अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
आप एक ‘तृतीयक क्रियाकलाप’ के रूप में ‘व्यापार’ शब्द से पहले ही परिचित हैं जो आप इस पुस्तक के अध्याय 7 में पढ़ चुके हैं। आप जानते हैं कि व्यापार का तात्पर्य वस्तुओं और सेवाओं के स्वैच्छिक आदान-प्रदान से होता है। व्यापार करने के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति/पक्ष बेचता है और दूसरा खरीदता है। कुछ स्थानों पर लोग वस्तुओं का विनिमय करते हैं। व्यापार दोनाें ही पक्षों के लिए समान रूप से लाभदायक होता है।
व्यापार दो स्तरों पर किया जा सकता है-अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को कहते हैं। राष्ट्रों को व्यापार करने की आवश्यकता उन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए होती है, जिन्हें या तो वे (देश) स्वयं उत्पादित नहीं कर सकते या जिन्हें वे अन्य स्थान से कम दामों में खरीद सकते हैं।
आदिम समाज में व्यापार का आरंभिक स्वरूप ‘विनिमय व्यवस्था’ था, जिसमें वस्तुओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था अर्थात् वस्तु के बदले में रुपये के स्थान पर वस्तु दी जाती थी। इस व्यवस्था में यदि आप एक कुम्हार होते और आपको एक नलसाज़ की आवश्यकता होती, तो आपको एक एेसा नलसाज़ ढूँढ़ना पड़ता, जिसे आप द्वारा बनाए हुए बर्तनों की आवश्यकता होती और आप उसकी नलसाज़ की सेवाओं के बदले अपने बर्तन देकर आदान-प्रदान कर सकते थे।
चित्र संख्या 9.1 : जॉन बीलमेला में वस्तुओं का आदान-प्रदान करती दो महिलाएँ
हर जनवरी में फसल कटाई की ऋतु के बाद गुवाहाटी से 35 कि.मी. दूर जागीरॅाड में जॉन बील मेला लगता है और संभवतः यह भारत का एकमात्र मेला है, जहाँ विनिमय व्यवस्था आज भी जीवित है। इस मेले के दौरान एक बड़े बाज़ार की व्यवस्था की जाती है और विभिन्न जनजातियों तथा समुदायों के लोग अपनी वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं।
रुपये अथवा मुद्रा के आगमन के साथ ही विनिमय व्यवस्था की कठिनाइयों को दूर कर लिया गया। पुराने समय में कागज़ी व धात्विक मुद्रा के आगमन से पहले उच्च नैजमान मूल्य वाली दुर्लभ वस्तुओं को मुद्रा के रूप में प्रयुक्त किया जाता था जैसे-चकमक पत्थर, आब्सीडियन, (आग्नेय काँच), काउरी शेल, चीते के पंजे, ह्वेल के दाँत, कुत्ते के दाँत, खालें, बाल (फर), मवेशी, चावल, पैपरकार्न, नमक, छोटे यंत्र, ताँबा, चाँदी और स्वर्ण।
क्या आप जानते हैं कि ‘सैलेरी’ (Salary) शब्द लैटिन शब्द ‘सैलेरिअम’ (Salarium) से बना है, जिसका अर्थ है नमक के द्वारा भुगतान। क्योंकि उस समय समुद्र के जल से नमक बनाना ज्ञात नहीं था और इसे केवल खनिज नमक से बनाया जा सकता था, जो उस समय प्राय: दुर्लभ और खर्चीला था, यही वजह है कि यह भुगतान का एक माध्यम बना।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास
प्राचीन समय में, लंबी दूरियों तक वस्तुओं का परिवहन जोखिमपूर्ण होता था, इसलिए व्यापार स्थानीय बाज़ारों तक ही सीमित था। लोग तब अपने संसाधनों का अधिकांश भाग मूलभूत आवश्यकताओं-भोजन और वस्त्र पर खर्च करते थे। केवल धनी लोग ही आभूषण व महँगे परिधान खरीदते थे, और परिणामस्वरूप विलास की वस्तुओं का व्यापार आरंभ हुआ।
रेशम मार्ग लंबी दूरी के व्यापार का एक आरंभिक उदाहरण है, जो 6000 कि.मी. लंबे मार्ग के सहारे रोम को चीन से जोड़ता था। व्यापारी भारत, पर्शिया (ईरान) और मध्य एशिया के मध्यवर्ती स्थानों से चीन में बने रेशम, रोम की ऊन व बहुमूल्य धातुओं तथा अन्य अनेक महँगी वस्तुओं का परिवहन करते थे।
रोमन साम्राज्य के विखंडन के पश्चात् 12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान यूरोपीय वाणिज्य में वृद्धि हुई। समुद्रगामी युद्धपोतों के विकास के साथ ही यूरोप तथा एशिया के बीच व्यापार बढ़ा तथा अमेरिका की खोज हुई।
15वीं शताब्दी से ही यूरोपीय उपनिवेशवाद शुरू हुआ और विदेशी वस्तुओं के साथ व्यापार के साथ ही व्यापार के एक नए स्वरूप का उदय हुआ, जिसे ‘दास व्यापार’ कहा गया।
चित्रसंख्या 9.2 : दासों की नीलामी हेतु विज्ञापन, 1829
इस अमेरिकन ‘दास नीलामी’ ने दासों की बिक्री अथवा अस्थायी रूप से स्वामियों द्वारा किराये पर लेने हेतु विज्ञापन दिया। खरीदने वाले (क्रेता) प्राय: कुशल व स्वस्थ दास के लिए $2000 चुकाते थे। एेसी नीलामियों ने प्राय: परिवार के सदस्यों को एक दूसरे से अलग कर दिया, उनमें से बहुतों ने अपने प्रियजनों को दोबारा नहीं देखा।
पुर्तगालियों, डचों, स्पेनिश लोगों व अंग्रेज़ों ने अफ्रीकी मूल निवासियों को पकड़ा और उन्हें बलपूर्वक, बागानों में श्रम हेतु नए खोजे गए अमेरीका में परिवहित किया। दास व्यापार दो सौ वर्षों से भी अधिक समय तक एक लाभदायक व्यापार रहा जब तक कि यह 1792 में डेनमार्क में, 1807 में ग्रेट ब्रिटेन में और 1808 में संयुक्त राज्य में पूर्णरूपेण समाप्त नहीं कर दिया गया।
औद्योगिक क्रांति के पश्चात्, कच्चे माल जैसे-अनाज, मांस, ऊन की माँग भी बढ़ी, लेकिन विनिर्माण की वस्तुओं की तुलना में उनका मौद्रिक मूल्य घट गया।
औद्योगीकृत राष्ट्रों ने कच्चे माल के रूप में प्राथमिक उत्पादों का आयात किया और मूल्यपरक तैयार माल को वापस अनौद्योगीकृत राष्ट्रों को निर्यात कर दिया।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, प्राथमिक वस्तुओं का उत्पादन करने वाले प्रदेश अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं रहे और औद्योगिक राष्ट्र एक दूसरे के मुख्य ग्राहक बन गए।
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बार राष्ट्रों ने व्यापार कर और संख्यात्मक प्रतिबंध लगाए। विश्व युद्ध के बाद के समय के दौरान ‘व्यापार व शुल्क हेतु सामान्य समझौता’ (GATT) जैसे संस्थाओं ने (जो कि बाद में विश्व व्यापार संगठन WTO बना) शुल्क को घटाने में सहायता की।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अस्तित्व में क्यों है?
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण का परिणाम है। यह विश्व की अर्थव्यवस्था को लाभान्वित करता है, यदि विभिन्न राष्ट्र वस्तुओं के उत्पादन या सेवाओं की उपलब्धता में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण को प्रयोग में लाएँ। हर प्रकार का विशिष्टीकरण व्यापार को जन्म दे सकता है। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वस्तुओं और सेवाओं के तुलनात्मक लाभ, परिपूरकता व हस्तांतरणीयता के सिद्धांतों पर आधारित होता है और सिद्धांततः यह व्यापारिक भागीदारों को समान रूप से लाभदायक होना चाहिए।
आधुनिक समय में व्यापार, विश्व के आर्थिक संगठन का आधार है और यह राष्ट्रों की विदेश नीति से संबंधित है। सुविकसित परिवहन तथा संचार प्रणाली से युक्त कोई भी देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी से मिलने वाले लाभों को छोड़ने का इच्छुक नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार
(i) राष्ट्रीय संसाधनों में भिन्नता : भौतिक संरचना जैसे कि भूविज्ञान, उच्चावच, मृदा व जलवायु में भिन्नता के कारण विश्व के राष्ट्रीय संसाधन असमान रूप से विपरीत हैं।
(क) भौगोलिक संरचना खनिज संसाधन आधार को निर्धारित करती है और धरातलीय विभिन्नताएँ फसलों व पशुओं की विविधता सुनिश्चित करती हैं। निम्न भूमियों में कृषि-संभाव्यता अधिक होती है। पर्वत पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।
(ख) खनिज संसाधन संपूर्ण विश्व मे असमान रूप से वितरित हैं। खनिज संसाधनों की उपलब्धता औद्योगिक विकास का आधार प्रदान करती है।
(ग) जलवायु किसी दिए हुए क्षेत्र में जीवित रह जाने वाले पादप व वन्य जात के प्रकार को प्रभावित करती है। यह विभिन्न उत्पादों की विविधता को भी सुनिश्चित करती है, उदाहरणतः ऊन-उत्पादन ठंडे क्षेत्रों में ही हो सकता है; केला, रबड़ तथा कहवा उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ही उग सकते हैं।
(ii) जनसंख्या कारक : विभिन्न देशों में जनसंख्या के आकार, वितरण तथा उसकी विविधता व्यापार की गई वस्तुओं के प्रकार और मात्रा को प्रभावित करते हैं।
(क) सांस्कृतिक कारक : विशिष्ट संस्कृतियों में कला तथा हस्तशिल्प के विभिन्न रूप विकसित हुए हैं जिन्हें विश्व-भर में सराहा जाता है। उदाहरणस्वरूप चीन द्वारा उत्पादित उत्तम कोटि का पॉर्सलिन (चीनी मिट्टी का बर्तन) तथा ब्रोकेड (किमखाब-जरीदार या बूटेदार कपड़ा)। ईरान के कालीन प्रसिद्ध हैं, जबकि उत्तरी अफ्रीका का चमड़े का काम और इंडोनेशियाई बटिक (छींट वाला) वस्त्र बहुमूल्य हस्तशिल्प हैं।
(ख) जनसंख्या का आकार : सघन बसाव वाले देशों में आंतरिक व्यापार अधिक है जबकि बाह्रय व्यापार कम परिमाण वाला होता है, क्योंकि कृषीय और औद्योगिक उत्पादों का अधिकांश भाग स्थानीय बाज़ारों में ही खप जाता है। जनसंख्या का जीवन स्तर बेहतर गुणवत्ता वाले आयातित उत्पादों की माँग को निर्धारित करता है क्योंकि निम्न जीवन स्तर के साथ केवल कुछ लोग ही महँगी आयातित वस्तुएँ खरीद पाने में समर्थ होते हैं।
(iii) आर्थिक विकास की प्रावस्था : देशों के आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं में व्यापार की गई वस्तुओं का स्वभाव (प्रकार) परिवर्तित हो जाता है। कृषि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण देशों में, विनिर्माण की वस्तुओं के लिए कृषि उत्पादों का विनिमय किया जाता है, जबकि औद्योगिक राष्ट्र मशीनरी और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते हैं तथा खाद्यान्न तथा अन्य कच्चे पदार्थों का आयात करते हैं।
(iv) विदेशी निवेश की सीमा : विदेशी निवेश विकासशील देशों में व्यापार को बढ़ावा दे सकता है जिनके पास खनन, प्रवेधन द्वारा तेल-खनन, भारी अभियांत्रिकी, काठ कबाड़ तथा बागवानी कृषि के विकास के लिए आवश्यक पूँजी का अभाव है। विकासशील देशों में एेसे पूँजी प्रधान उद्योगों के विकास द्वारा औद्योगिक राष्ट्र खाद्य पदार्थों, खनिजों का आयात सुनिश्चित करते हैं तथा अपने निर्मित उत्पादों के लिए बाज़ार निर्मित करते हैं। यह संपूर्ण चक्र देशों के बीच में व्यापार के परिमाण को आगे बढ़ाता है।
(v) परिवहन : पुराने समय में परिवहन के पर्याप्त और समुचित साधनों का अभाव स्थानीय क्षेत्रों में व्यापार को प्रतिबंधित करता था। केवल उच्च मूल्य वाली वस्तुओं, जैसे-रत्न, रेशम तथा मसाले का लंबी दूरियों तक व्यापार किया जाता था। रेल, समुद्री तथा वायु परिवहन के विस्तार और प्रशीतन तथा परिरक्षण के बेहतर साधनों के साथ, व्यापार ने स्थानिक विस्तार का अनुभव किया है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्त्वपूर्ण पक्ष
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। ये हैं परिमाण, प्रखंडीय संयोजन और व्यापार की दिशा।
व्यापार का परिमाण
व्यापार की गई वस्तुओं का वास्तविक तौल परिमाण कहलाता है। हालाँकि व्यापारिक सेवाओं को तौल में नहीं मापा जा सकता। इसलिए व्यापार की गई वस्तुओं तथा सेवाओं के कुल मूल्य को व्यापार के परिमाण के रूप में जाना जाता है।
आप क्यां सोचते हैं कि पिछले दशकों में व्यापार का परिमाण बढ़ा है? क्या इन आँकड़ों की तुलना की जा सकती है? 1955 की तुलना में 2010 में कितनी वृद्धि हुई है?
व्यापार संयोजन
पिछली शताब्दी में, देशोें द्वारा आयातित तथा निर्यातित वस्तुओं और सेवाओं के प्रकार में परिवर्तन हुए हैं। पिछली शताब्दी के आरंभ में, प्राथमिक उत्पादों का व्यापार प्रधान था। बाद में, विनिर्मित वस्तुओं ने प्रमुखता प्राप्त कर ली और वर्तमान समय में यद्यपि विश्व व्यापार का अधिकांश विनिर्माण क्षेत्र के आधिपत्य में है, सेवा क्षेत्र जिसमें यात्रा, परिवहन तथा अन्य व्यावसायिक सेवाएँ सम्मिलित हैं, उपरिगामी प्रवृत्ति दर्शा रहा है। तालिका 9.1 दर्शाती है कि कुल व्यापारिक माल के आयात एवं निर्यात की मात्रा गत वर्षाें में अनुकूल रूप से बढ़ रही है।
चित्र 9.3 को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि 2005 से 2015 तक विश्व व्यापारिक निर्यात में विनिर्मित सब से अधिक योगदान करते हैं। इंधन और खनन उत्पाद तथा कृषि उत्पाद भी व्यापारिक निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
विश्व व्यापारिक व्यापार में महाद्वीपों की हिस्सेदारी मेें परिवर्तन है क्योंकि यूरोप का योगदान घट रहा है जबकि एशियाई देश के योगदान बढ़ रहे हैं।
व्यापार की दिशा
एेतिहासिक रूप से, वर्तमान कालिक विकासशील देश मूल्यपरक वस्तुओं तथा शिल्प आदि का निर्यात किया करते थे जो यूरोपीय देशों को निर्यात की जाती थी। 19वीं शताब्दी के दौरान व्यापार की दिशा में प्रत्यावर्तन हुआ। यूरोपीय देशों ने विनिर्माण वस्तुओं को अपने उपनिवेशों से खाद्य पदार्थ तथा कच्चे माल के बदले, निर्यात करना शुरू कर दिया। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व में बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में उभरे और विनिर्माण वस्तुओं के व्यापार में अग्रणी बने। उस समय जापान भी तीसरा महत्त्वपूूर्ण व्यापारिक देश था। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विश्व व्यापार की पद्धति में तीव्र परिवर्तन हुए। यूरोप के उपनिवेश समाप्त हो गए जबकि भारत, चीन और अन्य विकाशील देशों ने विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी। व्यापारित वस्तुओं की प्रकृति भी बदल गई।
व्यापार संतुलन
व्यापार संतुलन, एक देश के द्वारा अन्य देशों को आयात एवं इसी प्रकार निर्यात की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा (परिमाण) का प्रलेखन करता है। यदि आयात का मूल्य, देश के निर्यात मूल्य की अपेक्षा अधिक है तो देश का व्यापार संतुलन ऋणात्मक अथवा प्रतिकूल है। यदि निर्यात का मूल्य, आयात के मूल्य की तुलना में अधिक है तो देश का व्यापार संतुलन धनात्मक अथवा अनुकूल है।
एक देश की आर्थिकी के लिए व्यापार संतुलन एवं भुगतान संतुलन के गंभीर निहितार्थ होते हैं। एक ऋणात्मक संतुलन का अर्थ होगा कि देश वस्तुओं के क्रय पर उससे अधिक व्यय करता है जितना कि अपने सामानों के विक्रय से अर्जित करता है। यह अंतिम रूप में वित्तीय संचय की समाप्ति को अभिप्रेरित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :
(क) द्विपाशि्वक व्यापार : द्विपाशि्वक व्यापार दो देशों के द्वारा एक दूसरे के साथ किया जाता है। आपस में निर्दिष्ट वस्तुओ का व्यापार करने के लिए वे सहमति करते हैं। उदाहरणार्थ देश ‘क’ कुछ कच्चे पदार्थ के व्यापार के लिए इस समझौते के साथ सहमत हो सकता है कि देश ‘ख’ कुछ अन्य निर्दिष्ट सामग्री खरीदेगा अथवा स्थिति इसके विपरीत भी हो सकती है।
(ख) बहु पाशि्वक व्यापार : जैसा कि शब्द से स्पष्ट होता है कि बहुु पाशि्वक व्यापार बहुत से व्यापारिक देशों के साथ किया जाता है। वही देश अन्य अनेक देशों के साथ व्यापार कर सकता है। देश कुछ व्यापारिक साझेदारों को ‘सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र’ (MFN) की स्थिति प्रदान कर सकता है।
मुक्त व्यापार की स्थिति
व्यापार हेतु अर्थव्यवस्थाओं को खोलने का कार्य मुक्त व्यापार अथवा व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है। यह कार्य व्यापारिक अवरोधों जैसे सीमा शुल्क को घटाकर किया जाता है। घरेलू उत्पादों एवं सेवाओं से प्रतिस्पर्धा करने के लिए व्यापार उदारीकरण सभी स्थानांें से वस्तुओं और सेवाओं के लिए अनुमति प्रदान करता है।
भूमंडलीकरण और मुक्त व्यापार विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को उन पर प्रतिकूल थोपते हुए तथा उन्हें विकास के समान अवसर न देकर बुरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं। परिवहन एवं संचार तंत्र के विकास के साथ ही वस्तुएँ एवं सेवाएँ पहले की अपेक्षा तीव्रगति से एवं दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुँच सकती है। किंतु व्यापार मुक्त व्यापार को केवल संपन्न देशों के द्वारा ही बाज़ारों की ओर नहीं ले जाना चाहिए,
डंप करना
लागत की दृष्टि से नहीं वरन् भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग कीमत की किसी वस्तु को दो देशों में विक्रय करने की प्रथा डंप करना कहलाती है।
बल्कि विकसित देशों को चाहिए कि वे अपने स्वयं के बाज़ारों को विदेशी उत्पादों से संरक्षित रखें।
देशों को भी डंप की गई वस्तुओं से सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि मुक्त व्यापार के साथ इस प्रकार की सस्ते मूल्य की डंप की गई वस्तुएँ घरेलू उत्पादकों को नुकसान पहुँचा सकती है।
विश्व व्यापार संगठन
1948 में विश्व को उच्च सीमा शुल्क और विभिन्न प्रकार की अन्य बाधाओं से मुक्त कराने हेतु कुछ देशों के द्वारा जनरल एग्रीमेंट अॉन ट्रेड एंड टैरिफ (GATT) का गठन किया गया। 1994 में सदस्य देशों के द्वारा राष्ट्रों के बीच मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ा प्रोन्नत करने के लिए एक स्थायी संस्था के निर्माण का निश्चय किया गया था तथा जनवरी 1995 से (GATT) को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में रूपांतरित कर दिया गया।
सोचिए! वे कौन से कारण हैं जिनसे व्यापारी देशों के लिए डंपिंग गहरी चिंता का विषय बनती जा रही है?
विश्व व्यापार संगठन एकमात्र एेसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य वैश्विक नियमों का व्यवहार करता है। यह विश्वव्यापी व्यापार तंत्र के लिए नियमों को नियत करता है और इसके सदस्य देशों के मध्य विवादों का निपटारा करता है। विश्व व्यापार संगठन दूरसंचार और बैंकिंग जैसी सेवाओं तथा अन्य विषयों जैसे बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार को भी अपने कार्यों में सम्मिलित करता है। उन लोगों के द्वारा विश्व व्यापार संगठन की आलोचना एवं विरोध किया गया है जो मुक्त व्यापार और अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण के प्रभावों से परेशान हैं। इस पर तर्क किया गया है कि मुक्त व्यापार आम लोगों के जीवन को अधिक संपन्न नहीं बनाता। धनी देशों को और अधिक धनी बनाकर यह वास्तव में गरीब और अमीर के बीच की खाई को बढ़ा रहा है। एेसा इसलिए है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन में प्रभावशाली राष्ट्र केवल अपने वाणिज्यिक हितों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक विकसित देशों ने अपने बाज़ारों को विकसित देशों के उत्पादों के लिए पूरी तरह से नहीं खोला है। यह भी तर्क दिया जाता है कि स्वास्थ्य, श्रमिकों के अधिकार, बाल श्रम और पर्यावरण जैसे मुद्दों की उपेक्षा की गई है।
विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय जिनेवा (स्विटजरलैंड) में स्थित है।
2016 में 164 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य थे।
भारत विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक सदस्य में से एक रहा है।
प्रादेशिक व्यापार समूह
प्रादेशिक व्यापार समूह व्यापार की मदों में भौगोलिक सामीप्य, समरूपता और पूरकता के साथ देशों के मध्य व्यापार को बढ़ाने एवं विकासशील देशों के व्यापार पर लगे प्रतिबंध को हटाने के उद्देश्य से अस्तित्व में आए हैं। आज 120 प्रादेशिक व्यापार समूह विश्व के 52 प्रतिशत व्यापार का जनन करते हैं। इन व्यापार समूहों का विकास अंततः प्रादेशिक व्यापार को गति देने में वैश्विक संगठनों के असफल होने के प्रत्युत्तर में हुआ है।
यद्यपि, ये प्रादेशिक समूह सदस्य राष्ट्रों में व्यापार शुल्क को हटा देते हैं तथा मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं लेकिन भविष्य में विभिन्न व्यापारिक समूहों के बीच मुक्त व्यापार का बने रहना कठिन होता जा रहा है। कुछ प्रमुख प्रादेशिक व्यापार समूह तालिका 9.2 में सूचीबद्ध किए गए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित मामले
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का होना राष्ट्रों के लिए पारस्परिक लाभदायक होता है, यदि यह प्रादेशिक विशिष्टीकरण, उत्पादन के उच्च स्तर, उच्च रहन-सहन के स्तर, वस्तुओं एवं सेवाओं की विश्वव्यापी उपलब्धता, कीमतों और वेतन का समानीकरण, ज्ञान एवं संस्कृति के प्रस्फुरण को प्रेरित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार देशों के लिए हानिकारक हो सकता है यदि यह अन्य देशों पर निर्भरता, विकास के असमान स्तर, शोषण और युद्ध का कारण बनने वाली प्रतिद्वंद्विता की ओर उन्मुख है। विश्वव्यापी व्यापार जीवन के अनेक पक्षों को प्रभावित करते हैं। यह सारे विश्व में पर्यावरण से लेकर लोगों के स्वास्थ्य एवं कल्याण इत्यादि सभी को प्रभावित कर सकता है। जैसे-जैसे देश अधिक व्यापार के लिए प्रतिस्पर्धी बनते जा रहे हैं, उत्पादन और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है, और संसाधनों के नष्ट होने की दर उनके पुनर्भरण की दर से तीव्र होती है। परिणामस्वरूप समुद्री जीवन भी तीव्रता से नष्ट हो रहा है, वन काटे जा रहे हैं और नदी बेसिन निजी पेय जल कंपनियों को बेचे जा रहे हैं। तेल गैस खनन, औषधि विज्ञान और कृषि व्यवसाय में संलग्न बहुराष्ट्रीय निगम और अधिक प्रदूषण उत्पन्न करते हुए हर कीमत पर अपने कार्याें को बढ़ाए रखती है-उनके कार्य करने की पद्धति सतत पोषणीय विकास के मानकों का अनुसरण नहीं करती। यदि संगठन केवल लाभ बनाने की ओर उन्मुख रहते हैं और पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर ध्यान नहीं देते तो यह भविष्य के लिए इसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं।
पत्तन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार
पत्तन
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया के मुख्य प्रवेश द्वार पोताश्रय तथा पत्तन होते हैं। इन्हीं पत्तनों के द्वारा जहाज़ी माल तथा यात्री विश्व के एक भाग से दूसरे भाग को जाते हैं।
पत्तन जहाज़ के लिए गोदी, लादने, उतारने तथा भंडारण हेतु सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इन सुविधाओं को प्रदान करने के उद्देश्य से पत्तन के प्राधिकारी नौगम्य द्वारों का रख-रखाव, रस्सों व बजरों (छोटी अतिरिक्त नौकाएँ) की व्यवस्था करने और श्रम एवं प्रबंधकीय सेवाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था करते हैं। एक पत्तन के महत्त्व को नौभार के आकार और निपटान किए गए जहाजों की संख्या द्वारा निश्चित किया जाता है। एक पत्तन द्वारा निपटाया नौभार, उसके पृष्ठ प्रदेश के विकास के स्तर का सूचक है।
चित्र 9.4 :सैन फ्रांसिस्को, विश्व का सबसे बड़ा स्थलरुद्ध पत्तन
पत्तन के प्रकार
सामान्यत : पत्तनों का वर्गीकरण उनके द्वारा सँभाले गए यातायात के प्रकार के अनुसार किया जाता है।
निपटाए गये नौभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार :
(i) औद्योगिक पत्तन : ये पत्तन थोक नौभार के लिए विशेषीकृत होते हैं जैसे-अनाज, चीनी, अयस्क, तेल, रसायन और इसी प्रकार के पदार्थ।
(ii) वाणिज्यिक पत्तन : ये पत्तन सामान्य नौभार संवेष्टित उत्पादों तथा विनिर्मित वस्तुओं का निपटान करते हैं। ये पत्तन यात्री-यातायात का भी प्रबंध करते हैं।
चित्र 9.5 : लेनिनग्राद का वाणिज्यिक पत्तन
(iii) विस्तृत पत्तन : ये पत्तन बड़े परिमाण में सामान्य नौभार का थोक में प्रबंध करते हैं। संसार के अधिकांश महान पत्तन विस्तृत पत्तनों के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं।
अवस्थिति के आधार पर पत्तनों के प्रकार
(i) अंतर्देशीय पत्तन : ये पत्तन समुद्री तट से दूर अवस्थित होते हैं। ये समुद्र से एक नदी अथवा नहर द्वारा जुड़ होते हैं। एेसे पत्तन चौरस तल वाले जहाज़ या बजरे द्वारा ही गम्य होते हैं। उदाहरणस्वरूप-मानचेस्टर एक नहर से जुड़ा है; मेंफिस मिसीसिपी नदी पर अब स्थित है; राइन के अनेक पत्तन हैं जैसे-मैनहीम तथा ड्यूसबर्ग; और कोलकाता हुगली नदी, जो गंगा नदी की एक शाखा है, पर स्थित है।
(ii) बाह्य पत्तन : ये गहरे जल के पत्तन हैं जो वास्तविक पत्तन से दूर बने होते हैं। ये उन जहाज़ों, जो अपने बड़े आकार के कारण उन तक पहुँचने में अक्षम हैं, को ग्रहण करके पैतृक पत्तनों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। उदाहरणस्वरूप एथेंस तथा यूनान में इसके बाह्य पत्तन पिरेइअस एक उच्चकोटि का संयोजन है।
विशिष्टीकृत कार्यकलापों के आधार पर पत्तनों के प्रकार
(i) तैल पत्तन : ये पत्तन तेल के प्रक्रमण और नौ-परिवहन का कार्य करते हैं। इनमें से कुछ टैंकर पत्तन हैं तथा कुछ तेल शोधन पत्तन हैं। वेनेजुएला में माराकाइबो, ट्यूनिशिया में एस्सखीरा, लेबनान में त्रिपोली टैंकर पत्तन हैं। पर्शिया की खाड़ी पर अबादान एक तेलशोधन पत्तन है।
(ii) मार्ग पत्तन (विश्राम पत्तन) : ये एेसे पत्तन हैं, जो मूल रूप से मुख्य समुद्री मार्गाें पर विश्राम केंद्र के रूप में विकसित हुए, जहाँ पर जहाज़ पुन: ईंधन भरने, जल भरने तथा खाद्य सामग्री लेने के लिए लंगर डाला करते थे। बाद में, वे वाणिज्यिक पत्तनों में विकसित हो गए। अदन, होनोलूलू तथा सिंगापुर इसके अच्छे उदाहरण हैं।
(iii) पैकेट स्टेशन : इन्हें फ़ेरी-पत्तन के नाम से भी जाना जाता है। ये पैकेट स्टेशन विशेष रूप से छोटी दूरियों को तय करते हुए जलीय क्षेत्रों के आर-पार डाक तथा यात्रियों के परिवहन (आवागमन) से जुड़े होते हैं। ये स्टेशन जोड़ों में इस प्रकार अवस्थित होते हैं कि वे जलीय क्षेत्र के आरपार एक दूसरे के सामने होते हैं। उदाहरणस्वरूप-इंग्लिश चैनल के आरपार इंग्लैंड में डोवर तथा फ्रांस में कैलाइस।
(iv) आंत्रपो पत्तन : ये वे एकत्रण केंद्र हैं, जहाँ विभिन्न देशों से निर्यात हेतु वस्तुएँ लाई जाती हैं। सिंगापुर एशिया के लिए एक आंत्रपो पत्तन है, रोटरडम यूरोप के लिए और कोपेनहेगेन बाल्टिक क्षेत्र के लिए आंत्रपो पत्तन हैं।
(v) नौ सेना पत्तन : ये केवल सामाजिक महत्त्व के पत्तन हैं। ये पत्तन युद्धक जहाज़ों को सेवाएँ देते हैं तथा उनके लिए मरम्मत कार्यशालाएँ चलाते हैं। कोच्चि तथा कारवाड़ भारत में एेसे पत्तनों के उदाहरण हैं।
अभ्यास
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें :
(i) संसार के अधिकांश महान पत्तन इस प्रकार वर्गीकृत किए गए हैं-
(क) नौसेना पत्तन (ख) विस्तृत पत्तन
(ग) तैल पत्तन (घ) औद्योगिक पत्तन
(ii) निम्नलिखित महाद्वीपों में से किस एक से विश्व व्यापार का सर्वाधिक प्रवाह होता है?
(क) एशिया (ख) यूरोप
(ग) उत्तरी अमेरिका (घ) अफ्रीका
(iii) दक्षिण अमरीकी राष्ट्रों में से कौन-सा एक ओपेक का सदस्य है?
(क) ब्राज़ील (ख) वेनेजुएला
(ग) चिली (घ) पेरू
(iv) निम्न व्यापार समूहों में से भारत किसका एक सह-सदस्य है?
(क) साफ्टा (SAFTA) (ख) आसियान (Asean)
(ग) ओइसीडी (OECD) (घ) ओपेक (OPEC)
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों में दीजिए :
(i) विश्व व्यापार संगठन के आधारभूत कार्य कौन-से हैं?
(ii) ऋणात्मक भुगतान संतुलन का होना किसी देश के लिए क्यों हानिकारक होता है?
(iii) व्यापारिक समूहों के निर्माण द्वारा राष्ट्रों को क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
3. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों से अधिक में न दें :
(i) पत्तन किस प्रकार व्यापार के लिए सहायक होते हैं? पत्तनों का वर्गीकरण उनकी अवस्थिति के आधार पर कीजिए।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देश कैसे लाभ प्राप्त करते हैं?