1. (c) नव निश्चयवाद
2. (d) अमेजन बेसिन
3. (c) विश्वविद्यालय शिक्षण
4. (b) यू एस ए
5. (b) 1872
6. भूगोल
की वह शाखा जो जनसंख्या से संबंधित अध्ययन करती है, जनसंख्या भूगोल कहलाती है।
7. 15
से 59 वर्ष
8. जब
महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम होती है, तो यह प्रतिकूल लिंगानुपात कहलाती है।
9. 325
व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
10. अशोधित
जन्म दर (Crude
Birth Rate) (CBR) – प्रजननशीलता (Fertility) को मापने का यह सबसे सरल और सबसे अधिक प्रयोग
किया जाने वाला तरीका है। अशोधित जन्म दर को प्रति हजार स्त्रियों द्वारा जन्म दिए
जीवित बच्चों के रूप में व्यक्त किया जाता है।
11. मानव
विकास के स्तर को तीन आधारों, जैसे – स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुंच की
औसत उपलब्धियों पर मापा जाता है। इन आधारों पर एक सूची (मानव विकास सूचकांक) तैयार
की जाती है तथा देशों का एक पदानुक्रम (Hierarchy)
तैयार किया जाता है।
12. भूमि
का वह भाग जो मानव बसाव के लिए प्रयुक्त किया जाता है, बस्ती या अधिवास
(HUMAN SETTLEMENT) कहलाता है। दूसरे शब्दों में “स्थाई रूप से बसा हुआ स्थान
‘बस्ती’ कहलाता है। बस्ती के विभिन्न रूप हो सकते हैं। जैसे – यह एक या दो – चार
परिवारों की ढाणी से लेकर गाँव, कस्बा, नगर, महानगर तथा सननगर आदि हो सकती है।
13. जनसंख्या
के घनत्व को प्रति इकाई क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या द्वारा अभिव्यक्त किया
जाता है। भारत में जनसंख्या का घनत्व प्रत्येक क्रमिक जनगणना में विगत एक शताब्दी से
जनसंख्या की वृद्धि, वार्षिक जन्म दर और मृत्यु दर
तथा प्रवास की दर के कारण बढ़ता जा रहा है और यह वृद्धि विभिन्न प्रवृत्तियों को
दर्शाती है। जनगणना 2011 के अनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग
कि.मी. है। जो 1951 ई. में 117 व्यक्ति/वर्ग कि.मी. था, 2001 में 325
व्यक्ति/प्रतिवर्ग कि.मी. थ। विगत 50 वर्षों में इसमें 200 व्यक्ति प्रति वर्ग
कि.मी. से अधिक की उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है।
14. पर्यावरण
प्रदूषण मानवीय क्रियाकलापों के अपशिष्ट उत्पादों से मुक्त द्रव्य एवं ऊर्जा का
परिणाम है। प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं। प्रदूषकों
के परिवहित एवं विसरित होने के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकारों
में वर्गीकृत किया जाता है– (i) जल प्रदूषण,
(ii) वायु प्रदूषण, (iii) भू-प्रदूषण,
(iv) ध्वनि प्रदूषण।
15. जनसंख्या
वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख आर्थिक कारक:-
(i)
खनिज : खनिज निक्षेपों से युक्त
क्षेत्र उद्योगों को आकृष्ट करते हैं। खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ रोज़गार उत्पन्न
करते हैं। अतः कुशल एवं अर्ध-कुशल कर्मी इन क्षेत्रों में पहुँचते हैं और जनसंख्या
को सघन बना देते हैं। अफ्रीका की कटंगा, ज़ांबिया
ताँबा पेटी इसका एक अच्छा उदाहरण है।
(ii)
नगरीकरण : नगर रोजगार के बेहतर अवसर,
शैक्षणिक व चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ तथा परिवहन और संचार के बेहतर
साधन प्रस्तुत करते हैं। अच्छी नागरिक सुविधाएँ तथा नगरीय जीवन के आकर्षण लोगों को
नगरों की ओर खींचते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास
होता है और नगर आकार में बढ़ जाते हैं। विश्व के विराट नगर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या
में प्रवासियों को निरंतर आकर्षित करते हैं।
(iii)
औद्योगीकरण : औद्योगिक पेटियाँ रोजगार के
अवसर उपलब्ध कराती हैं और बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करती हैं। इनमें केवल
कारखानों के श्रमिक ही नहीं होते बल्कि परिवहन परिचालक,
दुकानदार, बैंककर्मी, डॉक्टर,
अध्यापक तथा अन्य सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले भी होते हैं। जापान का
कोबे-ओसाका प्रदेश अनेक उद्योगों की उपस्थिति के कारण सघन बसा हुआ है।
16. विकासशील
देशों में मानव बस्तियों की समस्याएँ:-
विकासशील
देशों में बस्तियों से संबंधित कई प्रकार की समस्याएँ हैं, जैसे - अवहनीय जनसंख्या
का केंद्रीकरण,
छोटे व तंग आवास एवं गलियाँ, पीने योग्य जल
जैसी सुविधाओं की कमी। इसके अतिरिक्त इनमें आधारभूत ढाँचा जैसे बिजली, गंदे पानी की निकासी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि
सुविधाओं की भी कमी होती है। विकासशील देशों में अधिकतर शहर अनियोजित हैं, अतः आने
वाले व्यक्ति अत्यंत भीड़ की स्थिति पैदा कर देते हैं। विकासशील देशों के आधुनिक
शहरों में आवासों की कमी, लंबवत विस्तार (बहुमंजिला मकान) तथा गंदी बस्तियों की
वृद्धि प्रमुख विशेषताएँ हैं। अनेक शहरों में जनसंख्या का बढ़ता भाग, निम्न स्तरीय
आवासों जैसे - गंदी बस्तियों, अनधिकृत बस्तियों में रहते
हैं। भारत के अधिकांश मिलीयन सिटी 25 प्रतिशत निवासी अवैध बस्तियों में रहते हैं
और ऐसे नगर अन्य नगरों की अपेक्षा दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। एशिया पेसिफिक देशों
में नगरीय जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग अनधिकृत बस्तियों में रहता है।
17. प्रवास
के परिणाम - प्रवास,
क्षेत्र पर अवसरों के असमान वितरण के कारण होता है। लोगों में कम
अवसरों और कम सुरक्षा वाले स्थान से अधिक अवसरों और बेहतर सुरक्षा वाले स्थान की
ओर जाने की प्रवृत्ति होती है। बदले में यह प्रवास के उद्गम और गंतव्य क्षेत्रों
के लिए लाभ और हानि दोनों उत्पन्न करता है। परिणामों को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक
और जनांकिकीय संदर्भों में देखा जा सकता है।
प्रवास
के आर्थिक परिणाम –
1. उदगम स्रोत पर श्रमिकों की कमी हो जाती
है।
2. प्रवासी उदगम प्रदेशों में स्थित अपने
घरों में कमाई का पैसा भेजते हैं।
3. प्रवासी मजदूरों के कारण पंजाब जैसे
क्षेत्रों में हरित क्रांति सम्भव हो सकी।
4. व्यावसायिक संरचना प्रभावित होती
है।
5. किसी क्षेत्र के संसाधनों पर दबाव पड़ता
है।
18. वायु
में अवांछित पदार्थ, जैसे – धूल,
धुआं एवं बदबू आदि जो वायु की गुणवत्ता को कम कर देते हैं, वायु प्रदूषण कहलाते हैं।
वायु
प्रदूषण के कारण : - फैक्ट्रियों और परिवहन साधनों का
धुआं, अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, ईट के भट्टे, धूल भरी
आंधियाँ, ज्वालामुखी विस्फोट, जंगल की आग, नगरीय अपशिष्ट और कूड़े कर्कट का ढेर, खेतों
में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का छिडकाव, बैक्टीरिया और वायरस, जीवाश्म ईंधनों,
जैसे – कोयला, पेट्रोल,
डीजल आदि का जलाना, परमाणु विस्फोट, रासायनिक प्रक्रियाएँ, खनन
कार्य आदि।
19. उत्तरी
अटलांटिक समुद्री मार्ग - यह मार्ग औद्योगिक दृष्टि
से विकसित विश्व के दो प्रदेशों उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी
यूरोप को मिलाता है। विश्व का एक चौथाई विदेशी व्यापार इस मार्ग द्वारा परिवहित
होता है। इसलिए यह विश्व का व्यस्ततम व्यापारिक जलमार्ग है;
दूसरे अर्थों में इसे ‘वृहद् ट्रंक मार्ग’
कहा जाता है। दोनों तटों पर पत्तन और पोताश्रय की उन्नत सुविधाएँ
उपलब्ध हैं।
1. यह संसार का सबसे व्यस्त एवं महत्वपूर्ण
महासागरीय जल मार्ग है।
2. यह विश्व के दो सबसे उन्नत एवं विकसित
क्षेत्रों –
उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग और पश्चिम यूरोप को मिलाता है।
3. विश्व में व्यापारिक जलयानों द्वारा ढोए
गए कुल माल का 25% भाग अकेले इसी मार्ग से ढोया जाता है।
4. इस मार्ग को ‘बृहद ट्रंक मार्ग’ कहा जाता है।
5. विश्व की 55 बड़ी बन्दरगाहों में से 28
बन्दरगाह अकेले इसी मार्ग पर स्थित हैं।
6. इस मार्ग पर पश्चिम यूरोप के लन्दन,
लिवरपूल, मानचेस्टर, रॉटरडम
(यूरोप का सबसे बड़ा कंटेनर बन्दरगाह, नीदरलैंड में नार्थ सी
में), एंटवर्प (यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा कंटेनर बन्दरगाह,
बेल्जियम में नार्थ सी में), तथा उत्तर
अमेरिका के हैलिफैक्स, न्यूयॉर्क, बोस्टन
व न्यूआर्लियंस प्रमुख हैं।
7. इस मार्ग के द्वारा कनाडा से लुग्दी,
कागज, दुग्ध पदार्थ; अमेरिका
से कपास, गेंहू, मांस, लौहा; कैरेबियन देशों से चीनी, फल, पेट्रोल व लकड़ी;
यूरोप
से खनिज और विनिर्मित पदार्थ आदि भेजे जाते हैं।
OR
पनामा नहर मार्ग (Panama Canal Route) – इस नहर का निर्माण उत्तर अमेरिका और
दक्षिण अमेरिका के मध्य में स्थित पनामा गणराज्य के पनामा जलडमरूमध्य (ISTHMUS)
को काटकर किया गया है। यह नहर पूर्व में अटलांटिक महासागर में कोलोन
बन्दरगाह को पश्चिम में प्रशांत महासागर में पनामा बन्दरगाह से जोड़ती है। यह नहर
लगभग 81 km लम्बी है, जो लगभग 12
km गहरी कटान (गेलार्ड या कूलेब्रा कटान) से युक्त है। यह नहर 12.5
m से 26 m गहरी है। यह नहर 91 m से 305 m चौड़ी है। यह नहर लॉक प्रणाली से संचालित
है। नहर के असमान धरातल के कारण इस मार्ग पर छह लॉक सिस्टम हैं। यह नहर समुद्र तल
से 25.6 m तक ऊँची है तथा उबड – खाबड़
धरातल वाली है। इसे पार करने में 7 से 8 घंटे लगते हैं। यह इंजीनियरिंग और मानव की
प्रतिभा (सम्भववाद) का अनूठा उदाहरण है।
20. रैखिक प्रतिरूप या रिवन प्रतिरूप या लुम्बकार प्रतिरूप :- ऐसे गाँव अधिकतर
किसी सड़क एवं रेलमार्ग के किनारे, नदियों के किनारे, सागरीय तटों के किनारे मिलते
हैं। इनमें मकान प्राय एक पंक्ति में होते हैं। ऐसी बस्तियाँ तटीय ओडिशा, दून घाटी
– उत्तराखंड, तमिलनाडु और गुजरात में मिलती हैं।
वृताकार प्रतिरूप :- ऐसे प्रतिरूप के गाँव अधिकतर
किसी मैदानी क्षेत्रों में मिलते हैं जिनके केंद्र में कोई कुआँ, तालाब, बावड़ी,
धार्मिक स्थल व चौराहा आदि होता है। ऐसा बस्ती प्रतिरूप गंगा – यमुना दोआब, हिमाचल
प्रदेश और गुजरात में मिलता है।
21. कपास
एक रेशेदार,
उष्णकटिबंधीय और नकदी फसल है। इसका प्रयोग कपड़ा बनाने में किया जाता
है। यह खरीफ ऋतु की फसल हैं।
उपज
की भौगोलिक दशाएँ :-
कपास
उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है। यह खरीफ मौसम की फसल है।
कपास
के लिए 21°C
से 27°C तक उच्च तापमान की जरूरत होती है।
कपास
के लिए तेज धूप जरूरी होती है।
कपास
के लिए 75
CMS से 100 CMS औसत वार्षिक वर्षा की जरूरत
होती है।
कपास
के लिए समतल ढलान वाली भूमि की आवश्यकता होती है।
कपास
के लिए भारी दोमट या काँप मिट्टी तथा काली मिट्टी (रेगड़ मृदा) उपयुक्त रहती है।
कपास
के लिए अत्यधिक मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है।
उत्पादन
और वितरण :- भारत,
चीन, अमेरिका और पाकिस्तान के बाद विश्व में
कपास का चौथा बड़ा उत्पादक देश है। कपास का क्षेत्र देश के कुल बोए गए क्षेत्र का
लगभग 5% भाग है। देश में छोटे रेशे वाली (भारतीय किस्म) और लम्बे रेशे वाली
(अमेरिकन) दोनों किस्मों की कपास पैदा की जाती है। अमेरिकन कपास ‘नरमा’ देश के उत्तर पश्चिम भागों में बोई जाती है।
जो देश की कुल कपास उत्पादन का 30% भाग होती है। कपास, भारत
के महाराष्ट्र, MP, गुजरात, पंजाब,
हरियाणा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश
और तमिलनाडु के कुछ भागों में बोई जाती है।
OR
मैंगनीज
(MANGANESE), काले रंग की एक धातु है जो प्राकृतिक भस्म (oxide) के
रूप में पाई जाती है। यह धारवाड़ युग की अवसादी चट्टानों में मिलती है। इस धातु का
सबसे अधिक प्रयोग लौह अयस्क को गलाने में और लौह मिश्रित धातु बनाने में किया जाता
है। एक टन इस्पात बनाने में 10 KG मैंगनीज की आवश्यकता होती
है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग रासायनिक उद्योगों, ब्लीचिंग
पाउडर, कीटनाशक दवाईयों, रंग – रोगन, शुष्क बैटरियां तथा चीनी मिट्टी के बर्तन
बनाने में किया जाता है। इसके गुणों के कारण इसे JACK MINERAL भी कहा जाता है।
उत्पादन
और वितरण :- देश में मैंगनीज अयस्क के कुल
भंडार 38 करोड़ टन हैं जिनमें से 14 करोड़ टन संरक्षित व शेष 24 करोड़ टन शेष भंडार
के रूप में हैं। देश में केवल एक – चौथाई भाग ही उच्च
कोटि का मैंगनीज हैं। भारत विश्व का 20% मैंगनीज उत्पादन कर, रूस के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर है। ओडिशा, मैंगनीज
उत्पादन में भारत का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यह राज्य भारत का एक – तिहाई भाग मैंगनीज उत्पन्न करता है।
मैंगनीज
उत्पादन में 2003
– 04 के अनुसार TOP 3 राज्य निम्नलिखित हैं :-
1. ओडिशा 33%,
2. MP 22,
3. कर्नाटक 15%,
4. अन्य 30%
भारत
में प्रमुख मैंगनीज खदानें ओडिशा में सुंदरगढ़, सम्भलपुर,
कोरापुट, कालाहांडी; महाराष्ट्र
में नागपुर, भंडारा, रत्नागिरी;
कर्नाटक में धारवाड़, बेलारी, बेलगाम, शिमोगा; मध्य प्रदेश
में बालाघाट, छिन्दवाडा, झबुआ आदि में
हैं।
22. नगर केन्द्रों द्वारा
दी गई सुविधाओं से लाभान्वित होकर अनेक उद्योग नगरों के आस पास ही केन्द्रित हो
जाते हैं, जिसे समूहन बचत (AGGLOMERATION ECONOMIES) कहते हैं। समूहन बचत क्षेत्र का विकसित रूप औद्योगिक
गुच्छ या प्रदेश कहलाता है।
भारत
के प्रमुख औद्योगिक प्रदेश :-
1. मुंबई – पुणे
औद्योगिक प्रदेश
2. हुगली औद्योगिक प्रदेश
3. बंगलौर – चेन्नई
औद्योगिक प्रदेश
4. गुजरात औद्योगिक प्रदेश
5. छोटानागपुर पठार औद्योगिक प्रदेश
6. विशाखापत्तनम –
गुंटूर औद्योगिक प्रदेश
7. गुडगाँव – दिल्ली –
मेरठ औद्योगिक प्रदेश
8. कोल्लम – तिरुवनंतपुरम
औद्योगिक प्रदेश
यह
देश का सबसे पुराना और दूसरा सबसे बड़ा औद्योगिक प्रदेश है। इसका विस्तार कोलकाता
और हुगली नदी के आस – पास के क्षेत्रों में है।
कोलकाता और हावड़ा इसके हृदय स्थल है तथा हुगली इस प्रदेश की रीढ़ की हड्डी है।
कोलकाता, देश के पूर्वी भागों में सबसे बड़ा जनसंख्या वाला
नगर है। ब्रिटिश काल (वर्ष 1911 से पहले) में यह भारत की राजधानी भी रहा है।
हुगली
औद्योगिक प्रदेश का कोई भी औद्योगिक केंद्र कोलकाता शहर से 64
km से दूर नहीं है। इस प्रदेश से देश की 90% पटसन निर्मित सामग्री
मिलती है। यहाँ के कोलकाता और टीटागढ़ में कागज की मिलें हैं। यहाँ सूती कपड़े की 25
मिलें हैं। यहाँ जलयान बनाने की गार्डन रीच फैक्ट्री, चितरंजन
में रेल इंजन बनाने की फैक्ट्री, हल्दिया में तेल शोधनशाला
एवं पेट्रोकैमिकल फैक्ट्री प्रमुख हैं। इस औद्योगिक प्रदेश के प्रमुख उद्योगों में
सूती वस्त्र उद्योग, पेट्रोलियम उद्योग, डीजल और विद्युत रेल इंजन, रासायनिक उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, विद्युत उद्योग, दवाईयों के उद्योग, कागज उद्योग,दियासलाई उद्योग आदि हैं
यहाँ
के प्रमुख औद्योगिक केंद्र कोलकाता, हावड़ा, चितरंजन, हल्दिया, रिशरा,
टीटागढ़ आदि हैं।
OR
उद्योगों
की स्थिति कई कारकों, जैसे– कच्चा
माल की उपलब्धता शक्ति, बाज़ार, पूँजी,
यातायात और श्रम इत्यादि द्वारा प्रभावित होती है। इन कारकों का सापेक्षिक
महत्व समय और स्थान के साथ बदल जाता है। कच्चे माल और उद्योग के प्रकार में घनिष्ठ
संबंध होता है। आर्थिक दृष्टि से, निर्माण उद्योग को उस
स्थान पर स्थापित करना चाहिए जहाँ उत्पादन मूल्य और निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ताओं
तक वितरण करने का मूल्य न्यूनतम हो। परिवहन मूल्य एक बड़ी सीमा तक कच्चे माल और
निर्मित उत्पादों की प्रकृति पर निर्भर करता है।
उद्योगों
की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारक :-
कच्चा
माल - भार-ह्रास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले
उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किए जाते हैं जहाँ ये उपलब्ध होते हैं। भारत में
चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों स्थापित हैं?
इसी तरह, लुगदी उद्योग, ताँबा
प्रगलन और पिग आयरन उद्योग अपने कच्चे माल प्राप्ति के स्थानों के निकट ही स्थापित
किए जाते हैं। लोहा-इस्पात उद्योग में लोहा और कोयला दोनों ही भार ह्रास वाले
कच्चे माल हैं। इसीलिए लोहा-इस्पात उद्योग की स्थिति के लिए अनुकूलतम स्थान कच्चा
माल स्रोतों के निकट होना चाहिए। यही कारण है कि अधिकांश लेाहा-इस्पात उद्योग या
तो कोयला क्षेत्रों (बोकारो, दुर्गापुर आदि) के निकट स्थित
हैं अथवा लौह अयस्क के स्रोतों (भद्रावती, भिलाई और
राउरकेला) के निकट स्थित हैं।
शक्ति
-
शक्ति मशीनों के लिए गतिदायी बल प्रदान करती है और इसीलिए किसी भी उद्योग की
स्थापना से पहले इसकी आपूर्ति सुनिश्चित कर ली जाती है। फिर भी कुछ उद्योगों जैसे–
एल्युमिनियम और कृत्रिम नाइट्रोजन निर्माण उद्योग की स्थापना शक्ति
स्रोत के निकट की जाती है क्योंकि ये अधिक शक्ति उपयोग करने वाले उद्योग हैं,
जिन्हें विद्युत की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है।
बाज़ार
-
बाज़ार,
निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती हैं। भारी मशीन,
मशीन के औज़ार, भारी रसायनों की स्थापना उच्च
माँग वाले क्षेत्रों के निकट की जाती है क्योंकि ये बाज़ार-अभिमुख होते हैं। सूती
वस्त्र उद्योग में शुद्ध (जिसमें भार-ह्रास नहीं होता) कच्चे माल का उपयोग होता है
और ये प्रायः बड़े नगरीय केंद्रों में स्थापित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ–
मुंबई, अहमदाबाद, सूरत
आदि। पेट्रोलियम परिशोधनशालाओं की स्थापना भी बाज़ारों के निकट की जाती है क्योंकि
अपरिष्कृत तेल का परिवहन आसान होता है और उनसे प्राप्त कई उत्पादों का उपयोग दूसरे
उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। कोयली, मथुरा
और बरौनी इसके विशिष्ट उदाहरण हैं। परिशोधनशालाओं की स्थापना में पत्तन भी एक
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
परिवहन
-
क्या आपने कभी मुंबई, चेन्नई, दिल्ली
और कोलकाता के अंदर और उनके चारों ओर उद्योगों के केंद्रीकरण के कारणों को जानने
का प्रयास किया है? ऐसा इसलिए हुआ कि ये प्रारंभ में ही
परिवहन मार्गों को जोड़ने वाले केंद्र बिंदु (Node) बन गए। रेलवे
लाइन बिछने के बाद ही उद्योगों को आंतरिक भागों में स्थानांतरित किया गया। सभी
मुख्य उद्योग मुख्य रेल मार्गों पर स्थित हैं।
श्रम
-
क्या हम श्रम के बिना उद्योग के बारे में सोच सकते है?
उद्योगों को कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। भारत में श्रम बहुत
गतिशील है तथा जनसंख्या अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में उपलब्ध है।
ऐतिहासिक
कारक - क्या आपने कभी मुंबई,
कोलकाता और चेन्नई के औद्योगिक केंद्र के रूप में उभरने के कारणों
के विषय में सोचा है? ये स्थान हमारे औपनिवेशिक अतीत द्वारा
अत्यधिक प्रभावित थे। उपनिवेशीकरण के प्रारंभिक चरणों में निर्माण क्रियाओं को
यूरोप के व्यापारियों द्वारा नव प्रोत्साहन दिया गया। मुर्शिदाबाद, ढाका, भदोई, सूरत, वडोदरा, कोझीकोड, कोयम्बटूर,
मैसूर आदि स्थान महत्वपूर्ण निर्माण केंद्रों के रूप में उभरे। उपनिवेशवाद
के उत्तरकालीन औद्योगिक चरण में, ब्रिटेन में निर्मित
वस्तुओं से होड़ और उपनिवेशिक शक्ति की भेदमूलक नीति के कारण, इन निर्माण केंद्रों का तेज़ी से विकास हुआ।
उपनिवेशवाद
के अंतिम चरणों में अंग्रज़ों ने चुने हुए क्षेत्रों में कुछ उद्योगों को प्रोन्नत
किया। इससे,
देश में विभिन्न प्रकार के उद्योगों का बड़े पैमाने पर स्थानिक विस्तार
हुआ।
औद्योगिक
नीति - एक प्रजातांत्रिक देश होने के कारण भारत का
उद्देश्य संतुलित प्रादेशिक विकास के साथ आर्थिक संवृद्धि लाना है। भिलाई और
राउरकेला में लौह-स्पात उद्योग की स्थापना देश के पिछड़े जनजातीय क्षेत्रों के
विकास के निर्णय पर आधारित थी। वर्तमान समय में भारत सरकार पिछड़े क्षेत्रों में
स्थापित उद्योग-धंधों को अनेक प्रकार के प्रोत्साहन देती है।
23. परिवहन के वे साधन जो वस्तुओं व व्यक्तियों को एक स्थान
से दूसरे पर लाने ले जाने के लिए सड़को को
परिवहन मार्ग के रूप में प्रयोग करते हैं, सड़क परिवहन कहलाते हैं। जैसे – पक्की
सड़कें, कच्ची सड़कें, महामार्ग, एक्सप्रेस वे आदि।
सड़कों
के गुण या लाभ -
1)
दरवाजे से दरवाजे तक परिवहन सुविधा
2)
छोटी दूरी के लिए लाभदायक
3)
निर्माण कार्य सस्ता
4)
ऊबड़ –
खाबड़ भू – भाग पर भी बनाना सम्भव
5)
लचीलापन
सड़कों
के अवगुण या हानि -
1)
महंगा परिवहन
2)
लम्बी दूरी के लिए अनुपयोगी
3)
दुर्घटनाओं की सम्भावना अधिक
4) अधिक प्रदुषण
OR
अंतर्राष्ट्रीय
व्यापार की दुनिया के मुख्य प्रवेश द्वार पोताश्रय तथा पत्तन होते हैं। इन्हीं
पत्तनों के द्वारा जहाज़ी माल तथा यात्री विश्व के एक भाग से दूसरे भाग को जाते
हैं। पत्तन जहाज़ के लिए गोदी, लादने, उतारने तथा भंडारण हेतु सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इन सुविधाओं को प्रदान
करने के उद्देश्य से पत्तन के प्राधिकारी नौगम्य द्वारों का रख-रखाव, रस्सों व बजरों (छोटी अतिरिक्त नौकाएँ) की व्यवस्था करने और श्रम एवं
प्रबंधकीय सेवाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था करते हैं। एक पत्तन के महत्त्व को
नौभार के आकार और निपटान किए गए जहाजों की संख्या द्वारा निश्चित किया जाता है। एक
पत्तन द्वारा निपटाया नौभार, उसके पृष्ठ प्रदेश के विकास के
स्तर का सूचक है।
पत्तन
के प्रकार
सामान्यत
: पत्तनों का वर्गीकरण उनके द्वारा सँभाले गए यातायात के प्रकार के अनुसार किया
जाता है।
निपटाए
गये नौभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार :
(i)
औद्योगिक पत्तन : ये पत्तन थोक नौभार के लिए
विशेषीकृत होते हैं जैसे-अनाज, चीनी, अयस्क, तेल, रसायन और इसी
प्रकार के पदार्थ।
(ii)
वाणिज्यिक पत्तन : ये
पत्तन सामान्य नौभार संवेष्टित उत्पादों तथा विनिर्मित वस्तुओं का निपटान करते
हैं। ये पत्तन यात्री-यातायात का भी प्रबंध करते हैं।
(iii)
विस्तृत पत्तन : ये पत्तन बड़े परिमाण में
सामान्य नौभार का थोक में प्रबंध करते हैं। संसार के अधिकांश महान पत्तन विस्तृत
पत्तनों के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं।
अवस्थिति
के आधार पर पत्तनों के प्रकार
(i)
अंतर्देशीय पत्तन :
ये पत्तन समुद्री तट से दूर अवस्थित होते हैं। ये समुद्र से एक नदी अथवा नहर
द्वारा जुड़ होते हैं। ऐसे पत्तन चौरस तल वाले जहाज़ या बजरे द्वारा ही गम्य होते
हैं। उदाहरणस्वरूप-मानचेस्टर एक नहर से जुड़ा है; मेंफिस
मिसीसिपी नदी पर अब स्थित है; राइन के अनेक पत्तन हैं
जैसे-मैनहीम तथा ड्यूसबर्ग; और कोलकाता हुगली नदी, जो गंगा नदी की एक शाखा है, पर स्थित है।
(ii)
बाह्य पत्तन : ये गहरे जल के पत्तन हैं जो
वास्तविक पत्तन से दूर बने होते हैं। ये उन जहाज़ों, जो अपने बड़े
आकार के कारण उन तक पहुँचने में अक्षम हैं, को ग्रहण करके
पैतृक पत्तनों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। उदाहरणस्वरूप एथेंस तथा यूनान में इसके
बाह्य पत्तन पिरेइअस एक उच्चकोटि का संयोजन है।
विशिष्टीकृत
कार्यकलापों के आधार पर पत्तनों के प्रकार
(i)
तैल पत्तन : ये पत्तन तेल के प्रक्रमण और
नौ-परिवहन का कार्य करते हैं। इनमें से कुछ टैंकर पत्तन हैं तथा कुछ तेल शोधन
पत्तन हैं। वेनेजुएला में माराकाइबो, ट्यूनिशिया में
एस्सखीरा, लेबनान में त्रिपोली टैंकर पत्तन हैं। पर्शिया की
खाड़ी पर अबादान एक तेलशोधन पत्तन है।
(ii)
मार्ग पत्तन (विश्राम पत्तन) :
ये ऐसे पत्तन हैं,
जो मूल रूप से मुख्य समुद्री मार्गाें पर विश्राम केंद्र के रूप में
विकसित हुए, जहाँ पर जहाज़ पुन: ईंधन भरने, जल भरने तथा खाद्य सामग्री लेने के लिए लंगर डाला करते थे। बाद में,
वे वाणिज्यिक पत्तनों में विकसित हो गए। अदन, होनोलूलू
तथा सिंगापुर इसके अच्छे उदाहरण हैं।
(iii)
पैकेट स्टेशन : इन्हें फ़ेरी-पत्तन के नाम
से भी जाना जाता है। ये पैकेट स्टेशन विशेष रूप से छोटी दूरियों को तय करते हुए
जलीय क्षेत्रों के आर-पार डाक तथा यात्रियों के परिवहन (आवागमन) से जुड़े होते हैं।
ये स्टेशन जोड़ों में इस प्रकार अवस्थित होते हैं कि वे जलीय क्षेत्र के आरपार एक
दूसरे के सामने होते हैं। उदाहरणस्वरूप-इंग्लिश चैनल के आरपार इंग्लैंड में डोवर
तथा फ्रांस में कैलाइस।
(iv)
आंत्रपो पत्तन : ये
वे एकत्रण केंद्र हैं, जहाँ विभिन्न देशों से निर्यात
हेतु वस्तुएँ लाई जाती हैं। सिंगापुर एशिया के लिए एक आंत्रपो पत्तन है, रोटरडम यूरोप के लिए और कोपेनहेगेन बाल्टिक क्षेत्र के लिए आंत्रपो पत्तन
हैं।
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नौ सेना पत्तन : ये केवल सामाजिक महत्त्व के
पत्तन हैं। ये पत्तन युद्धक जहाज़ों को सेवाएँ देते हैं तथा उनके लिए मरम्मत
कार्यशालाएँ चलाते हैं। कोच्चि तथा कारवाड़ भारत में ऐसे पत्तनों के उदाहरण हैं।
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