डूरंड लाइन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सीमा को कहा जाता है।
क्या है डूरंड लाइन
डूरंड लाइन 19वीं सदी में ब्रिटिश और रूसी साम्राज्य के बीज जद्दोजहद की विरासत का नतीजा है।
डूरंड लाइन 19वीं सदी में ब्रिटिश और रूसी साम्राज्य के बीज जद्दोजहद की विरासत का नतीजा है।
जहां अंग्रेजों ने अफगानिस्तान को एक बफर स्टेट (दो बड़े देशों के बीच एक छोटा देश) की तरह देखा जिससे रुस पूर्व में अपना विस्तार ना कर सके।
इसी वजह से 12 नवंबर 1893 को ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी मोर्टिमेर डूरंड और अफगान शासक आमिर अब्दुर रहमान में एक समझौता हुआ जिसके तहत डूरंड लाइन का जन्म हुआ।
इस सीमा रेखा को लेकर काबुल में ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मार्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच करार हुआ था, लेकिन काबुल पर जो चाहे राज करे, डूरंड लाइन पर सबकी सहमति नहीं है। कोई अफगान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता है।
अफगानिस्तान में इसका विरोध हुआ क्योंकि इससे अफ़गान कबीले बंट गए। 1949 में अफगानिस्तान की लोया जिरगा ने इस रेखा को अवैध घोषित कर दिया था। अफगानिस्तान ने इस सीमा रेखा को कभी भी मान्यता नहीं दी है।
अफगानिस्तान की किसी भी सरकार ने डूरंड लाइन को स्वीकार नहीं किया है, क्योंकि उनका कहना है कि यह सीमा रेखा अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए बनाई थी। 1923 में किंग अमानुल्ला से लेकर मौजूदा हुकूमत तक डूरंड लाइन के बारे में धारणा यही है।
अफगानिस्तान के बहुसंख्यक पश्तून और तालिबान ने कभी भी डूंरड लाइन को आधिकारिक सीमा रेखा नहीं माना है। नई अफगान सरकार इस मुद्दे पर अपनी स्थिति का साफ करते हुए कहा है कि पाकिस्तान की बनाई बाड़ ने लोगों को अलग कर दिया है और परिवारों को विभाजित कर दिया है। हम सीमा पर एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण माहौल बनाना चाहते हैं, इसलिए अवरोध पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है।