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जानिए- बारिश के मौसम में क्यों गिरती है बिजली, थोड़ी सावधानी अपना कर टाल सकते बड़ा खतरा

जानिए- बारिश के मौसम में क्यों गिरती है बिजली, थोड़ी सावधानी अपना कर टाल सकते बड़ा खतरा

हर बार मानसून में बारिश के दौरान बिजली चमकती और गिरती है। यह स्वाभाविक मौसम चक्र है, लेकिन प्रमुख वजह यह है कि जब नम और शुष्क हवा संग बादल टकराते हैं तो बिजली चमकती है और गिरने का खतरा होता है। मौसम विज्ञानी कहते हैं कि थोड़ी सावधानी से बड़े खतरे को टाला जा सकता है और जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता है।
आसमान में धनात्मक और ऋणात्मक आवेशित बादल उमड़ते-घुमड़ते हुए जब एक-दूसरे के पास आते हैं तो टकराने (घर्षण) से उच्च शक्ति की बिजली उत्पन्न होती है। इससे दोनों तरह के बादलों के बीच हवा में विद्युत-प्रवाह गतिमान हो जाता है। विद्युत-धारा प्रवाहित होने से रोशनी की तेज चमक पैदा होती है।

सूर्य की ऊपरी सतह से ज्यादा तापमान : 

मौसम विज्ञानी के अनुसार बादलों से गिरने वाली बिजली की ऊर्जा एक अरब वोल्ट तक हो सकती है। सामान्य रूप से इसका तापमान सूर्य की ऊपरी सतह से भी अधिक होता है। इसकी क्षमता 300 किलोवाट यानी 12.5 करोड़ वाट से अधिक होती है।

जहां बनती ट्रफ लाइन, वहीं खतरा ज्यादा : 

जहां भी ट्रफ लाइन (बादलों की शृंखला) होती है, वहीं वज्रपात का खतरा होता है। हालांकि जहां कम बादल होते हैं, वहां भी सतर्क रहने की जरूरत होती है।

ऐसे करें बचाव

* यदि किसी खुले स्थान में हैं तो तत्काल किसी पक्के मकान की शरण ले लें। खिड़की, दरवाजे, बरामदे और छत से दूर रहें।
* लोहे के पिलर वाले पुल के आसपास तो कतई नहीं जाएं।
* ऊंची इमारतों वाले क्षेत्रों में शरण न लें, क्योंकि वहां वज्रपात का खतरा ज्यादा होता है।
* अपनी कार आदि वाहन में हैं तो उसी में ही रहें, लेकिन बाइक से दूर हो जाएं, क्योंकि उसमें पैर जमीन पर रहते हैं।
* विद्युत सुचालक उपकरणों से दूर रहें और घर में चल रहे टीवी, फ्रिज आदि उपकरणों को बंद कर दें।
* बारिश के दौरान खुले में या बालकनी में मोबाइल पर बात न करें।
* तालाब, जलाशयों और स्वीमिंग पूल से दूरी बनाएं।
* अगर खेत या जंगल में हैं तो घने और बौने पेड़ की शरण में चले जाएं, लेकिन कोशिश करें कि पैरों के नीचे प्लास्टिक बोरी, लकड़ी या सूखे पत्ते रख लें।
* समूह में न खड़े हों, बल्कि दूर-दूर खड़े हों। इसके साथ ही ध्यान दें कि आसपास बिजली या टेलीफोन के तार न हों।
* वज्रपात में मृत्यु का तात्कालिक कारण हृदयाघात होता है। ऐसे में जरूरी हो तो संजीवन क्रिया, प्राथमिक चिकित्सा कार्डियो पल्मोनरी रेस्क्यूएशन (सीपीआर) प्रारंभ कर दें।


आसमानी बिजली के आगे इतने बेबस क्यों, स्टोर क्यों नहीं कर लेते गिरती बिजली

हाल में आकाशीय बिजली की चपेट में आकर उत्तर प्रदेश में 42, राजस्थान में 23 और मध्य प्रदेश में छह लोगों की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश में करीब 250 पशुओं की मौत भी आसमानी बिजली गिरने से इसी दौरान हुई है। हालांकि हर साल की तरह इस बार भी मृतकों के परिजनों को आíथक सहायता देने का एलान किया गया है, लेकिन मुआवजे समस्या का समाधान तो नहीं करते। देखा जाए तो बिहार, झारखंड, यूपी, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश में साल-दर-साल आकाशीय बिजली गिरने और उससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। पश्चिमी देशों में आसमानी बिजली की चपेट में आकर इतनी मौतें नहीं होतीं। आखिर हमारे देश में ऐसी समस्या क्यों है?
बढ़ रहे बिजली गिरने के मामले : आकाश में बादलों के बीच टकराव होने से एक प्रकार का विद्युत आवेश पैदा होता है। तेज आवाज और रोशनी के साथ यह तेजी से धरती की ओर आता है। इस बीच इसके रास्ते में जो भी चीज आती है उसे जला देता है। इसे आसमानी बिजली या तड़ित कहते हैं। दुनिया भर में हर साल 2.5 करोड़ से अधिक बिजली गिरने की घटनाएं होती है। वैसे तो आकाशीय बिजली कहीं भी गिर सकती है, लेकिन हमारे देश में पहाड़ी क्षेत्र एवं समुद्र तट के पास के इलाकों में इसकी घटनाएं अधिक होती हैं। वहां नमी या आद्र्रता की अधिकता इसकी वजह होती है। शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा बिजली गिरने की वजह भी नमी ही होती है, क्योंकि वहां पेड़-पौधे ज्यादा होने से हरियाली ज्यादा होती है। सिंचाई के साधन भी वहां अधिक होते हैं। अध्ययन में पाया गया है कि बढ़ता वायु प्रदूषण इन दिनों बिजली गिरने की संख्या को बढ़ा रहा है। माना जा रहा है कि ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने से हुए जलवायु परिवर्तन से भी बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं। यह शोध भी सामने आया आ चुका है कि बारिश के दौरान मोबाइल फोन का प्रयोग जानलेवा साबित होता है। हमारे देश में मोबाइल फोनधारकों की संख्या में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है। इस वजह से भी ज्यादा लोग आकाशीय बिजली की चपेट में आ रहे हैं।
पेड़ कटने से भी बढ़ी घटनाएं : आकाशीय बिजली से मौतों की संख्या में बढ़ोतरी का एक कारण जंगलों और गांवों-कस्बों एवं शहरों में विकास कार्यो के चलते पेड़ों की बड़ी संख्या में हो रही कटाई को भी बताया जा रहा है। कई मौसम विज्ञानियों का इस बारे में मत है कि जब पेड़ों की संख्या अधिक थी तो आकाशीय बिजली ज्यादातर मामलों में नर्म जमीन और पेड़ों पर गिरती थी, लेकिन अब ऐसी जमीनें और पेड़ कम हो गए हैं। केरल जैसे राज्यों में ताड़ के वृक्षों की तेज कटाई के कारण हाल के वर्षो में वहां भी तड़ित-प्रहार से मौतों में भारी इजाफा हुआ है। इसके अलावा शेष विश्व की तुलना में भारत में मानसूनी वर्षा के दौरान बहुत सारे लोग खेती-किसानी के कामों के लिए घरों से बाहर निकलते हैं। ऐसे में उनके बिजली की चपेट में आने की आशंका ज्यादा रहती है। समस्या यह है कि मानसून आने से पहले हमारे देश में कुछ विशेष तैयारियों पर ध्यान नहीं दिया जाता, जिसकी वजह से आंधी-तूफान और बिजली गिरने की घटनाओं में बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है।
जैसे-पहले मानसून सीजन शुरू होने से पहले गांव-देहात में घरों की मरम्मत की जाती थी, बेतरतीब पेड़ों की कटाई-छंटाई कर दी जाती थी और खंभों पर बिजली के झूलते तारों को दुरुस्त कर दिया जाता था। अब इन सभी मामलों में लापरवाही बरती जाती है। लोगों में आसमानी बिजली को लेकर जागरूकता की भी भारी कमी है। बिजली गिरने वाले मौसम में खुद को कैसे बचाना है-इसकी जानकारी लोगों को नहीं होती है। खुले इलाकों में जहां बिजली गिरने की ज्यादा आशंका होती है, वहां ऊंची इमारतों पर तड़िचालक (बिजली से बचाने वाले एंटीना) तक नहीं लगाए जाते। दुनिया में भारत में सबसे ज्यादा मौतों की कई और वजहें हैं, जिनमें से एक यह है कि ब्रिटेन-अमेरिका आदि देशों में इसकी चेतावनी देने का मजबूत तंत्र बना हुआ है। वहां समय रहते लोगों को इस बारे में पुख्ता तौर पर चेता दिया जाता है कि किन इलाकों में मौसम खराब होने से बिजली गिरने की ज्यादा घटनाएं हो सकती हैं। भारत इस मामले में अभी पीछे है।
गरीबों पर पड़ती ज्यादा मार : वैसे तो भवनों के निर्माण के वक्त तड़ित अवशोषी इंतजाम करने की सलाह दी जाती रही है, पर सवाल यह है कि बस स्टैंड, खेतों में काम करते वक्त या फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होने पर क्या कोई इंतजाम हमें आसमान से लपकती मौत से बचा सकता है? यह कितनी बड़ी त्रसदी है कि गिरती बिजली सिर्फ उन्हें लीलती है, जो असहाय हैं, गरीब हैं और दो जून की रोटी के जुगाड़ में घनघोर बारिश में भी अपने काम-धंधे पर निकलते हैं। बीते एक दशक में हमारे देश में आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 25 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा मौतें मध्य प्रदेश में हुई हैं।

यह एक बेहद चौंकाने वाला आंकड़ा है।
सिस्टम की खामी ने किया लाचार : आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं रोकी तो नहीं जा सकती, लेकिन पूर्व सूचना की यदि कोई प्रणाली विकसित हो जाए तो नुकसान को कम किया जा सकता है। हमारे देश में मानसून के दौरान दुनिया के दूसरे हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बारिश होती है और बिजली गिरती है, लेकिन जिन इलाकों में इन प्राकृतिक घटनाओं की भरमार है, वहां इस तरह के मौसमी बदलावों का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्रों की कमी है। हमारे विशाल देश में ऐसे रडारों की संख्या केवल 27 है। हालांकि पुणो स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी ने 2019 में करीब 50 सेंसर लगाकर एक नेटवर्क बनाया था, जो बिजली गिरने एवं आंधी तूफान की दिशा की जानकारी देता है। वहीं झारखंड में इमारत बनाने के लिए तड़ितचालक लगाना अनिवार्य किया गया है। आंध्र प्रदेश में भी कम तीव्रता की आसमानी बिजली से होने वाले नुकसान से बचने के लिए लाइटनिंग ट्रैकिंग सिस्टम लगाए गए हैं। केरल में राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान की इमारत में एक विशेष किस्म का पिंजरानुमा यंत्र लगाया गया है, जो आसमानी बिजली से उसकी रक्षा करता है।
यह प्रणाली वहां हवाई अड्डों पर भी इस्तेमाल में लाई जाती है। शेष राज्यों में भी यदि ऐसी ही प्रणालियां विकसित की गई होतीं तो तड़ित से होने वाली मौतों की तादाद घटाई जा सकती थी। हालांकि दावा है कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो एक ऐसी प्रणाली विकसित कर रहा है, जो बिजली गिरने के बारे में पहले से बता देगा। बताया गया है कि वर्ष 2020 में इससे संबंधित पहला पायलट प्रोजेक्ट देश के पांच शहरों नागपुर, रांची, कोलकाता, भुवनेश्वर और रायपुर में पूरा कर लिया गया है। अब इसका विस्तार 18 अन्य शहरों में किया जा रहा है। इसरो का यह लाइट डिटेक्टिंग सिस्टम 300 किलोमीटर के क्षेत्र में निगरानी करेगा। इसके अलावा देश के पृथ्वी विज्ञान मंत्रलय और मौसम विभाग ने भू-स्थिर उपग्रहों में लाइटनिंग डिटेक्टर लगाने का प्रस्ताव दिया है। माना जा रहा है कि इससे बिजली गिरने का अनुमान तीन से चार घंटे पूर्व लगाया जा सकेगा। ऐसी प्रणाली अभी अमेरिका में काम कर रही है। इसमें ज्यादा तेजी दिखाने की जरूरत है। इसके साथ-साथ इमारतों पर तड़ितचालक लगाने को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। आकाशीय बिजली से बचाव के जो प्रचलित तरीके हैं उनके बारे में भी लोगों को बताए जाने चाहिए। जैसे कि बारिश के दौरान पेड़ और ऊंची इमारतों के पास खड़े न रहें, बिजली और टेलीफोन के खंभों से दूरी बनाए रखें, जमीन पर उकडूं बैठ जाएं।
अभी तो विडंबना यही है कि हमारे देश में आधिकारिक तौर पर घोषित 12 प्राकृतिक आपदाओं की सूची में आसमानी बिजली गिरने को स्थान नहीं दिया गया है, जबकि हर साल औसतन तीन हजार मौतें इस कारण हमारे देश में हो रही हैं। उल्लेखनीय है कि तीन साल पहले वर्ष 2018 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने एक शख्स की आकाशीय बिजली गिरने से हुई मौत पर अपने फैसले में लिखा था कि ऐसी मृत्यु को प्राकृतिक आपदा से हुई मौत के रूप में देखा जाए, न कि इसे एक्ट ऑफ गॉड कहा जाए। अदालत ने कहा था कि आकाशीय बिजली गिरना भूकंप और सुनामी आने जैसा ही है, इसलिए इसमें मुआवजे और उपचार की व्यवस्था प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही की जाए। केंद्र सरकार को अब इस पर विचार करना चाहिए।
स्टोर क्यों नहीं कर लेते गिरती बिजली : इस पर दशकों से विचार होता रहा है कि क्या हम आसमान से गिरती बिजली को किसी तरह संग्रह कर सकते हैं। इस बारे में एक अनुमान वर्ष 2009 में लगाया गया था कि पूरी दुनिया में एक साल में 20 खरब किलोवाट बिजली का जो इस्तेमाल हुआ, वह आसमान से धरती पर गिरने वाली बिजली से 40 गुना ज्यादा थी। आकलन कहता है कि पूरे साल में धरती पर गिरने वाली आकाशीय बिजली को बिना किसी नुकसान के पकड़ा जा सके और उसे बिजली की लाइनों में स्थानांतरित कर उसका संग्रह किया जा सके तो भी यह बिजली चार खरब 90 अरब किलोवाट के बराबर ही होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर धरती तक पहुंचने वाली समूची आकाशीय बिजली को संग्रह करने में हमें सफलता मिल जाए तो भी पूरी दुनिया को उसकी जरूरत के मुताबिक बिजली नहीं मिल पाएगी। इस मामूली उत्पादन के लिए भी हमें भारी निवेश करना होगा और ढेर सारा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा।
इसका अंदाजा भी लगाया गया है कि धरती पर गिरती बिजली को पकड़ने एवं संग्रह करने के लिए पूरी पृथ्वी पर प्रत्येक एक मील की दूरी पर एफिल टावर की ऊंचाई जितने ढेरों लंबे टावर लगाने होंगे और उन्हें आपस में जोड़कर एक ग्रिड बनाना होगा। इससे धरती की सतह का 20 करोड़ वर्गमीटर का इलाका ऐसे टावरों से ढक जाएगा। चूंकि आकाशीय बिजली को उसकी चमक और धरती तक पहुंचने के 30 मिलीसेकेंड के अंतराल में पकड़ना जरूरी है (अन्यथा वह धरती के भीतर चली जाएगी), इसलिए इसमें बहुत ऊंची क्षमता वाले इलेक्टिक सíकट, स्टोरेज

सुपर कैपेसिटर और कंडक्शन राड लगाने होंगे। इन सारे प्रबंधों पर अनुमानित खर्च खरबों डॉलर के बराबर बैठता है। आकाशीय बिजली के क्षणिक सृजन-उत्पादन और इसके संग्रह की लागत को देखते हुए विशेषज्ञ सौर ऊर्जा को ज्यादा बेहतर विकल्प मानते हैं, क्योंकि सूरज इसके लिए लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है।