*🔥सद्गुरु की महिमा🔥*
*स्वामी विवेकानंद एक बार एक रेलवे स्टेशन पर बैठे थे* उनका ऐसा व्रत था जिसमें किसी से मांग कर भोजन नहीं किया जाता था *वह व्रत में किसी से कुछ मांग भी नहीं सकते थे* एक व्यक्ति उन्हें चिढ़ाने के लहजे से उनके सामने खाना खा रहा था
*स्वामी जी दो दिन से भूखे थे और वह व्यक्ति कई तरह के पकवान खा रहा था* और बोलता जा रहा था कि बहुत बढ़िया मिठाई है *विवेकानंद ध्यान की स्थिति में थें और अपने गुरुदेव को याद कर रहे थे* वह मन ही मन में बोल रहे थे कि गुरुदेव आपने जो सीख दी है *उससे अभी भी मेरे मन में कोई दुख नहीं है* ऐसा कहते विवेकानंद शांत बैठे थे *दोपहर का समय था* उसी नगर में एक सेठ को भगवान ने दर्शन दिए और कहा कि रेलवे स्टेशन पर *मेरा भक्त एक संत आया है* उसे भोजन करा कर आओ *उसका अयाचक व्रत है* जिसमें किसी से कुछ मांग कर खाना नहीं खाया जाता है *तो आप जाओ और भोजन करा कर आओ* सेठ ने सोचा यह महज स्वप्न है *दोपहर का समय था सेठ फिर से करवट बदल कर सो गया* भगवान ने दोबारा दर्शन दिए और सेठ से कहा कि तुम मेरा व्रत रखते हो *और तुम मेरा इतना सा भी काम नहीं करोगे* जाओ और संत को भोजन कराओ
*तब सेठ सीधा विवेकानंद के पास पहुंच गया* और उनसे बोला कि मैं आपके लिए भोजन लाया हूं *और मैं आपको प्रणाम करना चाहता हूं* ईश्वर ने मुझे सपने में कभी दर्शन नहीं दिए *आपके कारण मुझे भगवान के दर्शन सपने में हो गए* इसलिए मैं आपको प्रणाम कर रहा हूं
*विवेकानंद की आंखों में आंसू आ गए* वो सोचने लगे कि मैनें याद तो मैरे गुरुदेव को किया था *गुरुदेव और ईश्वर की कैसी महिमा है* स्वामी विवेकानंद की आंखों के आंसू रुक नहीं रहे थे, *तब उन्हें लगा कि गुरु ही ईश्वर हैं*
*💥विशेष :-* सद्गुरु का स्थान परमपिता परमेश्वर से भी बड़ा होता है *क्योंकि स्वयं परमपिता परमेश्वर भी राम अवतार और कृष्ण अवतार में गुरु की शरण में गए हैं।💥*
सुप्रभातम्।