प्राथमिक क्रियाएँ
मानव के वो कार्यकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रिया कहा जाता है। आर्थिक क्रियाओं को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जाता है - प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थ क्रियाएँ। प्राथमिक क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर है, क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों जैसे - भूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय मेें बतलाती हैं। इस प्रकार इसके अंतर्गतआखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।
मछली पकड़ने एवं कृषि करने का कार्य क्रमशः तटीय एवं मैदानी भागों के निवासी ही क्यों करते हैं? वे कौन से भौतिक एवं सामाजिक कारक हैं, जो विभिन्न प्रदेशों में प्राथमिक क्रियाओं के प्रकार को निर्धारित करते हैं?
प्राथमिक कार्यकलाप करने वाले लोग उनका कार्य क्षेत्र घर से बाहर होने के कारण लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं।
आखेट एवं भोजन संग्रह
मानव सभ्यता के आरंभिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने समीप के वातावरण पर निर्भर रहता था। उसका जीवन-निर्वाह दो कार्यों द्वारा होता था (क) पशुओं का आखेट कर, और (ख) अपने समीप के जंगलों से खाने योग्य जंगली पौधे एवं कंद-मूल आदि को एकत्रित कर।
आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था। अतिशीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों के रहने वाले लोग आखेट द्वारा जीवन-यापन करते थे। तकनीकी विकास के कारण यद्यपि मत्स्य-ग्रहण आधुनिकीकरण से युक्त हो गया है, तथापि तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग अब भी मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। अवैध शिकार के कारण जीवों की कई जातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या संकटापन्न है। प्राचीन-काल के आखेटक पत्थर या लकड़ी के बने औजार एवं तीर इत्यादि का प्रयोग करते थे, जिससे मारे जाने वाले पशुओं की संख्या सीमित रहती थी। भारत में शिकार पर क्यों प्रतिबंध लगाया गया है?
भोजन संग्रह एवं आखेट प्राचीनतम ज्ञात अर्थिक क्रियाएँ हैं। विश्व के विभिन्न भागों में यह कार्य विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रूपों में किया जाता है। यह कार्य कठोर जलवायुविक दशाओं में किया जाता है। इसे अधिकतर आदिमकालीन समाज के लोग करते हैं। ये लोग अपने भोजन, वस्त्र एवं शरण की आवश्यकता की पूर्ति हेतु पशुओं एवं वनस्पति का संग्रह करते हैं। इस कार्य के लिए बहुत कम पूँजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है।
चित्र 5.1 : मिज़ोरम में संतरे एकत्र करती महिलाएँ
भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है (i) उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं (ii) निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है (चित्र 5.2)।
आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण भी हो गया है। ये लोग कीमती पौधों की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधों को सामान्य रूप से संशोेधित कर बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं। पौधे के विभिन्न भागों का ये उपयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर छाल का उपयोग कुनैन, चमड़ा तैयार करना एवं कार्क के लिए; पत्तियों का उपयोग, पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कांतिवर्द्धक वस्तुएँ बनाने के लिए; रेशे को कपड़ा बनाने; दृढ़फल को भोजन एवं तेल के लिए एवं पेड़ के तने का उपयोग रबड़, बलाटा, गोंद व राल बनाने के लिए करते हैं।
चुविंगगम को चूसने के बाद शेष बचे भाग को क्या कहते हैं? क्या तुम जानते हो कि इसे चिकल कहते हैं? ये जेपोटा वृक्ष के दूध से बनता है।
चित्र 5.2 : निर्वाहन संग्रहण के क्षेत्र
विश्व स्तर पर भोजन संग्रहण का अधिक महत्त्व नहीं है। इन क्रियाओं के द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाजार में प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकते। कई प्रकार की अच्छी किस्म एवं कम दाम वाली कृत्रिम उत्पादों ने उष्ण कटिबंधीय वन के भोजन संग्रह करने वाले समूहों के उत्पादों का स्थान ले लिया है।
पशुचारण
आखेट पर निर्भर रहने वाले समूह ने जब ये महसूस किया कि केवल आखेट से जीवन का भरण-पोषण नहीं किया जा सकता है, तब मानव ने पशुपालन व्यवसाय के विषय में सोचा। विभिन्न जलवायुविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतू बनाया। भौगोलिक कारकों एवं तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान समय में पशुपालन व्यवसाय निर्वहन अथवा व्यापारिक स्तर पर किया जाता है।
चलवासी पशुचारण
चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय रहा है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता था। वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चरागाह की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते रहते थे। इन पशुचारक वर्गों के अपने-अपने निश्चित चरागाह क्षेत्र होते थे।
चित्र 5.3 : ग्रीष्म काल के आरंभ में अपनी भेड़ों को पर्वतों पर ले जाते हुए चलवासी
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार के पशु पाले जाते हैं। उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में गाय-बैल प्रमुख पशु हैं, जबकि सहारा एवं एशिया के मरुस्थलों में भेड़, बकरी एवं ऊँट पाला जाता है। तिब्बत एवं एंडीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा एवं आर्कटिक और उप उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेंडियर पाला जाता है
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं। इसका प्रमुख क्षेत्र उत्तरी अफ्रीका के एटलांटिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक फैला है। दूसरा क्षेत्र यूरोप तथा एशिया के टुंड्रा प्रदेश में है जबकि तीसरा क्षेत्र दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप पर है (चित्र 5.4)।
नए चरागाहों की खोज में ये पशुचारक समतल भागोंएवं पवर्तीय क्षेत्रों में लंबी दूरियाँ तय करते है। गर्मियों में मैदानी भाग से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं। इनकी इस गतिविधि को ऋतुप्रवास कहा जाता है। भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी एवं भूटिया लोगों के समूह ग्रीष्मकाल में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय क्षेत्रों में चले जाते हैं एवं शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्र में आ जाते हैं। इसी प्रकार टुंड्रा प्रदेश में ग्रीष्म काल में दक्षिण से उत्तर की ओर एवं शीत में उत्तर से दक्षिण की ओर चलवासी पशुचारकों का पशुओं के साथ प्रवास होता है।
चलवासी पशुचारकों की संख्या अब घट रही है एवं इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में भी कमी हो रही है। इसके दो कारण हैं(क) राजनीति क सीमाओं का अधिरोपण (ख) कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना।
वाणिज्य पशुधन पालन
चलवासी पशुचारण की अपेक्षा वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है। वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है एवं फार्म भी स्थायी होते है। यह फार्म विशाल क्षेत्र पर फैले होते हैं एवं संपूर्ण क्षेत्र को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है। चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है। जब चराई के कारण एक छोटे क्षेत्र की घास समाप्त हो जाती है तब पशुओं को दूसरे छोटे क्षेत्र में ले जाया जाता है। वाणिज्य पशुधन पालन में पशुओं की संख्या भी चरागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है
यह एक विशिष्ट गतिविधि है, जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय-बैल एवं घोड़े हैं। इनसे प्राप्त मांस, खालें एवं ऊन को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित एवं डिब्बा बंद कर विश्व के बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है। पशुफार्म में पशुधन पालन वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार बीमारियों पर नियंत्रण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है।
चित्र 5.4 : चलवासी पशुचारण के क्षेत्र
चित्र 5.5 : वाणिज्य पशुधन पालन
अलास्का के उत्तरी प्रदेशो में रेंडियर पालन जहाँ कुल भंडार का लगभग दो तिहाई अधिकांश एस्किमो रखते हैं।
विश्व में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटाइना, युरूग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है (चित्र 5.6)।
काृषि
विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य को प्रभावित करती हैं एवं इसी प्रभाव के कारण विभिन्न कृषि प्रणालियाँ देखी जाती हैं। कृषि विभिन्न प्रकार के फसलों का बोया जाना तथा पशु पालन विभिन्न कृषि विधियों पर आधारित होता है। मुख्य प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं।
निर्वाह कृषि
इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का संपूर्ण अथवा लगभग का उपयोग करते हैं। इसको दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
आदिकालीन निर्वाह कृषि
आदिकालीन निर्वाह कृषि अथवा स्थानांतरणशील कृषि कार्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ आदिम जाति के लोग यह कृषि करते हैं। इसका क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया है (चित्र 5.7)।
इन क्षेत्रों की वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इस प्रकार स्थानांतरणशील कृषि कर्तन एवं दहन कृषि भी कहलाती है। इसमें बोए गए खेत बहुत छोटे-छोटे होते हैं एवं खेती भी पुराने औजार जैसे लकड़ी, कुदाली एवं फावड़े द्वारा की जाती है। कुछ समय पश्चात् (3 से 5 वर्ष) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है। कुछ समय पश्चात् कृषक वापस पहले वाले कृषि क्षेत्र पर कृषि कार्य करने आ जाता है। इस कृषि कार्य में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस क्षेत्र में भूमि की उर्वरता कम होती जाती है जिससे झूम का चक्र (आग लगाकर कृषि क्षेत्र तैयार करना) छोटा होता जाता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है। आप एेसे अन्य क्षेत्रों का पता लगाइए जहाँ इस प्रकार की कृषि की जाती है एवं वहाँ इसे किस नाम से पुकारते हैं।
गहन निर्वाह कृषि
इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है।
गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं।
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषिः इसमें चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है। उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है।
(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषिः मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः संभव नहीं है। उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरपम बोया जाता है। भारत में सिंध-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुखत रूप से उगाया जाता है। इस कृषि की अधिकतर विशेषताएँ वो ही है जो चावल प्रधान कृषि की हैं। केवल अंतर यह है कि इसमें सिंचाई की जाती है।
रोपण कृषि
यूरोपीय लोगों ने विश्व के अनेक भागों का औपनिवेशीकरण किया तथा कृषि के कुछ अन्य रूपों की शुरुआत की जैसे रोपण कृषि, जो वृहद् स्तरीय लाभोन्मुख उत्पादन प्रणाली है। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अनन्नास की पौध लगाई।
इस कृषि की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इसमें अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबंध एवं तकनीकी आधार एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक फसली कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही सकेंद्रण किया जाता है। श्रमिक सस्ते मिल जाते हैं एवं यातायात विकसित होता है जिसके द्वारा बागान एवं बाज़ार सुचारु रूप से जुड़े रहते हैं।
फ्रांसवासियाें ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पौध लगाई थी। ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं लंका में चाय के बाग, मलयेशिया में रबड़ के बाग एवं पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना एवं केले के बाग विकसित किए। स्पेन एवं अमेरिकावासियों ने फिलीपाइंस में नारियल व गन्ने के बागान लगाए। इंडोनेशिया में एक समय गन्ने की कृषि में हॉलैंडवासियों (डचों) का एकाधिकार था। ब्राजील में अभी भी कुछ कॉफी के बागान जिन्हें फेज़ेंडा कहा जाता है यूरोपवासियों के नियंत्रण में है।
वर्तमान में अधिकतर बागानों का स्वामित्व देशों की सरकार अथवा नागरिकों के नियंत्रण में है।
चित्र 5.10 : चाय के बागान
अनुकूल भौगोलिक दशाओं के कारण ढालों का उपयोग चाय बागानों हेतु किया जाता है।
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
मध्य अक्षांशाें के आंतरिक अर्ध शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इसकी मुख्य फसल गेहूँ है। यद्यपि अन्य फसलें जैसे मक्का, जौ, राई एवं जई भी बोई जाती है। इस कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा संपन्न किए जाते हैं। (चित्र 5.11) इसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है परंतु प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है। एेसा क्यों होता है?
इस प्रकार की कृषि का क्षेत्र यूरेशिया के स्टेपीज, उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज, अर्जेंटाइना के पंपाज, दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस, आस्ट्रेलिया के डाउंस एवं न्यूजीलैंड के केंटरबरी के मैदान में है (विश्व मानचित्र पर इन क्षेत्रों का निर्धारण कीजिए)।
मिश्रित कृषि
इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है, उदाहरणस्वरूप उत्तरी पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अक्षांश वाले भागों में इसका विस्तार है (चित्र 5.14)।
इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है। इसमें बोई जाने वाली फसलें गेहूँ, जौ, राई, जई, मक्का, चारे की फसल एवं कंद-मूल प्रमुख हैं। चारे की फसलें मिश्रित कृषि के मुख्य घटक हैं। फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को इसमें समान महत्त्व दिया जाता है। फसलों के साथ पशुओं जैसे - मवेशी, भेड़, सुअर एवं कुक्कुर आय के मुख्य स्रोत हैं। शस्यावर्तन एवं अंतः फसली कृषि मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विकसित कृषि यंत्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद (हरी खाद) के गहन उपयोग आदि पर अधिक पूँजी व्यय के साथ ही कृषकों की कुशलता और योग्यता मिश्रित कृषि की मुख्य विशेषताएँ हैं।
डेरी कृषि
डेरी व्यवसाय दुधारु पशुओं के पालन-पोषण का सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार है। इसमें पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है। पशुओं के लिए छप्पर, घास संचित करने के भंडार एवं दुग्ध उत्पादन में अधिक यंत्रों के प्रयोग के लिए पूँजी भी अधिक चाहिए। पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर भी अधिक ध्यान दिया जाता है। इसमें गहन श्रम की आवश्यकता होती है। पशुओं को चराने, दूध निकालने आदि कार्यों के लिए वर्ष भर श्रम की आवश्यकता रहती है। क्योंकि फसलों की तरह इनमें कोई अंतराल नहीं होता जिसमें श्रम की आवश्यकता न हो।
डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है, क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं वर्तमान समय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविधा के कारण विभिन्न डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है।
वाणिज्य डेरी कृषि तीन प्रमुख क्षेत्र हैं, सबसे बड़ा प्रदेश उत्तरी पश्चिमी यूरोप का क्षेत्र है। दूसरा कनाडा एवं तीसरा क्षेत्र न्यूजीलैंड, दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया है (चित्र 5.16)।
भूमध्यसागरीय कृषि
भूमध्यसागरीय कृषि अति विशिष्ट प्रकार की कृषि है। इसका विस्तार भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से एटलांटिक तट तक फैला है दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी पश्चिमी भाग एवं आस्ट्रेलिया के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम भाग में है। खट्टे फलों की आपूर्ति करने मेें यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय क्षेत्र की विशेषता है। इस क्षेत्र के कई देशों में अच्छे किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत्ता वाली मदिरा का उत्पादन किया जाता है। निम्न श्रेणी के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का एवं किशमिश बनाई जाती है। अंजीर एवं जैतून भी यहाँ उत्पन्न होता है। शीत ऋतु में जब यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की माँग होती है तब इसी क्षेत्र से पूर्ति की जाती है।
बाज़ार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि
इस प्रकार की कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें जैसे सब्जियाँ, फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं जिनकी माँग नगरीय क्षेत्राें में होती है। इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है एवं खेत अच्छे यातायात साधनों के द्वारा नगरीय केंद्रों जहाँ उँची आय वाले उपभोक्ता रहते हैं। इसमें गहन श्रम एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार की कृषि उत्तरी पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी पूर्वी भाग एवं भूमध्यसागरीय प्रदेश में अधिक विकसित है, जहाँ औद्योगिक क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व अधिक है। नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है। यहाँ से बागबानी फसल विशेषतः ट्यूलिप (एक प्रकार का फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है। जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ पैदा करता है वहाँ इसको ‘ट्रक कृषि’ का नाम दिया जाता है। ट्रक फार्म एवं बाज़ार के मध्य की दूरी, जो एक ट्रक रात भर में तय करता है, उसी आधार पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है।
पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है। इसमें पशुधन पाला जाता है जिनमें विशेषतः गाय-बैल एवं कुक्कुर होते हैं। इन्हें बाड़े पर कारखानों में तैयार बने बनाए भोजन पर रखा जाता है, एवं उनकी बीमारियों का भी ध्यान रखा जाता है। इसमें भवन निर्माण, यंत्र खरीदने, प्रकाश एवं ताप की व्यवस्था करने एवं पशु चिकित्सा के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। अच्छी नस्ल का चुनाव और प्रजनन की वैज्ञानिक विधियों कुक्कुर एवं पशुपालन के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं।
कृषि करने वाले संगठन के आधार पर भी कृषि के प्रकारों का वर्गीकरण किया जा सकता है। कृषि संगठन, कृषक का खेतों पर अपना अधिकार एवं उस पर सरकारी नीतियाँ जो कृषि में सहायक होती हैं, से प्रभावित होता है।
सहकारी कृषि
जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे उसे सहकारी कृषि कहते हैं। इसमें व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्ण रहते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है।
सहकारी संस्था कृषकों को सभी रूप में सहायता करती है। यह सहायता कृषि कार्य में आने वाली सभी चीजों की खरीद करने, कृषि उत्पाद को उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्कृत साधनों को जुटाने के लिए होती है।
सहकारी अांदोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारंभ हुआ था एवं पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में यह सफलतापूर्वक चला। सबसे अधिक सफलता इसे डेनमार्क में मिली जहाँ प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है। डेनमार्क में यह आंदोलन सर्वाधिक सफल रहा, जहाँ व्यावहारिक रूप से प्रत्येक कृषक इस आंदोलन का सदस्य है।
सामूहिक कृषि
इस प्रकार की कृषि का आधारभूत सिद्धांत यह होता है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व संपूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारंभ हुआ था जहाँ कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्ति के लिए सामूहिक कृषि प्रारंभ की गई। इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कोलखहोज़ का नाम दिया गया।
सभी कृषक अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते थे। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते थे।
खनन
मानव विकास के इतिहास में खनिजों की खोज की कई अवस्थाएँ देखी जा सकती हैं जैसे ताम्र युग, कांस्य युग एवं लौह युग। प्राचीन काल में खनिजों का उपयोग औजार बनाने, बर्तन बनाने एवं हथियार बनाने तक ही सीमित था। इसका वास्तविक विकास औद्यौगिक क्रांति के पश्चात् ही संभव हुआ एवं निरंतर इसका महत्त्व बढ़ता रहा है।
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक
खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है।
(i) भौतिक कारक जिनमें खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते है।
(ii) आर्थिक कारक जिनमें खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।
खनन की विधियाँ
उपस्थिति की अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार हैंः धरातलीय एवं भूमिगत खनन। धरातलीय खनन को विवृत खनन भी कहा जाता है। यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत निम्न कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।
चित्र 5.19 : खनन की विधियाँ
जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में लंबवत् कूपक गहराई तक स्थित हैं, जहाँ से भूमिगत गैलरियाँ खनिजों तक पहुँचने के लिए फैली हैं। इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है। खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन हेतु इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट बेधक (बरमा), माल ढोने की गाड़ियाँ तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोखिम भरा है क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएँ होने का भय रहता है। क्या आपने कभी भारत की कोयला खदानों में आग लगने एवं बाढ़ आने के विषय में पढ़ा है?
विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश उत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसमें श्रमिक लागत अधिक आने लगी है। जबकि विकासशील देश अपने विशाल श्रमिक शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के ऊँचे रहन-सहन को बनाए रखने के लिए खनन कार्य को महत्त्व दे रहे हैं। अफ्रीका के कई देश, दक्षिण अमेरिका के कुछ देश एवं एशिया में आय के साधनों का पचास प्रतिशत तक खनन कार्य से प्राप्त होता है।
अभ्यास
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए :
(i) निम्न में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है?
(क) कॉफी (ख) गन्ना
(ग) गेहूँ (घ) रबड़
(ii) निम्न देशों में से किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है?
(क) रूस (ख) डेनमार्क
(ग) भारत (घ) नीदरलैंड
(iii) फूलों की कृषि कहलाती है-
(क) ट्रक फार्मिंग (ख) कारखाना कृषि
(ग) मिश्रित कृषि (घ) पुष्पोत्पादन
(iv) निम्न में से कौन-सी कृषि के प्रकार का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहाें द्वारा किया गया?
(क) कोलखोज़ (ख) अंगूरोत्पादन
(ग) मिश्रित कृषि (घ) रोपण कृषि
(v) निम्न प्रदेशों में से किसमें विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि नहीं की जाती है?
(क) अमेरिका एवं कनाडा के प्रेयरी क्षेत्र (ख) अर्जेंटाइना के पंपास क्षेत्र
(ग) यूरोपीय स्टैपीज़ क्षेत्र (घ) अमेजन बेसिन
(vi) निम्न में से किस प्रकार की कृषि में खट्टे रसदार फलों की कृषि की जाती है?
(क) बाजारीय सब्जी कृषि (ख) भूमध्यसागरीय कृषि
(ग) रोपण कृषि (घ) सहकारी कृषि
(vii) निम्न कृषि के प्रकारों में से कौन-सा प्रकार कर्तन-दहन कृषि का प्रकार है?
(क) विस्तृत जीवन निर्वाह कृषि (ख) आदिकालीन निर्वाहक कृषि
(ग) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि (घ) मिश्रित कृषि
(viii) निम्न में से कौन-सी एकल कृषि नहीं है?
(क) डेरी कृषि (ख) मिश्रित कृषि
(ग) रोपण कृषि (घ) वाणिज्य अनाज कृषि
2. निम्न प्रश्नों का 30 शब्दों में उत्तर दीजिए :
(i) स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है। विवेचना कीजिए।
(ii) बाज़ारीय सब्जी कृषि नगरीय क्षेत्रों के समीप ही क्यों की जाती है?
(iii) विस्तृत पैमाने पर डेरी कृषि का विकास यातायात के साधनों एवं प्रशीतकों के विकास के बाद ही क्यों संभव हो सका है?
3. निम्न प्रश्नों का 150 शब्दों में उत्तर दीजिएः
(i) चलवासी पशुचारण और वाणिज्य पशुधन पालन में अंतर कीजिए।
(ii) रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ बतलाइए एवं भिन्न-भिन्न देशों में उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम बतलाइए।
परियोजना/क्रियाकलाप
अपने समीप के गाँव में जाकर देखिए की वहाँ कौन-कौन सी फसलें उगाई जाती हैं एवं कृषक से खेती के लिए किए जाने वाले विभिन्न कार्यों के बारे में पूछिए।