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*लाजवाब पंक्तियाँ*
*तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,*
*चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में।*
*पल भर में आती पल भर में जाती थी वो,*
*छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।*
*बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,*
*कोई तिनका था, ना ईंट उसकी कोई गारा।*
*कुछ दिन बाद....*
*मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे,*
*नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।*
*पाल रही थी चिड़िया उन्हे,*
*पंख निकल रहे थे दोनों के,*
*पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।*
*देखता था मैं हर रोज उन्हें,*
*जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए ,*
*पंख निकलने पर दोनों बच्चे,*
*मां को छोड़ अकेला उड़ गए।*
*चिड़िया से पूछा मैंने..*
*तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,*
*तू तो थी मां उनकी,*
*फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए?*
*चिड़िया बोली...*
*परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है,*
*इंसान का बच्चा.....*
*बड़ा होते ही अपना हक जमाता है,*
*न मिलने पर वो मां बाप को,*
*कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है।*
*मैंने बच्चों को जन्म दिया,*
*पर करता कोई मुझे याद नहीं,*
*मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे*
*क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं।*