Skip to main content

मानव बस्तियाँ Important Notes 2024-25

इकाई II

अध्याय 2

मानव बस्तियाँ

 front%20picture-1.tif



मानव बस्ती का अर्थ है किसी भी प्रकार और आकार के घरों का संकुल जिनमें मनुष्य रहते हैं। इस उद्देश्य के लिए लोग मकानों और अन्य इमारतों का निर्माण करते हैं और अपने आर्थिक पोषण-आधार के लिए कुछ क्षेत्र पर स्वामित्व रखते हैं। अतः बस्ती की प्रक्रिया में मूल रूप से लोगों के समूहन और उनके संसाधन आधार के रूप में क्षेत्र का आवंटन सम्मिलित होते हैं।

बस्तियाँ आकार और प्रकार में भिन्न होती हैं। उनका परिसर एक पल्ली से लेकर महानगर तक होता है। आकार के साथ बस्तियों के आर्थिक अभिलक्षण और सामाजिक संरचना बदल जाती है और साथ ही बदल जाते हैं पारिस्थितिकी  प्रौद्योगिकी। बस्तियाँ छोटी और विरल रूप से लेकर ब\ड़ी और संकुलित अवस्थित हो सकती हैं। विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियाँ, जो कृषि अथवा अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं, गाँव कहलाती हैं। दूसरी ओर कम, किंतु ब\ड़े अधिवास द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों में विशेषीकृत होते हैं जो इन्हें नगरीय बस्तियाँ कहा जाता है। ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में आधारभूत अंतर निम्नलिखित हैं–

 ग्रामीण बस्तियाँ अपने जीवन का पोषण अथवा आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति भूमि आधारित प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से करती हैं जबकि नगरीय बस्तियाँ एक ओर कच्चे माल के प्रक्रमण और तैयार माल के विनिर्माण तथा दूसरी ओर विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर करती हैं।

 नगर आर्थिक वृद्धि के नोड (node) के रूप में कार्य करते हैं और न केवल नगर निवासियों को बल्कि अपने पश्च भूमि की ग्रामीण बस्तियों को भी भोजन और कच्चे माल के बदले वस्तुएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं। नगरीय और ग्रामीण बस्तियों के बीच प्रकार्यात्मक संबंध परिवहन और संचार परिपथ के माध्यम से स्थापित होता है।

 ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ सामाजिक संबंधों अभिवृत्ति और दृष्टिकोण की दृष्टि से भी भिन्न होती हैं। ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं और इसलिए उनमें सामाजिक संबंध घनिष्ठ होते हैं। दूसरी ओर नगरीय क्षेत्रों में जीवन का ढंग जटिल और तीव्र होता है और सामाजिक संबंध औपचारिक होते हैं।


ग्रामीण बस्तियों के प्रकार

बस्तियों के प्रकार निर्मित क्षेत्र के विस्तार और अंतर्वास दूरी द्वारा निर्धारित होता है। भारत में कुछ सौ घरों से युक्त संहत अथवा गुच्छित गाँव विशेष रूप से उत्तरी मैदानों में एक सार्वत्रिक लक्षण है। फिर भी अनेक क्षेत्र एेसे हैं जहाँ अन्य प्रकार की ग्रामीण बस्तियाँ पाई जाती हैं। ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उत्तरदायी हैं। इनके अंतर्गत– (i) भौतिक लक्षण – भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता, (ii) सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक - सामाजिक संरचना, जाति और धर्म,
(iii) सुरक्षा संबंधी कारक - चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं। बृहत् तौर पर भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है –

 गुच्छित, संकुलित अथवा आकेंद्रित

 अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित

 पल्लीकृत और

 परिक्षिप्त अथवा एकाकी


गुच्छित बस्तियाँ (Clustered Settlements)

गुच्छित ग्रामीण बस्ती घरों का एक संहत अथवा संकुलित रूप से निर्मित क्षेत्र होता है। इस प्रकार के गाँव में रहन-सहन का सामान्य क्षेत्र स्पष्ट और चारों ओर फैले खेतों, खलिहानों और चरागाहों से पृथक होता है। संकुलित निर्मित क्षेत्र और इसकी मध्यवर्ती गलियाँ कुछ जाने-पहचाने प्रारूप अथवा ज्यामितीय आकृतियाँ प्रस्तुत करते हैं जैसे कि आयताकार, अरीय, रैखिक इत्यादि। एेसी बस्तियाँ प्रायः उपजाऊ जलो\ढ़ मैदानों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है। कई बार लोग सुरक्षा अथवा प्रतिरक्षा कारणों से संहत गाँवों में रहते हैं, जैसे कि मध्य भारत के बुंदेलखंड प्रदेश और नागालैंड में। राजस्थान में जल के अभाव में उपलब्ध जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग ने संहत बस्तियों को अनिवार्य बना दिया है।


settlement-4.tif



अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered Settlements)

अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित बस्तियाँ परिक्षिप्त बस्ती के किसी सीमित क्षेत्र में गुच्छित होने की प्रवृत्ति का परिणाम है।अधिकतर एेसा प्रारूप किसी ब\ड़े संहत गाँव के संपृथकन अथवा विखंडन के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकता है। एेसी स्थिति में ग्रामीण समाज के एक अथवा अधिक वर्ग स्वेच्छा से अथवा बलपूर्वक मुख्य गुच्छ अथवा गाँव से थो\ड़ी दूरी पररहने लगते हैं। एेसी स्थितियों में, आमतौर पर \ज़मींदार और अन्य प्रमुख समुदाय मुख्य गाँव के केंद्रीय भाग पर आधिपत्यकर लेते हैं जबकि समाज के निचले तबके के लोग और निम्न कार्यों में संलग्न लोग गाँव के बाहरी हिस्सों में बसते हैं। एेसी बस्तियाँ गुजरात के मैदान और राजस्थान के कुछ भागों में व्यापक रूप से पाई जाती हैं।



semi%20clustered.tif

चित्र 4.2 :  अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ


पल्ली बस्तियाँ (Hamleted Settlements)

कई बार बस्ती भौतिक रूप से एक-दूसरे से पृथक अनेक इकाइयों में बँट जाती है किंतु उन सबका नाम एक रहता है। इन इकाइयों को देश के विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पा\ड़ा, पाली, नगला, ढाँणी इत्यादि कहा जाता है। किसी विशाल गाँव का एेसा खंडीभवन प्रायः सामाजिक एवं मानवजातीय कारकों द्वारा अभिप्रेरित होता है। एेसे गाँव मध्य और निम्न गंगा के मैदान, छत्तीसग\ढ़ और हिमालय की निचली घाटियों में बहुतायत में पाए जाते हैं।

परिक्षिप्त बस्तियाँ (Dispersed Settlements)

भारत में परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्ती प्रारूप सुदूर जंगलों में एकाकी झोंप\ड़ियों अथवा कुछ झोंप\ड़ियों की पल्ली अथवा छोटी पहा\ड़ियों की ढालों पर खेतों अथवा चरागाहों के रूप में दिखाई प\ड़ता है। बस्ती का चरम विक्षेपण प्रायः भू-भाग और निवास योग्य क्षेत्रों के भूमि संसाधन आधार की अत्यधिक विखंडित प्रकृति के कारण होता है। मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल के अनेक भागों में बस्ती का यह प्रकार पाया जाता है

Dispersed%20Settlement.tif

चित्र 4.3 ः नागालैंड में परिक्षिप्त बस्तियाँ

नगरीय बस्तियाँ

ग्रामीण बस्तियों के विपरीत नगरीय बस्तियाँ सामान्यतः संहत और विशाल आकार की होती हैं। ये बस्तियाँ अनेक प्रकार के अकृषि, आर्थिक और प्रशासकीय प्रकार्यों में संलग्न होती हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है नगर अपने चारों ओर के क्षेत्रों से प्रकार्यात्मक रूप में जु\ड़ा हुआ होता है। अतः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय कई बार प्रत्यक्ष रूप से और कई बार मंडी शहरों और नगरों की शृंखला के माध्यम से संपन्न होता है। इस प्रकार नगर गाँवों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से जु\ड़े होते हैं और वे परस्पर भी जु\ड़े हुए होते हैं। आप ‘मानव भूगोल के मूलभूत सिद्धांत’ नामक पुस्तक के अध्याय 10 में नगरों की परिभाषा देख सकते हैं।


भारत में नगरों का विकास

भारत में नगरों का अभ्युदय प्रागैतिहासिक काल से हुआ है। यहाँ तक कि सिंधु घाटी सभ्यता के युग में भी ह\ड़प्पा और मोहनजोद\ड़ो जैसे नगर अस्तित्व में थे। इसके बाद का समय नगरों के विकास का साक्षी है। यह समय 18वीं शताब्दी में यूरोपियों के भारत आने तक आवधिक उतार-च\ढ़ावों से भरा रहा। विभिन्न युगों में उनके विकास के आधार पर भारतीय नगरों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है–

स्रोतः भारत की जनगणना-2011, भारत-2017, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार

 प्राचीन नगर,  मध्यकालीन नगर, और  आधुनिक नगर।

प्राचीन नगर

भारत में 2000 से अधिक र्षों की एेतिहासिक पृष्ठभूमि वाले अनेक नगर हैं। इनमें से अधिकांश का विकास धार्मिक अथवा सांस्कृतिक केंद्रों के रू में हुआ है। वाराणसी इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर हैं। प्रयाग (इलाहाबाद), पाटलिपुत्र (पटना), मदुरई देश में प्राचीन नगरों के कुछ अन्य उदाहरण हैं।

मध्यकालीन नगर

वर्तमान के लगभग 100 नगरों का इतिहास मध्यकाल से जु\ड़ा है। इनमें से अधिकांश का विकास रजवा\ड़ों और राज्यों

 के मुख्यालयों के रूप में हुआ। ये किला नगर हैं जिनका निर्माण प्राचीन नगरों के खंडहरों पर हुआ है। एेसे नगरों में दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ, आगरा और नागपुर महत्त्वपूर्ण हैं।

आधुनिक नगर

अंग्रे\ज़ों और अन्य यूरोपियों ने भारत में अनेक नगरों का विकास किया। तटीय स्थानों पर अपने पैर जमाते हुए उन्होंने सर्वप्रथम सूरत, दमन, गोआ, पांडिचेरी इत्यादि जैसे व्यापारिक पत्तन विकसित किए। 



modern%20towns.tif

चित्र 4.4 :  आधुनिक शहर का एक दृश्य

अंग्रे\ज़ों ने बाद में तीन मुख्य नोडों मुंबई (बंबई), चेन्नई (मद्रास) और कोलकाता (कलकत्ता) पर अपनी पक\ड़ म\ज़बूत की और उनका अंग्रे\ज़ी शैली में निर्माण किया। अपनी प्रभाविता को प्रत्यक्ष रूप से अथवा रजवा\ड़ों पर नियंत्रण के माध्यम से ते\ज़ी से ब\ढ़ाते हुए उन्होंने प्रशासनिक केंद्रों, ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थलों के रूप में पर्वतीय नगरों को स्थापित किया और उनमें सिविल, प्रशासनिक और सैन्य क्षेत्रों को जो\ड़ा। 1850 के बाद आधुनिक उद्योगों पर आधारित नगरों का भी जन्म हुआ। जमशेदपुर इसका एक उदाहरण है।

t4.1

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, अनेक नगर प्रशासनिक केंद्रों, जैसे– चंडीग\ढ़, भुवनेश्वर, गांधीनगर, दिसपुर इत्यादि और औद्योगिक केंद्रों जैसे दुर्गापुर, भिलाई, सिंदरी, बरौनी के रूप में विकसित हुए। कुछ पुराने नगर महानगरों के चारों ओर अनुषंगी नगरों के रूप में विकसित हुए जैसे दिल्ली के चारों ओर गा\ज़ियाबाद, रोहतक और गुरुग्राम इत्यादि। ग्रामीण क्षेत्रों में ब\ढ़ते निवेश के साथ पूरे देश में ब\ड़ी संख्या में मध्यम और छोटे नगरों का विकास हुआ है।


भारत में नगरीकरण

नगरीकरण के स्तर का माप कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में िया जाता है। वर्ष 2011 में भारत में नगरीकरण का ्तर 31.16 प्रतिशत था जो विकसित देशों की तुलना में ा\फ़ी कम है। 20वीं शताब्दी के दौरान नगरीय जनसंख्या 11 गुना ब\ढ़ी है। नगरीय केंद्रों के विवर्धन और नए नगरों के आविर्भाव ने देश में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि और नगरीकरण में सार्थक भूमिका निभाई है (तालिका 4.1)। किंतु नगरीकरण की वृद्धि दर पिछले दो दशकों में धीमी हुई है।

जनसंख्या आकार के आधार पर नगरों का वर्गीकरण

भारत की जनगणना नगरों को छः वर्गों में वर्गीकृत करती है जैसा कि तालिका 4.में प्रदर्शित किय गया है। एक लाख से अधिक नगरीय जनसंख्या वाले नगरीय केंद्र को नगर अथवा प्रथम वर्ग का नगर कहा जाता है। 10 लाख से 50 लाख की जनसंख्या वाले नगरों को महानगर तथा 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों को मेगा नगर कहा जाता है। बहुसंख्यक महानगर और मेगा नगर नगरीय संकुल हैं। एक नगरीय संकुल में निम्नलिखित तीन संयोजकों में से किसी एक का समावेश होता है– (क) एक नगर व उसका संलग्न नगरीय बहिर्बद्ध, (ख) बहिर्बद्ध (outgrowth) के सहित अथवा रहित दो अथवा अधिक संस्पर्शी नगर, और (ग) एक अथवा अधिक संलग्न नगरों के बहिर्बद्ध से युक्त एक संस्पर्शी प्रसार नगर का निर्माण।


चित्र 4.6 ः भारत नगरीय केन्द्रों के आकार वर्ग के अनुसार नगरीय जनसंख्या वितरण (%)-2011

c4.6

t4.2


तालिका 4.2 से स्पष्ट है कि भारत की 60 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या प्रथम वर्ग के नगरों में रहती हैं। इन 468 नगरों में से 53 नगर/नगरीय संकुल महानगर हैं। इनमें से छः मेगा नगर हैं जिनमें से प्रत्येक की जनसंख्या 50 लाख से अधिक है। पाँचवें भाग से अधिक (21.0%) नगरीय जनसंख्या इन मेगानगरों में रहती है। इनमें से 1 करो\ड़ 84 लाख लोगों के साथ बृहन मुंबई सबसे ब\ड़ा नगरीय संकुल है; दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूरु और हैदराबाद देश के अन्य मेगा नगर हैं।

नगरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण

अपनी केंद्रीय अथवा नोडीय स्थान की भूमिका के अतिरिक्त अनेक शहर और नगर विशेषीकृत सेवाओं का निष्पादन करते हैं। कुछ शहरों और नगरों को कुछ निश्चित प्रकार्यों में विशिष्टता प्राप्त होती हैं और उन्हें कुछ विशिष्ट क्रियाओं, उत्पादनों अथवा सेवाओं के लिए जाना जाता है। फिर भी प्रत्येक शहर अनेक प्रकार्य करता है। प्रमुख अथवा विशेषीकृत प्रकार्यों के आधार पर भारतीय नगरों को मोटे तौर पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है –

प्रशासन शहर और नगर

उच्चतर क्रम के प्रशासनिक मुख्यालयों वाले शहरों को प्रशासन नगर कहते हैं, जैसे कि चंडीग\ढ़, नई दिल्ली, भोपाल, शिलांग, गुवाहाटी, इंफाल, श्रीनगर, गांधी नगर, जयुपर, चेन्नई इत्यादि।

औद्योगिक नगर

मुंबई, सेलम, कोयंबटूर, मोदीनगर, जमशेदपुर, हुगली, भिलाई इत्यादि के विकास का प्रमुख अभिप्रेरक बल उद्योगों का विकास रहा है।

परिवहन नगर

ये पत्तन नगर जो मुख्यतः आयात और निर्यात कार्यों में संलग्न रहते हैं, जैसे– कांडला, कोच्चि, कोझीकोड, विशाखापट्नम, इत्यादि अथवा आंतरिक परिवहन की धुरियाँ जैसे धुलिया, मुगलसराय, इटारसी, कटनी इत्यादि हो सकते हैं।

वाणिज्यिक नगर

व्यापार और वाणिज्य में विशिष्टता प्राप्त शहरों और नगरों को इस वर्ग में रखा जाता है। कोलकाता, सहारनपुर, सतना इत्यादि कुछ उदाहरण हैं।

खनन नगर

ये नगर खनिज समृद्ध क्षेत्रों में विकसित हुए हैं जैसे रानीगंज, झरिया, डिगबोई, अंकलेश्वर, सिंगरौली इत्यादि।

गैरिसन (छावनी) नगर

इन नगरों का उदय गैरिसन नगरों के रूप में हुआ है, जैसे अंबाला, जालंधर, महू, बबीना, उधमपुर इत्यादि।

t4.3


नगरीय संकुलों/नगरों की राज्यानुसार सूची बनाये और नगरों के इस वर्ग के अंतर्गत राज्यानुसार जनसंख्या को देखें। ?

स्मार्ट सिटी मिशन

स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य शहरों को ब\ढ़ावा देना है जो आधारभूत सुविधा, साफ तथा सतत पर्यावरण और अपने नागरिकों को बेहतर जीवन प्रदान करते हैं। स्मार्ट शहरों की एक विशेषता आधारभूत सुविधाओं और सेवाओं के लिए स्मार्ट समाधानों को लागू करना है। जिससे क्षेत्रों को प्राकृतिक आपदाओं के कम जोखिम वाले क्षेत्रों के रूप में बनाया जा सके, साथ ही साथ कम संसाधनों का उपयोग तथा सस्ती सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सकें। इस योजना में सतत तथा समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस योजना का उद्देश्य एक एेसे सघन क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना है जो एक मॉडल के रूप में अन्य ब\ढ़ते हुए शहरों के लिए लाइट हाऊस का काम करे।


धार्मिक और सांस्कृतिक नगर

वाराणसी, मथुरा, अमृतसर, मदुरै, पुरी, अजमेर, पुष्कर, तिरुपति, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन अपने धार्मिक/सांस्कृतिक महत्त्व के कारण प्रसिद्ध हुए।

शैक्षिक नगर

मुख्य परिसर नगरों में से कुछ नगर शिक्षा केंद्रों के रूप में विकसित हुए जैसे रु\ड़की, वाराणसी, अलीग\ढ़, पिलानी, इलाहाबाद।

पर्यटन नगर

नैनीताल, मसूरी, शिमला, पचम\ढ़ी, जोधपुर, जैसलमेर, उडगमंडलम (ऊटी), माउंट आबू कुछ पर्यटन गंतव्य स्थान हैं। नगर अपने प्रकार्यों में स्थिर नहीं है उनके गतिशील स्वभाव के कारण प्रकार्यों में परिवर्तन हो जाता है।

विशेषीकृत नगर भी महानगर बनने पर बहुप्रकार्यात्मक बन जाते हैं जिनमें उद्योग व्यवसाय, प्रशासन, परिवहन इत्यादि महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। प्रकार्य इतने अंतर्ग्रंथित हो जाते हैं कि नगर को किसी विशेष प्रकार्य वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।

अभ्यास

1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।

(i) निम्नलिखित में से कौन-सा नगर नदी तट पर अवस्थित नहीं है?

(क) आगरा (ग) पटना

(ख) भोपाल (घ) कोलकाता

(ii) भारत की जनगणना के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सी एक विशेषता नगर की परिभाषा का अंग नहीं है?

(क) जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.

(ख) नगरपालिका, निगम का होना

(ग) 75% से अधिक जनसंख्या का प्राथमिक खंड में संलग्न होना

(घ) जनसंख्या आकार 5000 व्यक्तियों से अधिक

(iii) निम्नलिखित में से किस पर्यावरण में परिक्षिप्त ग्रामीण बस्तियों की अपेक्षा नहीं की जा सकती?

(क) गंगा का जलो\ढ़ मैदान (ग) हिमालय की निचली घाटियाँ

(ख) राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क प्रदेश (घ) उत्तर-पूर्व के वन और पहा\ड़ियाँ

(iv) निम्नलिखित में से नगरों का कौन-सा का वर्ग अपने पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध है?

(क) बृहन मुंबई, बेंगलूरु, कोलकाता, चेन्नई (ग) कोलकाता, बृहन मुंबई, चेन्नई, कोलकाता

(ख) दिल्ली, बृहन मुंबई, चेन्नई, कोलकाता (घ) बृहन मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई

2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।

(i) गैरिसन नगर क्या होते हैं? उनका क्या प्रकार्य होता है?

(ii) किसी नगरीय संकुल की पहचान किस प्रकार की जा सकती है?

(iii) मरुस्थली प्रदेशों में गाँवों के अवस्थिति के कौन-से मुख्य कारक होते हैं।

(iv) महानगर क्या होते हैं? ये नगरीय संकुलों से किस प्रकार भिन्न होते हैं?

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।

(i) विभिन्न प्रकार की ग्रामीण बस्तियों के लक्षणों की विवेचना कीजिए। विभिन्न भौतिक पर्यावरणों में बस्तियों के प्रारूपों के लिए उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?

(ii) क्या एक प्रकार्य वाले नगर की कल्पना की जा सकती है? नगर बहुप्रकार्यात्मक क्यों हो जाते हैं?



Search Me Online Using Keywords: - #Abhimanyusir #AbhimanyuDahiya #UltimateGeography Abhimanyu Sir Abhimanyu Dahiya Ultimate Geography

Popular Posts

आंकड़े – स्रोत और संकलन Chapter 1 Class 12 Geography Practical File (Hindi Medium)

Click Below for Chapter 1 Data – Its Source and Compilation (English Medium) NEXT Chapter Chapter 2 आंकड़ों का प्रक्रमण Open Chapter as Pdf Related Video  कक्षा 12 भूगोल की प्रैक्टिकल फाइल कैसे तैयार करें?   How to prepare practical file for class 12 geography? You Can Also Visit...   Class 9 Social Science Chapter wise Solution   Class 10 Social Science Chapter wise Solution   Class 11 GEOGRAPHY Chapter wise Solution   Class 12 GEOGRAPHY Chapter wise Solution   Motivational Stories

Class 12 Geography Maps Solution

Ø Fill up the following Chapter wise Topics on Blank World Political Map CLICK HERE FOR VIDEO MAPS SOLUTION Ch. 4 Primary Activities Areas of subsistence gathering Major areas of nomadic herding of the world Major areas of commercial livestock rearing Major areas of extensive commercial grain faming Major areas of mixed farming of the World CLICK HERE FOR VIDEO MAPS SOLUTION Ch. 7 Transport, Communication and Trade Terminal Stations of  transcontinental railways Terminal Stations of  Trans-Siberian  transcontinental railways  Terminal Stations of  Trans Canadian  railways Terminal Stations of Trans-Australian Railways Major Sea Ports : Europe: North Cape, London, Hamburg North America: Vancouver, San Francisco, New Orleans South America: Rio De Janeiro, Colon, Valparaiso Africa: Suez and Cape Town Asia: Yokohama, Shanghai, Hong Kong, Aden, Karachi, Kolkata Australia: Perth, Sydney, Melbourne Major Airports: Asia: Tokyo, Beijing, Mumbai, Jeddah, Aden Africa:...

कक्षा 12 भूगोल की प्रैक्टिकल फाइल कैसे तैयार करें? How to prepare practical file for class 12 geography?

कक्षा 12 भूगोल की प्रैक्टिकल फाइल कैसे तैयार करें? How to prepare practical file for class 12 geography? कक्षा 12 भूगोल की प्रैक्टिकल फाइल कैसे तैयार करें? Chapter 1 आंकड़े – स्रोत और संकलन (Hindi Medium) Chapter 2 आंकड़ों का प्रक्रमण (Hindi Medium) Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण (Hindi Medium) Chapter 4 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी (Hindi Medium) How to prepare practical file for class 12 geography? Chapter 1 Data – Its Source and Compilation (English Medium) Chapter 2 Data Processing (English Medium) Chapter 3 Graphical Representation of Data (English Medium) Chapter 4 Spatial Information Technology (English Medium) Click Below for Class 12th Geography Practical Paper - Important Question Class 12 Geography Practical Sample Paper Related Video कक्षा 12 भूगोल की प्रैक्टिकल फाइल कैसे तैयार करें? How to prepare practical file for class 12 geography? Click Below for How to prepare class 11th Geography Practical file (English Medium) You Can Also Visit  Class 9 Social Science Chapter Wi...

5000+ Geography Questions

Class 9 Geography Maps, Class 11Geography Maps

Visit and Subscribe My YouTube Channel  " Ultimate Geography " Follow me on Facebook  " Abhimanyu Dahiya "   Join My Telegram Group " Ultimate Geography "    Save  💦 Water  , Save Environment,  Save  Earth, Save Life. 💦 जल  है तो कल है।  💦 जल  ही जीवन है। You Can Also Visit  Do You Know Search Me Online Using Keywords  #Abhimanyusir #AbhimanyuDahiya #UltimateGeography Abhimanyu Sir Abhimanyu Dahiya Ultimate Geography