से भोजन, पशुओं, वानिकी और मछली प्रदान करता है। जैव विविधता उन्नत किस्में प्रजनन के लिए एक स्रोत सामग्री के रूप में और नए जैव निम्नीकरण कीटनाशकों के एक स्रोत के रूप में, नई फसलों के एक स्रोत के रूप में आधुनिक कृषि के लिए उपयोग में आती है। जैव विविधता चिकित्सीय गुणों के साथ पदार्थों की एक समृद्ध स्रोत है। कई महत्वपूर्ण औषधि संयंत्र आधारित पदार्थों के रूप में में उत्पन्न होते हैं जिनकी उपयोगिता मानव स्वास्थ्य के लिए अमूल्य है। ये संयंत्र आधारित पदार्थ के रूप में जैसे- लकड़ी , तेल, स्नेहक, खाद्य जायके, औद्योगिक एंजाइमों , सौंदर्य प्रसाधन, इत्र, सुगंध, रंग, कागज, मोम, रबर, रबड़-क्षीर, रेजिन, जहर और काग जैसे औद्योगिक उत्पादों को सभी विभिन्न प्रजातियों के पौधे से प्राप्त किया जा सकता है। जैव विविधता ऐसे कई पार्कों और जंगलों के रूप में कई क्षेत्रों के लिए किफायती धन का एक स्रोत है जहां जंगली प्रकृति और जानवर वहां के सौंदर्य और खुशी का स्रोत रहे हैं जो कई पर्यटकों को आकर्षित करता है। घर से बाहर विशेष रूप से पर्यावरण पर्यटन, एक बढती हुयी मनोरंजक गतिविधि है। जैव विविधता के पास महान सौंदर्यात्मक मूल्य है।सौंदर्य पुरस्कार के फलस्वरुप जिसमें पारिस्थितिकी पर्यटन, पक्षी दर्शन, वन्य जीवन, पालतू रखने, बागवानी, आदि शामिल हैं। जैव विविधता पारिस्थितिकी प्रणालियों के साथ व्यक्तिगत प्रजातियों से वस्तुओं और सेवाओं के रखरखाव और टिकाऊ उपयोग के लिए भी आवश्यक है। इन सेवाओं में वातावरण की गैसीय संरचना के रखरखाव, जंगलों और समुद्री प्रणाली द्वारा जलवायु नियंत्रण, प्राकृतिक कीट नियंत्रण, कीड़े और पक्षियों द्वारा पौधों के परागण, मिट्टी के गठन और संरक्षण आदि शामिल हैं।

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