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12th BSEH Annual Previous Year Paper March 2023 SET C Answer Key (Solution)

1.    (a) ग्रिफिथ टेलर

2.    (d) फूलों की खेती

3.    (d) सेवा

4.    Note यह प्रश्न गलत तरीके से पूछा गया है। (a) एल्युमिनियम (b) तांबा (c) जस्ता, तीनों अलौह धातु हैं। केवल (d) लौहा लौहयुक्त धातु है। शायद इसमें पेपर सेट करने वाले नहीं लगाना भूल गए। अगर इसमें नहीं लगा होता तो Option (d) सही होता।

5.    (b) महाराष्ट्र  

6.    भूगोल की वह शाखा जो सामाजिक विषयों से संबंधित अध्ययन करती है, सामाजिक भूगोल कहलाती है।

7.    संसाधनों पर दबाव पड़ता है, जनसंख्या विस्फोट रूप से बढ़ती है, बेरोजगारी बढ़ती है आदि। (कोई एक लिखें)

8.    आयु लिंग पिरामिड

9.    वर्ष 1921

10.  दो समय बिन्दुओं के बीच जनसंख्या का बढ़ जाना या घट जाना जनसंख्या वृद्धि कहलाता है।

11.  प्रति हजार पुरुषों पर, महिलाओं की संख्या, लिंगानुपात कहलाती है।

12.  वह नगर जिसकी जनसंख्या 50 लाख से अधिक हो, मेगा सिटी कहलाता है।  

13.  राष्ट्रीय युवा नीति (NYP–2014) के अनुसार ‘युवा’ (Youth) जनसंख्या 15 से 29 वर्ष की जनसंख्या होती है। जनसंख्या संरचना के अनुसार 15 से 59 आयु वर्ग वयस्क जनसंख्या तथा 60 वर्ष से अधिक की जनसंख्या वृद्ध जनसंख्या कहलाती है। 

14.  भूमि की उत्पादन क्षमता का कम हो जाना अथवा भूमि का अपरदित हो जाना, भू निम्नीकरण कहलाता है।

15.  जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक -

(i) जल की उपलब्धता : जल जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक है। अतः लोग उन क्षेत्रों में बसने को प्राथमिकता देते हैं जहाँ जल आसानी से उपलब्ध होता है। जल का उपयोग पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं, फसलों, उद्योगों तथा नौसंचालन में किया जाता है। यही कारण है कि नदी-घाटियाँ विश्व के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्र हैं।

(ii) भू-आकृति : लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसने को वरीयता देते हैं इसका कारण यह है कि एेसे क्षेत्र फसलों के उत्पादन, सड़क निर्माण और उद्योगों के लिए अनुकूल होेते हैं। पर्वतीय और पहाड़ी क्षेत्र परिवहन-तंत्र के विकास में अवरोधक हैं, इसलिए प्रारंभ में कृषिगत और औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल नहीं होते। अतः इन क्षेत्रों में कम जनसंख्या पाई जाती है। गंगा का मैदान विश्व के सर्वाधिक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है जबकि हिमालय के पर्वतीय भाग विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं।

(iii) जलवायु : अति ऊष्ण अथवा ठंडे मरुस्थलों की विषम जलवायु मानव बसाव के लिए असुविधाजनक होती है। सुविधाजनक जलवायु वाले क्षेत्र जिनमें अधिक मौसमी जनसंख्या पाई जाती है। भूमध्य सागरीय प्रदेश सुखद जलवायु के कारण इतिहास के आरंभिक कालोें से बसे हुए हैं।

(iv) मृदाएँ : उपजाऊ मृदाएँ कृषि तथा इनसे संबंधित क्रियाओं के लिए महत्त्वपूर्ण हैं इसलिए उपजाऊ दोमट मिट्टी वाले प्रदेशों में अधिक लोग निवास करते हैं क्योंकि ये मृदाएँ गहन कृषि का आधार बन सकती हैं।

16.  रैखिक प्रतिरूप या रिवन प्रतिरूप या लुम्बकार प्रतिरूप :- ऐसे गाँव अधिकतर किसी सड़क एवं रेलमार्ग के किनारे, नदियों के किनारे, सागरीय तटों के किनारे मिलते हैं। इनमें मकान प्राय एक पंक्ति में होते हैं। ऐसी बस्तियाँ तटीय ओडिशा, दून घाटी – उत्तराखंड, तमिलनाडु और गुजरात में मिलती हैं।

आयताकार प्रतिरूप :- ऐसे प्रतिरूप किसी नियोजित एवं सरकार द्वारा बसाये गए गांवों में मिलते हैं। शहरी क्षेत्रों में सेक्टर आयताकार प्रतिरूप पर ही बसे होते हैं। इनमें अधिकांश गलियाँ एक – दूसरे से समकोण पर मिलती हैं।   

17. प्रवास के परिणाम :

1. उदगम स्रोत पर श्रमिकों की कमी हो जाती है। 

2. व्यावसायिक संरचना प्रभावित होती है। 

3. किसी क्षेत्र के संसाधनों पर दबाव पड़ता है।          

4. विभिन्न संस्कृतियों का प्रचार प्रसार होता है। 

5. असामाजिक गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं। 

6. एड्स जैसे रोगों का प्रचार प्रसार हो सकता है। 

7. नगरीय जनसंख्या बढ़ती है। 

8. ग्रामीण क्षेत्रों में आश्रित जनसंख्या (बच्चे, वृद्ध और महिलाओं) बढ़ जाती है।

18. वायु में अवांछित पदार्थ, जैसे – धूल, धुआं एवं बदबू आदि जो वायु की गुणवत्ता को कम कर देते हैं, वायु प्रदूषण कहलाते हैं। वायु प्रदूषण के प्रभाव :-

स्वास सम्बन्धित बीमारियाँ, जैसे - दमा, सांस के रोग, चर्म रोग, एलिर्जी आदि का होना आदि। 

वायु का दूषित होना। 

धूम्र कोहरा छाना। 

वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) का बढ़ना। 

एसिड रेन या अम्ल वर्षा का होना। 

पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ना।

WHO की रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण पूर्वी एशिया (South East Asia) में वायु प्रदूषण (Air Pollution) मृत्यु का सबसे बड़ा (Biggest Killer) कारण है।

विश्व भर में प्रति वर्ष लगभग 8 लाख मौतों का कारण वायु प्रदूषण है।

19. पार-साइबेरियन रेलमार्ग -

रूस का यह प्रमुख रेलमार्ग पश्चिम में सेंट पीटर्सबर्ग से पूर्व में प्रशांत महासागर तट पर स्थित व्लाडिवोस्टक तक मास्को, कज़ान, ट्यूमिन, नोवोसिबिर्स्क, चिता और दृबरोवस्क से होता हुआ जाता है (चित्र 8.5)। यह एशिया का सबसे महत्त्वपूर्ण और विश्व का सर्वाधिक लम्बा (9,322 कि.मी.) दोहरे पथ से युक्त विद्युतीकृत पारमहाद्वीपीय रेलमार्ग है। इसने अपने एशियाई प्रदेश को पश्चिमी यूरोपीय बाज़ारों से जोड़ा है। यह रेलमार्ग यूराल पर्वतों, ओब और येनीसी नदियों से गुज़रता है। चीता एक महत्त्वपूर्ण कृषि केंद्र और इरकुस्टस्क एक फर केंद्र है। इस रेलमार्ग को दक्षिण से जोड़ने वाले योजक मार्ग भी हैं, जैसे ओडेसा (यूक्रेन), कैस्पियन तट पर बालू, ताशकंद (उज़्बेकिस्तान), उलन बटोर (मंगोलिया) और रोनयांग (मक्देन) चीन में बीजिंग की ओर।

पार-कैनेडियन रेलमार्ग -

कनाडा की यह 7,050 कि.मी. लंबी रेल लाइन पूर्व में हैलिफैक्स से आरंभ होकर माँट्रियल, ओटावा, विनिपेग और कलगैरी से होती हुई पश्चिम में प्रशांत तट पर स्थित वैंकूवर तक जाती है (चित्र 8.6)। इसका निर्माण 1886 में मूलरूप से एक संधि के अंतर्गत पश्चिमी तट पर स्थित ब्रिटिश कोलंबिया को राज्यों के संघ में सम्मिलित करने के उद्देश्य से किया गया था। बाद के वर्षों में क्यूबेक-माँट्रियाल औद्योगिक प्रदेश को प्रेयरी प्रदेश की गेहूँ मेखला और उत्तर में शंकुधारी वन प्रदेश से जोड़ने के कारण इस रेलमार्ग का महत्त्व बढ़ गया। इस प्रकार इन प्रदेशों में से प्रत्येक दूसरे का संपूरक बन गया। विनिपेग से थंडरखाड़ी (सुपीरियर झील) तक एक संवृत मार्ग इस रेल लाइन को विश्व के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण जलमार्गों में से एक से गेहूँ और मांस इस मार्ग द्वारा किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण निर्यात हैं। यह लाइन कनाडा की आर्थिक धमनी है।

OR

स्वेज नहर -

इस नहर का निर्माण 1869 में मिस्र में उत्तर में पोर्टसईद एवं दक्षिण में स्थित पोर्ट स्वेज (स्वेज पत्तन) के मध्य भूमध्य सागर एवं लाल सागर को जोड़ने हेतु किया गया। यह यूरोप को हिंद महासागर में एक नवीन प्रवेश मार्ग प्रदान करता है तथा लिवरपूल एवं कोलंबो के बीच प्रत्यक्ष समुद्री मार्ग की दूरी को उत्तमाशा अंतरीप मार्ग की तुलना में घटाता है। यह जलबंधकों से रहित समुद्र सतह के बराबर नहर है, जो यह लगभग 160 कि.मी. लंबी तथा 11 से 15 मीटर गहरी है। इस नहर में प्रतिदिन लगभग 100 जलयान आवागमन करते हैं तथा उन्हें इस नहर को पार करने में 10-12 घंटे का समय लगता है। अत्यधिक यात्री एवं माल कर होने के कारण कुछ जलयान जिनके लिए समय की देरी महत्त्वपूर्ण नहीं है अपेक्षाकृत लंबे परंतु सस्ते उत्तमाशा अंतरीप मार्ग के द्वारा भी आवागमन किया जाता है, एक रेलमार्ग इस नहर के सहारे स्वेज तक जाता है और फिर इस्माइलिया से एक शाखा कैरो को जाती है। नील नदी से एक नौगम्य ताज़ा पानी की नहर भी स्वेज नहर से इस्माइलिया में मिलती है जिससे पोटसईद और स्वेज नगरों को ताज़े पानी की आपूर्ति की जाती है।

20. विकासशील देशों में मलिन बस्तियों की प्रमुख समस्याएँ:-

विकासशील देशों में बस्तियों से संबंधित कई प्रकार की समस्याएँ हैं, जैसे - अवहनीय जनसंख्या का केंद्रीकरण, छोटे व तंग आवास एवं गलियाँ, पीने योग्य जल जैसी सुविधाओं की कमी। इसके अतिरिक्त इनमें आधारभूत ढाँचा जैसे बिजली, गंदे पानी की निकासी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि सुविधाओं की भी कमी होती है। विकासशील देशों में अधिकतर शहर अनियोजित हैं, अतः आने वाले व्यक्ति अत्यंत भीड़ की स्थिति पैदा कर देते हैं। विकासशील देशों के आधुनिक शहरों में आवासों की कमी, लंबवत विस्तार (बहुमंजिला मकान) तथा गंदी बस्तियों की वृद्धि प्रमुख विशेषताएँ हैं। अनेक शहरों में जनसंख्या का बढ़ता भाग, निम्न स्तरीय आवासों जैसे - गंदी बस्तियों, अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं। भारत के अधिकांश मिलीयन सिटी 25 प्रतिशत निवासी अवैध बस्तियों में रहते हैं और ऐसे नगर अन्य नगरों की अपेक्षा दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। एशिया पेसिफिक देशों में नगरीय जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग अनधिकृत बस्तियों में रहता है।

OR

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार :-

बस्तियों के प्रकार निर्मित क्षेत्र के विस्तार और अंतर्वास दूरी द्वारा निर्धारित होता है। भारत में कुछ सौ घरों से युक्त संहत अथवा गुच्छित गाँव विशेष रूप से उत्तरी मैदानों में एक सार्वत्रिक लक्षण है। फिर भी अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अन्य प्रकार की ग्रामीण बस्तियाँ पाई जाती हैं।

ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उत्तरदायी हैं।

इनके अंतर्गत (i) भौतिक लक्षण भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता,

(ii) सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक - सामाजिक संरचना, जाति और धर्म,

(iii) सुरक्षा संबंधी कारक - चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं।

बृहत् तौर पर भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है

गुच्छित, संकुलित अथवा आकेंद्रित

अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित

पल्लीकृत और

परिक्षिप्त अथवा एकाकी

(क) गुच्छित बस्तियाँ (Clustered Settlements) -

गुच्छित ग्रामीण बस्ती घरों का एक संहत अथवा संकुलित रूप से निर्मित क्षेत्र होता है। इस प्रकार के गाँव में रहन-सहन का सामान्य क्षेत्र स्पष्ट और चारों ओर फैले खेतों, खलिहानों और चरागाहों से पृथक होता है। संकुलित निर्मित क्षेत्र और इसकी मध्यवर्ती गलियाँ कुछ जाने-पहचाने प्रारूप अथवा ज्यामितीय आकृतियाँ प्रस्तुत करते हैं जैसे कि आयताकार, अरीय, रैखिक इत्यादि। ऐसी बस्तियाँ प्रायः उपजाऊ जलो\ढ़ मैदानों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है। कई बार लोग सुरक्षा अथवा प्रतिरक्षा कारणों से संहत गाँवों में रहते हैं, जैसे कि मध्य भारत के बुंदेलखंड प्रदेश और नागालैंड में। राजस्थान में जल के अभाव में उपलब्ध जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग ने संहत बस्तियों को अनिवार्य बना दिया है।

 

(ख) अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered Settlements) -

अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित बस्तियाँ परिक्षिप्त बस्ती के किसी सीमित क्षेत्र में गुच्छित होने की प्रवृत्ति का परिणाम है।अधिकतर एेसा प्रारूप किसी बड़े संहत गाँव के संपृथकन अथवा विखंडन के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकता है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण समाज के एक अथवा अधिक वर्ग स्वेच्छा से अथवा बलपूर्वक मुख्य गुच्छ अथवा गाँव से थोड़ी दूरी पररहने लगते हैं। ऐसी स्थितियों में, आमतौर पर ज़मींदार और अन्य प्रमुख समुदाय मुख्य गाँव के केंद्रीय भाग पर आधिपत्यकर लेते हैं जबकि समाज के निचले तबके के लोग और निम्न कार्यों में संलग्न लोग गाँव के बाहरी हिस्सों में बसते हैं। ऐसी बस्तियाँ गुजरात के मैदान और राजस्थान के कुछ भागों में व्यापक रूप से पाई जाती हैं।

 

(ग) पल्ली बस्तियाँ (Hamleted Settlements) -

कई बार बस्ती भौतिक रूप से एक-दूसरे से पृथक अनेक इकाइयों में बँट जाती है किंतु उन सबका नाम एक रहता है। इन इकाइयों को देश के विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढाँणी इत्यादि कहा जाता है। किसी विशाल गाँव का ऐसा खंडीभवन प्रायः सामाजिक एवं मानवजातीय कारकों द्वारा अभिप्रेरित होता है। ऐसे गाँव मध्य और निम्न गंगा के मैदान, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटियों में बहुतायत में पाए जाते हैं।

 

(घ) परिक्षिप्त बस्तियाँ (Dispersed Settlements) -

भारत में परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्ती प्रारूप सुदूर जंगलों में एकाकी झोंपड़ियों अथवा कुछ झोंपड़ियों की पल्ली अथवा छोटी पहाड़ियों की ढालों पर खेतों अथवा चरागाहों के रूप में दिखाई पड़ता है। बस्ती का चरम विक्षेपण प्रायः भू-भाग और निवास योग्य क्षेत्रों के भूमि संसाधन आधार की अत्यधिक विखंडित प्रकृति के कारण होता है। मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल के अनेक भागों में बस्ती का यह प्रकार पाया जाता है।

21.  चाय - चाय एक रोपण कृषि है जो पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग की जाती है। काली चाय की पत्तियाँ किण्वित होती हैं जबकि चाय की हरी पत्तियाँ अकिण्वित होती हैं। चाय की पत्तियों में  कैफ़िन तथा टैनिन की प्रचुरता पाई जाती है। यह उत्तरी चीन के पहाड़ी क्षेत्रों की देशज फ़सल है। यह उष्ण आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबंधीय जलवायु वाले तरंगित भागों पर अच्छे अपवाह वाली मिट्टी में बोई जाती है। भारत में चाय की खेती 1840 में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में प्रारंभ हुई जो आज भी देश का प्रमुख चाय उत्पादन क्षेत्र है। बाद में इसकी कृषि पश्चिमी बंगाल के उपहिमालयी भागों (दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा कूचबिहार ज़िलों) में प्रारंभ की गई। दक्षिण में चाय की खेती पश्चिमी घाट की नीलगिरी तथा इलायची की पहाड़ियों के निचले ढालों पर की जाती है। भारत चाय का अग्रणी उत्पादक देश है तथा विश्व का लगभग 21.1 प्रतिशत चाय का उत्पादन करता है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय चाय का भाग घटा है। चाय-निर्यातक देशों में भारत का चीन के पश्चात् विश्व में दूसरा स्थान है (2016)। असम के कुल शस्य क्षेत्र के 53.2 प्रतिशत भाग पर चाय की कृषि की जाती है तथा देश के कुल उत्पादन में आधे से अधिक भाग असम में पैदा होता है। चाय के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्यपश्चिम बंगाल व तमिलनाडु हैं।

OR

पेट्रोलियम - कच्चा पेट्रोलियम द्रव और गैसीय अवस्था के हाइड्रोकार्बन से युक्त होता है तथा इसकी रासायनिक संरचना, रंगों और विशिष्ट घनत्व में भिन्नता पाई जाती है। यह मोटर-वाहनों, रेलवे तथा वायुयानों के अंतर-दहन ईंधन के लिए ऊर्जा का एक अनिवार्य स्रोत है। इसके अनेक सह-उत्पाद पेट्रो-रसायन उद्योगों, जैसे कि उर्वरक, कृत्रिम रबर, कृत्रिम रेशे, दवाइयाँ, वैसलीन, स्नेहकों, मोम, साबुन तथा अन्य सौंदर्य सामग्री में प्रक्रमित किए जाते हैं। अपनी दुर्लभता और विविध उपयोगों के लिए पेट्रोलियम को तरल सोना कहा जाता है।

अपरिष्कृत पेट्रोलियम टरश्यरी युग की अवसादी शैलों में पाया जाता है। व्यवस्थित ढंग से तेल अन्वेषण और उत्पादन 1956 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग की स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ। तब तक असम में डिगबोई एकमात्र तेल उत्पादक क्षेत्र था, लेकिन 1956 के बाद परिदृश्य बदल गया। हाल ही के वर्षों में देश के दूरतम पश्चिमी एवं पूर्वी तटों पर नए तेल निक्षेप पाए गए हैं। असम में डिगबोई, नहारकटिया तथा मोरान महत्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। गुजरात में प्रमुख तेल क्षेत्र अंकलेश्वर, कालोल, मेहसाणा, नवागाम, कोसांबा तथा लुनेज हैं। मुंबई हाई, जो मुंबई नगर से 160 कि.मी. दूर अपतटीय क्षेत्र में पड़ ता है, को 1973 में खोजा गया था और वहाँ 1976 में उत्पादन प्रारंभ हो गया। तेल एवं प्राकृतिक गैस को पूर्वी तट पर कृष्णा-गोदावरी तथा कावेरी के बेसिनों में अन्वेषणात्मक कूपों में पाया गया है। कूपों से निकाला गया तेल अपरिष्कृत तथा अनेक अशुद्धियों से परिपूर्ण होता है। इसे सीधे प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसे शोधित किए जाने की आवश्यकता होती है।

भारत में दो प्रकार के तेल शोधन कारखाने हैं - (क) क्षेत्र आधारित (ख) बाज़ार आधारित। डिगबोई तेल शोधन कारखाना क्षेत्र आधारित तथा बरौनी बाज़ार आधारित तेल शोधन कारखाने के उदाहरण हैं।

22. भारत में अधिकांश लौहा इस्पात उद्योग छोटानागपुर पठार के आस पास प्रायद्वीपीय भारत में निम्नलिखित कारणों से केन्द्रित हैं :

1) कच्चे माल (लौह अयस्क व चूनापत्थर) की निकटता

2) कोकिंग कोयले की निकटता

3) स्वर्ण रेखा व हुगली नदियों से पानी की उपलब्धता

4) रेल यातायात की सुविधा

5) मैंगनीज खनिज की निकटता

6) श्रमिकों की उपलब्धता

7) कोलकाता व हल्दिया पतनों की निकटता

OR

सूती वस्त्र उद्योग - सूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत उद्योगों में से एक है। प्राचीन और मध्यकाल में, ये केवल एक कुटीर उद्योग के रूप में थे। भारत संसार में उत्कृष्ट कोटि का मलमल, कैलिको, छींट और अन्य प्रकार के अच्छी गुणवत्ता वाले सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। भारत में इस उद्योग का विकास कई कारणों से हुआ। जैसे - भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है एवं सूती कपड़ा गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए एक आरामदायक वस्त्र है। दूसरा, भारत में कपास का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था। देश में इस उद्योग के लिए आवश्यक कुशल श्रमिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे।

भारत में पहली आधुनिक सूती मिल की स्थापना 1854 में मुंबई हुई थी। बाद में दो और मिलें- शाहपुर मिल और कैलिको मिलअहमदाबाद में स्थापित की गईं। 1947 तक भारत में मिलों की संख्या 423 तक पहुँच गई। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुंबई और अहमदाबाद में पहली मिल की स्थापना के पश्चात् सूती वस्त्र उद्योग का तेज़ी से विस्तार हुआ। मिलों की संख्या आकस्मिक रूप से बढ़ गई। स्वदेशी आंदोलन ने उद्योग को प्रमुख रूप से प्रोत्साहित किया क्योंकि ब्रिटेन के बने सामानों का बहिष्कार कर बदले में भारतीय सामानों को उपयोग में लाने का आह्वान किया गया। 1921 के बाद रेलमार्गों के विकास के साथ ही दूसरे सूती वस्त्र केंद्रों का तेजी से विस्तार हुआ। दक्षिणी भारत में, कोयंबटूर, मदुरई और बेंगलूरु में मिलों की स्थापना की गई। मध्य भारत में नागपुर, इंदौर के अतिरिक्त शोलापुर और वडोदरा सूती वस्त्र केंद्र बन गए। कानपुर में स्थानिक निवेश के आधार पर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई। पत्तन की सुविधा के कारण कोलकाता में भी मिलें स्थापित की गईं। जलविद्युत शक्ति के विकास से कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की अवस्थिति में भी सहयोग मिला। तमिलनाडु में इस उद्योग के तेज़ी से विकास का कारण मिलों के लिए प्रचुर मात्रा में जल-विद्युत शक्ति की उपलब्धता है। उज्जैन, भरूच, आगरा, हाथरस, कोयंबटूर और तिरुनेलवेली आदि केंद्रों में, कम श्रम लागत के कारण कपास उत्पादक क्षेत्रों से उनके दूर होते हुए भी उद्योगों की स्थापना की गई। वर्तमान में अहमदाबाद, भिवांडी, शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर, इंदौर और उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं। ये सभी केंद्र परंपरागत केंद्र हैं और कपास उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु अग्रणी कपास उत्पादक राज्य हैं। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब दूसरे महत्वपूर्ण सूती वस्त्र उत्पादक हैं।

23.  परिवहन के वे साधन जो वस्तुओं व व्यक्तियों को एक स्थान से दूसरे पर लाने ले जाने के लिए जल को परिवहन मार्ग के रूप में प्रयोग करते हैं, जलमार्ग कहलाते हैं। जल परिवहन को दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है :-

महासागरीय जलमार्ग वे जलमार्ग जो सागर और महासागरों को जलमार्ग के रूप में प्रयुक्त करते हैं।

आंतरिक या अंत: स्थलीय जलमार्ग वे जलमार्ग जो स्थल में अंदर नदियों, झीलों और नहरों का जलमार्गों के रूप में प्रयोग करते हैं।

जलमार्गों की विशेषताएँ अथवा महत्व / लाभ :-

1. जलमार्गों को बनाना नहीं पड़ता है।

2. इनके रखरखाव का कोई खर्च आता है।

3. पतनों और जहाजों के निर्माण पर केवल प्रारम्भिक खर्च आता है।

4. महासागरों में विभिन्न आकार के जहाज आसानी से चल सकते हैं।

5. जल का घर्षण कम होने के कारण परिवहन का खर्च कम आता है।

6. महासागर और जल परिवहन, परिवहन का सबसे सस्ता साधन है।

7. कम मूल्य वाली, स्थूल और भारी वस्तुओं के लम्बी दूरी तक के परिवहन के लिए जल सबसे सस्ता परिवहन साधन है।

8. महासागरों का जहाजों के द्वारा मार्गों के रूप में प्रयोग करना सम्भववादऔर पर्यावरण के साथ मानव के अनुकूलन का उचित उदाहरणहै।

9. वातानुकूलित चैम्बर्स और कंटेनरों की सुविधा के बाद मालवाहक पोतों पर माल ढोना अब बहुत सुरक्षित और आसान हो गया है।

इस प्रकार “जलमार्ग यात्रियों और कार्गो (भार) यातायात दोनों के लिए परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन है”।

OR

दो देशों के बीच होने वाले व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार या विदेशी व्यापार कहते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ : -

1. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से वस्तुओं का आदान प्रदान बढ़ता है।

2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से वस्तुओं का उत्पादन बढ़ता है।

3. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।

4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से परिवहन और संचार के साधनों के विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

5. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से कीमतों और वेतन में समानीकरण बढ़ता है।

6. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से वे उत्पाद भी मिल जाते हैं। जिनका उत्पादन किसी क्षेत्र विशेष में नहीं होता है।

7. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से ज्ञान और संस्कृति के विकास को बढ़ावा मिलता है।

8. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से नए विचारों, नई तकनीकों तथा प्रबन्धनीय कुशलता का सृजन होता है।

9. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से सेवा क्षेत्र का विस्तार होता है। तथा बीमा, बैंकिंग, जहाजरानी आदि क्षेत्रों का विकास होता है।

24.   

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