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एक मिलीमीटर का कीड़ा जिसने एक देश की अर्थव्यवस्था बचा ली
एक मिलीमीटर का कीड़ा जिसने एक देश की अर्थव्यवस्था बचा ली
रासायनिक कीटनाशकों की खोज से पहले फसलों में लगने वाले कीड़ों को ख़त्म करने के लिए किसान छोटे शिकारी जीवों पर निर्भर रहे हैं. वही प्रथा अब नए रूप में सामने आई है.
दक्षिण पूर्व एशिया में जैव विविधता से समृद्ध जंगलों में लाखों किसान कसावा की खेती पर निर्भर हैं. इस नक़दी फसल की खेती एक-दो हेक्टेयर ज़मीन वाले छोटे किसान भी करते हैं और हज़ारों हेक्टेयर वाले बड़े किसान भी.
कसावा के स्टार्च का इस्तेमाल प्लास्टिक और गोंद बनाने में होता है. कसावा को जब पहली बार दक्षिण अमरीका से लाया गया तब यहां के किसान बिना किसी कीटनाशक की मदद के इसकी खेती करते थे.
2008 से इसमें मिलीबग कीड़े लगने लगे और फसल बर्बाद होने लगी. घाटे की भरपाई के लिए किसानों ने जंगल की ज़मीन में घुसपैठ करनी शुरू की ताकि थोड़ी ज़्यादा फसल ले सकें.
बीजिंग के पौध संरक्षण संस्थान में जैव नियंत्रण विशेषज्ञ क्रिस वाइकहायस का कहना है कि कुछ क्षेत्रों में जंगल की कटाई बहुत तेज़ हो गई. कंबोडिया में जंगल कटाई की दर सबसे ज़्यादा है.
मिलीबग कीड़ों ने कसावा किसानों की रोज़ी-रोटी के साथ-साथ इस क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्था पर भी असर डाला. स्टार्च के वैकल्पिक स्रोतों, जैसे मक्का और आलू की क़ीमत बढ़ गई. थाईलैंड दुनिया में कसावा स्टार्च का नंबर एक निर्यातक है. वहां इसके दाम तीन गुणा बढ़ गए.
वाइकहाइस कहते हैं, "जब कोई कीड़ा पैदावार 60 से 80 फीसदी कम कर दे तो आपको बड़ा झटका लगेगा."
समाधान के तौर पर दक्षिण अमरीका में मिलीबग के प्राकृतिक शत्रु, एक मिलीमीटर लंबे परजीवी ततैया (एनागायरस लोपेज़ी) की खोज करनी थी.
यह छोटा ततैया कसावा मिलीबग पर ही अंडे देता है. 2009 के आख़िर में इस ततैये को थाईलैंड के कसावा खेतों में छोड़ा गया और आते ही इसने काम शुरू कर दिया.
इस बात की विस्तृत जानकारी नहीं है कि ततैये कितनी तेज़ी से मिलीबग की आबादी को साफ़ कर देते हैं. 2010 में पूरे थाईलैंड में हवाई जहाजों से लाखों ततैये छोड़े गए. ज़ल्द ही उनका असर दिखने लगा.
एक मिलीमीटर के शिकारी
1980 के दशक में यही ततैये पश्चिम अफ्ऱीका में छोड़े गए थे. उन्होंने तुरंत ही मिलीबग की तादाद 80 से 90 फीसदी तक घटा दी थी.
तीन साल से भी कम समय में ये ततैये दक्षिण-पश्चिमी नाइजीरिया के दो लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल गए. वहां के कसावा खेतों में ये आसानी से मिल जाते हैं.
इस तरह के हस्तक्षेप को जैव नियंत्रण कहा जाता है. आप एक प्राकृतिक शिकारी को ढूंढ़ते हैं और उसे कीड़ों को खाने के लिए खेतों में छोड़ देते हैं.
इससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 26 देशों के किसानों को सालाना 14.6 अरब डॉलर से लेकर 19.5 अरब डॉलर तक का फ़ायदा हुआ. वाइकहाइस कहते हैं, "एक मिलीमीटर के ततैये ने वैश्विक स्टार्च बाज़ार की बड़ी समस्या सुलझा दी."
किसानों को सही कीट होने के फ़ायदे सदियों से पता हैं. कनाडा के ओंटारियो में वाइनलैंड रिसर्च एंड इनोवेशन सेंटर की वैज्ञानिक रोज ब्यूटेन्हस का कहना है कि जैव नियंत्रण हज़ारों साल से हो रहा है. इसे नया समझना मज़ाक है.
सवाल है कि यदि जैव नियंत्रण इतना कारगर हो सकता है तो हानिकारक कीड़ों को ख़त्म करने में इसका इस्तेमाल क्यों नहीं होता? अगर यह काम न करे तो क्या होगा? और शोधकर्ता इसमें बदलाव पर ज़ोर क्यों दे रहे हैं?