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आगे बढ़ते मानसून तथा पीछे हटते मानसून में अन्तर स्पष्ट कीजिए। Explain the difference between advancing monsoon and retreating monsoon.

आगे बढ़ता मानसून
i) आगे बढते मानसून की अवधि जून से सितम्बर तक होती है।
ii) इस समय मानसूनी पवनों की दिशा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर होती है। 
iii) मई के अंतिम सप्ताह और जून के प्रथम सप्ताह में जब ये पवनें भारत के केरल में पहुँचती हैं और ग्रीष्मकाल में अचानक तीव्र वर्षा करती हैं तो इसे 'मानसून प्रस्फोट' के नाम से जाना जाता है। 
iv) भारतीय मुख्य भूभाग से टकरा कर आगे बढ़ता मानसून दो शाखाओं में विभक्त हो जाता है। एक शाखा बंगाल की खाड़ी में और दूसरी शाखा अरब सागर में आगे बढ़ती है। 
v) आगे बढ़ता मानसून केरल तट, जिसे मालाबार तट के नाम से जाना जाता है, पर पश्चिम घाट के पवन सम्मुख ढलानों एवं पश्चिमी भागों पर पर्वतकृत वर्षा के रूप में लगभग 250 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा करती हैं, लेकिन जब ये पवनें पश्चिम घाट के पवन विमुख ढलानों एवं पूर्वी भागों पर नीचे उतरती हैं तो आर्द्रता की कमी और पर्वतीय ढलानों से घर्षण के कारण बैंगलुरु में केवल 80 सेमी. के आस - पास ही औसत वार्षिक वर्षा कर पाती हैं तथा यह क्षेत्र वृष्टिछाया क्षेत्र रह जाता है। 
vi) बंगाल की खाड़ी में आगे बढ़ता मानसून और अधिक आर्द्रता ग्रहण करके जब आगे बढ़ता है, इसकी एक शाखा पूर्वोत्तर पहाड़ियों, जिन्हें 'पूर्वांचल' के नाम से जाना जाता है, में पहुँचती है तथा सात बहनों की भूमि कहे जाने वाले पूर्वी भारतीय राज्यों में लगभग 250 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा करती है। यहीं पर जब ये पवनें मेघालय पठार की गारो, खाँसी और जयंतियाँ हिल्स के बीच पहुँचती हैं तो पर्वतकृत वर्षा के रूप में यहाँ चेरापूँजी (सोहरा) से लगभग 80 किलोमीटर पूर्व में स्थित मोसिनराम नामक स्थान पर ये विश्व की सर्वाधिक लगभग 1080 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा करती हैं। 
vii) बंगाल की खाड़ी में आगे बढ़ता मानसून की दूसरी शाखा हिमालय पर्वत से टकरा कर पश्चिम की ओर मुड़ जाती है तथा हिमालय की तलहटी एवं गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर आगे बढ़ती जाती है। जैसे - जैसे ये पवनें कोलकाता से दिल्ली की ओर पूर्व से पश्चिम दिशा में आगे बढ़ती हैं तो समुद्र तट से दूरी बढ़ने एवं लगातार वर्षा करने से आर्द्रता में कमी आती है, परिणाम स्वरूप वर्षा की मात्रा क्रमश: उत्तर भारतीय मैदान में पूर्व से पश्चिम की ओर घटती चली जाती है। जैसे - कोलकाता में लगभग 200 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा, प्रयागराज में लगभग 117 सेमी., दिल्ली में 75 सेमी. तथा भारतीय मैदान के पश्चिमी छौर पर स्थित राजस्थान के थार मरुस्थल में केवल 20 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा कर पाती हैं। 
viii) आगे बढते मानसून की दूसरी शाखा अरब सागर से आर्द्रता ग्रहण करते हुए दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की आगे में आगे बढ़ती है तथा कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात के तटीय भागों में भारी बारिश करती हैं। ये पवनें मध्य एवं पश्चिमी भारत में वर्षा करने में सहायक रहती हैं। ये पवनें जब राजस्थान के ऊपर से गुजरती हैं तो अवशिष्ट अरावली पर्वत इनकी दिशा में स्थित होने के कारण इनको रोक नहीं पाता है तथा यह क्षेत्र शुष्क रह जाता है। आगे बढ़कर यह शाखा हरियाणा व पंजाब के क्षेत्रों में बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा से मिल जाती है। 
ix) आगे बढ़ता मानसून जून से सितंबर तक ग्रीष्मकाल में उत्तर भारत में बना रहता हैं, क्योंकि इस समय सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (23 डिग्री 30 मिनट उत्तर) पर 21 जून को लम्बवत चमकता है, जिसके परिणामस्वरूप निम्न वायुदाब की पेटी जिसे 'मानसून गर्त' कहते हैं, उत्तर भारतीय मैदानों पर बनी रहती है तथा यह अंतरउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ - Intertropical Convergence Zone) का अनुसरण करती है। 
x) आगे बढ़ते मानसून से वर्षा लगातार न होकर कुछ - कुछ दिनों के अंतराल पर होती है। वर्षाकाल के बीच में जब कुछ एक दिनों अथवा सप्ताह तक वर्षा नहीं होती है, तो इस अवधि को 'मानसून अंतराल' कहते हैं। 
xi) भारत में अधिकांश वर्षा आगे बढ़ते मानसून काल में ही होती है तथा इसका वितरण और अवधि स्थानिक कारकों पर निर्भर करती हैं। इसके कारण किसी क्षेत्र में भारी वर्षा के कारण बाढ़ें आती हैं, तो किसी क्षेत्र में सूखा गिरता है। पहाड़ी राज्यों, जैसे - उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू - कश्मीर आदि में अक्सर 'फ्लैश फ्लड' आती हैं तथा पूर्वी राज्यों, जैसे - असम, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि में लगभग हर साल बाढ़ आती हैं। 
xii) भारत में आगे बढ़ते मानसून वर्षा की मात्रा एवं सफलता पर अल नीनों और ला नीनों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। जिस वर्ष दक्षिण प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के बीच बहने वाली ठंडे जल की पेरू जलधारा, जिसे 'हमबोल्ट जलधारा' भी कहते हैं, अपनी सामान्य स्थित में बहती है, तो वहाँ पर ठंड के कारण समुद्री क्षेत्रों में उच्च वायुदाब बना रहता, जिसे 'ला नीनों' कहते हैं, तो भारत में निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर मानसून पवनें तीव्रता के साथ भूमध्यरेखा को पार करके पहुँचती हैं तथा सामान्य वर्षा करती हैं। लेकिन अक्सर चार से पाँच सालों में एक बार दक्षिण प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के बीच बहने वाली ठंडे जल की पेरू जलधारा, अचानक गर्म जलधारा में बदल जाती है, जिसे 'अल नीनों' कहा जाता है। इस स्थिति में वहाँ महासागरीय क्षेत्रों का तापमान बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ पर निम्न वायुदाब की स्थिति बन जाती है। इस अवस्था में भारत में और दक्षिण प्रशांत महासागर में, दोनों स्थानों पर निम्न वायुदाब की स्थिति होने के कारण भारत में मानसून विफलता बढ़ जाती हैं तथा उस वर्ष सामान्य से कम वर्षा होती है एवं सूखे की स्थिति बन जाती हैं।

पीछे हटता मानसून
i) पीछे हटते मानसून की अवधि अक्टूबर से नवम्बर तक होती है। 
ii) इस समय मानसूनी पवनों की दिशा उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर होती है। 
iii) सामान्यत सितंबर के अंतिम सप्ताह और अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में मानसून पवनें उत्तर भारत के मैदानी भागों से पीछे हटने लग जाती हैं, क्योंकि इस समय (23 सितंबर या विषुव की स्थिति में) सूर्य भूमध्य रेखा के आस - पास लम्बवत चमकता है, जिसके परिणामस्वरूप अंतरउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ - Intertropical Convergence Zone) विषुवत वृत के आस - पास केंद्रित होता है। धीरे - धीरे उत्तर भारत से ग्रीष्मकाल समाप्त होने लगता है तथा शीतकाल का आगमन होने लगता है। वायुदाब भी धीरे - धीरे महाद्वीपीयता के कारण उच्च वायुदाब की स्थिति धारण करता चला जाता है। 
iv) इस दौरान उत्तर भारत से मानसून पीछे हटने से आसमान बादल रहित हो जाता है जिसके कारण सूर्य का प्रकाश धरातल तक अधिक मात्रा में मिलता है। धरती, वर्षा ऋतु की नमी से भरी होने के कारण तथा आसमान साफ होने के कारण इस अवधि में कुछ दिनों के लिए दिन का मौसम असहनीय हो जाता है, जिसे 'क्वार की उमस / कार्तिक मास की ऊष्मा' के नाम से जाना जाता है। 
v) पीछे हटाता हुआ मानसून, उत्तर - पूर्व दिशा से दक्षिण - पश्चिम दिशा में, बंगाल की खाड़ी जल क्षेत्रों के ऊपर से गुजरता है, तो वहाँ से आर्द्रता ग्रहण करके तमिलनाडु तट, जिसे कोरोमण्डल तट के नाम से जाना जाता है, पर पूर्वी घाट के पवन सम्मुख ढलानों एवं पूर्वी भागों पर पर्वतकृत वर्षा के रूप में नवंबर - दिसंबर में भारी वर्षा करता है। 
vi) इस प्रकार धीरे - धीरे भारत से मानसून वर्षा समाप्त हो जाती है तथा शीतकाल अपना प्रचंड रूप धारण कर लेता है।

Branches of the Southwest Monsoon

Advancing Monsoon
i) The period of advancing monsoon is from June to September.
ii) The direction of monsoon winds at this time is from south-west to north-east.
iii) When these winds reach Kerala in India in the last week of May and first week of June and cause sudden heavy rains in summer, it is known as 'monsoon burst'.
iv) After hitting the Indian mainland, the moving monsoon gets divided into two branches. One branch leads into the Bay of Bengal and the other branch further into the Arabian Sea.
v) The advancing monsoon along the Kerala coast, known as the Malabar Coast, receives about 250 cm of rainfall as montane rainfall over the windward slopes of the Western Ghats and the western parts. Average annual rainfall occurs, but when these winds descend on the windward slopes and eastern parts of the Western Ghats, Bengaluru receives only 80 cm due to lack of moisture and friction from the mountain slopes. The average annual rainfall is received only around the region and this area remains a rain shadow area.
vi) When the monsoon advances further into the Bay of Bengal, absorbing more moisture, a branch of it reaches the northeastern hills known as the 'Purvanchal' and the eastern Indian states known as the land of the seven sisters. About 250 cm in. Average annual rainfall. Here, when these winds reach between the Garo, Khasi and Jaintian Hills of the Meghalaya Plateau, they receive the world's highest rainfall of about 1080 cm average annual rainfall at a place called Mosinram, located about 80 kilometers east of Cherrapunji (Sohra), in the form of mountain rainfall. 
vii) Moving in the Bay of Bengal, the second branch of the monsoon collides with the Himalayan Mountains and turns towards the west and moves from east to west in the foothills of the Himalayas and the Ganga valley. As these winds move from East to West from Kolkata to Delhi, the humidity decreases due to the increase in distance from the seacoast and frequent rains, as a result, the amount of rain gradually decreases from East to West in the North Indian Plain. Like - in Kolkata about 200 cm average annual rainfall receives. The average annual rainfall is about 117 cm in Prayagraj, 75 cm in Delhi. And only 20 cm in the Thar desert of Rajasthan located on the western edge of the Indian plain. 
viii) The second branch of the advancing Monsoon moves further from southwest to northeast taking moisture from the Arabian Sea and causing heavy rains over the coastal parts of Karnataka, Goa, Maharashtra and Gujarat. These winds are helpful in raining in central and western India. When these winds pass over Rajasthan, due to the presence of residual Aravalli Mountain in their direction, they are not able to stop them, and this area remains dry. Further ahead, this branch joins the Monsoon branch of the Bay of Bengal in the regions of Haryana and Punjab.
ix) The advancing monsoon persists over northern India during the summer season from June to September, as the sun shines vertically over the Tropic of Cancer (23° 30' N) in the Northern Hemisphere on June 21, resulting in a low-pressure belt known as ' Monsoon trough', remains on the North Indian plains and it follows the Intertropical Convergence Zone (ITCZ).
x) Due to the advancing monsoon, rainfall is not continuous but occurs at intervals of a few days. When there is no rain for a few days or weeks in the middle of the rainy season, this period is called 'monsoon gap'.
xi) Most of the rainfall in India occurs during the advancing monsoon period and its distribution and duration depend on spatial factors. Due to this, floods occur due to heavy rains in some areas, and drought falls in some areas. The hilly states like Uttarakhand, Himachal Pradesh, Jammu and Kashmir, etc. often face 'flash floods' and the eastern states like Assam, Bihar, West Bengal etc., get flooded almost every year.
xii) The effect of El Niño and La Niño on the quantity and success of the advancing monsoon rainfall in India is clearly visible. The year when the Peru Current of cold water flowing between Australia and South America in the South Pacific Ocean, which is also known as the 'Humboldt Current', flows in its normal position, then due to the cold, there would have been high air pressure in the sea areas, Which is called 'La Nino', then the monsoon winds cross the equator with intensity towards the low air pressure areas in India and cause normal rainfall. But often once in four to five years, the Peru Current of cold water flowing between Australia and South America in the South Pacific Ocean, suddenly turns into a warm current called 'El Niño'. In this situation, the temperature of the oceanic areas increases, as a result of which the condition of low air pressure is created there. In this stage, due to low air pressure conditions both in India and in the South Pacific Ocean, monsoon failure increases in India and there is less than normal rainfall in that year and drought conditions are created.

Retreating Monsoon
i) The period of retreating monsoon is from October to November.
ii) The direction of monsoon winds at this time is from northeast to southwest.
iii) Normally in the last week of September and the first week of October, the monsoon winds start retreating from the plains of North India, because at this time (on 23 September or equinox) the sun shines vertically around the equator, as a result, the Intertropical Convergence Zone (ITCZ) is centered around the equator. Gradually summer starts ending from North India and winter starts arriving. The air pressure also gradually goes on holding the position of high air pressure due to continentality.
iv) During this period, the sky becomes cloudless due to the withdrawal of monsoon from North India, due to which more amount of sunlight reaches the ground. Due to the earth being full of moisture of the rainy season and the sky being clear, the weather of the day becomes unbearable for a few days during this period, which is known as 'quar's humidity'.
v) The retreating monsoon passes over the Bay of Bengal watershed in a north-east to south-west direction, taking moisture from there, the Tamil Nadu coast, known as the Coromandel Coast, moves eastwards. The windward slopes and eastern parts of the Ghats receive heavy rainfall in the form of mountain rains in November-December.
vi) In this way, gradually the monsoon rains end from India and winter takes its severe form.

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