इकाई I
अध्याय 1
जनसंख्या वितरण, घनत्व, वृद्धि और संघटन
लोग किसी देश के अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। भारत अपनी 121.0 करो\ड़ (2011) जनसंख्या के साथ चीन के बाद विश्व में दूसरा सघनतम बसा हुआ देश है। भारत की जनसंख्या उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और आस्ट्रेलिया की मिलाकर कुल जनसंख्या से भी अधिक है। प्रायः यह तर्क दिया जाता है कि इतनी ब\ड़ी जनसंख्या निश्चित तौर पर इसके सीमित संसाधनों पर दबाव डालती है और देश में अनेक सामाजिक, आर्थिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी हैं।
भारत के विचार से आपको क्या अनुभूति होती है? क्या यह केवल एक क्षेत्र है? क्या यह लोगों के सम्मिश्रण को प्रकट करता है? क्या यह शासन की निश्चित संस्थाओं के नियंत्रण में रह रहे लोगों से बसा हुआ एक क्षेत्र है?
जनसंख्या आँकड़ों के स्रोत
हमारे देश में जनसंख्या के आँक\ड़ों को प्रति दस वर्ष बाद होने वाली जनगणना द्वारा एकत्रित किया जाता है। भारत की पहली जनगणना 1872 ई. में हुई थी किंतु पहली संपूर्ण जनगणना 1881 ई. में संपन्न हुई थी।
जनसंख्या का वितरण
चित्र 1.1 का परीक्षण कीजिए और इस पर दर्शाए गए जनसंख्या के स्थानिक वितरण के प्रतिरूपों के वर्णन करने का प्रयास कीजिए। यह स्पष्ट है कि भारत में जनसंख्या के वितरण का प्रतिरूप अत्यधिक असम है। देश में राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों का जनसंख्या में प्रतिशत अंश (परिशिष्ट क) दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या सर्वाधिक है, इसके पश्चात महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल का स्थान है।
चित्र 1.1: भारत - जनसंख्या का वितरण
परिशिष्ट क में दिए गए आँक\ड़ों को देखते हुए भारत के राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को उनके आकार और जनसंख्या की दृष्टि से व्यवस्थित कीजिए और पता लगाइए:
विशाल आकार और विशाल जनसंख्या वाले राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश
विशाल आकार किंतु लघु जनसंख्या वाले राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश
अपेक्षाकृत लघु आकार और विशाल जनसंख्या वाले राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश
तालिका परिशिष्ट (क) से जाँच कीजिए कि तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और गुजरात के साथ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश की जनसंख्या मिलकर देश की कुल जनसंख्या का 76 प्रतिशत भाग है। दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर (1.04%), अरुणाचल प्रदेश (0.84%) और उत्तराखण्ड (0.83%) जैसे राज्यों की जनसंख्या का आकार इनके विशाल भौगोलिक क्षेत्र के बावजूद अत्यंत छोटा है।
भारत में जनसंख्या का एेसा असम स्थानिक वितरण देश की जनसंख्या और भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा एेतिहासिक कारकों के बीच घनिष्ठ संबंध प्रकट करता है। जहाँ तक भौतिक कारकों का संबंध है, यह स्पष्ट है कि भू-विन्यास और जल की उपलब्धता के साथ जलवायु प्रमुख रूप से वितरण के प्रतिरूपों का निर्धारण करती हैं। परिणामस्वरूप हम देखते हैं कि उत्तर भारत के मैदानों, डेल्टाओं और तटीय मैदानों में जनसंख्या का अनुपात दक्षिणी और मध्य भारत के राज्यों के आंतरिक \ज़िलों, हिमालय, उत्तर-पूर्वी और पश्चिमी कुछ राज्यों की अपेक्षा उच्चतर है। फिर भी, सिंचाई के विकास (राजस्थान), खनिज एवं ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता (झारखंड) और परिवहन जाल के विकास (प्रायद्वीपीय राज्यों) के परिणामस्वरूप उन क्षेत्रों में जो पहले विरल जनसंख्या क्षेत्र थे वे अब जनसंख्या के मध्यम् से उच्च संकेन्द्रण के क्षेत्र हो गए हैं।
जनसंख्या वितरण के सामाजिक, आर्थिक और एेतिहासिक कारकों में से महत्त्वपूर्ण कारक स्थायी कृषि का उद्भव और कृषि विकास, मानव बस्ती के प्रतिरूप, परिवहन जाल-तंत्र का विकास, औद्योगीकरण और नगरीकरण हैं। एेसा देखा गया है कि भारत के नदीय मैदानों और तटीय क्षेत्रों में स्थित प्रदेश सदैव ही विशाल जनसंख्या सांद्रण वाले प्रदेश रहे हैं। यद्यपि इन प्रदेशों में \ज़मीन और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों में, उपयोग के कारण निम्नीकरण हुआ है, फिर भी मानव बस्ती के आरंभिक इतिहास और परिवहन जाल-तंत्र के विकास के कारण जनसंख्या का सांद्रण उच्च बना हुआ है। दूसरी ओर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूरु, पुणे, अहमदाबाद, चेन्नई और जयपुर के नगरीय क्षेत्र औद्योगिक विकास और नगरीकरण के कारण ब\ड़ी संख्या में ग्रामीण-नगरीय प्रवासियों को आकर्षित कर रहे हैं। इसलिए इन क्षेत्रों में जनसंख्या का उच्च सांद्रण पाया जाता है।
जनसंख्या का घनत्व
जनसंख्या के घनत्व को प्रति इकाई क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है।
परिशिष्ट (क) में दर्शाए गए आँक\ड़े देश में जनसंख्या घनत्वों की स्थानिक भिन्नता का आभास कराते हैं जो अरुणाचल प्रदेश में कम से कम 17 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. से लेकर दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 11297 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. तक है। उत्तरी भारत के राज्यों बिहार (1102), पश्चिम बंगाल (1029) तथा उत्तर प्रदेश (829) में जनसंख्या घनत्व उच्चतर है जबकि प्रायद्वीपीय भारत के राज्यों में केरल (859) और तमिलनाडु (555) में उच्चतर घनत्व पाया जाता है। असम, गुजरात, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, ओडिशा में मध्यम घनत्व पाया जाता है। हिमालय प्रदेश के पर्वतीय राज्यों और असम को छो\ड़कर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अपेक्षाकृत निम्न घनत्व हैं जबकि अंडमान और निकोबार द्वीपों को छो\ड़कर केंद्र-शासित प्रदेशों में जनसंख्या के उच्च घनत्व पाए जाते हैं ।
जनसंख्या का घनत्व, जैसा कि पहले के अनुच्छेदों में चर्चा की जा चुकी है, एक अशोधित माप है।
चित्र 1.2: भारत - जनसंख्या का घनत्व
परिशिष्ट 1 (ख) में दिए गए आँक\ड़ों की सहायता से भारत के राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों की कायिक और कृषीय घनत्वों का परिकलन कीजिए। इनकी तुलना जनसंख्या घनत्व से कीजिए और देखिए कि ये कैसे भिन्न हैं?
जनसंख्या की वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि दो समय बिंदुओं के बीच किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों की संख्या में परिवर्तन को कहते हैं। इसकी दर को प्रतिशत में अभिव्यक्त किया जाता है। जनसंख्या वृद्धि के दो घटक होते हैं, जिनके नाम हैं–प्राकृतिक (Natural) और अभिप्रेरित (Induced) । जबकि प्राकृतिक वृद्धि का विश्लेषण अशोधित जन्म और मृत्यु दरों से निर्धारित किया जाता है, अभिप्रेरित घटकों को किसी दिए गए क्षेत्र में लोगों के अंतर्वर्ती और बहिर्वर्ती संचलन की प्रबलता द्वारा स्पष्ट किया जाता है। फिर भी, इस अध्याय में हम भारत की जनसंख्या की केवल प्राकृतिक वृद्धि की विवेचना करेंगे।
भारत की जनसंख्या के दोनों दशकीय और वार्षिक वृद्धि दर बहुत ऊँचे हैं और समय के साथ नित्य ब\ढ़ रहे हैं। भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1.64 प्रतिशत है।
जनसंख्या के दुगुना होने का समय
जनसंख्या के दुगुना होने का समय वर्तमान वार्षिक वृद्धि दर पर किसी भी जनसंख्या के दुगुना होने में लगने वाला समय है।
विगत एक शताब्दी में भारत में जनसंख्या की वृद्धि, वार्षिक जन्म दर और मृत्यु दर तथा प्रवास की दर के कारण हुई है और इसलिए यह वृद्धि विभिन्न प्रवृत्तियों को दर्शाती है। इस अवधि में वृद्धि की चार सुस्पष्ट प्रावस्थाओं को पहचाना गया है:
चित्र 1.3: भारत - जनसंख्या वृद्धि
प्रावस्था क: 1901 से 1921 की अवधि को भारत की जनसंख्या की वृद्धि की रूद्ध अथवा स्थिर प्रावस्था कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में वृद्धि दर अत्यंत निम्न थी, यहाँ तक कि 1911- 1921 के दौरान ऋणात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ऊँचे थे जिससे वृद्धि दर निम्न बनी रही (परिशिष्ट 1 ग)। निम्न स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएँ, अधिकतर लोगों की निरक्षरता, भोजन और अन्य आधारभूत आवश्यकताओं का अपर्याप्त वितरण इस अवधि में मोटे तौर पर उच्च जन्म और मृत्यु दरों के लिए उत्तरदायी थे।
प्रावस्था ख: 1921-1951 के दशकों को जनसंख्या की स्थिर वृद्धि की अवधि के रूप में जाना जाता है। देश-भर में स्वास्थ्य और स्वच्छता में व्यापक सुधारों ने मृत्यु दर को नीचे ला दिया। साथ ही साथ बेहतर परिवहन और संचार तंत्र से वितरण प्रणाली में सुधार हुआ। फलस्वरूप अशोधित जन्म दर ऊँची बनी रही जिससे पिछली प्रावस्था की तुलना में वृद्धि दर उच्चतर हुई। 1920 के दशक की महान आर्थिक मंदी और द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में यह वृद्धि दर प्रभावशाली थी।
प्रावस्था ग: 1951-81 के दशकों को भारत में जनसंख्या विस्फोट की अवधि के रूप में जाना जाता है। यह देश में मृत्यु दर में तीव्र ह्रास और जनसंख्या की उच्च प्रजनन दर के कारण हुआ। औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत तक ऊँची रही। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यही वह अवधि थी जिसमें एक केंद्रीकृत नियोजन प्रक्रिया के माध्यम से विकासात्मक कार्यों को आरंभ किया गया। अर्थव्यवस्था सुधरने लगी जिससे अधिकांश लोगों के जीवन की दशाओं में सुधार सुनिश्चित हुआ। परिणामस्वरूप जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि उच्च और वृद्धि दर उच्चतर हुई। इन सबके अतिरिक्त तिब्बतियों, बांग्लादेशियों, नेपालियों को देश में लाने वाले ब\ढ़ते अंतर्राष्ट्रीय प्रवास और यहाँ तक कि पाकिस्तान से आने वाले लोगों ने भी उच्च वृद्धि दर में योगदान दिया।
प्रावस्था घ: 1981 के पश्चात् वर्तमान तक देश की जनसंख्या की वृद्धि दर, यद्यपि ऊँची बनी रही, परंतु धीरे-धीरे मंद गति से घटने लगी (तालिका 1.1) एेसी जनसंख्या वृद्धि के लिए अशोधित जन्म दर की अधोमुखी प्रवृत्ति को उत्तरदायी माना जाता है। बदले में यह देश में विवाह के समय औसत आयु में वृद्धि जीवन की गुणवत्ता विशेष रूप से स्त्री शिक्षा में सुधार से प्रभावित हुई।
देश में जनसंख्या की वृद्धि दर अभी भी ऊँची है और विश्व विकास रिपोर्ट द्वारा यह प्रक्षेपित किया गया है कि 2025 ई. तक भारत की जनसंख्या 135 करो\ड़ को स्पर्श करेगी।
अब तक किया गया विश्लेषण औसत वृद्धि दर को दर्शाता है, किंतु देश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वृद्धि दर में विस्तृत भिन्नताएँ पाई जाती हैं (परिशिष्ट 1 घ), जिसकी विवेचना नीचे की गई है।
जनसंख्या वृद्धि में क्षेत्रीय भिन्नताएँ
1991-2001 के दौरान भारत के राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में जनसंख्या की वृद्धि दर सुस्पष्ट प्रतिरूप दर्शाती है।
केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पुदुच्चेरी और गोआ जैसे राज्यों में निम्न वृद्धि दर पाई जाती है जो दशक में 20 प्रतिशत से अधिक नहीं हुई। केरल (9.4) में न केवल इस वर्ग के राज्यों में बल्कि पूरे देश में भी निम्नतम वृद्धि दर दर्ज की गई है।
देश के उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी और उत्तर-मध्य भागों में पश्चिम से पूर्व स्थित राज्यों की एक सतत पेटी में दक्षिणी राज्यों की अपेक्षा उच्च वृद्धि दर पाई जाती है। इस पेटी के राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, सिक्किम, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसग\ढ़ और झारखंड में औसत वृद्धि दर 20-25 प्रतिशत रही।
वर्ष 2001-2011 के दौरान सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पिछले दशक (1991-2001) की तुलना में जनसंख्या वृद्धि-दर धीमी रही है। छः सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी 1991-2001 की तुलना में 2001-2011 में दशकीय वृद्धि दर (% में) कम रही है। आंध्र प्रदेश में सबसे कम (3.5%) तक महाराष्ट्र में सर्वाधिक (6.7%) गिरावट थी। तमिलनाडु (3.9%) तथा पुदुच्चेरी (7.1%) पिछले दशक की तुलना में 2001-2011 में कुछ वृद्धि दर्ज की गई है।
परिशिष्ट क तथा क (i) में दिए गए आंक\ड़ों के आधार पर वर्ष 1991-2001। तथा 2001-2011 में सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर की तुलना करें।
एक ओर उत्तर-पूर्वी राज्यों और दूसरी ओर कुछ केंद्र-शासित प्रदेशों (पुडुच्चेरी, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को छो\ड़कर) में अति उच्च वृद्धि दरें क्यों पाई जाती हैं?
अपने-अपने राज्य के (चुने हुए \ज़िलों के कुल पुरुष और स्त्री जनसंख्या से संबंधित जनसंख्या वृद्धि दर के आँक\ड़ों को लीजिए और उन्हें संयुक्त दंड आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए।
भारत में जनसंख्या वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष इसके किशोरों की वृद्धि है। वर्तमान में किशोरों अर्थात् 10-19 वर्ष का आयु वर्ग का अंश 20.9 प्रतिशत है (2011), जिसमें 52.7 प्रतिशत किशोर और 47.3 प्रतिशत किशोरियाँ सम्मिलित हैं। किशोर जनसंख्या, यद्यपि उच्च संभावनाओं से युक्त युवा जनसंख्या समझी जाती है, यदि उन्हें समुचित ढंग से मार्गदर्शित और दिशा निर्देशित न किया जाए तो वे का\फ़ी सुभेद्य (Vulnerable) भी होते हैं। जहाँ तक इन किशोरों का संबंध है समाज के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं जिनमें से कुछ विवाह की निम्न आयु, निरक्षरता, विशेषतः स्त्री निरक्षरता, विद्यालय विरतछात्र (school dropout), पोषकों की निम्न ग्राह्यता, किशोरी माताओं में उच्च मातृ मृत्यु दर, एच.आई.वी./एड्स के संक्रमण की उच्च दरें, शारीरिक और मानसिक अपंगता अथवा मंदता, औषध दुरुपयोग और मदिरा सेवन किशोर अपचार और अपराध करना इत्यादि हैं।
इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने किशोर वर्गों को उपयुक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए कुछ निश्चित नीतियाँ बनाई हैं ताकि उनके गुणों का बेहतर मार्गदर्शन और उपयुक्त उपयोग किया जा सके। राष्ट्रीय युवा नीति एक एेसा उदाहरण है जिसे हमारी विशाल, युवा और किशोर जनसंख्या के समग्र विकास की देखरेख हेतु अभिकल्पित किया गया है।
राष्ट्रीय युवा नीति (NYP–2014) \फ़रवरी 2014 में आरंभ की गई है जो भारत के युवाओं के लिए एक समग्र दूरदर्शी प्रस्ताव रखती है। "देश के युवाओं को अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए सक्षम बनाना और उनके द्वारा भारत को राष्ट्रों के समूह में अपना उचित स्थान प्राप्त करने में सक्षम बनाना है।" राष्ट्रीय युवा नीति 2014, 15-29 वर्ष के आयु समूह के व्यक्ति को ‘युवा’ के रूप में परिभाषित करती है।
भारत सरकार ने 2015 में कौशल विकास तथा उद्यमिता के लिए नीति बनाई है, जिसका उद्देश्य देश भर में हो रही कौशल से संबंधित गतिविधियों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना है, साथ ही साथ इन सभी गतिविधियों को एक मानक के साथ बाँधना तथा विभिन्न कौशलों को इनके भाग-केंद्रों के साथ जो\ड़ना है।
ऊपर की गई विवेचना से एेसा प्रतीत होता है कि देश में दिक् और काल के संदर्भ में जनसंख्या की वृद्धि दर में व्यापक भिन्नता पाई जाती है जो जनसंख्या की वृद्धि से संबंधित अनेक सामाजिक समस्याओं को उजागर करती है। फिर भी जनसंख्या के वृद्धि प्रतिरूपों की बेहतर अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि जनसंख्या के सामाजिक संघटन की पड़ताल की जाए।
जनसंख्या संघटन
जनसंख्या संघटन, जनसंख्या भूगोल के अंतर्गत अध्ययन का एक सुस्पष्ट क्षेत्र है जिसमें आयु व लिंग का विश्लेषण, निवास का स्थान, मानवजातीय लक्षण, जनजातियाँ, भाषा, धर्म, वैवाहिक स्थिति, साक्षरता और शिक्षा, व्यावसायिक विशेषताएँ आदि का अध्ययन किया जाता है। इस खंड में ग्रामीण-नगरीय विशेषताओं, भाषा, धर्म और व्यवसाय के प्रतिरूपों के संदर्भ में भारत की जनसंख्या के संघटन की विवेचना की जाएगी।
ग्रामीण-नगरीय संघटन
अपने अपने निवास के स्थानों के अनुसार जनसंख्या का संघटन सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है।
जब देश की कुलजनसंख्या का 68.8 प्रतिशत भाग गाँवों में रहता हो तब यह और भी सार्थक हो जाता है (जनगणना 2011)।
परिशिष्ट घ तथा घ1 में दिए गए आँक\ड़ों का प्रयोग करते हुए भारत के राज्यों की ग्रामीण जनसंख्या के प्रतिशतों की तुलना कीजिए और उन्हें मानचित्र कलात्मक विधि द्वारा भारत के मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए।
क्या आप जानते हैं कि सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 6,40,867 गाँव हैं जिनमें से 5,97,608 (93.2 प्रतिशत) गाँव बसे हुए हैं? फिर भीपूरे देश में ग्रामीण जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। आपने ध्यान दिया होगा कि बिहार और सिक्किम जैसे राज्यों में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशतबहुत अधिक है। गोआ और महाराष्ट्र राज्यों की कुल जनसंख्या का आधे से कुछ अधिक भाग गाँवों में बसता है।
दूसरी ओर दादरा और नगर हवेली (53.38 प्रतिशत) को छो\ड़कर केंद्र-शासित प्रदेशों का लघु अनुपात ही ग्रामीण जनसंख्या का है। गाँवों का आकारभी का\फ़ी हद तक भिन्न है। उत्तर-पूर्वी भारत के पहा\ड़ी राज्यों, पश्चिमी राजस्थान और कच्छ के रन में यह 200 व्यक्तियों से कम और केरल व महाराष्ट्र के कुछ भागों में यह 17,000 व्यक्ति तक पाया जाता है। भारत की ग्रामीण जनसंख्या के वितरण के प्रतिरूप का संपूर्ण परीक्षण उजागर करता है कि अंतर-राज्य और अंतःराज्य दोनाें स्तरों पर नगरीकरण का सापेक्षिक परिमाण और ग्रामीण-नगरीय प्रवास का विस्तार ग्रामीण जनसंख्या के सांद्रण को नियंत्रित करते हैं।
आपने देखा होगा कि ग्रामीण जनसंख्या के विपरीत भारत में नगरीय जनसंख्या का अनुपात (31.16 प्रतिशत) का\फ़ी निम्न है किंतु पिछले दशकों में यह वृद्धि की बहुत तीव्र दर को दर्शा रहा है। नगरीय जनसंख्या की वृद्धि दर संवृद्ध आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबंधी दशाओं में सुधार के कारण तेजी से बढ़ी है।
परिशिष्ट घ तथा घ 1 के आँक\ड़ों को देखिए नगरीय जनसंख्या के अत्यंत उच्च और अत्यंत निम्न अनुपात वाले राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों की पहचान कीजिए।
फिर भी एेसा देखा गया है कि लगभग सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में नगरीय जनसंख्या का\फ़ी ब\ढ़ी है। यह सामाजिक, आर्थिक दशाओं के संदर्भ में नगरीय क्षेत्रों के विकास और ग्रामीण-नगरीय प्रवास की ब\ढ़ी हुई दर दोनों को इंगित करता है। उत्तरी भारत के मैदानों में मुख्य स\ड़कोंके मिलन बिंदुओं और रेलमार्गों से सटे हुए नगरीय क्षेत्रों, कोलकाता, मुंबई, बेंगलूरु-मैसूरु, मदुरै-कोयम्बटूर, अहमदाबाद-सूरत, दिल्ली, कानपुर औरलुधियाना-जालंधर में ग्रामीण-नगरीय प्रवास सुस्पष्ट है। कृषि की दृष्टि से प्रगतिरुद्ध मध्य और निम्न गंगा के मैदानों, तेलंगाना, असिंचित पश्चिमीराजस्थान, उत्तर-पूर्व के दूर-दराज के पहा\ड़ी और जनजातीय क्षेत्रों, प्रायद्वीपीय भारत के बा\ढ़ संभावित क्षेत्रों और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग मेंनगरीकरण का स्तर निम्न रहा है।
भाषाई संघटन
भारत एक भाषाई विविधता की भूमि है। ग्रियर्सन के अनुसार (भारत का भाषाई सर्वेक्षण, 1903-1928) देश में 179 भाषाएँ और 544 के लगभग बोलियाँ थीं। आधुनिक भारत के संदर्भ में 22 भाषाएँ अनुसूचित हैं और अनेक भाषाएँ गैर-अनुसूचित हैं।
देखिए! दस रुपये के नोट पर कितनी भाषाएँ छपी हुई हैं?
भाषाई वर्गीकरण
प्रमुख भारतीय भाषाओं के बोलने वाले चार भाषा परिवारों से जु\ड़े हुए हैं जिनके उप-परिवार, शाखाएँ अथवा वर्ग हैं, इसे तालिका 1.2 से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
तालिका 1.2 को देखिए और प्रत्येक भाषाई वर्ग का अंश दिखाते हुए भारत के भाषाई संघटन का एक वृत्तारेख तैयार कीजिए।
अथवा
देश के विभिन्न भाषाई वर्गों के वितरण को दर्शाने वाला भारत का एक गुणात्मक प्रतीक मानचित्र बनाइए।
धर्म और भू-दृश्य
भूदृश्य पर धर्मों की औपचारिक अभिव्यक्ति पवित्र संरचनाओं, कब्रिस्तान के उपयोग और पौधों और प्राणियों के समुच्चय, धार्मिक उद्देश्यों केलिए वृक्षों के निकुंजों के माध्यम से प्रकट होती है। पवित्र संरचनाएँ पूरे देश में व्यापक रूप में वितरित हैं। ये अस्पष्ट ग्रामीण समाधियों से लेकरविशाल हिंदू मंदिरों, स्मरणार्थ मस्जिदों अथवा महानगरों में शोभायमान ढंग से अभिकल्पित ब\ड़े गिरिजाघरों तक हो सकती हैं। क्षेत्र के संपूर्ण भू-दृश्य को एक विशेष आयाम प्रदान करते हुए इन मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, मठों और गिरिजाघरों के आकार-प्रकार, स्थान-प्रयोग और संख्या में भिन्नता पाई जाती है।
धार्मिक संघटन
धर्म सर्वाधिक भारतीयों के सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित करने वाले प्रमुख बलों में से एक है। क्योंकि धर्म लोगों के परिवार और सामुदायिक जीवन के लगभग सभी पक्षों में आभासी रूप से व्याप्त होता है, यह महत्त्वपूर्ण है कि धार्मिक संघटन का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया जाए।
देश में धार्मिक समुदायों का स्थानिक वितरण (परिशिष्ट 1 ङ) दर्शाता है कि कुछ निश्चित राज्यों और \ज़िलों में एक धर्म की संख्यात्मक प्रबलता विशाल है, जबकि उसी का दूसरे राज्यों में प्रतिनिधित्व नगण्य है।
भारत-बांग्लादेश सीमा व भारत-पाक सीमा से संलग्न \ज़िलों, जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व के पर्वतीय राज्यों और दक्कन पठार व गंगा के मैदान के प्रकीर्ण क्षेत्रों को छो\ड़कर हिंदू अनेक राज्यों में एक प्रमुख समूह के रूप में वितरित हैं (70 से 90 प्रतिशत तक और उससे अधिक)।
विशालतम धार्मिक अल्पसंख्यक मुस्लिम जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल और केरल के कुछ \ज़िलों, उत्तर प्रदेश के अनेक \ज़िलों, दिल्ली में व उसके आस पास और लक्षद्वीप में सांद्रित हैं।
ईसाई जनसंख्या अधिकांशतः देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वितरित हैं। मुख्य सांद्रण पश्चिमी तट के साथ गोआ एवं केरल और मेघालय, मिजोरम और नागालैंड के पहा\ड़ी राज्यों, छोटानागपुर क्षेत्र और मणिपुर की पहा\ड़ियों में भी देखा जाता है।
अधिकांश सिक्ख देश के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में संकेंद्रित हैं।
भारत के सबसे छोटे धार्मिक समूह जैन और बौद्ध देश के गिने-चुने क्षेत्रों में संकेंद्रित हैं। जैनियों का प्रमुख संकेंद्रण राजस्थान के नगरीय क्षेत्रों, गुजरात और महाराष्ट्र में है जबकि बौद्ध अधिकांशतः महाराष्ट्र में संकेंद्रित हैं। बौद्ध बाहुल्य अन्य क्षेत्र सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में लद्दाख, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश में लाहुल और स्पिति हैं।
भारत के अन्य धर्मों में जरतुश्त, जनजातीय एवं अन्य देशज निष्ठाएँ और विश्वास सम्मिलित हैं। ये समूह छोटे समूहों में संकेंद्रित हैं और देश-भर में बिखरे हुए हैं।
श्रमजीवी जनसंख्या का संघटन
आर्थिक स्तर की दृष्टि से भारत की जनसंख्या को तीन वर्गों में बाँटा जाता है, जिनके नाम हैं–मुख्य श्रमिक, सीमांत श्रमिक और अश्रमिक (देखिए बॉक्स)।
मानक जनगणना परिभाषा
मुख्य श्रमिक वह व्यक्ति है जो एक वर्ष में कम से कम 183 दिन (या छः महीने) काम करता है।
सीमांत श्रमिक वह व्यक्ति है जो एक वर्ष में 183 दिनों (या छः महीने) से कम दिन काम करता है।
एेसा देखा गया है कि भारत में श्रमिकों (दोनों मुख्य और सीमांत) का अनुपात (2011) 39.8 प्रतिशत है जबकि 60 प्रतिशत की विशाल संख्या अश्रमिकों की है। यह एक आर्थिक स्तर को इंगित करता है जिसमें एक ब\ड़ा अनुपात आश्रित जनसंख्या का है, जो आगे, बेरो\ज़गार और अल्प रो\ज़गार प्राप्त लोगों की ब\ड़ी संख्या के होने की संभावना की ओर इशारा करता है।
श्रम की प्रतिभागिता दर क्या होती है?
राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों श्रमजीवी जनसंख्या का अनुपात गोआ में लगभग 39.6 प्रतिशत, दमन एवं दियु में लगभग 49.9 प्रतिशत सामान्य भिन्नता दर्शाता है। श्रमिकों के अपेक्षाकृत अधिक प्रतिशत वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, छत्तीसग\ढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मेघालय हैं। केंद्र-शासित प्रदेशों में दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव की प्रतिभागिता दर ऊँची है। भारत जैसे देश के संदर्भ में एेसा समझा जाता है कि आर्थिक विकास के निम्न स्तरों वाले क्षेत्रों में श्रम की सहभागिता दर ऊँची है क्योंकि निर्वाह अथवा लगभग निर्वाह की आर्थिक क्रियाओं के निष्पादन के लिए अनेक कामगारों की ज़रूरत पड़ती है।
"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" सामाजिक अभियान के द्वारा जेंडर के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा
समाज का विभाजन पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर में प्राकृतिक और जैविक रूप से माना जाता है। लेकिन वास्तव में समाज सब के लिए अलग-अलग भूमिका निर्धारित करता है और ये भूमिकाएँ फिर से सामाजिक संस्थाओं द्वारा सुदृ\ढ़ कर दी जाती हैं। जिसके फलस्वरूप ये जैविक विभिन्नताएँ सामाजिक भेदभाव, अलगाव तथा बहिष्कार का आधार बन जाती हैं।
आधी से \ज़्यादा जनसंख्या का बहिष्करण किसी भी विकासशील और सभ्य समाज के लिए एक गंभीर समस्या है। यह
एक वैश्विक चुनौती है जिसको संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने संज्ञान में लिया है। यू.एन.डी.पी. के अनुसार यदि विकास में सभी जेंडर सम्मिलित नहीं हैं तो
एेसा विकास लुप्तप्राय है (HDR UNDP 1995)। सामान्य जन में किसी भी प्रकार का भेदभाव और विशेष रूप से जेंडर के आधार पर भेदभाव, मानवता के प्रति एक अपराध है। इसलिए सभी के लिए शिक्षा, रो\ज़गार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर, समान कार्य के लिए एक वेतन, स्वाभिमान के साथ जीवन जीने का अवसर सभी को मिले, इसके लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। जो समाज इन सभी भेदभाव तथा बुराइयों को दूर करने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाता है, वह एक सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। भारत सरकार ने इन सभी को संज्ञान में लेते हुए तथा भेदभाव से होने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर "बेटी बचाओ बेटी प\ढ़ाओ" सामाजिक अभियान चलाया है।
भारत की जनसंख्या का व्यावसायिक संघटन (देखें बॉक्स) (जिसका वास्तव में अर्थ किसी व्यक्ति के खेती, विनिर्माण व्यापार, सेवाओं अथवा किसी भी प्रकार की व्यावसायिक क्रियाओं में लगे होने से है) द्वितीयक और तृतीयक सेक्टरों की तुलना में प्राथमिक सेक्टर के श्रमिकों के एक ब\ड़े अनुपात को दर्शाता है। कुल श्रमजीवी जनसंख्या का लगभग 54.6 प्रतिशत कृषक और कृषि म\ज़दूर हैं जबकि केवल 3.8 प्रतिशत श्रमिक घरेलू उद्योगों में लगे हैंऔर 41.6 प्रतिशत अन्य श्रमिक हैं जो गैर-घरेलू उद्योगों, व्यापार, वाणिज्य, विनिर्माण और मरम्मत तथा अन्य सेवाओं में कार्यरत हैं। जहाँ तक देश की पुरुष और स्त्री जनसंख्या के व्यवसाय का प्रश्न है पुरुष श्रमिकों की संख्या स्त्री श्रमिकों की संख्या से तीनों सेक्टरों में अधिक है (तालिका 1.4 और चित्र 1.4)।
व्यावसायिक संवर्ग
सन् 2011 की जनगणना ने भारत की श्रमजीवी जनसंख्या को चार प्रमुख संवर्गों में बाँटा है:
1. कृषक
2. कृषि म\ज़दूर
3. घरेलू औद्योगिक श्रमिक
4. अन्य श्रमिक
महिला श्रमिकों की संख्या प्राथमिक सेक्टर में अपेक्षाकृत अधिक है यद्यपि विगत कुछ वर्षों में महिलाओं की द्वितीयक और तृतीयक सेक्टरों की सहभागिता में सुधार हुआ है।
एक भारत का व दूसरा अपने-अपने राज्य के लिए कृषि, घरेलू उद्योगों तथा अन्य सेक्टरों में पुरुषों और स्त्रियों के अनुपात को दर्शाने वाला मिश्र दंड-आरेख तैयार कीजिए और तुलना कीजिए।
यह जानना आवश्यक है कि पिछले कुछ दशकों में भारत में कृषि सेक्टर के श्रमिकों के अनुपात में उतार दिखाई दिया है (2001 में 58.2% से 2011 में 54.6%)। परिणामस्वरूप, द्वितीयक और तृतीयक सेक्टर में सहभागिता दर ब\ढ़ी है यह श्रमिकों की खेत-आधारित रो\ज़गारों पर निर्भरता से गैर-खेत आधारित रो\ज़गारों पर निर्भरता को इंगित करता है। यह देश की अर्थव्यवस्था में सेक्टरीय स्थानांतरण है।
देश के विभिन्न सेक्टरों में श्रम सहभागिता दर की स्थानिक भिन्नता है (परिशिष्ट 1 च) उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्यों मेंकृषकों की संख्या बहुत अधिक है। दूसरी ओर बिहार, आंध्र प्रदेश, छत्तीसग\ढ़, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कृषि म\ज़दूरों की संख्या अधिक है। दिल्ली, चंडीग\ढ़ और पुडुच्चेरी जैसे अत्यधिक नगरीकृत क्षेत्रों में श्रमिकों का बहुत ब\ड़ा अनुपात अन्य सेवाओं में लगा हुआ है। यह न केवल सीमित कृषि भूमि की उपलब्धता को बल्कि बृहत् स्तर पर होने वाले नगरीकरण और औद्योगीकरण द्वारा गैर-कृषि सेक्टरों में और अधिक श्रमिकों की आवश्यकता को भी इंगित करता है।
अभ्यास
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।
(i) सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या निम्नलिखित में से कौन सी है?
(क) 102.8 करो\ड़ (ग) 328.7 करो\ड़
(ख) 318.2 करो\ड़ (घ) 121 करो\ड़
(ii) निम्नलिखित राज्यों में से किस एक में जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक है?
(क) पश्चिम बंगाल (ग) उत्तर प्रदेश
(ख) केरल (घ) पंजाब
(iii) सन् 2011 की जनगणना के अनुसार निम्नलिखित में से किस राज्य में नगरीय जनसंख्या का अनुपात सर्वाधिक है?
(क) तमिलनाडु (ग) केरल
(ख) महाराष्ट्र (घ) गोआ
(iv) निम्नलिखित में से कौन-सा एक समूह भारत में विशालतम भाषाई समूह है?
(क) चीनी-तिब्बती (ग) आस्ट्रिक
(ख) भारतीय-आर्य (घ) द्रवि\ड़
2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
(i) भारत के अत्यंत ऊष्ण एवं शुष्क तथा अत्यंत शीत व आर्द्र प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व निम्न है। इस कथन के दृष्टिकोण से जनसंख्या के वितरण में जलवायु की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
(ii) भारत के किन राज्यों में विशाल ग्रामीण जनसंख्या है? इतनी विशाल ग्रामीण जनसंख्या के लिए उत्तरदायी एक कारण को लिखिए।
(iii) भारत के कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की अपेक्षा श्रम सहभागिता ऊँची क्यों है?
(iv) "कृषि सेक्टर में भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक अंश संलग्न है।" स्पष्ट कीजिए।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) भारत में जनसंख्या के घनत्व के स्थानिक वितरण की विवेचना कीजिए।
(ii) भारत की जनसंख्या के व्यावसायिक संघटन का विवरण दीजिए।