अक्सर ये कहा जाता है कि जिसने भी कंधार पर नियंत्रण कर लिया, वो पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण कर लेता है. वैसे तो कंधार अफ़ग़ानिस्तान का दूसरा बड़ा शहर है. लेकिन इसकी सामरिक और आर्थिक अहमियत सबसे ज़्यादा है.
अमेरिकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान से वापस जाने के बाद से तालिबान लगातार अपने नियंत्रण का दायरा बढ़ाता जा रहा है. इसी कड़ी में उसने कंधार पर भी अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है.
अफ़ग़ानिस्तान के सबसे बड़े पश्तून समुदाय का ये गढ़ है और यही तालिबान का जन्मस्थान भी है. तालिबान के संस्थापक मौलाना मुल्ला उमर भी कंधार के ही थे. अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई का जन्मस्थान भी यही है.
कंधार को समारिक रूप से इसलिए भी अहम माना जाता हैं, क्योंकि यहाँ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है. कृषि और औद्योगिक उत्पादन की दृष्टि से भी कंधार महत्वपूर्ण है और ये अफ़ग़ानिस्तान के मुख्य व्यापारिक केंद्रों में से भी एक है.
कंधार की सीमा ईरान और पाकिस्तान से भी लगती है. मौजूदा अफ़ग़ान सरकार पाकिस्तान पर आरोप लगा चुकी है कि वो तालिबान को मदद कर रहा है
माना जाता है कि कंधार शहर की स्थापना सिकंदर ने चौथी शताब्दी में की थी, हालाँकि इसके आसपास के क्षेत्र में लगभग 7,000 साल पुरानी मानव बस्तियों के अवशेष हैं.
व्यापार मार्ग के रूप में इस इलाक़े के सामरिक महत्व का मतलब ये भी है कि यहाँ सदियों से लड़ाइयाँ लड़ी गई हैं.
अमेरिका ने जब 11 सितंबर के हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर कार्रवाई की, उसके बाद से कंधार में विदेशी सैनिकों और तालिबान के बीच हमेशा से संघर्ष हुआ है. अमेरिका ने तो यहाँ अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती भी की थी.
मैदानों और पहाड़ों की ज़मीन कंधार प्रांत हमेशा से एक बड़े पुरस्कार के रूप में माना जाता है.
Source अफ़ग़ानिस्तान और तालिबान के लिए कंधार की इतनी अहमियत क्यों है? - BBC News हिंदी