Skip to main content

Class 12 Chapter 2 Human Settlements (मानव बस्तियाँ) संहत बस्तियाँ (COMPACT SETTLEMENT) Vs प्रकीर्ण बस्तियाँ (DISPERSED SETTLEMENT)

मानव बस्ती या अधिवास  -

भूमि का वह भाग जो मानव बसाव के लिए प्रयुक्त किया जाता है, बस्ती या अधिवास (HUMAN SETTLEMENT) कहलाता है ।

दूसरे शब्दों में “स्थाई रूप से बसा हुआ स्थान ‘बस्ती’ कहलाता है ।

बस्ती के विभिन्न रूप हो सकते हैं । जैसे – यह एक या दो – चार परिवारों की ढाणी से लेकर गाँव, कस्बा, नगर, महानगर तथा सननगर आदि हो सकती है। बस्तियों में कुटिया, छप्पर या झोपड़ी, तंबू, ईट – गारे के मकान, सीमेंट व कंक्रीट से बनी भव्य इमारतें आदि हो सकती हैं। 

मुख्य रूप से बस्तियों के दो प्रकार होते हैं :- 1. ग्रामीण बस्तियाँ 2. नगरीय बस्तियाँ 

 

मानव बस्तियों का उदभव एवं विकास अथवा सफरनामा:-

बस्तियाँ धरती पर यूं ही नहीं बस गई। इनके विकास का लाखों वर्ष पुराना प्रयासों का सिलसिला है। प्रारम्भ में मनुष्य भोजन और आश्रय की तलाश में भटकता रहता था। भोजन और पानी के संग्रह ने प्राचीन मानव के दिमाग में आश्रय के बीज बोए तथा यह मानव बस्तियों के विकास की ओर मानव का पहला कदम था। तब से मनुष्य गुफाओं में रहने लगा तथा पूर्व पाषाण युग में मानव ने गुफाओं से निकलकर पत्तों एवं शाखाओं से अस्थाई आश्रय स्थल बनाना सीखा। आग की खोज और नदी घाटियों में मानव ने कृषि व पशुपालन करना सीखने से बस्तियों का केन्द्रण  नदी – घाटियों में होना शुरू हुआकृषि के विकास ने मानव जीवन को स्थाई बनाया

 

बस्तियों के वर्गीकरण के आधार :-

बस्तियों के आकार और उनमें की जाने वाली आर्थिक क्रियायों की प्रकृति के आधार पर मानव बस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं :- 1. ग्रामीण बस्तियाँ  2. नगरीय बस्तियाँ

ग्रामीण बस्तियों में जनसंख्या का आकार छोटा होता है तथा यहाँ पर अधिकतर जनसंख्या प्राथमिक क्रियाकलापों में लगी होती है । 


इनके विपरीत नगरीय बस्तियों में जनसंख्या का आकार बड़ा होता है तथा यहाँ की अधिकांश जनसंख्या द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाकलापों में लगी होती है ।

 

Rural Settlements (ग्रामीण बस्तियाँ) 

ग्रामीण बस्तियाँ :-

वे बस्तियाँ जिनमें जनसंख्या आमतौर पर कम होती है । इन बस्तियों का आकार छोटा होता है तथा यहाँ पर अधिकतर जनसंख्या प्राथमिक क्रियाकलापों में लगी होती है । यहाँ के लोग जीवन यापन के लिए कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, मछली पालन, लकड़ी काटना, वन्य उत्पादों को इकट्ठा करना आदि कार्य करते हैं।

 

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार :-

ग्रामीण बस्तियों को उनके बीच दूरी और उनके आकार के आधार पर दो मुख्य प्रकारों में बांटा जाता है :-

A. संहत बस्तियाँ (COMPACT SETTLEMENT)

B. प्रकीर्ण बस्तियाँ (DISPERSED SETTLEMENT)

1.   इन बस्तियों में मकान एक – दूसरे से सटे हुए होते हैं

2.   इन बस्तियों में रहने का स्थान कम होता है ।

3.   इन बस्तियों में गलियाँ तंग होती हैं ।

4.   इन बस्तियों में पानी निकासी की समस्या होती है ।

5.   इन बस्तियों में सामाजिकता और सुरक्षा की भावना मिलती है ।

6.   इन बस्तियों में प्रमुख व्यवसाय कृषि होता है।

7.   इन बस्तियों में खेत छोटे होते हैं ।

8.   इन बस्तियों में केन्द्रीय स्थान पर कोई कुआँ, तालाब, बावड़ी, धार्मिक स्थल व चौराहा आदि होता है ।

9.   मृदा की उत्पादकता, वर्षा की मात्रा, पेयजल की सुविधा, विकसित कृषि आदि इन बस्तियों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं ।

10.   ये बस्तियाँ सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में मिलती हैं

11.  ये बस्तियाँ नदी घाटियों और मैदानी भागों, जैसे – गंगा सतलुज मैदान (भारत), कवान्टो मैदान (जापान), इरावदी मैदान (म्यांमार) आदि में मिलती हैं ।

12.  इन बस्तियों को सकेंद्रित (CONCENTRATED) (ब्रुंश ने), नाभिक या नयषिटत (NUCLEATED) (फ्रिंच व टिरवार्था ने), एकत्रित (AGGLIMERATED), तथा सघन (COMPACT) बस्तियाँ भी कहा जाता है ।

1.  इन बस्तियों में मकान एक – दूसरे से दूर होते हैं ।

2.  इन बस्तियों में रहने का स्थान बहुत होता है ।

3.  इन बस्तियों में गलियाँ खुली होती हैं ।

4.  इन बस्तियों में पानी निकासी की समस्या नहीं होती है।

5.  इन बस्तियों में सामाजिकता और सुरक्षा की भावना कम मिलती है ।

6.  इन बस्तियों में प्रमुख व्यवसाय पशुचारण, लकड़ी काटना आदि होता है ।

7.  इन बस्तियों में खेत बड़े होते हैं ।

8.  इन बस्तियों में केन्द्रीय स्थान पर कोई कुआँ, तालाब, बावड़ी, धार्मिक स्थल व चौराहा आदि नहीं होता है ।

9.  बाढ़, मिट्टी की ऊसरता, सुरक्षा की भावना, शांति, खेतों का बड़ा आकार, कम जनसंख्या वाले क्षेत्र आदि इन बस्तियों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं ।

10.  ये बस्तियाँ विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में मिलती हैं ।

11.  ये बस्तियाँ पर्वतीय (जैसे – हिमालय, एंडीज, रॉकीज आदि), पठारी क्षेत्रों जैसे – मालवा पठार तथा उच्च भूमियों, जैसे – पश्चिम घाट, शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्रों जैसे – राजस्थान के दक्षिणी भागों में मिलती हैं । 

12.    इन बस्तियों को खण्डित बस्तियाँ, बिखरी हुई बस्तियाँ, एकांकी बस्तियाँ, छितरी बस्तियाँ आदि भी कहते हैं ।

 

ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ :-

1.     जल की अपर्याप्त आपूर्ति एवं कमी।  

2.   स्वच्छता का अभाव।  

3.     जगह – जगह कूड़े – कचरे एवं गोबर आदि के ढेर।  

4.   कच्चे मकान।  

5.     मकानों में वेंटीलेटर आदि का अभाव।  

6.     परिवहन साधनों एवं सड़कों की कमी।  

7.   संचार साधनों की कमी।  

          8. मूलभूत सुविधाओं जैसे – स्वास्थ्य सुविधाएँ, शिक्षा, ईंधन तथा विपणन केन्द्रों आदि की कमी।


Note :- This is a sample part of My Self Written Book. 

Thanks