Agriculture Reforms Bill 2020: आखिर पंजाब और हरियाणा से सबसे ज्यादा क्यों हो रहा कृषि कानूनों का विरोध जेएनएनUpdated: Thu, 24 Sep 2020 05:38 PM (IST)
शांताकुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश के सिर्फ छह फीसद किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का फायदा उठा पाते हैं। ये वे किसान हैं जो सुविधा संपन्न हैं और जिनकी जोत बड़ी है। नई दिल्ली, जेएनएन। पंजाब और हरियाणा के किसान इस समय कृषि से जुड़े तीन विधेयकों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। देश में मंडी व्यवस्था के समानांतर अनाज खरीद की दूसरी व्यवस्था खड़ी किए जाने का इन दोनों ही प्रदेशों में तेज विरोध हो रहा है। शांताकुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश के सिर्फ छह फीसद किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का फायदा उठा पाते हैं। ये वे किसान हैं जो सुविधा संपन्न हैं और जिनकी जोत बड़ी है। इनमें से अधिकांश किसान पंजाब और हरियाणा से हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर ये दोनों प्रदेश विरोध की धुरी क्यों बने हुए हैं?
पंजाब की पीर
पंजाब मंडी एक्ट 1961 बनने के बाद से राज्य में न केवल मंडियां बननी शुरू हुईं बल्कि ग्रामीण विकास के लिए आए धन से गांव से शहरों को जोड़ने के लिए एक बड़ा रोड नेटवर्क भी खड़ा किया गया। 1976 तक पंजाब के सभी गांव मंडियों से जुड़ गए थे। मंडियों में बेचे जाने वाले अनाज पर लगने वाले दो- दो फीसद बाजार शुल्क और आरडीएएफ के कारण ही ऐसा संभव हो पाया। पंजाब की मंडियों में गेहूं और धान की सौ फीसद खरीद सरकारी होने के कारण यहां पूरा एमएसपी मिल जाता है जबकि शेष फसलों पर एमएसपी की सिर्फ घोषणा होती है उसे कोई भी एजेंसी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदती। यही कारण है कि पंजाब में जहां किसी समय 26 फसलें होती थीं आज केवल 6 रह गई हैं।
ज्यादातर जमीन पर गेहूं और धान ने ही कब्जा कर लिया है। अब नए बिल आने से किसानों को लग रहा है कि गेहूं और धान की फसल भी मंडियों के बाहर बिकने लगेगी क्योंकि मंडी के बाहर खरीदने पर कंपनियों और व्यापारियों को लगभग साढ़े आठ फीसद टैक्स और कमीशन नहीं देने पड़ेंगे। इससे मंडियां टूटनी शुरू हो जाएंगी और किसान पूरी तरह से व्यापारियों के चंगुल में फंस जाएगा। भारतीय किसान यूनियन के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है कि अगर सरकार इन बिलों को लाना ही चाहती है तो पहले एक चौथा विधेयक लाए और कहे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर कोई भी फसल नहीं खरीद सकेगा।
आढ़तियों का रोष : पंजाब आढ़ती एसोसिएशन के प्रधान विजय कालरा ने कहा कि अगर माल मंडियों के बाहर बिकेगा तो हमें आढ़त कहां से मिलेगी। हमने जो दस लाख के करीब लेबर रखी हुई है उसे तनख्वाह कौन देगा।
हरियाणा का हाल
मंडियों की व्यवस्था : 1966 से पहले पंजाब एग्रीकल्चरल बोर्ड के माध्यम से किसानों की उपज बिकती थी। हरियाणा बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ने हरियाणा स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड का गठन किया। मार्केटिंग बोर्ड कृषि मंत्रालय के तहत काम करता है। उस समय प्रदेश पिछड़ा हुआ था। सड़कों की दुविधा सामने थी।
बोर्ड के गठन का मकसद था कि गांव के किसानों के लिए जिला स्तर, तहसील सत्र पर मंडियों का निर्माण हो व उनसे किसानों को जोड़ा जाए। मंडी से लेकर गांव तक सड़कें बनाने का काम भी मार्केटिंग बोर्ड के जिम्मे लगाया गया। हर जिले, तहसील स्तर पर मंडियां बनीं। आढ़तियों को रिजर्व प्राइस पर दुकानें दी गईं। मंडियों में किसानों के लिए फंड, पशुओं की खाने पीने व फसल उतारने के लिए शेड की व्यवस्था की गई। मार्केट फीस से प्राप्त राजस्व तथा सरकार से मिलने वाले अनुदान से मंडियों का विकास हुआ। अब प्रदेश का कोई भी गांव ऐसा नहीं जो मंडियों से न जुड़ा हो।
आढ़ती बने किसान : प्रदेश के 25-30 फीसद किसानों ने मंडियों में अपनी दुकानें खोल ली हैं। किसानों और आढ़तियों का चोली दामन का साथ बना हुआ है।
मार्केटिंग बोर्ड को खत्म किया जाए : हरियाणा व्यापार मंडल के प्रधान रोशन लाल गुप्ता का कहना है कि मार्केटिंग बोर्ड खत्म किया जाना चाहिए। चार प्रतिशत से एक प्रतिशत की गई मार्केट फीस समाप्त की जाए। इससे किसानों को अपने आप खुला मंच अपनी फसल को बेचने के लिए मिल जाएगा। कम फीस होने से टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार में कमी आएगी। तीन विधेयकों को देखते हुए अब मार्केटिंग बोर्ड की आवश्यकता नहीं बची है।
किसानों को भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। यह पूरी तरह गलत है कि किसानों के उत्पाद की खरीद में कॉरपोरेट क्षेत्र का दबदबा हो जाएगा। कोई अन्य कृषि उत्पादों की खरीद नहीं कर सकेगा। कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहसिक कदम के जरिये किसानों के हित में तीनों विधेयकों को संसद से पास कराया है। इससे बिचौलियों की बाधा खत्म हो जाएगी और किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिलेगा।
प्रो. आरएस देशपांडे पूर्व निदेशक (इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज)
SOURCE :-
https://www.jagran.com/news/national-agriculture-reforms-bill-2020-after-all-why-both-the-states-of-punjab-and-haryana-remain-the-axis-of-protest-jagran-special-verified-20789830.html