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SET 2 Series E1GFH/4 - 02 March 2023 

Q1 (a) भारत

Q 2 (b) जापान का ओसका-कोबे क्षेत्र

Q 3 (b) प्रतिकूल जलवायु

Q 4 (b) यू एस ए

Q 5 (d) बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास में मदद करना

Q 6 (b) तृतीयक

Q 7 (d) सिलचर

Q 8 (c) भिन्न – भिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार के पशु पाले जाते हैं

Q 9 (b) केवल II, III और IV सही हैं

Q 10 (c) i – 3, ii – 4, iii – 2, iv - 1

Q 11 (b) उत्तर प्रदेश

Q 12 (c) घरों का संकुलित रूप से निर्मित क्षेत्र

Q 13 (d) चीनी – तिब्बती

Q 14 (b) काली मृदा वाले क्षेत्रों में की जाती है

Q 15 (b) हिमाचल प्रदेश

Q 16 (d) गद्दी

Q 17 (d) गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना

Q 18 (18.1) 2012 -13, (18.2) 2016 -17 (18.3) 2013 -14

Q 19 (19.1) धरातलीय खनन को विवृत खनन भी कहा जाता है। यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, जबकि भूमिगत खनन में खनिज अयस्क धरातल के नीचे से कूपक माध्यम से खोदे जाते हैं।

(19.2) यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि यह सबसे कम खर्चीली और सबसे अधिक सुरक्षित विधि होती है।

(19.3) कूपकी खनन, खनन जोखिम भरी विधि है, क्योंकि इसमें जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ जैसे दुर्घटनाओं का खतरा रहता है।

Q 20 मनुष्य अपने प्रौद्योगिकी की सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया करता है। प्रौद्योगिकी किसी समाज के सांस्कृतिक विकास के स्तर की सूचक होती है। मानव प्रकृति के नियमों को बेहतर ढंग से समझने के बाद ही प्रौद्योगिकी का विकास कर पाया। उदाहरणार्थ, घर्षण और ऊष्मा की संकल्पनाओं ने अग्नि की खोज में हमारी सहायता की। इसी प्रकार डी.एन.ए. और आनुवांशिकी के रहस्यों की समझ ने हमें अनेक बीमारियों पर विजय पाने के योग्य बनाया। अधिक तीव्र गति से चलने वाले यान विकसित करने के लिए हम वायु गति के नियमों का प्रयोग करते हैं। आप देख सकते हैं कि प्रकृति का ज्ञान प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है और प्रौद्योगिकी मनुष्य पर पर्यावरण की बंदिशों को कम करती है।

Q 21 (क) पर्यटन आकर्षण

जलवायु : ठंडे प्रदेशों के अधिकांश लोग पुलिन विश्राम के लिए ऊष्ण व धूपदार मौसम की अपेक्षा करते हैं। दक्षिणी यूरोप और भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में पर्यटन के महत्त्व का यह एक मुख्य कारण है। अवकाश के शीर्ष मौसम में यूरोप के अन्य भागों की अपेक्षा भूमध्यसागरीय जलवायु में लगभग सतत ऊँचा तापमान, धूप की लंबी अवधि और निम्न वर्षा की दशाएँ होती हैं। शीतकालीन अवकाश का आनंद लेने वाले लोगों की विशिष्ट जलवायवी ज़रूरतें होती हैं, जैसे या तो अपनी गृह-क्षेत्रों की तुलना में ऊँचे तापमान अथवा स्कींग के लिए अनुकूल हिमावरण।

भू-दृश्य : कई लोग आकर्षित करने वाले पर्यावरण में अवकाश बिताना पसंद करते हैं, जिसका प्रायः अर्थ होता है पर्वत, झीलें, दर्शनीय समुद्री तट और मनुष्य द्वारा पूर्ण रूप से अपरिवर्तित भू-दृश्य।

इतिहास एवं कला : किसी क्षेत्र के इतिहास और कला में संभावित आकर्षण होता है। लोग प्राचीन और सुंदर नगरों, पुरातत्व के स्थानों पर जाते हैं और किलों, महलों और गिरिजाघरों को देखकर आनंद उठाते हैं।

संस्कृति और अर्थव्यवस्था : मानवजातीय और स्थानीय रीतियों को पसंद करने वालों को पर्यटन लुभाता है। यदि कोई प्रदेश पर्यटकों की ज़रूरतों को सस्ते दाम में पूरा करता है तो वह अत्यंत लोकप्रिय हो जाता है। ‘घरों में रुकना’ एक लाभदायक व्यापार बन कर उभरा है जैसे कि गोवा में हेरीटेज़ होम्स तथा कर्नाटक में मैडीकेरे और कूर्ग।

अथवा

(ख) पर्यटन एक यात्रा है जो व्यापार की बजाय प्रमोद के उद्देश्यों के लिए की जाती है। कुल पंजीकृत रोज़गारों तथा कुल राजस्व (सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत) की दृष्टि से यह विश्व का अकेला सबसे बड़ा (25 करोड़) तृतीयक क्रियाकलाप बन गया है। इनके अतिरिक्त पर्यटकों के आवास, भोजन, परिवहन, मनोरंजन तथा विशेष दुकानों जैसी सेवा उपलब्ध कराने के लिए अनेक स्थानीय व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है।

Q 22 तांबा (Copper), एक अत्यंत उपयोगी अलौह धातु है। यह एक मिश्रयोग्य, आघातवर्धय तथा तन्य धातु है। तांबा ताप और विद्युत का उत्तम सुचालक है। विद्युत उद्योग के लिए तांबा सबसे अनिवार्य अथवा अपरिहार्य धातु है, क्योंकि विद्युत उद्योग में बनने वाले अधिकांश उपकरण तांबे के उपयोग की सहायता से ही बनते हैं।

Q 23 (क) 1901 से 1921 की अवधि को भारत की जनसंख्या की वृद्धि की रूद्ध अथवा स्थिर प्रावस्था कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में वृद्धि दर अत्यंत निम्न थी, यहाँ तक कि 1911- 1921 के दौरान ऋणात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ऊँचे थे जिससे वृद्धि दर निम्न बनी रही। निम्न स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएँ, अधिकतर लोगों की निरक्षरता, भोजन और अन्य आधारभूत आवश्यकताओं का अपर्याप्त वितरण इस अवधि में मोटे तौर पर उच्च जन्म और मृत्यु दरों के लिए उत्तरदायी थे।

अथवा

(ख) 1951-81 के दशकों को भारत में जनसंख्या विस्फोट की अवधि के रूप में जाना जाता है। यह देश में मृत्यु दर में तीव्र ह्रास और जनसंख्या की उच्च प्रजनन दर के कारण हुआ। औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत तक ऊँची रही। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यही वह अवधि थी जिसमें एक केंद्रीकृत नियोजन प्रक्रिया के माध्यम से विकासात्मक कार्यों को आरंभ किया गया। अर्थव्यवस्था सुधरने लगी जिससे अधिकांश लोगों के जीवन की दशाओं में सुधार सुनिश्चित हुआ। परिणामस्वरूप जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि उच्च और वृद्धि दर उच्चतर हुई। इन सबके अतिरिक्त तिब्बतियों, बांग्लादेशियों, नेपालियों को देश में लाने वाले ब\ढ़ते अंतर्राष्ट्रीय प्रवास और यहाँ तक कि पाकिस्तान से आने वाले लोगों ने भी उच्च वृद्धि दर में योगदान दिया।

Q 24 मानव विकास की समस्या को देखने के अनेक ढंग हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण उपागम हैं (क) आय उपागम (ख)कल्याण उपागम (ग) न्यूनतम आवश्यकता उपागम (घ) क्षमता उपागम

1. आधारभूत आवश्यकता उपागम :- यह उपागम मूल रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO - International Labour Organization) की देन है। इसमें मानव विकास के लिए जरूरी छह न्यूनतम आवश्यकताओं यानि मूलभूत जरूरतों (Basic Needs), जैसे –

(i) स्वास्थ्य (ii) शिक्षा (iii) भोजन (iv) जलापूर्ति (v) स्वच्छता और (vi) आवास का मूल्यांकन किया जाता है

2. क्षमता उपागम :- इस उपागम का समर्थन प्रो. अमर्त्य सेन ने किया है। इसके अनुसार क्षमताओं के विकास के बिना मनुष्य संसाधनों तक नहीं पहुंच सकता है। क्षमताओं का निर्माण ही मानव विकास की कुंजी (KEY of HUMAN DEVELOPMENT) है

Q 25 (क) व्यापार संतुलन, एक देश के द्वारा अन्य देशों को आयात एवं इसी प्रकार निर्यात की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा (परिमाण) का प्रलेखन करता है। यदि आयात का मूल्य, देश के निर्यात मूल्य की अपेक्षा अधिक है तो देश का व्यापार संतुलन ऋणात्मक अथवा प्रतिकूल है। यदि निर्यात का मूल्य, आयात के मूल्य की तुलना में अधिक है तो देश का व्यापार संतुलन धनात्मक अथवा अनुकूल है। एक ऋणात्मक संतुलन का अर्थ होगा कि देश वस्तुओं के क्रय पर उससे अधिक व्यय करता है जितना कि अपने सामानों के विक्रय से अर्जित करता है। यह अंतिम रूप में वित्तीय संचय की समाप्ति को अभिप्रेरित करता है।

विश्व व्यापार संगठन

1948 में विश्व को उच्च सीमा शुल्क और विभिन्न प्रकार की अन्य बाधाओं से मुक्त कराने हेतु कुछ देशों के द्वारा जनरल एग्रीमेंट अॉन ट्रेड एंड टैरिफ (GATT) का गठन किया गया। 1994 में सदस्य देशों के द्वारा राष्ट्रों के बीच मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ा प्रोन्नत करने के लिए एक स्थायी संस्था के निर्माण का निश्चय किया गया था तथा जनवरी 1995 से (GATT) को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में रूपांतरित कर दिया गया।

विश्व व्यापार संगठन एकमात्र ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य वैश्विक नियमों का व्यवहार करता है। यह विश्वव्यापी व्यापार तंत्र के लिए नियमों को नियत करता है और इसके सदस्य देशों के मध्य विवादों का निपटारा करता है। विश्व व्यापार संगठन दूरसंचार और बैंकिंग जैसी सेवाओं तथा अन्य विषयों जैसे बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार को भी अपने कार्यों में सम्मिलित करता है। उन लोगों के द्वारा विश्व व्यापार संगठन की आलोचना एवं विरोध किया गया है जो मुक्त व्यापार और अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण के प्रभावों से परेशान हैं। इस पर तर्क किया गया है कि मुक्त व्यापार आम लोगों के जीवन को अधिक संपन्न नहीं बनाता। धनी देशों को और अधिक धनी बनाकर यह वास्तव में गरीब और अमीर के बीच की खाई को बढ़ा रहा है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन में प्रभावशाली राष्ट्र केवल अपने वाणिज्यिक हितों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक विकसित देशों ने अपने बाज़ारों को विकसित देशों के उत्पादों के लिए पूरी तरह से नहीं खोला है। यह भी तर्क दिया जाता है कि स्वास्थ्य, श्रमिकों के अधिकार, बाल श्रम और पर्यावरण जैसे मुद्दों की उपेक्षा की गई है।

अथवा

(ख) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार

(i) राष्ट्रीय संसाधनों में भिन्नता : भौतिक संरचना जैसे कि भूविज्ञान, उच्चावच, मृदा व जलवायु में भिन्नता के कारण विश्व के राष्ट्रीय संसाधन असमान रूप से विपरीत हैं।

(क) भौगोलिक संरचना खनिज संसाधन आधार को निर्धारित करती है और धरातलीय विभिन्नताएँ फसलों व पशुओं की विविधता सुनिश्चित करती हैं। निम्न भूमियों में कृषि-संभाव्यता अधिक होती है। पर्वत पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।

(ख) खनिज संसाधन संपूर्ण विश्व मे असमान रूप से वितरित हैं। खनिज संसाधनों की उपलब्धता औद्योगिक विकास का आधार प्रदान करती है।

(ग) जलवायु किसी दिए हुए क्षेत्र में जीवित रह जाने वाले पादप व वन्य जात के प्रकार को प्रभावित करती है। यह विभिन्न उत्पादों की विविधता को भी सुनिश्चित करती है, उदाहरणतः ऊन-उत्पादन ठंडे क्षेत्रों में ही हो सकता है; केला, रबड़ तथा कहवा उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ही उग सकते हैं।

(ii) जनसंख्या कारक : विभिन्न देशों में जनसंख्या के आकार, वितरण तथा उसकी विविधता व्यापार की गई वस्तुओं के प्रकार और मात्रा को प्रभावित करते हैं।

(क) सांस्कृतिक कारक : विशिष्ट संस्कृतियों में कला तथा हस्तशिल्प के विभिन्न रूप विकसित हुए हैं जिन्हें विश्व-भर में सराहा जाता है। उदाहरणस्वरूप चीन द्वारा उत्पादित उत्तम कोटि का पॉर्सलिन (चीनी मिट्टी का बर्तन) तथा ब्रोकेड (किमखाब-जरीदार या बूटेदार कपड़ा)। ईरान के कालीन प्रसिद्ध हैं, जबकि उत्तरी अफ्रीका का चमड़े का काम और इंडोनेशियाई बटिक (छींट वाला) वस्त्र बहुमूल्य हस्तशिल्प हैं।

(ख) जनसंख्या का आकार : सघन बसाव वाले देशों में आंतरिक व्यापार अधिक है जबकि बाह्रय व्यापार कम परिमाण वाला होता है, क्योंकि कृषीय और औद्योगिक उत्पादों का अधिकांश भाग स्थानीय बाज़ारों में ही खप जाता है। जनसंख्या का जीवन स्तर बेहतर गुणवत्ता वाले आयातित उत्पादों की माँग को निर्धारित करता है क्योंकि निम्न जीवन स्तर के साथ केवल कुछ लोग ही महँगी आयातित वस्तुएँ खरीद पाने में समर्थ होते हैं।

(iii) आर्थिक विकास की प्रावस्था : देशों के आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं में व्यापार की गई वस्तुओं का स्वभाव (प्रकार) परिवर्तित हो जाता है। कृषि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण देशों में, विनिर्माण की वस्तुओं के लिए कृषि उत्पादों का विनिमय किया जाता है, जबकि औद्योगिक राष्ट्र मशीनरी और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते हैं तथा खाद्यान्न तथा अन्य कच्चे पदार्थों का आयात करते हैं।

(iv) विदेशी निवेश की सीमा : विदेशी निवेश विकासशील देशों में व्यापार को बढ़ावा दे सकता है जिनके पास खनन, प्रवेधन द्वारा तेल-खनन, भारी अभियांत्रिकी, काठ कबाड़ तथा बागवानी कृषि के विकास के लिए आवश्यक पूँजी का अभाव है। विकासशील देशों में एेसे पूँजी प्रधान उद्योगों के विकास द्वारा औद्योगिक राष्ट्र खाद्य पदार्थों, खनिजों का आयात सुनिश्चित करते हैं तथा अपने निर्मित उत्पादों के लिए बाज़ार निर्मित करते हैं। यह संपूर्ण चक्र देशों के बीच में व्यापार के परिमाण को आगे बढ़ाता है।

(v) परिवहन : पुराने समय में परिवहन के पर्याप्त और समुचित साधनों का अभाव स्थानीय क्षेत्रों में व्यापार को प्रतिबंधित करता था। केवल उच्च मूल्य वाली वस्तुओं, जैसे-रत्न, रेशम तथा मसाले का लंबी दूरियों तक व्यापार किया जाता था। रेल, समुद्री तथा वायु परिवहन के विस्तार और प्रशीतन तथा परिरक्षण के बेहतर साधनों के साथ, व्यापार ने स्थानिक विस्तार का अनुभव किया है।

Q 26 (क) बड़े पैमाने के उद्योग

बड़े पैमाने के उद्योग के लिए विशाल बाज़ार, विभिन्न प्रकार का कच्चा माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, विकसित प्रौद्योगिकी, अधिक उत्पादन एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है। पिछले 200 वर्षों में इसका विकास हुआ है। पहले यह उद्योग ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी भाग एवं यूरोप में लगाए गए थे परंतु वर्तमान में इसका विस्तार विश्व के सभी भागों में हो गया है। इन उद्योगों में बड़ी – बड़ी मशीनें, हजारों श्रमिक, बड़ी मात्रा में कच्चा माल, बड़े स्तर पर उत्पादन आदि होता है। इन उद्योगों के अंतर्गत सूती वस्त्र उद्योग, लौह – इस्पात उद्योग, रसायन उद्योग, पटसन उद्योग आदि आते हैं।

बड़े पैमाने के उद्योगों की विशेषताएं -

1. इनमें उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।

2. इन उद्योगों में बड़ी – बड़ी मशीनें प्रयुक्त होती हैं।

3. इनमें अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

4. इनमें हजारों श्रमिकों की जरूरत होती है।

5. इनमें वस्तुओं की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

अथवा

(ख) उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग की संकल्पना

निर्माण क्रियाओं में उच्च प्रौद्योगिकी नवीनतम पीढ़ी है। इसमें उन्नत वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पादकों का निर्माण गहन शोध एवं विकास के प्रयोग द्वारा किया जाता है। संपूर्ण श्रमिक शक्ति का अधिकतर भाग व्यावसायिक (सफ़ेद कॉलर) श्रमिकों का होता है। ये उच्च, दक्ष एवं विशिष्ट व्यावसायिक श्रमिक वास्तविक उत्पादन (नीला कॉलर) श्रमिकों से संख्या में अधिक होते हैं। उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग में यंत्रमानव, कंप्यूटर आधारित डिज़ाइन (कैड) तथा निर्माण, धातु पिघलाने एवं शोधन के इलेक्ट्रोनिक नियंत्रण एवं नए रासायनिक व औषधीय उत्पाद प्रमुख स्थान रखते हैं।

इस भूदृश्य में विशाल भवनों, कारखानों एवं भंडार क्षेत्रों के स्थान पर आधुनिक, नीचे साफ़-सुथरे, बिखरे कार्यालय एवं प्रयोगशालाएँ देखने को मिलती हैं। इस समय जो भी प्रादेशिक व स्थानीय विकास की योजनाएँ बन रही हैं उनमें नियोजित व्यवसाय पार्क का निर्माण किया जा रहा है। वे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग जो प्रादेशिक संकेंद्रित हैं, आत्मनिर्भर एवं उच्च विशिष्टता लिए होते हैं उन्हें प्रौद्योगिक ध्रुव कहा जाता है। सेन फ्रांसिस्को के समीप सिलीकन घाटी एवं सियटल के समीप सिलीकन वन प्रौद्योगिक ध्रुव के अच्छे उदाहरण हैं।

Q 27 जल संभर प्रबंधन - जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य, मुख्य रूप से, धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों, जैसे– अंतः स्रवण तालाब, पुनर्भरण, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल हैं। जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच संतुलन लाना है। जल-संभर व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से संप्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।

केंद्रीय और राज्य सरकारों ने देश में बहुत से जल- संभर विकास और प्रबंधन कार्यक्रम चलाए हैं। इनमें से कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी चलाए जा रहे हैं। ‘हरियाली’ केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण के लिए योग्य बनाना है। परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है। नीरू-मीरू (जल और आप) कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश में) और अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) के अंतर्गत लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएँ जैसे– अंतः स्रवण तालाब ताल (जोहड़) की खुदाई की गई है और रोक बाँध बनाए गए हैं। तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक कर दिया गया है। किसी भी इमारत का निर्माण बिना जल संग्रहण संरचना बनाए नहीं किया जा सकता है।

वर्षा जल संग्रहण - वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है। इसका उपयोग भूमिगत जलभृतों के पुनर्भरण के लिए भी किया जाता है। यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूँद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है, फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है, मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है और यदि इसे जलभृतों के पुनर्भरण के लिए उपयोग किया जाता है तो तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल के प्रवेश को रोकता है।

देश में विभिन्न समुदाय लंबे समय से अनेक विधियों से वर्षाजल संग्रहण करते आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत वर्षा जल संग्रहण सतह संचयन जलाशयों, जैसे– झीलों, तालाबों, सिंचाई तालाबों आदि में किया जाता है। राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढाँचे जिन्हें कुंड अथवा टाँका (एक ढका हुआ भूमिगत टंकी) के नाम से जानी जाती है जिनका निर्माण घर अथवा गाँव के पास या घर में संग्रहित वर्षा जल को एकत्र करने के लिए किया जाता है।

बहुमूल्य जल संसाधन के संरक्षण के लिए वर्षा जल संग्रहण प्रविधि का उपयोग करने का क्षेत्र व्यापक है। इसे घर की छतों और खुले स्थानों में वर्षा जल द्वारा संग्रहण किया जा सकता है।

Q 28 नगरीय क्षेत्रों को प्राय: अति संकुल, भीड़-भाड़ तथा तीव्र बढ़ती जनंसख्या के लिए अपर्याप्त सुविधाएँ और उसके परिणामस्वरूप साफ़-सफ़ाई की खराब स्थिति एवं प्रदूषित वायु के रूप में पहचाना जाता है| ठोस अपशिष्टों (कचरे) के द्वारा होने वाला पर्यावरण प्रदूषण काफ़ी महत्त्वपूर्ण हो चुका है क्योंकि विभिन्न स्रोतों द्वारा जनित अपशिष्ट की मात्रा बहुत अधिक होती जा रही है| ठोस कचरे की अंतर्गत विभिन्न प्रकार के पुराने एवं प्रयुक्त सामग्रियाँ शामिल की जाती हैं जैसे कि जंग लगी पिनें, टूटे काँच के समान, प्लास्टिक के डिब्बे, पोलीथिन की थैलियाँ, रद्दी कागज़, राख, फ्लॉपियाँ, सी डी आदि का भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगाया जाता है| इस त्यागे गए समान को कूड़ा-करकट, रद्दी, गंदगी एवं कबाड़ आदि कहते हैं जिनका दो स्रोतों से निपटान होता है- (i) घरेलू प्रतिष्ठानों से और (ii) व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से| घरेलू कचरे को या तो सार्वजनिक भूमि पर या निजी ठेकेदारों के स्थलों पर डाला जाता है जबकि औद्योगिक/व्यावसायिक इकाइयों के कचरा का संग्रहण एवं निपटान जन सुविधाओं (नगरपालिकाओं) के द्वारा निचली सतह की सार्वजनिक ज़मीन (गड्ढों) पर निस्तारित किया जाता है| कारखानों, विद्युत गृहों तथा भवन निर्माण या विध्वंस से भारी मात्रा में निकली राख या मलबे के परिणामस्वरूप गंभीर समस्याएँ पैदा हो गई हैं| ठोस अपशिष्ट से अप्रिय बदबू, मक्खियों एवं कृतकों (जैसे चूहे) से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पैदा हो जाते हैं जैसे टाइफाइड (मियादी बुखार), गलघोटूँ (डिप्थीरिया), दस्त तथा हैजा आदि| इसके साथ ही यह कूड़ा-कचरा अक्सर क्लेश पैदा करते हैं जब कभी भी इनका लापरवाही से निपटान किया जाता है तो यह हवा से फैलने एवं बरसाती पानी से छितरने के कारण परेशानी का कारण बनता है|

Q 29



Q 30


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12th Geography CBSE Annual Paper 02 March 2023 SET 2 Series E1GFH/4 - Question Paper

Q 1 (a) India

Q 2 (b) Osaka-Kobe region of Japan

Q 3 (b) Unfavorable climate

Q 4 (b) USA

Q 5 (d) To help in the development of large scale industries

Q 6 (b) Tertiary

Q 7 (d) Silchar

Q 8 (c) Various types of animals are reared in different regions.

Q 9 (b) Only II, III and IV are correct

Q 10 (c) i – 3, ii – 4, iii – 2, iv – 1

Q 11 (b) Uttar Pradesh

Q 12 (c) Closely built up area of houses

Q 13 (d) Chinese – Tibetan

Q 14 (b) is done in black soil areas

Q 15 (b) Himachal Pradesh

Q 16 (d) Gaddi

Q 17 (d) To improve the standard of living of the cushions

Q 18 (18.1) 2012 -13, (18.2) 2016 -17 (18.3) 2013 -14

Q 19 (19.1) Surface mining is also called opencast mining. It is the cheapest way of mining minerals, whereas in underground mining, mineral ores are dug from below the surface through wells.

(19.2) It is the cheapest method of mining minerals, as it is the least expensive and safest method.

(19.3) Well mining is a risky method of mining, as there is a risk of accidents like poisonous gases, fire and flood.

Q 20 Man interacts with his physical environment with the help of his technology. Technology is an indicator of the level of cultural development of a society. Man was able to develop technology only after better understanding the laws of nature. For example, the concepts of friction and heat helped us discover fire. Similarly DNA And the understanding of the secrets of genetics has enabled us to overcome many diseases. We use the laws of air motion to develop faster vehicles. You can see that knowledge of nature is important to develop technology and technology eases environmental restrictions on humans.

Q 21 (a) Tourist attraction

Climate: Most of the people of cold regions expect warm and sunny weather for the beach holiday. This is one of the main reasons for the importance of tourism in Southern Europe and the Mediterranean. The Mediterranean climate is characterized by almost constant high temperatures, long periods of sunshine and low rainfall compared to other parts of Europe during the peak holiday season. People who enjoy winter holidays have specific climatic requirements, such as either higher temperatures than in their home regions or snow cover suitable for skiing.

Landscapes: Many people enjoy spending their holidays in attractive environments, which often means mountains, lakes, scenic beaches and landscapes completely unaltered by man.

History and Art: The history and art of a region have potential attractions. People visit ancient and beautiful cities, places of archeology and enjoy seeing forts, palaces and churches.

Culture and Economy: Tourism appeals to those who love ethnic and local customs. If a region caters to the needs of tourists at a cheap price, it becomes very popular. 'Homestays' have emerged as a profitable business such as Heritage Homes in Goa and Madikere and Coorg in Karnataka.

Or

(b) Tourism is a journey undertaken for purposes of pleasure rather than for business. It has become the single largest (25 crore) tertiary activity in the world in terms of total registered employment and total revenue (40 per cent of GDP). In addition to these, a number of local persons are employed to provide tourist services such as accommodation, food, transport, entertainment and specialized shops.

Q 22 Copper is a very useful non-ferrous metal. It is an alloyable, malleable and ductile metal. Copper is a good conductor of heat and electricity. Copper is the most essential or indispensable metal for the electrical industry, because most of the equipment made in the electrical industry are made with the help of copper.

Q 23 (a) The period from 1901 to 1921 is called stagnant or stagnant phase of growth of population of India because the growth rate during this period was very low, even negative growth rate was recorded during 1911-1921. Both the birth rate and the death rate were high, so that the rate of growth remained low. Poor health and medical services, illiteracy of most people, inadequate distribution of food and other basic necessities were largely responsible for the high birth and death rates during this period.

Or

(b) The decade 1951-81 is known as the period of population explosion in India. This happened because of the sharp decline in the death rate in the country and the high fertility rate of the population. The average annual growth rate remained as high as 2.2 percent. This was the period after independence in which developmental works were initiated through a centralized planning process. The economy began to improve, which ensured an improvement in the living conditions of most people. As a result, the natural increase of population was high and the growth rate was high. In addition to all this, increasing international migration bringing in Tibetans, Bangladeshis, Nepalis and even people from Pakistan contributed to the high growth rate.

Q 24. There are many ways of looking at the problem of human development. Some important approaches are (a) Income Approach (b) Welfare Approach (c) Minimum Needs Approach (d) Capability Approach

1. Basic Needs Approach: - This approach is basically the contribution of International Labor Organization (ILO - International Labor Organization). In this, the six minimum requirements necessary for human development i.e. Basic Needs, such as –

(i) health (ii) education (iii) food (iv) water supply (v) sanitation and (vi) housing are evaluated

2. Capability Approach:- This approach was supported by Prof. Amartya Sen has done it. According to this, without the development of capabilities man cannot access the resources. Building capabilities is the key to human development.

Q 25 (a) Balance of trade documents the quantity (quantity) of goods and services imported by a country to other countries as well as exported. If the value of imports is more than the value of exports of the country, then the trade balance of the country is negative or unfavorable. If the value of exports is greater than the value of imports, then the country's trade balance is positive or favorable. A negative balance would mean that the country spends more on the purchase of goods than it earns from the sale of its goods. This ultimately leads to the end of financial accumulation.

world trade organization

In 1948, the General Agreement on Trade and Tariffs (GATT) was formed by some countries to free the world from high customs duties and various other barriers. In 1994, it was decided by the member countries to build a permanent institution to promote free and fair trade among nations, and from January 1995 (GATT) was transformed into the World Trade Organization (WTO).

The World Trade Organization is the only international organization that deals with global rules among nations. It sets the rules for the worldwide trading system and settles disputes between its member countries. The WTO also includes trade in services such as telecommunications and banking, and trade in other subjects such as intellectual property rights. The WTO has been criticized and opposed by those concerned with the effects of free trade and globalization of the economy. It has been argued that free trade does not make the lives of ordinary people more prosperous. By making rich countries richer, it is actually widening the gap between the poor and the rich.

This is because the dominant nations in the WTO focus only on their commercial interests. In addition, many developed countries have not fully opened their markets to products from developed countries. It is also argued that issues such as health, workers' rights, child labor and the environment have been neglected.

Or

(b) Basis of international trade

(i) Variation in National Resources: Due to variation in physical structure such as geology, relief, soil and climate, the national resources of the world are unequally contrasted.

(a) Geographical structure determines the mineral resource base and surface variations ensure diversity of crops and animals. Agricultural potential is more in the low lands. Mountains attract tourists and promote tourism.

(b) Mineral resources are unevenly distributed all over the world. The availability of mineral resources provides the basis for industrial development.

(c) Climate affects the types of plants and wildlife that can survive in a given area. It also ensures a diversity of different products, for example wool-production can only take place in colder regions; Banana, rubber and coffee can grow only in tropical areas.

(ii) Population Factors: The size, distribution and diversity of population in different countries affect the type and quantity of goods traded.

(a) Cultural Factors: Specific cultures have developed various forms of arts and crafts which are appreciated all over the world. For example, the best quality porcelain (porcelain) and brocade (kimkhab-jaridar or butedar cloth) produced by China. Carpets from Iran are famous, while leatherwork from North Africa and Indonesian batik textiles are prized handicrafts.

(b) Size of population: In densely populated countries, internal trade is high while external trade is of low volume, because most of the agricultural and industrial products are consumed in the local markets. The standard of living of the population determines the demand for better quality imported products as only a few people with a low standard of living are able to afford expensive imported goods.

(iii) Stage of economic development: The nature (type) of goods traded changes in different stages of economic development of countries. In agriculturally important countries, agricultural products are exchanged for manufactured goods, while industrialized nations export machinery and manufactured products and import food and other raw materials.

(iv) Limitation of foreign investment: Foreign investment can promote trade in developing countries which lack the necessary capital for the development of mining, oil-exploration by drilling, heavy engineering, wood scrap and horticulture agriculture. Through the development of such capital-intensive industries in developing countries, industrial nations ensure the import of food items, minerals and create markets for their manufactured products. This entire cycle further increases the volume of trade between countries.

(v) Transport: In ancient times, lack of adequate and proper means of transport restricted trade in local areas. Only high value items like gems, silk and spices were traded over long distances. With the expansion of rail, sea and air transport and better means of refrigeration and preservation, trade experienced spatial expansion.

Q 26 (a) Large scale industries

Large scale industry requires large market, variety of raw material, means of power, skilled labor, advanced technology, more production and more capital. It has developed in the last 200 years. Earlier this industry was established in Great Britain, Eastern part of USA and Europe but at present it has expanded to all parts of the world. In these industries, there are big machines, thousands of workers, large amount of raw material, large scale production etc. Cotton textile industry, iron-steel industry, chemical industry, jute industry etc come under these industries.

Features of large scale industries

1. In these production is done on a large scale.
2. Big machines are used in these industries.
3. These require more capital.
4. Thousands of laborers are required in these.
5. Special attention is paid to the quality of goods in these.

Or

(b) Concept of high technology industry

High technology is the latest generation in construction activities. It manufactures advanced scientific and engineering products through the application of intensive research and development. Professional (white-collar) workers make up the majority of the entire labor force. These highly skilled and specialized professional workers are more in number than actual production (blue collar) workers. In the high technology industry, robotics, computer-based design (CAD) and manufacturing, electronic control of metal smelting and refining, and new chemical and pharmaceutical products occupy a prominent place.

In this landscape, instead of huge buildings, factories and storage areas, modern, clean, scattered offices and laboratories are seen below. Presently, in all the regional and local development plans being made, a planned business park is being constructed. Those high technology industries which are regionally concentrated, self-sustaining and highly specialized are called technology poles. Silicon Valley near San Francisco and Silicon Forest near Seattle are good examples of technology poles.

Q 27 Watershed Management - Watershed Management mainly refers to the efficient management of surface and ground water resources. It includes arresting run off water and harvesting and recharging ground water through various methods like percolation ponds, recharge wells etc. The objective of watershed management is to bring a balance between natural resources and society. The success of the watershed system mainly depends on the cooperation of the community.

The central and state governments have undertaken several watershed development and management programs in the country. Some of these are also run by NGOs. 'Hariyali' is a watershed development project promoted by the central government with the objective of enabling rural population to conserve water for drinking, irrigation, fisheries and afforestation. The project is being executed by the Gram Panchayats with the cooperation of the people. Under the Neeru-Meeru (Water and You) program (in Andhra Pradesh) and Arwari Pani Sansad (Alwar in Rajasthan), various water harvesting structures such as percolation ponds (Johads) have been excavated and check dams have been constructed with people's cooperation. have been created. In Tamil Nadu, it has been made mandatory to build water harvesting structures in the houses. No building can be constructed without building a water harvesting structure.

Rainwater Harvesting - Rainwater harvesting is the method of intercepting and collecting rainwater for various uses. It is also used to recharge underground aquifers. It is a low cost and eco-friendly method by which rainwater is collected in tube wells, pits and wells to conserve every drop of water. Rainwater harvesting increases water availability, prevents depletion of groundwater, improves groundwater quality by reducing contaminants such as fluoride and nitrates, prevents soil erosion and flooding, and if used to recharge aquifers. When used for this purpose, it prevents the ingress of saline water in the coastal areas.

Various communities in the country have been harvesting rainwater for a long time in various ways. In rural areas, traditional rainwater harvesting is done in surface storage reservoirs, such as lakes, ponds, irrigation tanks, etc. In Rajasthan, rainwater harvesting structures known as kund or tanka (a covered underground tank) are constructed near the house or village or stored in the house.

Q 28 Urban areas are often characterized by overcrowding, overcrowding and inadequate facilities for the rapidly growing population, resulting in poor sanitation and polluted air. Environmental pollution caused by solid wastes (garbage) has become very important as the amount of waste generated by various sources is becoming very large. Various types of old and used materials are included under solid waste such as rusty pins, broken glass ware, plastic cans, polythene bags, waste paper, ash, floppies, CDs etc. dumped at different places. is applied. This discarded material is called garbage, junk, dirt and junk etc. which are disposed of from two sources- (i) from domestic establishments and (ii) from commercial establishments. Domestic waste is dumped either on public land or at sites of private contractors, whereas waste from industrial/commercial units is collected and disposed off by public utilities (municipalities) on low-lying public land (pits). The large amount of ash or debris released from factories, power houses and building construction or demolition has resulted in serious problems. Solid wastes cause unpleasant odors, health hazards from flies and rodents (such as rats) such as typhoid, diphtheria, diarrhea, and cholera. Along with this, this garbage often creates trouble whenever it is disposed of carelessly, it causes trouble due to wind spread and rain water.

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