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तटों के प्रकार (Types of Coast)

तटों के प्रकार (Types of Coast)

सागरीय तटों को वर्गीकृत करना काफी कठिन है क्योंकि इनकी बनावट पर शेल संरचना, भूपृष्ठीय रचना, सागर तल से ऊंचाई, सागरीय तरंगों एवं धाराओं को प्रवृत्ति आदि कारकों का प्रभाव रहता है। जिस कारण इनकी प्रकृति परिवर्तनशील रहती है।

सन् 1912 में डेविस ने दो प्रकार के तट बताये: -

(i) उन्मग्न तट (Emergence Coasts ) तथा

(ii) निमग्न तट (Submergence Coast)

इसी प्रकार रियोफेन ने पाँच प्रकार के तट बताये: -

(i) अनुदैर्ध्य तट (Longitudinal Coasts): जो संरचना के अनुकूल होते हैं।

(ii) अनुप्रस्थ तट (Transverse Coasts): ये संरचना के प्रतिकूल होते हैं।

(iii) भ्रंशित बेसिनों के तट (Coasts of Foundered Basin)

(iv) भ्रंशोत्थ तट (Block Coasts) में पठारों के किनारे बनते हैं तथा

(v) जलोढ तट (Alluvial Coasts)

इसी प्रकार स्वेश ने निम्नलिखित दो प्रकार के तट बताये हैं: -

(i) प्रशान्त महासागरीय तट (Pacific Coasts): इसके सहारे नवीन वलित पर्वत मिलते हैं पूर्वी तट के सहारे रॉकीन तथा एण्डीज व पश्चिम तट के सहारे जापान व अन्य द्वीपों में वलित पर्वत स्थित है। ये तट रिचथोफेन द्वारा वर्णित अनुदैर्ध्य तट के सदृश्य हैं।

(ii) अटलांटिक तट (Atlantic Coasts ): इस तट पर संरचना का प्रभाव नहीं पड़ा है। रिचथोफेन द्वारा वर्णित अधिकांश तट इसी प्रकार के हैं। 

जानसन (D. W. Johnson, 1919) ने चार प्रकार के सागरीय तट बताये हैं: -

(i) निमग्न तट Submergence Coasts) इसमें रिया (Ria), फियोर्ड (Fiord), डालमेशियन (Dalmatian) तथा हेफ (Haff) तट सम्मिलित किये हैं।

(ii) उन्मग्न तट (Emergence Coasts )

(ii) तटस्थ तट (Neutral Coasts) तथा

(iv) संश्लिष्ट तट (Compound Coasts)

तटों का 1952 में प्रस्तुत वेलेण्टाइन (Valentine) का वर्गीकरण विश्वस्तर पर मानक रूप में स्वीकार किया गया है। इन्होंने दो मुख्य वर्गों की पहचान की है: -

(1) पार करने वाले तट (Coast which have Advanced) तथा (2) निवर्तित तट (Retreated (Coasts) 

निमज्जित या निमग्न उच्च भूमि तट (Submerged Upland Coasts )

विश्व के अधिकांश तट इसी प्रकार के हैं। इनका निर्माण किसी अनियमित तटीय भूभाग के जलमग्न होने से होता है। इनके निर्माण से संबंधित दो विचारधारायें प्रचलित हैं - एक तो पटलविरूपणी क्रिया द्वारा जिसमें भू-भाग का अवतलन (Subsidence) होता है, दूसरी ओर अनेक विद्वानों ने इसे प्लीस्टोसीन हिमकाल का परिणाम भी बताते हैं। जब प्लोस्टोसीन हिमकाल की बर्फ पिपली तो जलस्तर बढ़ने से तटीय भूभाग जलमग्न हो गये।

प्रमुख निमग्न तट या किनारे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(i) रिया तट (Ria Coast),

(ii) फियोर्ड (Fiord),

(iii) डालमेशियन (Dalmatian) तथा

(iv)  हेफ (Haff) 

कुछ अन्य महत्वपूर्ण तटों के प्रकार निम्नलिखित हैं:

(i) उन्मग्न उच्च भूमि (Emerged Upland),

(ii) उन्मान निम्न भूमि (Emerged Low land),

(iii) प्रवाल तट (Coral Coasts)। 

तटों के प्रकार (Types of Coast)
(i) रिया तट (Ria Coasts) -

"रिया' एक स्पेनिश शब्द है जिसका प्रयोग विस्तृत रूप से निमान (Submerged) तटीय घाटी या ज्वारनदमुख (Estuary) लिए किया जाता है, जो सागर तल में उत्थान के परिणामस्वरूप जलमग्न हुए हैं। रिया तट में तटरेखा के सहारे पहाड़ियों तथा नदी घाटियाँ मिलती हैं। ये तट कीपाकार (Funnel Shaped) होते हैं तथा भूमि की ओर जाने पर चौड़ाई एवं गहराई घटती जाती है। इस प्रकार तट उत्तरी पश्चिमी स्पेन तथा दक्षिणी पश्चिमी आयरलैण्ड तथा ब्रिटेन के सहारे मिलते हैं। 

(ii) फियोर्ड तट (fiord (or fjord)) -

यह तट हिमानी घाटियों के जलमग्न होते से बनते हैं। प्लीस्टोसीन हिमकाल को हिमपरत के पिघलने से सागर तल में उत्थान हुआ तथा हिमानी पारियों जलमग्न हो गई। ये तट लम्बे अंकुर सागरीय क्षेत्र होते है जो तो ढाल पर्वतीय भागों से आबद्ध होते है। इन पर्वतों की गहराई 1100 मीटर तक होती है।

फियोर्ड तट (fiord Coasts) पश्चिमी स्काटलैण्ड, नार्वे, ग्रीनलैण्ड,लेबरेडोर, ब्रिटिश कोलम्बिया, अलास्का, तथा न्यूजीलैण्ड में मिलते है इन सभी क्षेत्रों में प्लीस्टोसीन हिमकाल के दौरान हिमचादर का प्रसार हुआ था।

फियोर्ड तटों में हिमानी पार्टी को अनेक विशेषतायें जैसे यू आकार को घाटी, लटकती पाटी, रूपित स्कन्द (Truncated Spur) आदि मिलते हैं। तटीय भागों में हिमोढ निर्मित द्वीप भी मिलते हैं।

प्रत्येक फियोर्ड के मुहाने के पास सागर तल से रोधिका (Bar) मिलती है जहां ठोस शैल मलने का जमाव हो गया है। यह अन्तिम हिमोढ (Terminal Moraine) का ही एक रूप है। 

(iii) डालमेशियन तट (Dalmatian Coasts)

डालमेशियन' शब्द यूगास्लावियन एड्रियाटिक तट से लिया गया है जिसमें तट स्थलाकृतिक भूआकारों के समानान्तर पाया जाता है इनके नीचे स्थित भूवैज्ञानिक संरचना भी समान होती है क्योंकि डालमेशियन तट का निर्माण विस्तृत तटीय पर्वत श्रेणी के जलमग्न होने से होता है। इन पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित घाटियों में जल भर आता है तथा सागरीय किनारे लम्बाकार द्वीपे सदस्य बन जाते हैं। यहां संकरी प्रायद्वीपीय तट रेखा मिलती है जिसमें लम्बी खाड़ियाँ चैनल तथा रेखीय द्वीप मिलते है। डालमेशियन तट को अनुदैर्ध्य त भी कहते है। प्रशान्त महासागर का पूर्वी तट जो अमेरिका के पश्चिमी तट के सहारे स्थित है। इसी प्रकार का तट

 

(iv) हैफ तट (Haff Coasts) - 

ये बालुका निक्षेपों के निमग्न होने से बनते हैं जिनमें रोधिका हुक आदि आकृतियाँ उत्पन्न होती हैं पूर्वी एशिया तट व फ्रांस का गरोन (सोमरसटेशायर) तट हैफे तट के प्रारूपिक उदाहरण है।

(v) उन्मग्न उच्चभूमि तट (Emerged Upland Coasts) -

इन तटों के सहारे उल्पित पुलिन (Beach) या भृगुरेखा मिलती हैं। तटीय ढालों पर खांचे (Notches) मिलते है जिन्हें भृगु द्वारा पीछे तक धकेल दिया गया है। गुफायें तथा तरंग पर्षित चबुतरे भी मिलते हैं जहाँ तरंग घर्षित चबूतरों से प्रवाहित शैल मलबा गुफाओं तक प्रविष्ट हो जाता है। माल्टा का पश्चिमी तट, उन्मग्न तट का प्रसिद्ध उदाहरण है।

(vi) उन्मान निम्न भूमि (Emerged Lowland Coasts) -

उत्पान निम्न भूमि का विकास समीपवर्ती महाद्वीपीय मग्नवट के उत्पान द्वारा होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी मैदानी तटीय भाग में प्रपात रेखा द्वारा इनके किनारे बना दिये गये है जहाँ अप्लेशियन से एक कृमिक श्रंखला में निकलने वाली नदियों पर बलम्पात पाये जाते हैं। मैक्सिको की खाड़ी तथा अर्जेन्टीना का रियो-डे-ला- प्लाटा (Rio-de-La Plata) तट भी उन्मान निम्नभूमि तट के प्रसिद्ध उदाहरण हैं।

(vii) प्रवाल तट (Coral Coasts) -

उष्ण कटिबन्धीय सागरों में अनेक तटों पर प्रवाल पाये जाते हैं। ये तट चूना प्रधान होते हैं क्योंकि प्रवाल के शरीर में केल्सिय कार्बोनेट की मात्रा सर्वाधिक होती है तथा ये तट मृत प्रवालों के जमा होते रहने से बनते हैं। आस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग के सहारे स्थित ग्रेट बैरियर रीफ प्रवाल तट का एक प्रसिद्ध उदाहरण है।


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