World Population Day (विश्व जनसंख्या दिवस)
हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व स्तर पर जनसंख्या विस्फोट और इसके कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता है।
जनसंख्या से तात्पर्य - जन + संख्या अर्थात लोगों की संख्या। दूसरे शब्दों में जनसंख्या, एक सीमित क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या है।
जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि कहलाते हैं।
अगर दो समय बिन्दुओं में जनसंख्या बढ़ जाए तो यह धनात्मक (Positive) वृद्धि कहलाती है, जबकि दो बिन्दुओं में अगर किसी स्थान की जनसंख्या घट जाए या कम हो जाए तो यह ऋणात्मक (Negative) वृद्धि कहलाती है।
वर्तमान समय में सबसे ज्यादा जनसंख्या वृद्धि (मात्रा / संख्या में) एशिया (Asia) महाद्वीप में है, जबकि अगर जनसंख्या वृद्धि दर (Population Growth Rate) (प्रतिशत में) की बात करें तो वह अफ्रीका (Africa) महाद्वीप में है।
World Population Day Key Facts |
Sonipat Population Facts |
World Population Day - July 11 (विश्व जनसंख्या दिवस - 11 जुलाई) |
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विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य वर्तमान में बढती आबादी के कारण होने वाले दुष्प्रभावों और इससे जुड़े अन्य मुद्दों और इसके महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है। लोगों को परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, मानवाधिकार और मातृत्व स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देना भी इसका उद्देश्य रहता है।
विश्व जनसंख्या दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने वाला एक जागरूकता अभियान है, ताकि लोगों को विश्व जनसंख्या में हो रही अत्यधिक वृद्धि के प्रति जागरूक किया जा सके।
इसके साथ - साथ लड़का और लड़की दोनों की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिये भी यह दिवस मनाया जाता है। ताकि वे दोनों अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह समझने के काबिल होने तक शादी को रोक सकें। विश्व जनसंख्या दिवस के माध्यम से युवाओं को अनचाहे गर्भ से बचने के लिये शिक्षित करना, समाज से लैंगिकता संबंधी रुढ़िवादिता को हटाने के लिये शिक्षित करना, समय से पहले माँ बनने के खतरे को लेकर लोगों को शिक्षित करना तथा विभिन्न इंफेक्शन से बचने के लिये यौन संबंधों के द्वारा फैलने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक करना आदि कुछ अन्य प्रमुख उद्देश्य रहते हैं।
बढ़ती जनसंख्या के मुद्दों पर एक साथ कार्य करने के लिये बड़ी संख्या में लोगों के ध्यानाकर्षण के लिये विभिन्न क्रियाकलापों और कार्यक्रमों को आयोजित करने के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है।
सेमिनार,
चर्चा, शैक्षिक प्रतियोगिता, शैक्षणिक जानकारी सत्र, निबंध लेखन प्रतियोगिता, विभिन्न
विषयों पर लोक प्रतियोगिता, पोस्टर वितरण, गायन, खेल क्रियाएँ, भाषण, कविता, चित्रकारी,
नारें, विषय और संदेश वितरण, कार्यशाला, लेक्चर, बहस, गोलमोज चर्चा, प्रेस कॉन्प्रेंस
के द्वारा खबर फैलाना, टीवी और न्यूज चैनल, रेडियो और टीवी पर जनसंख्या संबंधी कार्यक्रम
आदि कुछ क्रियाएँ इसमें शामिल हैं।
इस दिन का निर्धारण
1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की तत्कालीन गवर्निंग काउंसिल द्वारा किया गया था। इस दिन को मनाने का सुझाव डॉक्टर केसी जैक्रियाह (Dr KC Zachariah)
ने दिया था जिन्होंने दुनिया को विश्व की जनसंख्या के 5 बिलियन तक पहुंचने का आंकड़ा
बताया था। उस समय वो वर्ल्ड बैंक में सीनियर
डेमोग्राफर के तौर पर काम कर रहे थे। इस प्रकार पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई
1987 को मनाया गया।
1987 में 5 बिलियन तक जनसंख्या पहुंचने के बाद यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट
प्रोग्राम (UNDP) ने यह तय किया कि इस दिन अवकाश रखा जाएगा। जिससे बढती
जनसंख्या और इसके दुष्प्रभावों की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया जा सके। इस प्रकार
World population Day को 1989 से मनाना शुरू
किया गया।
दिसंबर 1990 में रिजोल्यूशन 45/216 से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जनसंख्या के मुद्दों के बारे में
जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य के साथ विश्व
जनसंख्या दिवस मनाया और इसमें पर्यावरण
और इसके समग्र विकास के मुद्दों को भी शामिल किया गया ।
विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रमुख नारे (WORLD POPULATION DAY Famous SLOGANS)
v जनसंख्या नियंत्रण
करना मुश्किल हैं लेकिन नामुमकिन नहीं।
v विश्व जनसंख्या
दिवस मनाने का उद्देश्य भविष्य की भीड़ कम करना हैं।
v भुखमरी से बचने
के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करे।
v विश्व जनसंख्या
दिवस मनाने से जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता हैं।
v जनसंख्या विस्फोट
के कारण होने वाले शोषण से धरती को बचाए।
v विश्व जनसंख्या
दिवस मनाकर जनसंख्यावृद्धि के खिलाफ आवाज़ उठायी जा सकती हैं।
v जनसंख्या नियंत्रण
के लिए अपने खुदके बच्चे को जन्म देने के स्थान पर एक बच्चा गोद ले।
v धरती को जनसंख्या
विस्फोट से बचाइए।
v धरती पर रहने
की पर्याप्त जगह बनाने के लिए इस केम्पेन में शामिल होना चाहिए।
v भविष्य के सुखद
जीवन के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण करें।
बढ़ती जनसंख्या के मुख्य कारण:-
विश्व जनसंख्या
दिवस के दिन बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाने के प्रति लोगों को जागरुक किया जाता है। पिछले
साल विश्व जनसंख्या दिवस की थीम परिवार नियोजन
थी।
तेजी से जनसंख्या की वृद्धि कई वजहों से समाज और स्वास्थ्य के लिए
खतरनाक है। गैरकानूनी होते हुई भी देश के कई पिछड़े इलाकों में आज बाल विवाह की परंपरा है। इसकी वजह से कम उम्र
में ही महिलाएं मां बन जाती हैं। जो कि बच्चे और मां दोनों के स्वास्थ्य के लिए घातक
है।
रूढ़िवादी समाज में आज भी लड़के की चाह
में पुरुष, परिवार नियोजन अपनाने को तैयार
नहीं होते। कई बार महिलाओं पर लड़का पैदा
करने का दबाव ज्यादा होता है और इसकी वजह से कई महिलाओं को मार भी दिया जाता है।
इसके अलावा,
लड़कियों को शादी से पहले गर्भ निरोधक के उपाय
संबंधित जानकारी नहीं दी जाती है। दरअसल, जनसंख्या बढ़ने की कई वजहों में गरीबी और अशिक्षा भी है। अशिक्षा की वजह से
लोग परिवार नियोजन के महत्व को नहीं समझते और मातृत्व स्वास्थ्य एवं लैंगिक समानता
के महत्व को कमतर आंकते हैं। जनसंख्या बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती है।
विश्व में जनसंख्या वितरण सम्बन्धी तथ्य:-
1.विश्व में
इस समय 7 अरब से ज्यादा जनसंख्या है जिसका
90% भाग, धरातल के 10% भाग पर बसा है, जबकि 90% स्थल भाग पर विश्व की केवल 10% जनसंख्या
निवास करती है
2.विश्व की
61% (3.50 अरब) जनसंख्या अकेले एशिया महाद्वीप में, 12.9% जनसंख्या अफ्रीका में तथा
12.5% जनसंख्या यूरोप में पाई जाती है
3.देशों के
आधार पर देखें तो विश्व की 47% जनसंख्या, कुल चार देशों, जैसे - 21% जनसंख्या (134
करोड़) चीन में, 17% जनसंख्या (121 करोड़) भारत में, 5% जनसंख्या (32 करोड़) USA में तथा
4% जनसंख्या (21 करोड़) इंडोनेशिया में पाई जाती है
4.विश्व जनसंख्या
का 90% भाग उत्तरी गोलार्द्ध में और शेष 10% भाग, दक्षिण गोलार्द्ध में पाया जाता है
5.विश्व की
50% जनसंख्या 20 डिग्री उत्तर अक्षांश से 40 डिग्री उत्तर अक्षांश के बीच पाई जाती
है
6.विश्व की
77% (तीन –चौथाई) जनसंख्या विकाशील देशों में तथा शेष 23% (एक – चौथाई) जनसंख्या विकसित
देशों में पाई जाती है
7.विश्व की 38% जनसंख्या तो केवल दो देशों – चीन और भारत में बसती है।
विश्व जनसंख्या वृद्धि की प्रवृतियाँ (Trends of World Population Growth) :-
विश्व
की वर्तमान जनसंख्या 700 करोड़ है। इस संख्या तक पहुँचने में मानव सभ्यता को
सदियाँ लगी हैं। प्रारम्भिक चरणों में मनुष्य घुमक्कड़ और चलवासी जीवन जीता था। उस समय जनसंख्या वृद्धि की दर काफी कम थी, लेकिन जब आज से 8000 से 12000 वर्ष पूर्व मनुष्य ने कृषि करना सीखा (कृषि
का उदभव हुआ) तो मानव के जीवन में स्थायित्व आया। इस समय (कृषि के उदभव)तक विश्व
जनसंख्या 80 लाख थी
ईसा की पहली शताब्दी (ईसा का जन्म) में जनसंख्या 25 से 30 करोड़ थी। 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में बढ़ते विश्व व्यापार ने जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के लिए मंच तैयार किया। सन 1750 के आस – पास जब औद्योगिक क्रांति का उदय हुआ तो विश्व जनसंख्या बढ़कर 55 करोड़ हो गयी।
18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के पश्चात तकनीकी व वैज्ञानिक उन्नति के कारण जनसंख्या में विस्फोटक रूप से वृद्धि हुई। इस समय चिकित्सा सुविधा बढ़ने, संक्रामक रोगों के विरुद्ध टिका विकसित होने, स्वच्छता को अपनाने आदि से मृत्यु दर में बहुत कमी आई।
इंजन के आविष्कार से कृषि क्षेत्र में क्रांति आने से अनाज उत्पादन में वृद्धि हुई तो कुपोषण एवं भुखमरी पर काबू पाया जा सका। इससे जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से हुई तथा यह बढ़कर 1800 में 100 करोड़ यानि 1 अरब हुई।1930 में 200 करोड़ यानि 2 अरब, 1974 में 400 करोड़ यानि 4 अरब, 1987 में 500 करोड़ यानि 5 अरब, 1999 में 600 करोड़ यानि 6 अरब, 2011 में 700 करोड़ यानि 7 अरब हो गयी।
विश्व जनसंख्या के दो गुना होने की अवधि :-
काल |
जनसंख्या |
दो गुना
होने की अवधि |
10000 ई.
पूर्व 1650 ई. 1830 ई. 1930 ई. 1960 ई. 1975 ई. 1987 ई. 1999 ई. 2011 ई. |
50 लाख 50 करोड़ 100 करोड़ यानि 1
अरब 200 करोड़ यानि 2
अरब 300 करोड़
यानि 3 अरब 400 करोड़ यानि 4
अरब 500 करोड़
यानि 5 अरब 600 करोड़ यानि 6 अरब 700 करोड़ यानि 7
अरब |
- 1500 वर्ष 180 वर्ष 100 वर्ष 30 वर्ष 15 वर्ष 12 वर्ष 12
वर्ष 12
वर्ष |
तालिका से पत्ता चल रहा है कि विश्व में जनसंख्या दो गुना होने की अवधि तेजी से घट रही है।
Ø विगत
500
वर्षों में मानव जनसंख्या 10 गुना से अधिक बढ़ी
है
Ø अकेले 20वीं शताब्दी में जनसंख्या 4 गुना बढ़ी है।
Ø प्रतिवर्ष लगभग 8 करोड़ लोग पहले की जनसंख्या में जुड़ रहे हैं।
Ø मानव
जनसंख्या को प्रारम्भिक एक करोड़ होने में 10 लाख से भी अधिक
वर्ष लगे
Ø इसे 5 अरब से 6 अरब होने में मात्र 12 वर्ष लगे।
Ø विभिन्न प्रदेशों में जनसंख्या के दो गुना होने की अवधि में अत्यधिक भिन्नताएँ मिलती हैं।
Ø विकसित
देशों में,
विकासशील देशों की तुलना में अपनी जनसंख्या दो गुना करने में अधिक
समय ले रही है
Ø जनसंख्या
की अधिकतर वृद्धि विकासशील विश्व में हो रही है, जहाँ जनसंख्या विस्फोट हो रहा है
विश्व जनसंख्या परिवर्तन का स्थानिक प्रतिरूप :-
विश्व जनसंख्या के दो गुना होने की अवधि में प्रादेशिक भिन्नता मिलती है। विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि दर धीमी गति से बढ़ती है, जबकि विकासशील देशों में यह तीव्र गति से बढ़ रही है। जैसे – USA, कनाडा, जापान, यूरोप, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड आदि विकसित देशों की वृद्धि दर काफी कम (0.3%) है, जबकि अफ्रीकन देश लाइबेरिया में जनसंख्या वृद्धि दर सबसे अधिक 8.2 % है, रवांडा (7.7%) का दूसरा स्थान है। नाइजीरिया, अफ्रीका का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। अफ्रीका महाद्वीप की जनसंख्या वृद्धि दर 2.6% है तथा एशिया महाद्वीप की जनसंख्या वृद्धि दर 1.4% है। रूस,युक्रेन, एस्टोनिया तथा लैटविया (-1.5%) की जनसंख्या वृद्धि दर ऋणात्मक (NEGATIVE) है। जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास में ऋणात्मक सह - सम्बन्ध पाया जाता है। यद्यपि जनसंख्या परिवर्तन की वार्षिक दर 1.4 निम्न प्रतीत होती है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि निरंतर घटती वृद्धि दर में भी कुल जनसंख्या प्रतिवर्ष बढ़ती है।
NOTE :- एड्स/HIV जैसी घातक बीमारियों ने अफ्रीका और CIS देशों में मृत्यु दर को बढ़ा दिया है, जबकि जीवन प्रत्याशा को घटा दिया है।
जनसंख्या परिवर्तन या अधिक आबादी के प्रभाव :-
1.
बेरोजगारी
2. रोजगार
पैदा करना बहुत मुश्किल अर्थात् रोजगार की कमी होगी
3. अनपढ़
लोगों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। अर्थात् अशिक्षा
4. बेरोजगारों
की बढ़ती संख्या से आर्थिक मंदी, व्यापार,
विकास और विस्तार गतिविधियां धीमी
होती हैं।
5. बुनियादी
ढांचे का विकास उतनी तेजी से नहीं हो पाता जितनी
तेजी से आबादी में वृद्धि होती है। इसका नतीजा परिवहन,
संचार, आवास, शिक्षा,
स्वास्थ्य सेवा आदि की कमी
के तौर पर सामने आता है। झुग्गी बस्तियों (Slums), भीड़ भरे
घरों, ट्रेफिक जाम आदि में बढ़ोत्तरी हुई
है।
6. भूमि
क्षेत्र,
जल संसाधन और जंगल आदि सभी का बहुत अधिक शोषण होता है तथा संसाधनों
में कमी आती है।
7. खाद्य
उत्पादन और वितरण बढ़ती हुई आबादी की बराबरी करने में सक्षम नहीं हो पाता हैं। इसलिए उत्पादन की लागत
में वृद्धि होती है और महंगाई बढ़ती है।
8. बढ़ती
हुई आबादी के कारण आय के वितरण में बड़ी असमानता उत्पन्न होती है और देश
में असमानता बढ़ती जाती है।
जनांकिकीय संक्रमण (Demographic Transition) :-
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के
पुर्वानुमान के लिए किया जाता है। किसी प्रदेश की जनसंख्या उच्च जन्म दर और उच्च
मृत्यु दर से निम्न जन्म दर और निम्न मृत्यु दर में परिवर्तित होती है। ये परिवर्तन अवस्थाओं में होते हैं जिन्हें सामूहिक रूप
से जनांकिकीय चक्र के रूप में जाना जाता हैI जनांकिकीय
संक्रमण के
कई मॉडल हैं, लेकिन आमतौर पर निम्न चार चरणों को स्वीकार किया गया है :-
1.
प्रथम चरण
में,
जन्म-दर और मृत्यु-दर दोनों ही उच्च होते हैं। इसमें जनसंख्या वृद्धि धीरे-धीरे
होती है। इसमें अधिकांश लोग कृषि कार्य करते हैं। इन समाजों में निम्न उत्पादकता,
निम्न आयु प्रत्याशा, बड़े आकार के परिवार,
अल्पविकसित कृषि वाली मुख्य आर्थिक गतिविधि, निम्न
स्तरीय साक्षरता और प्रौद्योगिकीय विकास तथा निम्न शहरीकरण होता है।
एक समय (200
वर्ष पूर्व) विश्व
के लगभग सभी देश इस स्थिति में थे, लेकिन अब जनांकिकीय
संक्रमण की इस स्थिति में किसी देश का मिलना असंगत प्रतीत होता है। जैसे -
बांग्लादेश वर्षा वनों के आदिवासी
2. दूसरी अवस्था में,
उच्च जन्म-दर और निम्न मृत्यु-दर
होती है। स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि और खाद्य सुरक्षा मृत्यु-दर में कमी करते
हैं। लेकिन शिक्षा का अपर्याप्त स्तर प्राप्त न करने के कारण,
जन्म-दर बेहद ऊची होती है। जैसे - भारत,पीरू, केन्या,
श्रीलंका, मिस्र आदि
3. तीसरी अवस्था में,
प्रजनन दर धीरे-धीरे कम होने लगती है और मृत्यु-दर तेजी से गिरने लगती है।
हालांकि जनसंख्या धीमी दर से बढ़ती है। विश्व के अधिकतर कम विकसित देश जनांकिकीय
संक्रमण की इस विस्फोटक अवस्था से गुजर रहे
हैं।
4. अंतिम अवस्था में,
मृत्यु-दर और जन्म-दर दोनों में उत्साहजनक रूप से
कमी आती है।
इसमें जनसंख्या या तो स्थायी हो जाती है या धीमी गति से बढ़ती है।
यह
अवस्था एंग्लो-अमेरिका (अमेरिका, कनाडा),
पश्चिम यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान
इत्यादि में है।
5.
पांचवीं
अवस्था में, जन्म-दर,
मृत्यु-दर से नीची होती है, जिस कारण जनसंख्या घटने लगती है। पश्चिम यूरोप के कुछ देश इस अवस्था के
मुहाने पर खड़े प्रतीत होते हैं।
भारत की जनांकिकीय संक्रमण अवस्थाएँ :-
(1)
प्रथम चरण 1901-1921 - यह स्थायी जनसंख्या का काल
था, जिसमें जन्म और मृत्यु-दर दोनों उच्च थीं। चेचक,
प्लेग, इफ्लुएंजा जैसी महामारियों के कारण इस
काल में मृत्यु दर बेहद ऊंची थी। अकाल के कारण खाद्यान्न की कमी के कारण अनेक लोगों
की जान गई।
(2)
दूसरी अवस्था 1921-51 यह धीमी गति से वृद्धि का काल था, जिसमें उच्च
जन्म-दर थी, लेकिन मृत्यु-दर में, रोगों के नियंत्रण और खाद्य आपूर्ति के बेहतर प्रबंधन के कारण कमी आई।1921 को जनाकिकीय विभाजन वर्ष माना जाता हैI इस वर्ष के पश्चात् मृत्यु दर में
कमी होना शुरू हो गई और जनसंख्या वृद्धि में तेजी आने लगी। इसे मृत्यु प्रेरित वृद्धि भी
कहा जा सकता है I
(3)
तीसरी अवस्था 1951-81 इसे जनसंख्या में तीव्र एवं उच्च संवृद्धि
का काल कहा जा सकता है। इसमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और त्वरित
विकासपरक गतिविधियों के कारण मृत्यु-दर में बेहद कमी आई। हालांकि जन्म-दर,
उच्च बनी रही। इसके परिणामस्वरूप जनसंख्या
में बेतहाशा वृद्धि हुई, जिसे जनसंख्या
विस्फोट का नाम दिया गया। इसे प्रजनन प्रेरित वृद्धि भी कहा जा सकता है I
(4) चौथी अवस्था 1981 के
पश्चात का काल,
को संवृद्धि की घटती हुई प्रवृत्ति के साथ उच्च
जनसंख्या वृद्धि का काल कहा जा सकता है। हालांकि जनसंख्या में वृद्धि
निरंतर जारी रहती है,
वृद्धि दर में घटने की प्रवृति दिखाई देती है। शिक्षा प्रसार,
छोटे परिवार के लाभों के प्रति जागरूकता, यहां तक की सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का
विस्तार जैसे सभी कारकों ने 1981-91 से आगे के दशक में
जनसंख्या की दशकीय वृद्धि में घटने की प्रवृति में योगदान किया। 2001 से 2011 के दशक में दशकीय वृद्धि का प्रतिशत
स्वतंत्रता के समय से बेहद कमी के साथ दर्ज किया गया। भारत
को जनसंख्या वृद्धि की घटती हुई अवस्था में कहा जा सकता है। स्वास्थ्य
सुविधाओं की उपलब्धता, निम्न शिशु मृत्यु-दर, महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन, शिक्षा
प्रसार, परिवार नियोजन, और जीवन
स्तर में बढ़ोतरी जैसे कारकों ने इस बदलाव में योगदान किया।
जनसंख्या
नियन्त्रण के उपाय :-
1.
परिवार नियोजन अपनाना
2. बच्चों
के जन्म में अन्तराल रखना
3. शिक्षा
का स्तर बढ़ाना
4. महिला
शिक्षा पर जोर देना
5. रोजगार
पैदा करना
6. गर्भ
निरोधक की सुगमता से उपलब्धता
7.
जनसंख्या
नीति अपनाना
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