मानव बस्ती या अधिवास -
भूमि का वह भाग जो मानव बसाव के लिए प्रयुक्त
किया जाता है, बस्ती या अधिवास
(HUMAN SETTLEMENT) कहलाता है ।
दूसरे शब्दों में “स्थाई रूप से बसा हुआ स्थान
‘बस्ती’ कहलाता है ।
बस्ती के विभिन्न रूप हो सकते हैं । जैसे – यह
एक या दो – चार परिवारों की ढाणी से लेकर गाँव, कस्बा, नगर, महानगर तथा सननगर आदि हो सकती है ।
मुख्य रूप से बस्तियों के दो प्रकार होते हैं :-
1. ग्रामीण बस्तियाँ 2. नगरीय बस्तियाँ
मानव बस्ती की प्रमुख विशेषताएँ
:-
1.
बस्ती में सामाजिक सम्बन्ध मिलते
हैं ।
2.
इसमें लोग अपने विचारों और वस्तुओं
का आदान – प्रदान करते हैं ।
3.
बस्ती में आखेटकों एवं चरवाहों के
अस्थाई डेरों से लेकर बृहत नगरों तक शामिल होते हैं ।
4.
बस्तियों में कुटिया, छप्पर या
झोपड़ी, तंबू, ईट – गारे के मकान, सीमेंट व कंक्रीट से बनी भव्य इमारतें आदि हो
सकती हैं।
5.
यह एक या दो – चार परिवारों की ढाणी
से लेकर गाँव, कस्बा, नगर, महानगर तथा सननगर आदि हो सकती है
6.
इनमें रास्ते या मार्ग कच्चे,
पक्के, संकरे, चौड़े, दृश्य, अदृश्य आदि हो सकते हैं ।
मानव बस्ती या अधिवास के
पांच मुख्य तत्व :-
1.
प्रकृति (NATURE) द्वारा प्राप्त स्थान।
2.
मानव,
जो बस्ती का रचनाकार होता है।
3.
समाज,
जो अधिवासों को संगठित रूप प्रदान करता है।
4.
भौतिक पर्यावरण
जिसमें रहकर मानव सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक क्रियाएँ करता है।
5.
संचालनात्मक तत्व,
जैसे – गलियाँ, रास्ते, सड़कें आदि।
मानव बस्तियों का उदभव एवं विकास अथवा सफरनामा:-
बस्तियाँ धरती पर यूं ही नहीं बस गई। इनके विकास
का लाखों वर्ष पुराना प्रयासों का सिलसिला है। प्रारम्भ में मनुष्य भोजन और आश्रय
की तलाश में भटकता रहता था। भोजन और पानी के संग्रह ने प्राचीन मानव के दिमाग
में आश्रय के बीज बोए तथा यह मानव बस्तियों के विकास की ओर मानव का पहला कदम था।
तब से मनुष्य गुफाओं में रहने लगा तथा पूर्व पाषाण युग में मानव ने गुफाओं से
निकलकर पत्तों एवं शाखाओं से अस्थाई आश्रय स्थल बनाना सीखा। आग की खोज और नदी घाटियों
में मानव ने कृषि व पशुपालन करना सीखने से बस्तियों का केन्द्रण नदी – घाटियों में होना शुरू हुआ। कृषि
के विकास ने मानव जीवन को स्थाई बनाया।
विश्व में गांवों का बसाव आज से लगभग 6000 से 10000 वर्ष ईसा पूर्व प्रारम्भ हुआ था। दुनिया का सबसे पहला गाँव स्विट्ज़रलैंड में आज से लगभग 6000 से 10000 वर्ष ईसा पूर्व बसा था ।
बस्तियों के अध्ययन के आधार:-
बस्तियों का अध्ययन उनके स्थल, स्थिति, आकार,
भवनों व इमारतों, प्रतिरूपों (Patterns), कार्यों, आन्तरिक संरचना, बाहरी सहलग्नता
तथा राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका के सन्दर्भ में किया जाता
है ।
बस्तियों के वर्गीकरण
के आधार :-
बस्तियों के आकार और उनमें की जाने वाली आर्थिक
क्रियायों की प्रकृति के आधार पर मानव बस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं :- 1.
ग्रामीण बस्तियाँ 2.
नगरीय बस्तियाँ
ग्रामीण बस्तियों में जनसंख्या
का आकार छोटा होता है तथा यहाँ पर अधिकतर जनसंख्या प्राथमिक क्रियाकलापों में लगी
होती है । इनके विपरीत नगरीय बस्तियों में जनसंख्या का आकार बड़ा होता है
तथा यहाँ की अधिकांश जनसंख्या द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाकलापों में लगी होती है ।
कुछ स्पष्ट लक्षणों के आधार पर गाँव
को नगरों से अलग किया जा सकता है । जैसे –
जनसंख्या का आकार :-
गाँवों को पहचानने का जनसंख्या का मापदंड विभिन्न देशों में अलग – अलग है। जैसे –
कनाडा में 1000 से कम जनसंख्या वाली बस्ती
ग्रामीण होती है, जबकि भारत में 5000 तक जनसंख्या वाली बस्ती ग्रामीण होती है ।
इसी प्रकार USA में 2500 तक जनसंख्या वाली बस्ती ग्रामीण होती है, तो जापान में
30,000 तक जनसंख्या वाली बस्ती ग्रामीण होती है।
दूसरी तरफ स्वीडन, डेनमार्क और फ़िनलैंड में 250
तक जनसंख्या वाली बस्ती नगर होती है। इसी प्रकार पुर्तगाल में 2000, USA व थाईलैंड
में 2500 तक जनसंख्या वाली बस्ती नगर कहलाती है।
आर्थिक आधार :- ग्रामीण बस्तियों में अधिकतर जनसंख्या प्राथमिक
क्रियाकलापों में लगी होती है । इनके विपरीत नगरीय बस्तियों में अधिकांश जनसंख्या
द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाकलापों में लगी होती है ।
प्रशासनिक आधार :- भारत और ब्राज़ील जैसे देशों में प्रशासनिक आधार
पर भी नगरों को गांवों से अलग किया जाता है । चाहे उनका आकार कितना भी छोटा क्यों
न हो।
भारत में जनगणना विभाग के
अनुसार नगर की परिभाषा अथवा शर्तें :-
भारतीय जनगणना विभाग उन सभी आवासीय इकाइयों को जनगणना नगर (census towns) की
श्रेणी में वर्गीकृत करता है, जो निम्नलिखित शर्ते पूरी करते हैं :-
1.
वहाँ की जनसंख्या 5000 से अधिक
हो ।
2.
वहाँ जनसंख्या का घनत्व 400
व्यक्ति प्रति वर्ग km (1000 per sq. Mile) से ज्यादा हो ।
3.
वहाँ की 75% से ज्यादा जनसंख्या
गैर कृषि कार्य में लगी हो ।
4.
वहाँ नगरपालिका या कारपोरेशन
या कैंटोनमेंट बोर्ड या नोटिफाइड टाउन एरिया कमेटी आदि हो।
Rural Settlements (ग्रामीण बस्तियाँ)
ग्रामीण बस्तियाँ :-
वे बस्तियाँ जिनमें जनसंख्या आमतौर पर कम होती
है । इन बस्तियों का आकार छोटा होता है तथा यहाँ
पर अधिकतर जनसंख्या प्राथमिक क्रियाकलापों में लगी होती है । यहाँ के लोग जीवन
यापन के लिए कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, मछली पालन, लकड़ी काटना, वन्य उत्पादों को
इकट्ठा करना आदि कार्य करते हैं।
ग्रामीण बस्तियों के
प्रकार :-
ग्रामीण बस्तियों को उनके बीच दूरी
और उनके आकार के आधार पर दो मुख्य प्रकारों में बांटा जाता है :-
A. संहत
बस्तियाँ (COMPACT SETTLEMENT) |
B. प्रकीर्ण
बस्तियाँ (DISPERSED SETTLEMENT) |
1.
इन बस्तियों में मकान एक –
दूसरे से सटे हुए होते हैं 2.
इन बस्तियों में रहने का स्थान
कम होता है । 3.
इन बस्तियों में गलियाँ तंग
होती हैं । 4.
इन बस्तियों में पानी निकासी
की समस्या होती है । 5.
इन बस्तियों में सामाजिकता और
सुरक्षा की भावना मिलती है । 6.
इन बस्तियों में प्रमुख
व्यवसाय कृषि होता है। 7.
इन बस्तियों में खेत छोटे
होते हैं । 8.
इन बस्तियों में केन्द्रीय
स्थान पर कोई कुआँ, तालाब, बावड़ी, धार्मिक स्थल व चौराहा आदि होता है । 9.
मृदा की उत्पादकता, वर्षा की
मात्रा, पेयजल की सुविधा, विकसित कृषि आदि इन बस्तियों को प्रभावित करने वाले
प्रमुख कारक हैं । 10. ये बस्तियाँ सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों
में मिलती हैं 11. ये
बस्तियाँ नदी घाटियों और मैदानी भागों, जैसे – गंगा सतलुज मैदान (भारत), कवान्टो
मैदान (जापान), इरावदी मैदान (म्यांमार) आदि में मिलती हैं । 12. इन
बस्तियों को सकेंद्रित (CONCENTRATED) (ब्रुंश ने), नाभिक या नयषिटत (NUCLEATED)
(फ्रिंच व टिरवार्था ने), एकत्रित (AGGLIMERATED),
तथा सघन (COMPACT) बस्तियाँ भी कहा जाता है । |
1. इन बस्तियों में मकान एक – दूसरे से दूर होते
हैं । 2. इन बस्तियों में रहने का स्थान बहुत
होता है । 3. इन बस्तियों में गलियाँ खुली होती हैं । 4. इन बस्तियों में पानी निकासी की समस्या
नहीं होती है। 5. इन बस्तियों में सामाजिकता और सुरक्षा की
भावना कम मिलती है । 6. इन बस्तियों में प्रमुख व्यवसाय पशुचारण,
लकड़ी काटना आदि होता है । 7. इन बस्तियों में खेत बड़े होते हैं । 8. इन बस्तियों में केन्द्रीय स्थान पर कोई
कुआँ, तालाब, बावड़ी, धार्मिक स्थल व चौराहा आदि नहीं होता है । 9. बाढ़, मिट्टी की ऊसरता, सुरक्षा की भावना,
शांति, खेतों का बड़ा आकार, कम जनसंख्या वाले क्षेत्र आदि इन बस्तियों को
प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं । 10. ये बस्तियाँ विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों
में मिलती हैं । 11. ये बस्तियाँ पर्वतीय (जैसे – हिमालय, एंडीज,
रॉकीज आदि), पठारी क्षेत्रों जैसे – मालवा पठार तथा उच्च भूमियों, जैसे – पश्चिम
घाट, शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्रों जैसे – राजस्थान के दक्षिणी भागों में मिलती हैं
। 12.
इन बस्तियों को खण्डित बस्तियाँ, बिखरी
हुई बस्तियाँ, एकांकी बस्तियाँ, छितरी बस्तियाँ आदि भी कहते हैं । |
(Deleted Part)
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ग्रामीण बस्तियों की
अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक:-
1.
जल की उपलब्धता एवं स्रोत, जैसे –
नदियाँ, झीलें एवं झरने आदि।
2.
धरातल, जैसे – समतल या उबड़ – खाबड़।
3.
भूमि का स्वरूप या ढलान अथवा उच्च
भूमियाँ।
4.
जलवायु।
5.
गृह निर्माण सामग्री की उपलब्धता
जैसे – चीन के लोयस क्षेत्र के निवासी कन्दराओं में मकान बनाते हैं, अफ्रीका के
सवाना क्षेत्र में कच्ची ईंटों से, राजस्थान में पत्थरों से, असम में ब्रह्मपुत्र
घाटी में पेड़ों की मचान पर, ध्रुवीय क्षेत्रों में एस्किमो लोग हिमखंडों से ईग्लू
नामक मकान बनाते हैं।
6.
सुरक्षा, राजनीतिक अस्थित्व, युद्ध
आदि।
नियोजित ग्रामीण बस्तियाँ (Planned Rural
Settlements) :-
नियोजित ग्रामीण बस्तियाँ सरकार द्वारा बसाई
जाती हैं । इन बस्तियों का विकास सरकार अधिगृहित भूमि पर किया जाता है। इन
बस्तियों में पेयजल सुविधा, चौड़े रास्ते, बिजली की सुविधा, जल निकासी की व्यवस्था
आदि सुविधाएँ सरकार द्वारा दी जाती हैं। जैसे – पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा
प्रत्येक गाँव में महात्मा गाँधी ग्रामीण बस्ती के नाम से ऐसी बस्तियों का विकास
किया गया है। इस प्रकार की बस्तियाँ राजस्थान की इंदिरा गाँधी नहर के किनारे पर भी
बसाई गई हैं।
ग्रामीण बस्तियों के
प्रतिरूप (Patterns) :-
ग्रामीण बस्तियों के प्रमुख प्रतिरूप निम्नलिखित
प्रकार के मिलते हैं :-
1.
रैखिक
प्रतिरूप या रिवन प्रतिरूप या लुम्बकार प्रतिरूप :- ऐसे गाँव अधिकतर
किसी सड़क एवं रेलमार्ग के किनारे, नदियों के किनारे, सागरीय तटों के किनारे
मिलते हैं । इनमें मकान प्राय एक पंक्ति में होते हैं । ऐसी बस्तियाँ तटीय
उड़ीसा, दून घाटी – उत्तराखंड, तमिलनाडु और गुजरात में मिलती हैं। |
|
2.
चौक पट्टी
या क्रॉस प्रतिरूप :- ऐसे गाँव अधिकतर
किसी चौराहे के चारों ओर बसते हैं । जिस पर विभिन्न दिशाओं से आने वाले रोड़
मिलते हैं। |
|
3.
T प्रतिरूप
:- ऐसे गाँव अधिकतर किसी टी – पॉइंट पर विकसित होते हैं । यह
ऐसा स्थान होता है जहाँ पर मुख्य सड़क से अन्य सड़क आकर मिलती है । |
|
4.
Y प्रतिरूप
:- ऐसे गाँव अधिकतर किसी ऐसे स्थान पर विकसित होते हैं जहाँ
से कोई रोड़ दो दिशाओं में न्यून कोण पर बंट जाता है । |
|
5.
आयताकार
प्रतिरूप :- ऐसे प्रतिरूप किसी नियोजित एवं सरकार द्वारा बसाये गए
गांवों में मिलते हैं । |
|
6.
वृताकार
प्रतिरूप :- ऐसे प्रतिरूप के गाँव अधिकतर
किसी मैदानी क्षेत्रों में मिलते हैं जिनके केंद्र में कोई कुआँ, तालाब, बावड़ी,
धार्मिक स्थल व चौराहा आदि होता है । |
|
7.
तारक प्रतिरूप
:- ऐसे गाँव अधिकतर किसी ऐसे स्थान पर स्थापित होते हैं जहाँ
पर विभिन्न दिशाओं से अनेक रोड़ किसी एक बिंदु पर आकर मिलते हैं । |
|
8.
अनाकार
प्रतिरूप :- ऐसे गाँवों का कोई विशेष प्रतिरूप नहीं होता है ।
इसमें मकान बिखरे हुए भी हो सकते हैं । |
ग्रामीण बस्तियों की
समस्याएँ :-
1.
जल की अपर्याप्त आपूर्ति
एवं कमी।
2.
स्वच्छता का अभाव।
3.
जगह – जगह कूड़े – कचरे एवं
गोबर आदि के ढेर।
4.
कच्चे मकान।
5.
मकानों में वेंटीलेटर
आदि का अभाव।
6.
परिवहन साधनों एवं सड़कों की कमी।
7.
संचार साधनों की कमी।