"if character lost, everything lost"
👉 *"चरित्र" मनुष्य का अनमोल धन है ।* हर उपाय से इसकी रक्षा करनी चाहिए । किसी की धन-दौलत, जमीन-जायदाद, व्यवसाय, व्यापार चला जाए, तो वह उद्योग करने से पुनः प्राप्त हो सकता है, *किंतु जिसने प्रमाद अथवा असावधानी वश एक बार भी अपना "चरित्र" खो दिया, तो फिर वह जीवन भर के उद्योग से भी अपने उस धन को वापस नहीं पा सकता ।* आगे चलकर वह अपनी भूल संभाल सकता है, अपना सुधार कर सकता है, अपनी "सच्चरित्रता" के लाख प्रमाण दे सकता है, *किंतु फिर भी वह एक बार का लगा हुआ कलंक अपने जीवन पर से नहीं धो सकता ।* उसके लाख संभल जाने, सुधर जाने पर भी समाज उसके उस पूर्व पतन को भूल नहीं सकता और इच्छा होते हुए भी उस पर असंदिग्ध विश्वास नहीं कर सकता ।
👉 *एक बार का चारित्रिक पतन मनुष्य को जीवन भर के लिए कलंकित कर देता है ।* इसीलिए तो विद्वानों का कहना है कि *मनुष्य का यदि "धन" चला गया तो कुछ नहीं गया, "स्वास्थ्य" चला गया तो कुछ गया और यदि "चरित्र" चला गया तो सब कुछ चला गया ।* इस लोकोक्ति का अर्थ यही है कि धन-दौलत तथा स्वास्थ्य आदि को फिर पाया जा सकता है, *किंतु गया हुआ "चरित्र" किसी भी मूल्य पर दुबारा नहीं पाया जा सकता ।* इसलिए मनुष्य का प्रमुख कर्तव्य है कि वह संसार में मनुष्यता पूर्ण जीवन जीने के लिए हर मूल्य पर, हर प्रकार से, हर समय, अपनी *"चरित्र"* रक्षा के लिए सावधान रहे ।